# कहानी Vizzy की
साल 1922 में विज़ी के पिता की मृत्यु हो गई और फिर ये बनारस की अपनी फैमिली इस्टेट में आ गए. और यहीं साल 1926 में विज़ी ने अपनी क्रिकेट टीम बना ली. अब टीम बनी तो ग्राउंड चाहिए था. ऐसे में विज़ी ने अपने पैलेस में ही ग्राउंड बना लिया. उनकी इस टीम में भारत के साथ विदेशी प्लेयर्स भी थे. ये टीम क्रिकेट खेलती थी. और बताते हैं कि विज़ी ना सिर्फ क्रिकेट बल्कि टेनिस में भी बहुत अच्छे थे. और साथ ही उनका ये भी मानना था कि वह शिकार बहुत सही करते हैं. हालांकि इस दावे की सत्यता पर लोग शक़ करते हैं. इतना करते हैं कि रिटायरमेंट के सालों बाद जब एक बार कॉमेंट्री करते हुए विज़ी को ऑलमोस्ट शर्मिंदा ही होना पड़ा. दरअसल विज़ी का दावा था कि उन्होंने 300 से ज्यादा टाइगर मारे हैं. और ऐसे ही एक रोज कॉमेंट्री के दौरान जब वह लेक्चर दे रहे थे, तो वेस्ट इंडीज़ के दिग्गज रोहन कन्हाई ने कहा,'सच में? मुझे लगा कि तुमने कॉमेंट्री करते वक्त अपना ट्रांजिस्टर रेडियो खुला छोड़ दिया और वो बोर होकर मर गए.'ख़ैर, विज़ी की स्टोरी पर लौटते हैं. विज़ी के क्रिकेट लभ में एक बड़ा मोड़ आया साल 1930 में. MCC की टीम ने राजनैतिक हालात का हवाला देते हुए इंडिया टूर करने से मना कर दिया. और विज़ी ने इसका फायदा उठाते हुए अपनी टीम को भारत और श्रीलंका टूर करा दिया. और इस टूर की सबसे बड़ा हाईलाइट ये था कि विज़ी की टीम में जैक हॉब्स और हरबर्ट सटक्लिफ जैसे दिग्गज थे.
# Vizzy vs Bhuppi
और इस टक्कर में एक बड़ा मोड़ उस वक्त आया, जब भुप्पी की वॉइसरॉय लॉर्ड विलिंगडन से ठन गई. और इसका फायदा उठाते हुए विज़ी ने नेशनल फर्स्ट-क्लास कंपटिशन के चैंपियन को विलिंगडन ट्रॉफी देनी चाही. लेकिन वह चूक गए. भुप्पी ने पहले ही उन्हें रणजी ट्रॉफी पकड़ा दी. फिर आया साल 1932. विज़ी ने इंग्लैंड टूर पर जा रही इंडियन टीम को स्पॉन्सर करने की घोषणा कर दी. और इसके साथ ही उन्हें डेप्यूटी वाइस-कैप्टेंसी भी मिल गई. ये अलग बात है कि स्वास्थ्य कारणों के चलते विज़ी ने इस टूर पर जाने से मना कर दिया. और फिर साल 1936 आते-आते विज़ी बरगद बन चुके थे. इंडियन क्रिकेट पर उनका प्रभाव इतना ज्यादा था कि इस बार वह टीम इंडिया के कप्तान बनकर इंग्लैंड गए. और ये टूर उनके पूरे करियर की सबसे बड़ी भूल साबित हुआ.'मैंने उसे एक फुल टॉस और कुछ खराब गेंदें फेंकी थीं. लेकिन आप इंग्लैंड में पूरे दिन ऐसी बोलिंग नहीं कर सकते.'ख़ैर, इस टूर पर भारत बुरी तरह से हारा और इसके साथ ही विज़ी के इंटरनेशनल करियर का भी अंत हो गया. उन्होंने क्रिकेट से दूरी बना ली और गुमनामी में चले गए. फिर कुछ साल बाद भारत आजाद हो गया. और विज़ी क्रिकेट में लौट आए. इस बार वह एडमिनिस्ट्रेटर और ब्रॉडकास्टर के रोल में लौटे थे. हालांकि इस बार भी वह बहुत लोकप्रिय नहीं हो पाए. लोगों ने उनकी कॉमेंट्री को बेकार, बकवास बताया. यहां तक कि साथी कॉमेंटेटर्स को भी विज़ी का काम पसंद नहीं आता था. बाद में 2 दिसंबर साल 1965 को बनारस में विज़ी का देहांत हो गया. क्रिकेट के जानकार कहते हैं कि अगर विज़ी आजीवन एक क्रिकेट स्पॉन्सर रहते तो पूरी दुनिया में उनका नाम होता. लोग आज भी उनकी तारीफ करते. लेकिन उन्होंने एक महान क्रिकेटर बनने के चक्कर में सब गुड़-गोबर कर लिया.
भज्जी के वो स्पेल जिन्हें देख हर इंडियन खूब झूमा!
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