यूक्रेन संकट: UNSC में रूस के खिलाफ अमेरिका के प्रस्ताव से भारत ने क्यों बनाई दूरी?

07:30 AM Feb 26, 2022 |
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रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव के बीच 25 फरवरी को अमेरिका और अल्बानिया ने रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एक प्रस्ताव पेश किया. इस प्रस्ताव में बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा गया कि 'रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण' किया है. इस प्रस्ताव को पेश करने में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, पोलैंड समेत कई देशों ने अमेरिका और अल्बानिया का साथ दिया. इधर वोटिंग के दौरान भारत ने इस प्रस्ताव से दूरी बना ली. भारत के अलावा, चीन और सयुंक्त अरब अमीरात (UAE) ने भी इस प्रस्ताव पर वोट नहीं किया.

क्या था प्रस्ताव?

रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों ने इस समय मोर्चा खोल रखा है. अमेरिका ने UNSC में जो प्रस्ताव पेश किया, उसमें कहा गया कि रूस को यूक्रेन की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से अपनी सेना को बिना देर किए, बिना किसी शर्त के पूरी तरह से वापस बुलाना चाहिए. प्रस्ताव में ये भी कहा गया कि रूस अपना वो फैसला भी वापस ले, जिसमें उसने डोनेस्क और लोहान्स्क को अलग स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया है. साथ ही आगे से संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य के साथ दोबारा ऐसी हरकत ना करे.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन. (फाइल फोटो AP)

भारत, चीन और UAE ने इस प्रस्ताव से दूरी बनाई. वोट नहीं दिया. बाकी सभी 11 सदस्यों ने अमेरिका के इस प्रस्ताव का समर्थन किया. लेकिन रूस UNSC का स्थाई सदस्य है. इस महीने रूस ही सिक्योरिटी काउंसिल का अध्यक्ष भी है. जाहिर सी बात है रूस ने प्रस्ताव के खिलाफ वीटो किया और प्रस्ताव खारिज हो गया.

भारत ने क्या कहा?

UN में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने भारत के इस फैसले पर कुछ तर्क दिए. उन्होंने बताया क्यों भारत ने किसी भी तरफ से वोट ना देते हुए इस प्रस्ताव से खुद को दूर रखा. एक-एक करके सारे प्वाइंट जान लेते हैं-
- यूक्रेन में पैदा हुए हालात को लेकर भारत काफी चिंतित है. - भारत ये अपील करता है कि हिंसा को तुरंत रोका जाना चाहिए. - लोगों की जान की कीमत पर किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता. - हमें यूक्रेन में फंसे भारतीयों, खासतौर पर भारतीय छात्रों की सुरक्षा को लेकर फिक्र है. - विश्व के सभी देशों को UN चार्टर, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए. - सभी विवादों को सुलझाने के लिए बातचीत ही एक मात्र रास्ता है. लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है. - ये दुखद है कि हमने कूटनीति के रास्तों को छोड़ दिया है. हमें जल्द इस भूल को सुधारने की जरूरत है. - इन सभी कारणों की वजह से भारत इस प्रस्ताव से दूरी बनाता है.
 

भारत ने ऐसा क्यों किया?

कूटनीति जल्दबाजी और भावुकता से दूर रहने का विषय है. और भारत इस बात को बखूबी जानता है. बीते कुछ सालों में भारत का झुकाव अमेरिका की तरफ बढ़ा है. लेकिन भारत ने अपने पुराने साथी रूस को छोड़ा नहीं है. चाहे आधुनिक हथियारों की जरूरत हो या वैश्विक मंच पर सहयोग, रूस दशकों से भारत के साथ खड़ा रहा है. इसके अलावा एक सबसे बड़ी वजह है यूक्रेन में फंसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी. ये भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. 24 फरवरी की देर रात विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस के विदेश मंत्री से सरजेई लावरोव और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन से बातचीत की. जयशंकर ने दोनों ही देशों से टेबल पर मसले को सुलझाने की अपील की. दोनों ही पक्षों से जुड़े देशों से भारत लगातार बातचीत कर रहा है. इसलिए भारत ने किसी भी पक्ष में वोटिंग ना करना ही बेहतर समझा.
इस पूरे प्रकरण में सबसे चौंकाने वाला कदम चीन का था. चीन ने लगातार रूस की हां में हां मिलाई. इसी मसले पर बीते 31 जनवरी को चीन ने रूस के समर्थन में वोट किया था. ऐसे में चीन चाहता था अमेरिका के प्रस्ताव के खिलाफ वोट कर सकता था. लेकिन चीन का प्रस्ताव से दूरी बनाना अंतर्राष्ट्रीय मसलों की समझ रखने वालों के लिए एक नई पहेली है.


वीडियो- रूस से युद्ध के बीच यूक्रेन से लोगों का विस्थापन जारी, स्थिति गंभीर होने वाली है
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