थाइमोग्लोबुलिन. खरगोशों से मिलने वाली इस दवा को सिर्फ आयरलैंड की एक कंपनी बनाती है. इसका इस्तेमाल ऑर्गन ट्रांसप्लांट में होता है. बताया जाता है कि ये दवा ऑर्गन रिसीव करने वाले के शरीर में ऑर्गन रिजेक्शन की आशंका को कम करने में मदद करती है. खबर ये है कि भारत में थाइमोग्लोबुलिन की कमी हो गई है. इसके चलते देश में ऑर्गन ट्रांसप्लांट प्रोग्राम प्रभावित हो रहा है. इस सिलसिले में इंडियन सोसाइटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन (ISOT) ने बीती 20 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था. ISOT ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को भी पत्र लिखकर दवा की आपूर्ति की मांग की है.
खबर के मुताबिक ISOT ने लेटर में जानकारी दी है कि थाइमोग्लोबुलिन की नई खेप को जुलाई 2021 से नियामक परीक्षणों के लिए दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल्स (NIB) में रोक लिया गया था. इसे अभी तक भारतीय बाजार के लिए जारी नहीं किया गया है. पत्र में सरकार से अपील की गई है कि दवा को जल्द से जल्द रिलीज किया जाए.
गुजरात में बड़ी संख्या में किडनी ट्रांसप्लांट रुके
थाइमोग्लोबुलिन की कमी के चलते गुजरात में ऑर्गन ट्रांसप्लांट प्रोग्राम प्रभावित होता दिखा है. पिछले पांच महीनों में राज्य के दो प्रमुख संस्थानों में कम से कम 180 आर्गन ट्रांसप्लांट का काम देरी से हुआ है. अहमदाबाद स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ किडन डिसीज एंड रिसर्च सेंटर (IKDRC) गुजरात में किडनी ट्रांसप्लांट का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है. अहमदाबाद मिरर में छपी खबर के अनुसार थाइमोग्लोबुलिन की कमी के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर IKDRC के निदेशक डॉ विनीत मिश्रा ने बताया,
हमें पिछले पांच महीनों में कम से कम 150 किडनी ट्रांसप्लांट रोकने पड़े हैं, क्योंकि हमारे यहां थाइमोग्लोबुलिन का स्टॉक खत्म हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि सरकार देश भर में ट्रांसप्लांट संस्थानों को इसे उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाएगी.
क्या कोई विकल्प नहीं?
ऐसा नहीं है कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के लिए थाइमोग्लोबुलिन का कोई विकल्प नहीं है. बाजार में और भी दवाएं मौजूद हैं. विकल्प के रूप में एलेमटुजुमाब, ग्रैफलॉन और बेसिलिक्सिमैब के नाम लिए जाते हैं. हालांकि डॉक्टर्स बताते हैं कि अधिक संक्रामक जटिलताओं के कारण भारत में एलेमटुजुमाब का उपयोग नहीं किया जाता है. वहीं बेसिलिक्सिमैब देने का सुझाव तभी दिया जाता है, जब मरीज को उसके माता-पिता किडनी डोनेट कर रहे हों. ऐसे ट्रांसप्लांट में जोखिम तुलनात्मक रूप से कम होते हैं, इसीलिए केवल इनमें बेसिलिक्सिमैब देने की सिफारिश की जाती है.
थाइमोग्लोबुलिन अमेरिका की शीर्ष सरकारी स्वास्थ्य एजेंसी FDA से अप्रूव है. हाई रिस्क वाले वाले किडनी ट्रांसप्लांट में ये दवा जरूरी बताई जाती है. इस तरह के ट्रांसप्लांट के लिए कोई विकल्प इंडक्शन थेरेपी नहीं है. हालांकि कुछ ट्रांसप्लांट केंद्रों ने थाइमोग्लोबुलिन की कमी के कारण ग्रैफलॉन को विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया है.
फिलहाल ISOT ने बताया है कि किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के लिए डायलिसिस की प्रतीक्षा कर रहे कई पेशेंट्स को इस दवा की तुरंत जरूरत है. इसीलिए सरकार से इस पर ध्यान देने की अपील की गई है.
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