RSS ने कहा, संविधान और आजादी के नाम पर बढ़ रही है धार्मिक कट्टरता

07:27 PM Mar 12, 2022 |
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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान के नाम पर देश में धार्मिक कट्टरता फैलाने की कोशिश हो रही है. RSS की रिपोर्ट में बंगाल हिंसा और कर्नाटक हिजाब विवाद का भी ज़िक्र है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक समुदाय विशेष संविधान की आड़ में सरकारी तंत्र में दखल देने का भी प्रयास कर रहा है.

क्या है रिपोर्ट में?

दरअसल, RSS गुजरात में अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक आयोजित कर रहा है, जहां पिछले एक साल में संघ के काम का जायज़ा और भविष्य की रूपरेखा तैयार की जा रही है. ये रिपोर्ट इसी सभा में जारी की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है,
"देश में बढ़ती धार्मिक कट्टरता ने ख़तरा पैदा करना शुरू कर दिया है. केरल और कर्नाटक में हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं की हत्याएं इस ख़तरे का एक उदाहरण हैं. रैलियों, प्रदर्शनों और संविधान की आड़ में सांप्रदायिक उन्माद, सामाजिक अनुशासन का उल्लंघन, रीति-रिवाजों और परंपराओं और धार्मिक स्वतंत्रता को उजागर करने वाले कायरतापूर्ण कामों का सिलसिला बढ़ रहा है. मामूली कारणों की तर्ज पर हिंसा भड़काने, अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देने आदि में बढ़ोतरी हो रही है."
RSS का ये बयान तब आया है, जब कर्नाटक में पिछले दो महीने से स्कूलों में हिजाब पहनने को लेकर विवाद चल रहा है. संघ ने  कथित दीर्घकालीन लक्ष्यों के साथ कथित साजिश की ओर इशारा करते हुए रिपोर्ट में दावा किया,
"ऐसा लगता है कि एक विशेष समुदाय सरकारी तंत्र में दखल देने के लिए विस्तृत योजना बना रहा है. इन सबके पीछे एक दीर्घकालिक लक्ष्य की आशंका होती है. संख्या के बल पर अपनी बात मनवाने के लिए कोई भी रास्ता अपनाने की तैयारी की जा रही है."
संघ की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिंदू समाज जाग रहा है और स्वाभिमान के साथ खड़ा हो रहा है. संघ की तरफ से कहा गया कि दुश्मन ताकतें इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं और साजिश रच रही हैं. रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल में 2021 विधानसभा चुनाव के बाद की हिंसा और पंजाब में चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले के एक फ्लाईओवर पर फंसे जाने की घटना का भी ज़िक्र है. लिखा गया है,
"पिछले साल मई में बंगाल में हुई घटनाएं राजनीतिक दुश्मनी और धार्मिक कट्टरता का परिणाम थीं. ऐसी गतिविधियों को देश-विदेश की बौद्धिक ताकतें प्रोटेक्ट करती हैं. इनकी आड़ में एक ख़तरनाक एजेंडा काम कर रहा है."
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राजनीति में प्रतिस्पर्धा ज़रूरी है, लेकिन यह स्वस्थ भावना से होनी चाहिए और लोकतंत्र के दायरे में होनी चाहिए. माहौल ऐसा हो कि वैचारिक मंथन को जगह मिले और समाज के विकास को मज़बूती मिले.
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