हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और यौन हिंसा के एक मामले में सुनवाई की. दरअसल, ये मामला उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद ज़िले का है. यहां एक महिला ने पिछले साल अपने पति पर दहेज उत्पीड़न और ज़बरन यौन संबंध बनाने के आरोप लगाए थे. जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. आरोपी ने अब इलाहाबाद हाई कोर्ट में ज़मानत अर्जी लगाई. जिस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने आरोपी की अर्जी को मंज़ूर कर लिया, यानी उसे ज़मानत देने का आदेश सुना दिया.
इस मामले में कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों को पहले सुना, फिर कुछ अहम बातों को कंसिडर करते हुए ये फैसला सुनाया. इन अहम बातों में शामिल था IPC का सेक्शन 375, जो रेप के मामलों से डील करता है. इसी सेक्शन के तहत आने वाले 'अपवाद 2' का भी ज़िक्र हुआ. जिसमें कहा गया है कि एक पति का अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना, तब रेप होगा जब पत्नी की उम्र 15 से कम हो, यानी 15 साल से ज्यादा उम्र की लड़की के साथ अगर उसका पति शारीरिक संबंध बनाए, तो वो रेप नहीं होगा. हाई कोर्ट ने इस अपवाद को भी कंसिडर करते हुए आरोपी की ज़मानत याचिका मंज़ूर कर ली.
हालांकि इस मंज़ूरी के पीछे और भी कई सारे फैक्टर्स थे, लेकिन सबसे ज्यादा नज़र IPC के सेक्शन 375 के इस अपवाद पर ही पड़ी. और इसी फैक्टर पर अभी कई वेबसाइट्स में खबरें बन चुकी हैं. ज़ाहिर है खबर बननी ही थी. और इसी के साथ सेक्शन 375 का ये अपवाद एक बार फिर खबरों में है.
बाल विवाह को लेकर क्या कानून है?
चूंकि हमारे देश में बाल विवाह करना या करवाना अपराध है. इसे रोकने के लिए फिलहाल देश में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू है, जिसके मुताबिक, लड़कों की 21 साल और लड़कियों की 18 साल से पहले की शादी को बाल विवाह मानी जाएगी. ऐसा करने और करवाने पर दो साल तक की जेल या एक लाख रुपए तक का जुर्माना लग सकता है, या फिर दोनों हो सकता है. इस अधिनियम के होने के बाद भी और सज़ा के प्रावधान के बाद भी, हमारे देश में धड़ल्ले से बाल विवाह हो रहे हैं. अधिनियम होने के बाद भी ऐसा नहीं है कि सारे बाल विवाह को अमान्य कर दिया जाता हो, बाल विवाह को अमान्य कराने की भी एक लंबी प्रोसेस होती है.
इस एक्ट का सेक्शन 3 कहता है कि बाल विवाह ऐसी शादियां हैं जिन्हें अमान्य करार किया जा सकता है. लेकिन इस सेक्शन में ये कहा गया है कि शादी में शामिल कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टी, यानी वो लोग जिनका बाल विवाह कराया गया हो, वो ही इसे अमान्य कराने के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में याचिका दायर करें. अगर याचिका डालते वक्त कॉन्ट्राडिक्टरी पार्टी नाबालिग होगी, तो उनकी तरफ से उनके गार्जियन याचिका डाल सकते हैं. इस सेक्शन के तहत याचिका तब तक किसी भी वक्त डाली जा सकती है, जब तक बच्चा बालिग होने के बाद के दो साल पूरे कर लेता है. बालिग होने के दो साल पूरा करने के बाद याचिका इस सेक्शन के तहत नहीं डाली जा सकती. इसके अलावा इस एक्ट का सेक्शन 12 भी बाल विवाह को अमान्य करने पर बात करता है. इस सेक्शन के मुताबिक, माइनर चाइल्ड की शादी तब अमान्य होगी, जब माइनर चाइल्ड को उसे कानूनल गार्जियन यानी पैरेंट्स से लेकर या ललचाकर शादी करवाई जाए. दूसरा- अगर ज़बरन दबाव डालकर करवाई जाए. तीसरा- माइनर चाइल्ड को शादी के मकसद से बेचा जाए या फिर शादी के बाद उसकी ट्रैफिकिंग की जाए या गलत कामों में उसका इस्तेमाल हो.
इस एक्ट में क्या दिक्कत?
इस एक्ट में हर उस लड़के को चाइल्ड कहा गया है, जिसकी उम्र 21 से कम है और हर उस लड़की को चाइल्ड कहा गया है, जिसकी उम्र 18 से कम है. ये एक्ट तुरंत ही बाल विवाह को अमान्य नहीं करता, लेकिन इस काम को पनिशेबल बनाता है और अमान्य करने के कानूनी रास्ते बताता है. 'राज्य सभा टीवी' के एक शो में विमन एंड चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट डॉक्टर अलोक शर्मा कहती हैं-
"हमारे देश में बाल विवाह की रोकथाम के लिए कानून तो हैं, लेकिन उनके अंदर इन बाल विवाहों को अवैध करार देने का प्रावधान नहीं है. आसान भाषा में कहें तो, अगर हमारे देश में बाल विवाह हो रहे हैं तो ये पूरी तरह से अमान्य नहीं हैं, यानी ये लीगल हैं."
शायद यही वजह है कि IPC के सेक्शन 375 के अपवाद में बाल विवाह का शिकार हुई 15 से 18 के बीच की लड़कियों को रेप से वो प्रोटेक्शन नहीं मिलती, जो बाकी लड़कियों को मिलती है. जबकि IPC का यही सेक्शन रेप को परिभाषित करते हुए ये भी कहता है कि किसी भी ऐसी लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाना जो 18 साल से छोटी हो, वो रेप कहलाएगा, फिर भले ही इस संबंध के लिए उस लड़की का कंसेट रहे या न रहे.
IPC को जानिए
आप देख रहे हैं. सेक्शन 375 एक तरफ 18 से कम उम्र की लड़कियों को सुरक्षा देने की बात करता है, तो वहीं अपवाद के तौर पर 15 से 18 के बीच की शादीशुदा लड़कियों को सुरक्षा नहीं देता. वो भी तब जब हमारे देश के लगभग हर कानून में बालिग कहलाने की उम्र 18 मानी गई है. IPC खुद कंसेट की उम्र 18 और उससे बाद की कंसिडर करता है. POCSO एक्ट में तो 18 से कम के हर बच्चे को नाबालिग माना गया है, फिर चाहे वो लड़का हो या लड़की. इस पूरी बहस में मैरिटल रेप का कॉन्सेप्ट भी सामने आता है. इलाहाबाद वाले केस में महिला ने पति के ऊपर ज़बरन यौन संबंध बनाने के आरोप लगाए थे, लेकिन इसे इस वजह से नहीं कंसिडर किया गया, क्योंकि हमारे देश में मैरिटल रेप का कोई प्रावधान ही नहीं है. 15 से 18 के बीच की शादीशुदा लड़की, भले ही अपने मन से संबंध न बनाए, लेकिन सेक्शन 375 का अपवाद होने की वजह से उसे IPC के तहत सुरक्षा नहीं मिल पाती.
सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है?
ऐसा नहीं है कि ये मामला पहले नहीं सामने आया. कई दफा इस मुद्दे पर बहस हो चुकी है. कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट में भी ये मामला पहुंचा था. तब अक्टूबर 2017 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-
"एक बच्ची तब भी बच्ची रहती है जब उसे स्ट्रीट चाइल्ड समझा जाता है या फिर सरेंडर चाइल्ड समझा जाता है या फिर उसे गोद लिया जाता है. बिल्कुल उसी तरह, एक बच्ची हर कंडिशन में बच्ची रहती है, फिर चाहे उसकी शादी हुई हो या नहीं, या फिर तलाकशुदा बच्ची है या सेपरेट हो चुकी है या विधवा हो चुकी है."
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2017 में अहम फैसला सुनाया था.
इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने ये माना था कि कोई आदमी अगर अपनी 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ सेक्शुअल रिलेशन बनाता है, तो वो रेप ही कहलाएगा. कोर्ट ने तब कहा था-
"भारत में लगभग हर जगह ये माना जाता है कि 18 से कम उम्र की लड़की चाइल्ड ही है. बदकिस्मती से IPC के सेक्शन 375 के अपवाद को के चलते 15 से 18 उम्र के बीच की शादीशुदा लड़कियों के साथ उनके पति बिना कंसेंट के सेक्शुअल रिलेशन बना लेते हैं और उन पर कोई आरोप भी नहीं लगता."
इसके बाद कोर्ट ने कहा था कि सेक्शन 375 का अपवाद तब मीनिंगफुल होगा, जब वो कुछ इस तरह पढ़ा जाएगा-
"किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना या सेक्शुअल एक्टिविटी करना, जब पत्नी की आयु 18 वर्ष से कम न हो, रेप नहीं है."
सुप्रीम कोर्ट के इस जजमेंट को independent thought vs union of india के नाम से जाना जाता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस अपवाद को अमान्य करार दे दिया है. लेकिन अभी भी ये अपवाद IPC में बना हुआ है. अभी भी लिखा हुआ है. सरकारी की तरफ से IPC में इसे लेकर कोई बदलाव नहीं किया गया. यानी ये अभी भी लिखित तौर पर एग्जिस्ट करता है. तभी तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हालिया मामले में इस अपवाद का ज़िक्र किया.
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
सेक्शन 375 के इस अपवाद के बारे में और गहराई से जानने के लिए हमारे साथी नीरज ने बात की वकील के.वी उपाध्याय से. उन्होंने सारी फसाद की जड़ इस अपवाद को ही बताया. वो कहते हैं-
"IPC 375 में जो अपवाद-2 डाला गया है, ये 1860 में डाला गया था. उस समय के सामाजिक परिवेश को देखते हुए डाला गया था. उस समय बाल विवाह बहुत होते थे इंडिया में, इसलिए डाला गया था. फिर वो कंटिन्यू हो गया. जबकि बाद में जो एक्ट बने हैं, उनमें उम्र 18 ही मानी गई है. लेकिन IPC के उस अपवाद को अब तक डाइल्यूट नहीं किया गया है. हटाया नहीं गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में इसे स्टक डाउन करने के लिए फाइंडिग्स दी हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सेक्शन को स्टक डाउन नहीं करके ये रिकमेंडटरी ऑर्डर पास किया है कि इसे खत्म कर देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने पार्लियामेंट पर छोड़ दिया है."
के.वी उपाध्याय, एडवोकेट
इंडिपेंडेंट थॉट्स वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि इस अपवाद को न हटाकर सरकार ने एक तरह से बाल विवाह को वैध करने का काम किया था. अब सवाल उठता है कि पॉक्सो एक्ट चाइल्ड मैरिज के बारे में क्या कहता है? और चूंकि पॉक्सो एक्ट और IPC का सेक्शन 375 का अपवाद एक-दूसरे को कॉन्फ्लिक्ट करते हैं. तो ऐसे में किसे वरियता दी जानी चाहिए? या वरियता मिलेगी. इसका जवाब हमें दिया सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अनंत मिश्रा ने. उन्होंने कहा-
"पॉक्सो एक्ट चाइल्ड मैरिज पर साइलेंट है. तो पॉक्सो एक्ट चाइल्ड मैरिज पर कुछ भी नहीं कहता. एज ऑफ कंसेंट पर बात करता है. 18 साल से कम की उम्र का जो भी बच्चा है, अगर उसके साथ सेक्शुअल ऑफेंस होता है तो वो पॉक्सो एक्ट के तहत आएगा. ये एक्ट इसलिए बना था क्योंकि हमारे पास कोई भी सूटेबल कानून नहीं था ऐसा जो चाइल्ड क्राइम के लिए बना हो. यहां दो कॉन्ट्राडिक्टरी कानून हैं, एक है सेक्शन 375, जो कहता है कि 15 से 18 साल की बच्ची, जिसकी शादी हो चुकी है, उसके साथ होने वाला सेक्शुअल इंटरकोर्स रेप नहीं कहलाएगा. लेकिन दूसरी तरफ पॉक्सो एक्ट कहता है कि कंसेंट की उम्र 18 साल है. चाहे शादी हो या न हो. ये एक्ट चाइल्ड मैरिज पर साइलेंट है. तो सुप्रीम कोर्ट ने डिस्कस किया है. ये सॉल्यूशन निकाला है कि लड़की शादीशुदा हो या नहीं, एज ऑफ कंसेंट 18 ही है."
THE PROHIBITION OF CHILD MARRIAGE ACT, 2006 और क्या कहता है? इसके जवाब में अनंत मिश्रा कहते हैं-
"इस एक्ट के अंदर बाल विवाह को लेकर कुछ प्रावधान लिए गए हैं. बहुत सारे प्रावधान हैं. पहला तो चाइल्ड मैरिज से पैदा होने वाले बच्चे को उन्होंने वैध कहा है. उस बच्चे के पास वैध बच्चे की तरह सारे अधिकार होंगे. मेंटेनेंस और कस्टडी के खास प्रावधान हैं, अगर कुछ होता है तो. तीसरी चीज़ सज़ा है, उन लोगों को लिए जो बाल विवाह करवाते हैं. जो ये सब रीति-रिवाज़ फॉलो करवा रहे हैं उनके लिए भी है. ये एक्ट चाइल्ड मैरिज के सराउंडिंग्स की सारी चीज़ों को टारगेट कर रहा है, जिससे कि चाइल्ड मैरिज न हो. न कि सीधे तौर पर चाइल्ड मैरिज को अटैक कर रहा है."
अनंत मिश्रा, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
मैरिटल रेप क्या होता है?
इस पूरे डिस्कशन में एक और मुद्दा सामने आता है. वो है मैरिटल रेप का मुद्दा. 'इंडिपेंडेंट थॉट्स' वाले केस में सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग बच्चियों के पक्ष में तो फैसला सुनाया, लेकिन मैरिटल रेप के मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की थी. मैरिटल रेप माने शादी के बाद जब पति, अपनी पत्नी की मर्ज़ी के बिना ज़बरन शारीरिक संबंध बनाए. ज्यादा समझने के लिए फिल्म "आकाशवाणी" देखिएगा. दरअसल, मैरिटल रेप को लेकर हमारे देश में अभी तक कोई कानून नहीं बनाया गया है. हां, समय-समय पर अलग-अलग अदालतें फैसला सुनाती रही हैं. जैसे हालिया फैसला केरल हाई कोर्ट ने सुनाया है. "लाइव लॉ" की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि भले ही मैरिटल रेप को कानूनी तौर पर अपराध ना माना जाता हो, लेकिन यह किसी महिला के लिए तलाक लेने का आधार है. कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए पत्नी की तलाक की अर्जी के खिलाफ डाली गई पति की याचिका खारिज कर दी.
जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस कौसर एद्देपगाथ की खंडपीठ ने महिला के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा-
"एक पति का मनमाना रवैया, जिससे पत्नी के शरीर पर अपने अधिकार का हनन हो, मैरिटल रेप है. भले ही मैरिटल रेप कानूनी तौर पर अपराध के दायरे में नहीं आता, लेकिन यह शारीरिक और मानसिक क्रूरता की श्रेणी में जरूर आता है."
केरल हाई कोर्ट की ये टिप्पणी और सुप्रीम कोर्ट का इंडिपेंडेंट थॉट्स वाला फैसला, ये उम्मीद देते हैं कि हम लड़कियों के अधिकारों की तरफ सही दिशा में बढ़ रहे हैं.
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