जब लड़की ऊंचे पद पर होती है
कितनी खडूस है. ये चीज़ सबसे ज्यादा कही जाती है उन लड़कियों के लिए जो किसी ऊंचे पद पर होती हैं. किसी टीम की लीड होती हैं, मैनेजर होती हैं या बॉस होती हैं. चूंकि किसी भी मैनेजर या लीडर के काम का एक बड़ा हिस्सा होता है दूसरों को निर्देश देना, उनसे काम करवाना और काम ठीक से न हो सके तो उसे दुरुस्त करवाना. हाई प्रेशर सिचुएशन में मैनेजर का आपा खो जाना या कभी सख्त आवाज़ में बात करना आम है. जब ये काम पुरुष बॉस करता है तो लोग क्या कहते हैं? आज इसका दिमाग फिर गया है, आज इसका बीपी हाई है. दो चार गालियां देते हैं. थोड़ी बिचिंग करते हैं. और काम पर लौट जाते हैं. लेकिन जब एक महिला बॉस किसी बात पर गुस्सा जताती है तो क्या कहा जाता है?
- इसके पीरियड चल रहे हैं क्या
- लगता है आज पति या सास से लड़कर आई है
- लगता है इसका पति इसे संतुष्ट नहीं कर पा रहा है
- ये तो किसी भी चीज से खुश नहीं होती, जाने क्या करना पड़ेगा
- लड़की से नाराज़ हो कहते हैं कि ये दूसरी लड़कियों की सक्सेस से जलती है. लड़कों से नाराज़ हो तो कहा जाता है कि फेमिनिस्ट टाइप की है न, लड़कों से ही चिढ है इसे.
नौकरी करने वाली महिलाओं से क्या कहते हैं लोग ?
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वर्क प्लेस से लेकर घर तक नौकरीपेशा लड़कियों को बहुत कुछ सुनना होता है. (प्रतिक्रियात्मक छवि)
दूसरी चीज़ जो नौकरीपेशा महिलाओं के लिए कही जाती है, या यूं कहें कि मानी जाती है वो ये कि वो ये जॉब डिजर्व नहीं करतीं. ये किन बातों में झलकता है?
- वो सिर्फ यहां इसलिए है क्योंकि अलाने फलाने की ख़ास है.
- वो तो बॉस को अपने लुक्स से इम्प्रेस रखती है इसलिए उसको रेज़ या प्रमोशन मिला है.
- वो बॉस के साथ रिलेशनशिप में है, देखा नहीं वो उसको घर ड्रॉप भी करता है.
- टपर टपर अंग्रेजी बोलती है, इसी बात का फायदा मिलता है, वरना इसे कुछ आता थोड़े है.
वर्किंग मॉम के लिए कैसी बातें होती हैं ?
आपने सोसाइटी में कभी वर्किंग मोम की तरह वर्किग डैड नहीं सुना होगा (प्रतिक्रियात्मक छवि )
अगले पॉइंट की ओर बढ़ती हूं. एक शब्द आपने खूब सुना होगा. वर्किंग मॉम. लेकिन एक शब्द आपने नहीं सुना होगा- वर्किंग डैड. ऐसा इसलिए है क्योंकि 2022 में भी औरतों का काम करना एक नयी चीज़ की तरह देखा जाता है. एक अपवाद की तरह देखा जाता है. औरत की नौकरी को अब भी उसका सेकेंड्री काम माना जाता है और घर संभालने को प्राइमरी. इसलिए नौकरी करने वाली महिलाओं को अलग माना जाता है. सिर्फ इंडिया में ही नहीं, बहुत प्रोग्रेसिव माने जाने वाले देशों तक में लोग यही सोच रखते हैं. परिवार के साथ रहने वाली एक शादीशुदा औरत को दफ्तर में ऐसी दृष्टि से देखा जाता है जैसे वो प्रोफेशनल हो ही नहीं. क्या कहते हैं लोग?
- उन्हें तो शिफ्ट ख़त्म होते ही घर लौटना पड़ता है, वो क्या मेहनत कर पाएंगी
- दिनभर तो इनके बच्चों का फोन आता है, घर का काम घर छोड़कर क्यों नहीं आतीं
- कभी बच्चे की तबीयत ख़राब है, कभी पतिदेव की. या तो घर ही देख लें या नौकरी ही कर लें
- टिफ़िन बनाने में ही खर्च हो जाती हैं, प्रेजेंटेशन क्या बनाएंगी
लड़की के एम्बिशियस होने से दिक्कत क्यों ?
ये तो वो बातें हैं जो घरेलू महिला के लिए कही जाती हैं. कई लड़कियां ऐसी भी होती हैं जो वर्कोहोलिक होती हैं. यानी अपने काम से ओब्सेस्ड होती हैं. वैसे तो ऐसे पुरुष भी होते हैं. लेकिन उन्हें एंबीशन वाला माना जाता है. एंबीशन एक लड़के को शादी और प्रेम के लिए और डिजायरेबल बना देता है. उसके पॉइंट्स बढ़ जाते हैं. लड़कियों के केस में उसके पॉइंट्स घट जाते हैं. काम पसंद लड़कियों के लिए कैसी बातें सुनने को मिलती हैं:
- करियर वाली है, शादी मटीरियल नहीं है
- बच्चे वच्चे नहीं करेगी, काम ही इसका बच्चा है
- 50 आदमियों से रोज मिलती है, इससे कौन शादी करेगा
- 32 की हो गई है, जरूर ऑफिस में ही किसी से चक्कर चल रहा होगा इसलिए शादी नहीं करती
काम के साथ ससुराल में फिट क्यों नहीं बैठती
पति - पत्नी दोनो नौकरीपेशा हों तब भी औरत के काम और शादी को ही जोड़ कर देखते हैं लोग. (प्रतिक्रियात्मक छवि )
और ये तो वो चीजें हैं जो दफ्तर के लोग या आस पड़ोस के लोग कहते हैं. कई बार नौकरीपेशा होना और काम से मोहब्बत करना लड़कियों के खुद के घर, खुद के ससुराल में स्वीकार नहीं किया जाता है. अक्सर लोग कहते हैं कि हम तो बहू को 10 घंटे की नौकरी करने देते हैं. और ये कहकर बहुत मॉडर्न महसूस कर लेते हैं. लेकिन घर के ही लोग उन्हें ये बातें सुनाने से भी नहीं चूकते:
- कुक से खाना बनवाती है, खुद एक रोटी भी नहीं बना सकती
- दिनभर नौकरी करती है, बच्चे के लिए टाइम नहीं निकालती
- ऐसा कौन सा इनके काम के बिना दुनिया रुक रही है कि डिलीवरी के 4 महीने में ऑफिस लौट गई, पति तो कमा ही रहा है
- दफ्तर से लौटती है तो सीधे अपने कमरे में चली जाती है, किसी से मिलती भी नहीं
- देर तक मीटिंग करती है, फिर देर तक सोती है, ऐसी बहू के साथ कौन रहेगा
आप सभी ने ये सब ज़रूर सुना होगा. कभी अपने घर पर कभी दफ्तर में. कभी खुद के लिए, कभी किसी महिला मित्र के लिए. हो सकता ऐसी कुछ बातें आपने खुद भी बोली हों बिना इस बात का ख्याल किए कि ये कितनी गलत हैं. मिसॉजिनी यानि स्त्री विरोधी मानसिकता और सेक्सिजम यानी औरतों को पुरुषों से कम आंकना, ये कुछ ऐसी चीजें हैं जो समाज के ताने बाने में ही हैं और हम कब इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं हमें मालूम ही नहीं पड़ता. मुझे खुद कभी कभी लगता है कि 5-6 साल पहले मैं किस तरह सेक्सिस्ट बातें कह जाती थी.
महिला और पुरुष बराबर हैं, हमें यकीन है कि हम ऐसा ही मानते हैं. मगर छोटे- छोटे तरीकों से किस तरह ये भेद हम करते हैं, हमें मालूम नहीं पड़ता. क्या एक लड़की बुरी एम्पलॉई नहीं हो सकती? क्या वो आलसी और मक्कार नहीं हो सकती. बेशक हो सकती है. और होती ही है. लेकिन जब भी किसी लड़की का काम हमें पसंद ना आए तो खुद से सवाल ज़रूर करें कि ऐसा कहीं इसलिए तो नहीं क्योंकि वो एक लड़की है. अगर वो नवजात बच्चे की केयर की वजह से दफ्तर लेट आई है तो ये सोचने के बजाय कि वो लेट क्यों आ रही है, ये भी सोचकर देखें कि हम एक ऐसा सिस्टम क्यों नहीं बना पाते हैं कि नयी मां की जिम्मेदारियां घट जाएं. उसके ऑफिस में क्रेश क्यों नहीं है, डेकेयर फैसिलिटी क्यों नहीं है, उसके पति के पास पैटरनिटी लीव क्यों नहीं है, जिससे मां की लीव ख़त्म हो तो पिता अपनी लीव अवेल कर सके.
जब एक पुरुष सक्सेसफुल होता है तो क्या उसके लिए भी कहते हैं कि बॉस के साथ सोकर प्रमोशन तक पहुंचा होगा? जब घर का पुरुष नौकरी करके लौटता है तो क्या उससे अपेक्षा रखते हैं कि हाथ मुंह धोकर तुरंत वो किचन में जुट जाए?
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