कौन हैं सौरभ कृपाल
सौरभ कृपाल रिटायर्ड जस्टिस बीएन कृपाल के बेटे हैं. जस्टिस कृपाल मई, 2002 से नवंबर, 2002 तक भारत के प्रधान न्यायाधीश रहे. सौरभ कृपाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद ऑक्सफर्ड और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की है. पढ़ाई पूरी करने के बाद सौरभ ने कुछ समय तक जेनेवा में यूनाइटेड नेशंस के साथ भी काम किया. वो 1990 में भारत लौट आए और सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की. वो दो दशक से सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं.सौरभ समलैंगिकों के अधिकारों को लेकर मुखर हैं. उनका नाम नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ केस को लेकर चर्चा में आया था. यह केस धारा 377 के उन हिस्सों को लेकर था जो समलैंगिक रिश्तों को अवैध मानते थे. सौरभ ने कई और वकीलों के साथ मिलकर आर्टिकल 377 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. उन्होंने समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर लाने के पक्ष में केस लड़ा था. इसी केस के चलते सितंबर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 की वो धाराएं हटा दी थीं जो समलैंगिक संबंधों को अवैध मानती थीं.
चार बार रिजेक्ट हुआ नाम
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ऐसा नहीं है कि पहली बार हाई कोर्ट जज के लिए सौरभ कृपाल का नाम सुझाया गया . इसके पहले 2017 में भी उनका नाम सुझाया गया था लेकिन तब भारत सरकार ने इसके लिए आपत्ति जताई थी. तबसे लेकर अब तक चार बार उनके नाम के सुझाव को ठुकरा दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस ऑनलाइन के मुताबिक, 2017 में जब इंटेलिजेंस ब्यूरो ने जज प्रक्रिया नियुक्ति के लिए सौरभ कृपाल का बैकग्राउंड चेक किया तब उन्होंने पाया कि सौरभ कृपाल के पार्टनर युरोपियन हैं और स्विस एम्बेसी में काम करते हैं. उनके पार्टनर ने पहले स्विट्ज़रलैंड के मशहूर एनजीओ रेड क्रॉस के साथ भी काम किया है . इसके बाद इंटेलिजेंस ब्यूरो ने केंद्र सरकार को आगाह किया कि सौरभ कृपाल की नियुक्ति देश को खतरे में डाल सकती है . इसी कारण केंद्र सरकार ने कई बार सौरभ कृपाल को जज बनाने में सिक्युरिटी इशू का हवाला देकर आपत्ति जताई .
2 मार्च, 2021 में जब कृपाल के नामांकन की बात फिर से उठी तब केंद्र सरकार ने स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी थी. अब 11 नवंबर, 2021 को चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने दिल्ली है कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सौरभ कृपाल के नियुक्ति की सिफारिश की है .
क्या है सौरभ कृपाल का मानना
सौरभ ने अब तक इस फैसले पर कोई पब्लिक स्टेटमेंट जारी नहीं किया है . लेकिन चार बार नाम रिजेक्ट होने और इस फैसले के देरी के पीछे वह 'ओपेनली गे'होने को ही कारण बताते हैं . BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, सौरभ ने एक इंटरव्यू में कहा था,"ये कहना कि मेरा 20 साल पुराना पार्टनर विदेशी मूल का है, जिससे सुरक्षा संबंधी ख़तरे हो सकते हैं. ये एक ऐसा दिखावटी कारण है, जिससे लगता है कि ये पूरा सच नहीं है. इसलिए मुझे लगता है कि मेरी लैंगिकता के कारण न्यायाधीश के तौर पर मेरी पदोन्नति पर विचार नहीं किया गया."एक टॉक शो के दौरान उन्होनें बताया था कि आर्टिकल 377 ने बस समलैंगिक संबंधों को मान्यता दी है, बावजूद इसके एक ट्रांस पर्सन को अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में अब भी स्ट्रगल करना पड़ता है . अगर आप ऑफिस में हैं तो आपके लिंग परिचय से या तो बॉस आपको निकाल देगा या प्रमोशन नहीं देगा . अगर आप अपने गे पार्टनर के साथ बैंक में जॉइन्ट अकाउंट खुलवाना चाहें या अगर आप बतौर कपल एक इन्श्योरेंस पॉलिसी चाहें तो वो वह भी संभव नहीं है .शादी न केवल एक सामाजिक संस्था है बल्कि यह आपको कई ऐसे अधिकार देता है जिनका आप इस्तेमाल कर सकते हैं , बतौर एक गे पर्सन हमें ये इक्वालिटी नहीं मिलती .
क्या है लोगों की प्रतिक्रिया
बाईं तरफ फरहान अख्तर और दाईं तरफ इंदिरा जयसिंह
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अधिकतर लोगों ने पूरे दिल से स्वीकार किया और इसकी खूब सराहना की. भारत की जानी - मानी लॉयर इंदिरा जय सिंह ने सौरभ कृपाल को बधाई देते हुए ट्वीट किया,
"अंततः हम एक समावेशी न्यायपालिका बनने के लिए तैयार हैं जो सेक्शुअल ओरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव खत्म करेगी."
"यह ऐतिहासिक दिन है जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में चुना है. सेक्शुअल ओरिएंटेशन पर नहीं, बल्कि किसी की योग्यता पर फोकस करने और दिमाग को उसके प्रति संवेदनशील बनाने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है. जो आज पहला है वह कल सामान्य होने की उम्मीद है. "
सौरभ कृपाल ने कई मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों में अपनी आवाज़ उठाई है जिसमें समलैंगिक संबंधों की आज़ादी सबसे प्रमुख है .सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम के इस सुझाव पर अगर सौरभ कृपाल दिल्ली हाई कोर्ट के नए स्थायी जज बनते हैं तो ये पूरी LGBTQ कम्युनिटी को एक नई पहचान दिलाएगा .
ये रिपोर्ट हमारे साथ इंटर्नशिप कर रही संध्या ने लिखी है .
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