चौधरी रहमत अली और उनके दोस्तों ने 28 जनवरी 1933 को "Now Or Never" की हेडिंग से एक बुकलेट निकाली थी. बुकलेट चार पन्नों की थी. इसमें कहा गयाः
"भारत की आज जो स्थिति है, उसमें वह न किसी एक देश का नाम है, न ही कोई एक राष्ट्र है, वह ब्रिटेन द्वारा पहली बार बना एक स्टेट है. पांच उत्तरी प्रांतों की लगभग चार करोड़ जनसंख्या में हम मुसलमानों की जनसंख्या लगभग तीन करोड़ है. हमारा मजहब और तहजीब, हमारा इतिहास और परंपरा, हमारा सोशल बिहैवियर और इकनॉमिक सिस्टम, लेन-देन, उत्तराधिकार और शादी-विवाह के हमारे कानून बाकी भारत के ज्यादातर बाशिंदों से बिल्कुल अलग हैं. ये अंतर मामूली नहीं हैं. हमारा रहन-सहन हिन्दुओं से काफी जुदा है. हमारे बीच न खानपान है, न शादी-विवाह के संबंध. हमारे रीति रिवाज, यहां तक कि हमारा खाना पीना और वेशभूषा भी अलग है."
Advertisement
चौधरी रहमत अली
इसी किताब में सबसे पहले पाकिस्तान नाम के एक मुस्लिम मुल्क का जिक्र किया गया था. रहमत अली ने ही 1933 में पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट की शुरुआत की. और आगे चलकर उन्होंने 1 अगस्त 1933 से पाकिस्तान नाम की वीकली मैगजीन भी शुरू की. चौधरी रहमत अली ने पाकिस्तान को परिभाषित भी किया था.
रहमत अली के पाकिस्तान शब्द की परिभाषा ये थी: P-Punjab A-Afghania (North-West Frontier Province) K-Kashmir S-Sindh Tan-BalochisTanचौधरी रहमत अली ने पाकिस्तान का नक्शा भी छपवाया था. इस किताब के नक्शे में भारत के अंदर तीन मुस्लिम देशों को दिखाया गया था. ये देश थे पाकिस्तान, बंगिस्तान (पूर्वी बंगाल, आज का बांग्लादेश) और दक्खिनी उस्मानिस्तान (हैदराबाद, निजाम की रियासत). सबसे खास बात ये कि रहमत अली के पाकिस्तान और अल्लामा इकबाल के सेपरेट मुस्लिम स्टेट में कहीं भी बंगाल का जिक्र नहीं है. जबकि पाकिस्तान एक मुल्क बना तो पूर्वी बंगाल को भी पूर्वी पाकिस्तान के तौर पर उसमें शामिल किया गया था, जो बाद में जाकर स्वतंत्र राष्ट्र 'बांग्लादेश' बना.
टू नेशन थ्योरी
भारत में मजहब के नाम पर राजनीति शुरू हुई थी 1905 के बंगाल विभाजन से. मुस्लिम बहुल इलाकों को लेकर पूर्वी बंगाल बनाया गया. और हिंदू बहुल इलाका पश्चिम बंगाल बना. इस फैसले के विरोध में राष्ट्रवादी नेताओं ने स्वदेशी आंदोलन छेड़ दिया, जबकि ज्यादातर मुस्लिम नेता बंगाल विभाजन के समर्थन में थे. इस सियासी जद्दोजहद के बीच दिसंबर 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई. इसकी स्थापना का मकसद मुसलमानों के हक की आवाज उठाना था. उस वक्त मुस्लिम लीग का कोई एजेंडा अलग मुल्क बनाने का नहीं था.मार्च 1927 में मोहम्मद अली जिन्ना की अध्यक्षता में 30 बड़े मुस्लिम नेताओं की बैठक ने अलग मताधिकार को छोड़ने के लिए चार मांगें सामने रखीं.
पहली मांग थी- मुस्लिम बहुल सिंध को हिन्दू बहुल बंबई प्रांत से अलग किया जाए.
दूसरी मांग थी- मुस्लिम बहुल बलूचिस्तान और उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत को केन्द्र शासित क्षेत्रों से एक प्रांत का दर्जा दिया जाए.
तीसरी मांग थी- मुस्लिम बहुल पंजाब और बंगाल प्रांतों के हिन्दुओं और मुसलमानों को जनसंख्या के अनुपात में रिप्रजेंटेशन दिया जाए.
चौथी मांग थी- केन्द्रीय सरकार में मुसलमानों को कम से कम एक तिहाई रिप्रजेंटेशन मिले.
मोहम्मद अली जिन्ना
इन मांगों से आगे बढ़ाकर अल्लामा इकबाल ने सुझाव दिया कि पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, बलूचिस्तान और सिंध को मिलाकर एक बड़ा प्रांत बनाया जाए. उस प्रांत में यदि अल्पसंख्यक समुदाय सीटों के आरक्षण की मांग न उठाए तो सेपरेट रिप्रजेंटेशन को खत्म कर दिया जाए. इन सभी मांगों का इशारा अलग मुस्लिम प्रांत के निर्माण की ओर था. अल्लामा इकबाल के चार प्रांतों को मिलाकर एक बड़ा प्रांत बनाने की मांग को नेहरू रिपोर्ट में नहीं माना गया. इस रिपोर्ट ने कहा कि इतने बड़े प्रांत का शासन चलाना मुश्किल होगा. जिन्ना अलग-थलग पड़ गए थे. मुस्लिम लीग का जिन्ना गुट और शफी गुट में विभाजन हो गया था.
मुस्लिम लीग लीडरशिप ने सर्वदलीय कमेटी का बहिष्कार कर दिया था. नेहरू रिपोर्ट के जवाब में 31 दिसंबर 1928 को आगा खान की अध्यक्षता में दिल्ली में सर्वदलीय मुस्लिम सम्मेलन बुलाया गया. इस सम्मलेन में आगा खान ने भारत की एकता के हित में ब्रिटिश शासन का बने रहना जरूरी बताया. 28 मार्च 1929 को जिन्ना ने चौदह सूत्री मांग पत्र जारी किया. इस मांग पत्र में पहली चार मांगों में और नई मांगें जोड़ दी गईं.
मुस्लिम मन को समझने के लिए 1930 में हुए मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में अल्लामा इकबाल के अध्यक्षीय भाषण का जिक्र करना जरूरी है. इस भाषण में इकबाल ने अलग मुस्लिम राज्य की मांग को एक अलग तरह से रिप्रजेंट किया. उन्होंने कहा-
"इस्लाम केवल मजहब नहीं, एक सिविलाइजेशन भी है. दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. एक को छोड़ने से दूसरा भी छूट जाएगा. भारतीय राष्ट्रवाद के आधार पर राजनीति के गठन का मतलब इस्लामी एकता के सिद्धांत से अलग हटना है, जिसके बारे में कोई मुसलमान सोच भी नहीं सकता."
अल्लामा इकबाल
साथ ही उन्होंने कहा, "कोई मुसलमान ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं करेगा, जिसमें उसे राष्ट्रीय पहचान की वजह से इस्लामिक पहचान को छोड़ना पड़े. मैं चाहता हूं कि पंजाब, उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत, सिंध, कश्मीर और बलूचिस्तान का एक सेल्फ रूल स्टेट में मर्ज कर दिया जाए. ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर या बाहर. उत्तर पश्चिम में एक बड़े मुस्लिम स्टेट की स्थापना ही मुझे मुसलमानों की नियति दिखाई दे रही है." उन्होंने इस राज्य में से अम्बाला डिवीजन और अन्य गैर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को अलग करने का सुझाव भी दिया.
1937 में हुए चुनाव में मुस्लिम लीग को ज्यादातर सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. 1937 के चुनाव अभियान के दौरान जब जवाहर लाल नेहरू कहते थे कि इस चुनाव में केवल दो पार्टियां हैं, एक ब्रिटिश सरकार और दूसरी कांग्रेस. जबकि जिन्ना कहते थे, "नहीं तीन पार्टियां हैं, एक ब्रिटिश सरकार, दूसरी कांग्रेस और तीसरी मुसलमान."28 मई 1937 को इकबाल ने चुनाव परिणामों से हताश जिन्ना को खत लिखा कि "स्वतंत्र मुस्लिम राज्य के बिना इस देश में इस्लामी शरीयत का पालन और विकास संभव नहीं है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस देश में गृहयुद्ध की स्थिति हो सकती है. जो पिछले कुछ सालों से हिन्दू-मुस्लिम दंगों के रूप में चल रहा है. क्या तुम नहीं सोचते कि यह मांग उठाने का समय अब आ चुका है?"
अल्लामा इक़बाल (बीच में) और चौधरी रहमत अली ( इक़बाल के दाएं )
21 जून 1937 में इकबाल ने जिन्ना को फिर से खत लिखा कि, "मुझे याद है कि मेरे इंग्लैंड से वापस रवाना होने के पहले लॉर्ड लोथियन ने मुझसे कहा था कि भारत की मुसीबतों का एकमात्र हल बंटवारा ही है, लेकिन इसे साकार करने में 25 साल लगेंगे."
1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक अलग मुल्क बन गया. मोहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई में अल्लामा इकबाल के सेपरेट मुस्लिम स्टेट और चौधरी रहमत अली के पाकिस्तान का ख्वाब तो पूरा हो गया, पर ये कितना सार्थक हुआ, इसका अंदाजा पाकिस्तान के मौजूदा हालात से लगाया जा सकता है.
ये स्टोरी आदित्य प्रकाश ने की है
ये भी देखें : क्या पाकिस्तान जिंदाबाद नारे लगाने पर जेल हो सकती है?