क्या है मसला?
31 दिसंबर को SBI ने अपनी नई मेडिकल गाइडलाइन्स जारी कीं. इनमें लिखा है कि तीन महीने से अधिक गर्भवती महिलाओं को काम पर आने की अनुमति नहीं होगी. साथ ही उन्हें टेंपरेरिली अनफिट, यानी अस्थायी रूप से अयोग्य, की श्रेणी में डाल दिया. लिखा है,"यदि प्रेग्नेंसी तीन महीने से अधिक की है, तो कैंडिडेट को अस्थायी रूप से अयोग्य माना जाएगा और बच्चे के जन्म के चार महीने के भीतर उन्हें सर्विस में वापस शामिल होने की अनुमति दी जा सकती है."पुराने नियमों के तहत, छह महीने तक गर्भवती महिला उम्मीदवारों को SBI में शामिल होने की अनुमति थी. बशर्ते गायनाकॉलोजिस्ट से एक प्रमाण पत्र लेना होता था, जिसमें जांच के आधार पर लिखा हो कि काम की वजह से कर्मचारी के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
SBI पर उठे सवाल
इस क़दम की अखिल भारतीय स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया एम्प्लॉय एसोसिएशन सहित कई संगठनों ने आलोचना की. वहीं दिल्ली महिला आयोग ने इस नियम को 'महिला-विरोधी' बताया. DCW की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने ट्वीट किया,"भारतीय स्टेट बैंक ने 3 महीने से अधिक गर्भवती महिलाओं को सर्विस में शामिल होने से रोकने के निर्देश जारी किए हैं और उन्हें 'अस्थाई रूप से अयोग्य' भी क़रार दिया. यह भेदभावपूर्ण भी है और अवैध भी. हमने उन्हें इस महिला-विरोधी नियम को वापस लेने की मांग करते हुए नोटिस जारी किया है."
"ये नए दिशा निर्देश बेहद भेदभावपूर्ण हैं और हमारे देश की महिलाओं को सशक्त करने के लिए किए गए प्रयासों को कमज़ोर करते हैं. और ऐसे नियम तब आते हैं, जब पहले से ही महिला वर्क फोर्स की स्थिति बदतर हो रखी है. वर्ल्ड बैंक एस्टीमेट के हिसाब से फीमेल लेबर की भागीदारी लगातार कम हो रही है. ऐसे दकियानूसी और सेक्सिस्ट दिशानिर्देश महिलाओं के बहिष्कार और असमानता को बढ़ावा देंगे."
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