कोर्ट ने की थी कड़ी टिप्पणी
इस मामले पर पिछली सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया था कि यूपी विधानसभा में मार्च, 2021 में एक बिल पारित किया गया था, इसमें किसी विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचे नुकसान का हर्जाना वसूलने का प्रावधान किया गया था. इस कानून में दोषियों को एक साल कैद और उनसे 5 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक के जुर्माने को वसूलने की बात कही गई है. बेंच ने ये भी पाया कि जो नोटिस भेजे गए, वो इस कानून के बनने से पहले ही भेज दिए गए. 11 फरवरी को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि वसूली के जो नोटिस भेजे गए हैं, वो किसी कानून के तहत नहीं भेजे गए. ऐसे में इन नोटिस को वापस लिया जाना चाहिए और नए कानून के तहत वसूली की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए. यूपी सरकार के रवैये से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने उससे पूछा था कि आखिर राज्य सरकार इस तरह से कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कैसे कर सकती है. सुप्रीम की बेंच ने सरकार को चेतावनी देते हुए ये भी कहा था कि यदि अब उसने नोटिस वापस नहीं लिए तो अदालत कानून का उल्लंघन करने वाले इन नोटिसों को खारिज कर देगी. जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना था,"नए कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि उन मामलों को ट्रांसफर किया जाए, जिनका फैसला पहले ही हो चुका है. जिन गरीब लोगों की संपत्ति को कुर्क कर लिया गया है, उनके पास कोई विकल्प नहीं होगा. आपको कानून का पालन करना होगा."इसी तरह जस्टिस सूर्यकांत ने यूपी सरकार से कहा था,
"क्या आप सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं? आप ही शिकायतकर्ता हैं, आप ही आरोप तय कर रहे हैं, आप ही गवाह हैं, आप ही फैसला सुना रहे हैं और आदेश दे रहे हैं. क्या इसकी अनुमति दी जा सकती है? उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में 236 नोटिस भेजना कोई बड़ी बात नहीं है. उन्हें वापस भी लिया जा सकता है. अगर आप सुनने को तैयार नहीं हैं, तो हम आपको बताएंगे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पालन किस तरह से किया जाता है."इस पूरे मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी जिक्र किया था. इन फैसलों के आधार पर बेंच ने कहा था कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान का आंकलन किसी न्यायिक अधिकारी को ही करना चाहिए, ना कि डीएम और एडीएम को. इससे पहले अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले महीने इस संबंध में खोजी रिपोर्ट की थी. रिपोर्ट में पाया गया था कि लखनऊ ईस्ट के एडीएम ने CAA विरोधी कथित प्रदर्शनकारियों को वसूली के 46 नोटिस भेजे. ऐसे नोटिस भेजते हुए प्रशासन ने खुद ही अभियोजन और जज की भूमिका निभाई. अपने मन से नुकसान का आंकलन किया. जिन लोगों को नोटिस भेजे गए, उन्हें अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया.
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