असम में हिमंत बिस्व सरमा के अलावा किन वजहों से दोबारा जीता NDA?

08:03 AM May 03, 2021 |
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असम विधानसभा चुनाव 2021 के नतीजे आ गए हैं. भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन NDA ने शानदार जीत हासिल की है. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा कर दिया है. हम जानते हैं कि अभी जनता का ध्यान मिलियन डॉलर क्वेश्चन पर है कि हिमंत बिस्व सरमा डीफैक्टो से डीज़्योर सीएम बनेंगे कि नहीं. लेकिन इसके लिए लगने वाला मंथन अभी कुछ देर चलेगा. तब तक हम असम के नतीजों को समझने की कोशिश कर सकते हैं. इस बार के आंकड़ों पर गौर करें कुल सीटें - 126 (बहुमत - 64) NDA - 75 महाजोठ - 50 अन्य - 1 NDA में भाजपा के साथ असम गण परिषद (AGP), यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल (UPPL) और गण सुरक्षा परिषद (GSP) हैं. महाजोठ कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी - ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट AIUDF का गठबंधन था. साथ में बोडोलैंड पीपल्स पार्टी BPP, आंचलिक गण मोर्चा, भाकपा, और भाकपा (माले) जैसे दल हैं.

जो जीता वो सिकंदर - भाजपा

ये असम के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कांग्रेस से इतर कोई पार्टी दोबारा सत्ता में आई हो. सर्बानंद सोनोवाल सरकार के सामने ढेर सारी चुनौतियां थीं. 2019 में नागरिकता संशोधन कानून CAA के पास होने के बाद असम CAA के खिलाफ प्रदर्शनों का केंद्र बन गया था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक को अपना असम दौरा रद्द करना पड़ा था. CAA को अगर अमल में लाया जाए, तो असम में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर NRC के खिलाफ खड़ा नज़र आएगा. चूंकि ये फैसला केंद्र की भाजपा सरकार ने लिया था, इसलिए असम में सोनोवाल सरकार प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आ गई. फिर 2020 में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगाना पड़ा. अब हम इस हालत के बावजूद भाजपा की जीत के कारणों पर गौर करें

1. हिमंत बिस्व सरमा

जी हां. बिस्व सरमा निर्विवाद रूप से भाजपा की जीत के कारणों में से सबसे प्रमुख हैं. वो अब तक सोनोवाल कैबिनेट में वित्त और स्वास्थ्य मंत्री थे. लेकिन सोनोवाल सरकार के तमाम फैसलों में बिस्व सरमा का दखल रहता था. वो असम में भाजपा और भाजपा सरकार - दोनों का चेहरा थे. कोरोना महामारी के दौरान हिमंत बिस्व सरमा के काम की खूब तारीफ हुई. चुनाव से पहले टिकट वितरण में भी हिमंत बिस्व सरमा की ही चली. प्रचार की थीम भी हिमंत बिस्व सरमा के चेहरे के इर्द गिर्द ज़्यादा रखी गई.   भाजपा की रैलियों में गाना चलता था - ''आहिसे आहिसे, हिमंतो आहिसे.'' माने 'आएगा आएगा हिमंत आएगा.' हिमंत टीटाबोर जैसे कांग्रेस के गढ़ों में जाकर भी भीड़ खींच ले रहे थे और लोग उन्हें देखने-सुनने आ रहे थे. टिप्पणीकार कहते हैं कि अगर NDA को कुछ सीटें कम पड़ जातीं तो 'मैनेजमेंट' के लिए हिमंत को ही आगे किया जाता. लगातार पांचवी बार अपनी सीट जालुकबाड़ी से जीतने के बाद हिमंत बिस्व सरमा ने प्रेस से कहा - भारतीय जनता पार्टी तय करेगी कि असम का अगला सीएम कौन होगा.

2. गठबंधन

भारतीय जनता पार्टी ने सत्ताधारी होने के बावजूद अपनी महत्वाकांक्षा को काबू में रखा और गठबंधन के लिए साझेदार चुने. असम गण परिषद अब वो पार्टी नहीं रही जो असम आंदोलन से एक वक्त उपजी थी. बावजूद इसके भाजपा ने उसे 26 सीटें दे दीं. गण परिषद को साथ रखकर भाजपा ने ऊपरी असम के इलाके में जनजातीय समाज के साथ-साथ असमिया अस्मिता को लेकर भावुक वोटर को संदेश दिया - मिसाल के लिए अहोम वोटर. असम में बोडोलैंड इलाके की सीटों को सरकार बनाने के लिए लगभग अनिवार्य माना जाता है. यहां भाजपा ने साल 2016 में भी प्रमोद बोरो की पार्टी UPPL को सीटें दी थीं. UPPL तब कोई सीट नहीं जीत पाई थी. फरवरी 2020 में केंद्र सरकार बोडो शांति समझौता लेकर आई. इसके बाद दिसंबर 2020 में हुए बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल BTC चुनाव में ही भाजपा ने असम में किंगमेकर मानी जाने वाली बोडोलैंड पीपल्स पार्टी BPF से नाता तोड़ लिया. और पहली बार संकेत दिया कि मई 2021 को लेकर उसकी तैयारी क्या है. पार्टी ने प्रमोद बोरो की UPPL से हाथ मिलाकर BTC में सरकार बना ली. आज विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हैं तो UPPL ने NDA गठबंधन को 6 सीटें दी हैं. भाजपा ने UPPL में जो निवेश किया, उसने परिणाम देना शुरू कर दिया है.

3. सांस्कृतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण

बंगाल की तरह ही असम में भी चुनाव से पहले हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण चरम पर था. भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रचार में AIUDF अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल को खूब निशाने पर लिया. कहा कि अगर महाजोठ जीता तो अजमल मुख्यमंत्री बन जाएंगे. इसने खास तौर पर असमिया अस्मिता में मानने वाले लोगों को भाजपा के पक्ष में लामबंद किया. भाजपा नेताओं ने जिस तरह 'मियां', 'घुसपैठिया' और प्रतीक महत्व के दूसरे मुद्दों की बात की, उसने साफ कर दिया कि भाजपा अपने लिए वोट कहां खोज रही है - असम का हिंदू समुदाय और जनजातिय समाज.

4. प्रशासन और हितग्राही

असम में भारतीय जनता के धुर विरोधी भी इस बात को मानते हैं कि सोनोवाल-बिस्व सरमा सरकार के कार्यकाल में सड़कों पर खूब काम हुआ. असम ने आदत डाल ली थी घटिया सड़कों की. लेकिन अब ज़्यादातर राष्ट्रीय राजमार्ग या तो बेहतर स्थिति में नज़र आते हैं या फिर उनपर काम चलता मिलता है. अंदरूनी सड़कों पर भी काम हुआ है. सरकार ने हितग्राही भी खूब बनाए. कभी बागान मज़दूरों के खातों में पैसे भिजवाए, तो कभी गरीब तबके के परिवारों में महिलाओं के खातों में. महिलाओं के खातों में डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर की इस योजना को अरुणोदय कहा जाता है. ये दिसंबर 2020 में ही आई लेकिन इसकी चर्चा खूब है. क्योंकि 830 रुपए की मासिक किस्त ज़्यादातर लोगों तक पहुंच रही है. कोरोना महामारी के दौरान खास तौर पर असम में सार्वजनिक वितरण प्रणाली माने राशन की व्यवस्था को मज़बूत किया गया. हमारी फील्ड रिपोर्ट्स के दौरान ज़्यादातर लोगों ने माना कि उन्हें चावल मिला है. कांग्रेस-AIUDF की गरारी कहां फंसी? कांग्रेस ने जब AIUDF के साथ हाथ मिला लिया, तब ये माना गया कि बराक घाटी और लोअर असम के इलाके में महाजोठ अच्छी तादाद में सीटें अपने बूते ला लेगा. और हगरामा मोहिलारी की BPF बोटो इलाकों की 10 सीटें जीत लेगी. अब बस गठबंधन को ऊपरी असम के इलाके में साधारण प्रदर्शन करना था. थ्योरी में इस तरह सरकार बन सकती थी. लेकिन प्रैक्टिकल हुआ, तो इस थ्योरी ने काम किया नहीं. क्यों, आइए जानें - 1. नेता का अभाव भारतीय जनता पार्टी के पास दो चेहरे थे - सीएम सर्बानंद सोनोवाल और सीएम बनने के आकांक्षी हिमंत बिस्व सरमा. लेकिन गौरव गोगोई, प्रद्युत बोर्दोलोई, रिपुन बोरा और देबब्रत साइकिया में से कांग्रेस का चेहरा कौन था, ये आखिर तक तय नहीं हो पाया.

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गौरव गोगोई बाद में पत्रकारों से बातचीत में ये कहते रहे कि महाजोठ जीता तो सीएम कांग्रेस से होगा. लेकिन तब तक भाजपा इस 'डर' का प्रचार कर चुकी थी कि कांग्रेस अजमल को सीएम बना देगी. 2. मुद्दों का चुनाव कांग्रेस की कैंपेन स्ट्रैटेजी NRC-CAA को एक बड़ा मुद्दा मानकर तैयार की गई थी. ये बात सही है कि असम में CAA का भारी विरोध हुआ और आज भी है. लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते औसत वोटर की स्मृति में इन प्रदर्शनों की याद कुछ धुंधली पड़ गई. फिर भाजपा ने अपने प्रचार के दौरान CAA पर कमोबेश चुप्पी ही रखी. CAA-NRC असम में एक भावुक मुद्दा ज़रूर है. लेकिन असम के वोटर ने इसे एक चुनावी मुद्दा मानकर अपना वोट दिया हो, ऐसा लगता नहीं. 3. प्रथम चरण में हल्के पड़ गए असम विधानसभा चुनाव में ऊपरी असम की 47 सीटों पर पहले चरण में वोटिंग हुई. यहां की सीटों पर चाय बागान मज़दूरों का प्रभाव रहता है. कांग्रेस ने वादा किया कि इनका मेहताना 365 रुपए कर दिया जाएगा. लेकिन इस ऐलान ने चाय मज़दूरों तक पहुंचने में काफी देर कर दी. महाजोठ की सरकार तभी बन सकती थी, जब ऊपरी असम में महाजोठ 20 से 25 सीटें हासिल करता. ये नहीं हो पाया. कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा खुद गोहपुर सीट से हार गए. ऊपरी असम में भाजपा-असम गण परिषद ने भारी जीत हासिल की.
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