फ़ेसबुक के साथ आपका और हमारा बेहद अनोखा रिश्ता है. गुजरे सालों में कुछ भी हुआ, कितने विवाद हुए लेकिन फ़ेसबुक की लोकप्रियता बढ़ती ही रही. यूजर बेस का रथ भी दौड़ता रहा जो पहली बार बीते साल की आखिरी तिमाही में रुक गया. मेटा के मुताबिक, युवा यूजर्स अब उनके प्लेटफ़ॉर्म की तरफ रुख नहीं करते और TikTok से जोरदार टक्कर भी मिल रही है. टिकटॉक वही शॉर्ट वीडियो प्लेटफ़ॉर्म है जो इंडिया में बैन है. कमाई में आई कमी के लिए कंपनी ने ठीकरा ऐप्पल पर फोड़ा तो हमारा माथा ठनका और हमने इस पॉलिसी की खोज-खबर ली.
क्या है ऐप्पल प्राइवेसी पॉलिसी?
ऐप ट्रैकिंग ट्रांसपेरेंसी (ATT ) फ्रेमवर्क या नए सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए ऑपरेटिंग सिस्टम में लाया गया बदलाव. अब ये कोई छिपी बात तो है नहीं कि ऐप्पल अपने प्रोडक्टस के प्रोसेसर से लेकर सॉफ्टवेयर पर खुद का कंट्रोल रखता है तो किसी भी तरीके का बदलाव करना उसके लिए आसान है. अब हुआ ये है कि ऐप्पल ने पिछले साल अप्रैल में एक नया सॉफ्टवेयर अपडेट 14.5 पुश किया और बहुत से कंट्रोल यूजर के हाथ में आ गए. नए अपडेट के मुताबिक, ऐप डेवलपर्स को इस बात के लिए फोर्स किया गया कि वो एक पॉपअप के जरिए यूजर से परमिशन लें कि वो उनकी गतिविधि ट्रैक कर सकते हैं या नहीं. Advertisement
Facebook App
ATT
अब आईफोन यूजर्स कोई भी नया ऐप डाउनलोड करते हैं तो उनसे पॉपअप भेजकर एक्टिविटी (गतिविधि) ट्रैक करने की इजाजत ली जाती है. एक बात ध्यान रखिए कि इजाजत देना या नहीं देना सिर्फ यूजर के हाथ में है. दो विकल्प होते हैं. उनमें से एक को चुनना होता. ऐप डाउनलोड करने के बाद जब भी आप ऐप को इस्तेमाल करेंगे तो ये पॉपअप आता रहता है. ऐसा हर बार नहीं होता, लेकिन कोई ऐप आप काफी दिनों के बाद ओपन करते हैं तो फिर पॉपअप आता है. आईफोन यूजर्स खुद भी एक्टिविटी ट्रैकिंग के इस फीचर को इस्तेमाल कर सकते हैं, उसके लिए उनको सेटिंग्स में प्राइवेसी के अंदर ऑप्शन मिलता है. यहां तय किया जा सकता है कि कौन सा ऐप ट्रैक करेगा और कौन सा नहीं.
Apple’s Privacy Policy
बवाल क्या है?
एक्टिविटी ट्रैकिंग क्या है? ये अब सभी को मालूम हो चुका है. तकरीबन सभी ऐप आपको फ्री सेवा देते हैं तो उनको अपना दाना पानी चलाने के लिए कुछ तो चाहिए. आपकी एक्टिविटी ट्रैकिंग यही काम करती है. आप क्या सर्च करते हैं? क्या देखते हैं? इन एक्टिविटी को डेवलपर्स शेयर करते हैं विज्ञापन देने वालों से. अब ऐसा नहीं होगा तो जाहिर सी बात है कि ब्रांड्स टार्गेटेड एडवर्टाइजिंग नहीं कर पाएंगे. बात अभी फ़ेसबुक की वजह से हो रही है, लेकिन इसका असर दूसरों पर भी है. एक आंकड़ा आपकी आंखे खोलने के लिए काफी होगा कि एक्टिविटी ट्रैकिंग ऑप्शनल है उसके बाद भी दुनिया भर में 95 प्रतिशतसे ज्यादा आईफोन यूजर्स ने इस फीचर के लिए हां किया है.
फ़ेसबुक और ऐप्पल की लड़ाई में गूगल
अब फ़ेसबुक का यूजर बेस कितना बड़ा है वो बताने की जरूरत नहीं. ऐसे में ऐप्पल की इस पॉलिसी (Apple’s Privacy Policy) का असर पड़ना ही था. यूजर्स की ट्रैकिंग नहीं तो विज्ञापन नहीं और इसी ने लगा दी बड़ी चपत फ़ेसबुक या कहें Meta को. फ़ेसबुक इससे कैसे निपटेगा वो देखना सच में बहुत दिलचस्प होगा, क्योंकि फ़ेसबुक के लिए सरदर्द ऐप्पल ही नहीं गूगल भी है. दरअसल, ऐप्पल का जो ऐप ट्रैकिंग ट्रांसपेरेंसी (ATT) फ्रेमवर्क है उससे गूगल बाहर है. आईफोन यूजर्स ने भी देखा होगा कि गूगल ऐप डाउनलोड करने के बाद ट्रैकिंग वाला कोई पॉपअप नहीं आता और सेटिंग्स में भी गूगल का नाम नहीं दिखता.Google Apps in iPhone
इस वजह से Meta नाराज भी है. मेटा के चीफ फाइनेंस ऑफिसर डेविड वेनर ने ऐप्पल और गूगल के बीच सांठ गांठ होने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि गूगल को ट्रैक करने की इजाजत होने से टार्गेटेड एडवर्टाइजिंग में मदद मिलती है.
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