दिग्गजों को मिली हार
खटीमा सीट पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भुवन कापड़ी ने 6 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी है. दूसरी ओर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और चुनाव अभियान के प्रभारी हरीश रावत भी चुनाव हार गए हैं। लालकुंआ सीट पर भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने रावत को 14,000 से ज्यादा मतों से हराया है. हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत को हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र से बढ़त हासिल है. आप के सीएम कैंडिडेट कर्नल अजय कोठियाल को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है.मिथक नहीं तोड़ पाए धामी
खटीमा सीट पर लोगों की नजर इसलिए भी थी कि क्या धामी इस मिथक को तोड़ पाएंगे कि पिछले कुछ समय से सीएम अपनी सीट नहीं बचा पाते. साल 2012 में बीजेपी के मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी और 2017 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी सीटें नहीं बचा पाए थे। खटीमा से धामी की हार ने एक बार फिर इस मिथक को गहरा दिया है. हालांकि सुबह से ही धामी कांग्रेस उम्मीदवार से पीछे चल रहे थे, लेकिन बीच-बीच में मतों का अंतर काफी कम होता गया. आखिरकार धामी को हार मिली.अन्य सीटों का हाल
टिहरी जिले की 6 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 2 पर कांग्रेस उम्मीदवार आगे चल रहे हैं. रुद्रपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी आगे है. बाजपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी यशपाल आर्य काफी आगे चल रहे हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और हरिद्वार शहर सीट से उम्मीदवार मदन कौशिक पहले पिछड़ रहे थे, लेकिन अब बढ़त बना ली है. रुड़की में भाजपा और कांग्रेस में कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है. लोहाघाट सीट के रिजल्ट आ गए हैं. यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. कांग्रेस प्रत्याशी खुशाल सिंह अधिकारी को 32,244 वोट मिले हैं।कौन-कौन था मैदान में
यूं तो उत्तराखंड के चुनावी मैदान में मुख्य मुक़ाबला दो राष्ट्रीय पार्टियों, कांग्रेस और भाजपा के बीच था. लेकिन आम आदमी पार्टी भी पहली बार उत्तराखंड में अपनी क़िस्मत आज़माने उतरी थी. इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी को हरिद्वार के आसपास के इलाक़ों में मज़बूत माना जाता है. साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 7 सीट जीतकर सबको हैरान कर दिया था. इसके अलावा एक और क्षेत्रीय पार्टी है, उत्तराखंड क्रांति दल. जिसे राज्य आंदोलन के लिए लड़ाई लड़ने वाली पार्टी के रूप में जाना जाता है. 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीतने के बाद पार्टी में लगातार अंदरूनी कलह बढ़ा. जिसके चलते उनका जनाधार लगातार सीमित होता चला गया.पिछली बार क्या हुआ था?
साल 2017 में उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव हुए थे. तब सरकार में रही कांग्रेस सिर्फ़ 17 सीटों पर सिमट गई थी. और भाजपा ने 70 में से 57 सीट जीतकर प्रचंड बहुमत पाया था. 2012 के मुक़ाबले उन्हें 26 सीट का फ़ायदा मिला था. जबकि कांग्रेस को 21 सीट का नुक़सान सहना पड़ा था. 2 सीट निर्दलियों के खाते में गई थी. और बसपा और उत्तराखंड क्रांति दल, दो ऐसी पार्टियां जो 2017 से पहले अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराती आई थीं, उनके खाते में एक भी सीट नहीं आई थी. वर्ष 2017 में राज्य में 65.56 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार चुनाव में 65.10 % मतदान हुआ. 2017 के चुनाव में कुल 49,75,494 वोट पड़े थे. जिसमें से भाजपा ने 46.5 % वोट हासिल किए. 2012 के मुक़ाबले ये 13.63 % अधिक वोट थे. कांग्रेस के खाते में 33.5 % वोट आया. जो 2012 में उनको मिले वोट प्रतिशत, 33.79 के काफ़ी नज़दीक रहा था. 2017 में हुए चुनाव में 7% वोट पाकर बसपा तीसरे नंबर की पार्टी रही थी. 2017 में हुए चुनाव में भाजपा को मोदी लहर का फ़ायदा मिला था. और राज्य के इतिहास में उन्होंने सबसे ज़्यादा सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया था. 2017 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के हरीश रावत दो सीटों से लड़ने के बावजूद एक पर भी जीत हासिल नहीं कर पाए थे.क्या रहे थे मुद्दे?
21 साल पहले बने इस राज्य में दो तरह के मुद्दे इस बार चुनाव में हावी रहे. एक जो हमेशा से चले आए हैं. और दूसरे समसामयिक. पहाड़ी क्षेत्रों में हेल्थ और रोज़गार हमेशा से बड़े मुद्दे रहे हैं. और ऐसा ही 2022 के चुनाव में भी दिखा. पहाड़ी क्षेत्रों में अल्मोड़ा और श्रीनगर में दो बड़े मेडिकल कॉलेज खुलने के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लोगों में नाराज़गी रही. महंगाई भी आम लोगों के लिए एक बड़ा मुद्दा रही. लेकिन नेता इस पर कुछ भी कहने से बचते आए. गैस सिलेंडर के दामों को लेकर लोगों की नाराज़गी का दोनों बड़ी पार्टियों ने अपनी-अपनी तरह से तोड़ ढूंढा. भाजपा ने जहां ग़रीबों को तीन मुफ़्त सिलेंडर की घोषणा की, वहीं कांग्रेस ने 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने का वादा किया. रोज़गार के नाम पर भी दोनों पार्टियों में वादों-इरादों का बोलबाला रहा. बीजेपी ने ऐन चुनाव से पहले हज़ारों नई भर्तियों की घोषणा की. वहीं कांग्रेस ने चार लाख नए रोजगार देने का वादा किया. सख़्त भू-क़ानून की मांग उत्तराखंड में एक पुराना मुद्दा रहा है. चुनाव के कुछ महीने पहले भाजपा इसे लैंड जिहाद का नाम दे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश में लग गई थी. आम आदमी पार्टी पहली बार उत्तराखंड के चुनावी मैदान में उतरी थी. पार्टी मुख्यतः दिल्ली मॉडल और अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर चुनाव लड़ी. और फ़्री बिजली, फ़्री पानी जैसे ट्राइड एंड टेस्टेड फ़ॉर्म्युले का इस्तेमाल करती थी. इन मुद्दों के अलावा बिजली पानी, महंगाई, शिक्षा जैसे मुद्दे भी अपनी जगह यथावत रहे. उत्तराखंड दो खंडों में बंटा हुआ राज्य है. ये दो खंड हैं. कुमाऊं और गढ़वाल. इन दोनों क्षेत्रों की ऐतिहासिक और भौगोलिक परिस्थितियों में अंतर हैं. कुमाऊं खंड के अंदर कुल 6 ज़िले आते हैं. जिनके अंतर्गत कुल 29 विधानसभा सीट हैं. इसके अलावा गढ़वाल खंड में 7 ज़िले आते हैं. जिनके अंतर्गत कुल 41 विधानसभा सीट हैं. इस तरह कुल मिलाकर उत्तराखंड विधानसभा में 70 सीट हुई. जिनमें में 14 सीट अनुसूचित जाति और 2 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. राज्य के 9 ज़िले पहाड़ी क्षेत्र वाले हैं. जिनमें विधानसभा की 34 सीट आती हैं. वहीं 4 ज़िले मैदानी क्षेत्र वाले हैं. जिनके अंतर्गत 36 सीट आती हैं. Advertisement