साराभाई दंपती को अपने बच्चों की पढ़ाई की फिक्र होने लगी. अंबालाल और सरला ने अपनी 21 एकड़ की ज़मीन पर 'रिट्रीट' नाम का एक एक्सपेरिमेंटल स्कूल खोल डाला. स्कूल में सब तरह की सहूलियतें थीं. लैंग्वेज और साइंस के अलावा यहां बागबानी और आर्ट्स सबजेक्ट पढ़ाये जा रहे थे. खास साराभाई परिवार के बच्चों के लिए. एक समय पर इन 8 बच्चों के लिए 13 टीचर थे. इनमें से 3 यूरोप से पीएचडी थे और तीन 'मामूली' ग्रेजुएट. याद रहे कि तब ग्रेजुएट मामूली नहीं होते थे.स्कूल खत्म हुआ और विक्रम ने अहमदाबाद का गुजरात कॉलेज ज्वाइन कर लिया. बीचोंबीच उसे छोड़ कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. 1939 में नेचुरल साइंसेज़ में डिग्री हासिल की. मगर इसी साल दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया था और साराभाई को वापस भारत आना पड़ा. यहां सी.वी.रमन के अंडर कॉस्मिक तरंगों पर काम करने लगे. 1945 में युद्ध खत्म हो गया और साराभाई ने फिर रुख किया कैंब्रिज का. जिस साल उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की, देश आज़ाद हुआ था. 28 साल की उम्र में उन्होंने फिज़िकल रिसर्च लैबोरेट्री बनाई. आज़ादी के तुरंत बाद का समय आदर्शवाद का था. राष्ट्रवाद और देशभक्ति चरम पर थी. पीआरएल के बाद उन्होंने पत्नी मृणालिनी के साथ मिलकर दर्पणा डांस एकेडमी बनाई. फिर बारी आई अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एसोसिएशन की. देश की पहली मार्किट रिसर्च कंपनी, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन और इसरो की स्थापना में भी साराभाई का ही हाथ है.
ये थी लव स्टोरी
बड़े आशिक़मिज़ाज भी थे साराभाई. उनके कमला चौधरी के साथ चले अफेयर के बारे में कई बातें सामने आती रहीं हैं. दरअसल कमला जी के एक भतीजे हैं जिनका नाम है सुधीर कक्कड़. उन्होंने किताब लिखी. नाम है 'अ बुक ऑफ़ मेमरी'. इसमें उनका कहना है कि डॉक्टर साराभाई को कमला से इतनी मोहब्बत हो गई थी कि इस चक्कर में उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद को ही जन्म दे डाला. सुधीर कक्कड़ साइको-एनलिस्ट हैं. यानी कि मनोविश्लेषक. उन्होंने इस पूरे किस्से को एक फ्रॉयडियन सा एंगल दे दिया है. उनका कहना है कि कमला की साराभाई की पत्नी मृणालिनी से क़रीबी होना और उनका एक जवान विधवा होना विक्रम पर एक गहरा असर छोड़ गया. वो कमला से प्रेम करने लगे और फिर शुरू हुई 20 साल लंबी एक एक्स्ट्रा-मैरिटल कहानी. मगर कमला को लव ट्रायंगल में नहीं रहना था. वो उस समय ATIRA (अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एसोसिएशन) में नौकरी करती थीं. शायद साराभाई से दूर जाने के लिए वो दिल्ली में स्थित डीसीएम से आए एक ऑफर पर विचार करने लगीं. कक्कड़ आगे कहते हैं कि साराभाई ने हरसंभव कोशिश की कि कमला अहमदाबाद में रुक जाएं. पहले उन्हें फिज़िकल रिसर्च लैबोरेट्री की डायरेक्टरशिप ऑफर की. फिर लंदन के टैविस्टॉक इंस्टिट्यूट से गुहार लगाई कि उनका एक सेंटर अहमदाबाद में भी खोल दिया जाये. जब ये सब किसी काम न आया, तो डॉक्टर साराभाई ने पैरवी की. भारतीय सरकार से. बॉम्बे को छोड़कर अहमदाबाद में आईआईएम खुलवाया गया और कमला चौधरी बनीं उसकी पहली रिसर्च डायरेक्टर.बाद में इस पूरे एंगल को उनकी बेटी मल्लिका साराभाई ने हंसी में उड़ा दिया. कक्कड़ का कहना है कि बड़ी से बड़ी संस्थाओं में भी फ़ैसले निष्पक्षता से नहीं लिए जाते. कक्कड़ ये सारी बातें दरअसल कमला चौधरी के पर्सनल कागज़ातों के दम पर कहते हैं. रोचक बात ये है कि अमृता शाह ने भी साराभाई पर एक किताब लिखी है. जिसमें साराभाई और इंदिरा गांधी के 'फ़्लर्टेशिअस' रिश्ते पर भी बात हुई है.
कॉन्स्पिरेसी थ्योरिओं में घिरी मौत
30 दिसंबर 1971 की रात विक्रम साराभाई की मौत की खबर लाई. कई साल ये माना जाता रहा कि उनकी मौत प्लेन क्रैश में हुई थी. सच तो ये है कि वो दिल का दौरा पड़ने से मरे. 30 दिसंबर को उन्होंने थुम्बा रेलवे स्टेशन की ओपनिंग की. रात को कोवलम में अपने पसंदीदा रिज़ोर्ट में आराम करते हुए उन्हें दिल का दौरा पड़ा. साराभाई की मौत को ले के बहुत चर्चा होती रही है. लोगों को ताज्जुब हुआ कि कोई इन्क्वायरी या पोस्टमार्टम नहीं हुआ. मगर असल में ये उनकी मां का फ़ैसला था. इससे पहले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी ताशकंद में दिल का दौरा पड़ने से मरे थे. उनका भी पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया था. प्लेन क्रैश में मौत डॉक्टर होमी भाभा की भी हुई थी. कहने वालों का तो यहां तक कहना है कि इसके पीछे अमेरिकन खुफ़िया एजेंसी CIA का हाथ है.कलाम को सुबह 3.30 बजे मिलने बुलाया
जनवरी 1968 की बात है. कलाम को मैसेज मिला कि साराभाई उन्हें दिल्ली में बहुत अर्जेंट मिलना चाहते हैं. त्रिवेंद्रम से दिल्ली जाना उस समय आसान बात नहीं थी. कलाम दिल्ली पहुंचे और साराभाई के ऑफिस गए. उन्हें होटल अशोक में 3.30 बजे पहुंचने को कहा गया. ये सचमुच ही बड़ी ही अटपटी टाइमिंग थी. सेक्रेटरी ने भी कुछ नहीं बताया. रात के घने अंधेरे में दिल्ली से अनजान कलाम के लिए होटल पर पहुंचना हिम्मत का काम हो जाता. वो दिन में ही वहां चले गए और होटल की लॉबी में वेट करने लगे. वहां डिनर करना उन्हें बहुत महंगा पड़ता. वो होटल के बाहर एक सड़क किनारे की दुकान से खाना खा आये. वापस आकर उन्होंने खुद को साराभाई का मेहमान बताया. इस पर उन्हें एक शानदार लाउंज में ले जाया गया. मीटिंग के बाद जब डॉक्टर साराभाई ने कलाम को होटल के बाहर ड्रॉप किया तो वो इस अटपटी टाइमिंग की वजह समझ गए. दरअसल अगली सुबह ही प्रधानमंत्री से उनकी मीटिंग थी. साराभाई के बारे में पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन अब्दुल कलाम कहते हैं, "मुझे प्रोफ़ेसर विक्रम साराभाई ने इसलिए नहीं स्पॉट किया था क्योंकि मैं मेहनती था. जब उन्होंने मुझे एक युवा साइंटिस्ट के तौर पर स्पॉट किया, मैं काफी एक्सपीरियंस्ड हो चुका था. उन्होंने मुझे और सीखने की आज़ादी दी. मुझे तब चुना जब मैं बहुत नीचे था. सीखना मेरी ज़िम्मेदारी थी. अगर मैं फ़ेल होता तो वो मेरे साथ खड़े रहते. एक अच्छा लीडर, चाहे वो पोलिटिकल हो, चाहे साइंस की फील्ड में हो या उद्योग में, हमेशा सक्सेस का हक़ अपने छोटों को देता है. फेलियर को वो अपने सर ले लेता है. अच्छे नेता की सबसे बड़ी खूबी यही है."ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे प्रणय ने लिखी है.
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