पिछड़ा वर्ग के कल्याण के लिए बनी संसदीय समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के वर्गवार आंकड़े मांगे थे. 6 फरवरी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से यह आंकड़े जारी किए गए थे. इन आंकड़ो के मुताबिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 95 फीसदी प्रोफेसर अगड़ी जातियों से आते हैं. वहीं दलित बिरादरी से आने वाले प्रोफेसरों की संख्या महज 3.54 फीसदी है. आदिवासी समुदाय के प्रोफेसरों की संख्या एक फीसदी से भी कम है. अन्य पिछड़ा वर्ग का कोई भी प्रोफेसर 49 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नहीं है.
एसोसिएट प्रोफेसर के मामले में भी यही रुझान देखने को मिलता है. लगभग 93 फीसदी एसोसिएट प्रोफेसर अगड़ी जातियों से आते हैं. दलित एसोसिएट प्रोफेसरों की संख्या करीब पांच फीसदी है. आदिवासी समुदाय से आने वाले एसोसिएट प्रोफेसरों की संख्या 1 फीसदी है. वहीं एक भी एसोसिएट प्रोफेसर अन्य पिछड़ा वर्ग से नहीं आता है. हायर एजुकेशन में टीचिंग के लिहाज से सबसे निचले पायदान की नौकरी असिस्टेंट प्रोफेसर है. इसमें भी आरक्षित वर्ग की भागीदारी कुछ बेहतर लेकिन नाकाफी दिखाई देती है. 100 में से 66 असिस्टेंट प्रोफेसर अगड़ी जातियों से आते हैं. जबकि दलित बिरादरी के असिस्टेंट प्रोफेसर की संख्या 12 फीसदी है. आदिवासी समुदाय की भागीदारी 6 फीसदी है और अन्य पिछड़ा वर्ग से 15 फीसदी असिस्टेंट प्रोफेसर आते हैं. केंद्र की तरफ से सरकारी नौकरियों में दलितों के लिए 15, आदिवासियों के 7 और पिछड़ों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है.
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13 पॉइंट को आरक्षण पर हमले की तरह देखा जा रहा है.
13 पॉइंट रोस्टर से क्यों नाराज हैं दलित और आदिवासी
2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला आया. इस फैसले के मुताबिक यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के पदों की भर्ती 13 पॉइंट के नए रोस्टर के हिसाब से की जाए. इस रोस्टर के दो नुक्तों ने आरक्षित वर्ग के लोगों को नाराज कर दिया. पहला नुक्ता था कि नियुक्ति में विश्वविद्यालय की बजाए डिपार्टमेंट को मूल यूनिट माना जाए. इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी यूनिवर्सिटी में कुल 400 असिस्टेंट प्रोफेसर के खाली हैं तो इसका आरक्षित सीटों का बंटवारा डिपार्टमेंट के हिसाब होगा ना कि कुल पदों के हिसाब से. दूसरा नुक्ता था आरक्षित सीटों के निर्धारण का. 13 पॉइंट रोस्टर के हिसाब से पहले से लेकर तीसरे नंबर तक के पद को अनारक्षित रखा गया, चौथा पद OBC को दिया गया, 5वां और 6ठा पद फिर से अनरिज़र्व्ड रखा गया, 7वां पद अनुसूचित जाति यानी SC के लिए फिक्स रखा गया. 8वां पद दोबारा से ओबीसी को दिया गया, 9वां, 10वां और 11वां पद अनरिज़र्व्ड रखा गया, फिर 12वां पद OBC और 13वां पद फिर से अनरिज़र्व्ड यानी कि अनारक्षित रखा गया, और आखिर में 14वां पद ST यानी कि अनुसूचित जनजाति के लिए रखा गया. माने कि दलितों को आरक्षण तब तक नहीं मिलेगा जब तक कोई विभाग अपने यहां कम से कम 7 पदों भर्ती ना निकाले. आदिवासी समुदाय के मामले में पदों की संख्या 14 तक पहुंच जाती है. अगर कोई विभाग महज 3 सीट निकालता है तो कोई भी सीट आरक्षित नहीं होगी. इस 13 पॉइंट रोस्टर को आरक्षित वर्ग ने आरक्षण पर हमला माना.
13 प्वाइंट रोस्टर के बारे में विस्तार से जानिए
13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ अध्यादेश लाएगी केंद्र सरकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई थी. 22 जनवरी 2019 को केंद्र सरकार ने 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ दायर यूजीसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की याचिका को ख़ारिज कर दिया. इसके बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 13 पॉइंट रोसत्र के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की. इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी 2019 को ख़ारिज कर दिया. इसके बाद दलित और आदिवासी संगठनों ने 5 मार्च को भारत बंद का ऐलान किया था.
मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज कर देती है तो सरकार 13 पॉइंट रोस्टर को खत्म करने के लिए अध्यादेश लाएगी. 5 मार्च को दलित और आदिवासी संगठनों के प्रदर्शन के बाद केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने साफ़ किया कि सरकार एक-दो दिन के भीतर अध्यादेश लाकर 200 पॉइंट रोस्टर को फिर से लागू कर सकती है.
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