सुप्रीम कोर्ट का आदेश, यूपी सरकार CAA प्रदर्शनकारियों से वसूले गए करोड़ों रुपए वापस करे

03:31 PM Feb 18, 2022 |
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सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी के बाद यूपी सरकार ने CAA को लेकर विरोध प्रदर्शन करने वालों को जारी किए गए वसूली नोटिस वापस लेने का फैसला किया है. सरकार ने ऐसे 274 नोटिस वापस लेने की जानकारी कोर्ट को दी है. सरकार ने कोर्ट को ये भी बताया है कि आगे से वह इस तरह की कार्रवाई सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने पर वसूली के लिए बने कानून के तहत करेगी. यही नहीं, इस कानून के तहत स्थापित की गईं ट्रिब्यूनल के जरिए ही पूरी कार्रवाई की जाएगी. जिन नोटिस को वापस लेने की बात यूपी सरकार ने कही है, उनके तहत वसूली गई रकम करोड़ों में है. शुक्रवार, 18 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने की. बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि अभी तक जिन लोगों से पैसे लिए जा चुके हैं, वो उन्हें वापस किए जाएं. आजतक की नलिनी शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान यूपी के अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने बेंच से वसूली गई रकम की वापसी का आदेश नहीं देने का आग्रह भी किया. उन्होंने कहा कि वसूली गई रकम करोड़ों रुपये में है, ऐसे में संदेश जाएगा कि प्रशासन द्वारा की गई वसूली की पूरी प्रक्रिया अवैध थी. बेंच ने गरिमा प्रसाद की उस दलील को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि कोर्ट पैसा वापसी का आदेश देने के बजाय प्रदर्शनकारियों और राज्य सरकार को क्लेम ट्रिब्यूनल में जाने की अनुमति दे.

कोर्ट ने की थी कड़ी टिप्पणी

इस मामले पर पिछली सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया था कि यूपी विधानसभा में मार्च, 2021 में एक बिल पारित किया गया था, इसमें किसी विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचे नुकसान का हर्जाना वसूलने का प्रावधान किया गया था. इस कानून में दोषियों को एक साल कैद और उनसे 5 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक के जुर्माने को वसूलने की बात कही गई है. बेंच ने ये भी पाया कि जो नोटिस भेजे गए, वो इस कानून के बनने से पहले ही भेज दिए गए. 11 फरवरी को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि वसूली के जो नोटिस भेजे गए हैं, वो किसी कानून के तहत नहीं भेजे गए. ऐसे में इन नोटिस को वापस लिया जाना चाहिए और नए कानून के तहत वसूली की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए. यूपी सरकार के रवैये से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने उससे पूछा था कि आखिर राज्य सरकार इस तरह से कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कैसे कर सकती है. सुप्रीम की बेंच ने सरकार को चेतावनी देते हुए ये भी कहा था कि यदि अब उसने नोटिस वापस नहीं लिए तो अदालत कानून का उल्लंघन करने वाले इन नोटिसों को खारिज कर देगी. जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना था,
"नए कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि उन मामलों को ट्रांसफर किया जाए, जिनका फैसला पहले ही हो चुका है. जिन गरीब लोगों की संपत्ति को कुर्क कर लिया गया है, उनके पास कोई विकल्प नहीं होगा. आपको कानून का पालन करना होगा."
इसी तरह जस्टिस सूर्यकांत ने यूपी सरकार से कहा था,
"क्या आप सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं? आप ही शिकायतकर्ता हैं, आप ही आरोप तय कर रहे हैं, आप ही गवाह हैं, आप ही फैसला सुना रहे हैं और आदेश दे रहे हैं. क्या इसकी अनुमति दी जा सकती है? उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में 236 नोटिस भेजना कोई बड़ी बात नहीं है. उन्हें वापस भी लिया जा सकता है. अगर आप सुनने को तैयार नहीं हैं, तो हम आपको बताएंगे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पालन किस तरह से किया जाता है."
इस पूरे मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी जिक्र किया था. इन फैसलों के आधार पर बेंच ने कहा था कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान का आंकलन किसी न्यायिक अधिकारी को ही करना चाहिए, ना कि डीएम और एडीएम को. इससे पहले अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले महीने इस संबंध में खोजी रिपोर्ट की थी. रिपोर्ट में पाया गया था कि लखनऊ ईस्ट के एडीएम ने CAA विरोधी कथित प्रदर्शनकारियों को वसूली के 46 नोटिस भेजे. ऐसे नोटिस भेजते हुए प्रशासन ने खुद ही अभियोजन और जज की भूमिका निभाई. अपने मन से नुकसान का आंकलन किया. जिन लोगों को नोटिस भेजे गए, उन्हें अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया.
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