बायोमिमेटिक्स मतलब ऐसी टेक्नोलॉजी जो जीवित वस्तुओं की नकल कर के बनी हो.बायोमिमेटिक्स का सबसे अच्छा उदाहरण है एयरप्लेन.
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पहला प्लेन राइट ब्रदर्स ने 1903 में उड़ाया था. वैसे डिज़ाइन लियोनार्डो द विंची की 15वीं शताब्दी की डायरी में भी है. (सोर्स - विकिमीडिया)
पक्षियों की नकल
इंसान को उड़ना नहीं आता था. उसके शरीर की डिज़ाइन ऐसी नहीं थी कि वो उड़ पाए. लेकिन उसे उड़ते हुए पक्षी दिखते थे. तो इंसान ने पक्षियों जैसी दिखने वाली एक मशीन बना ली. और वो उस मशीन में बैठकर उड़ने लगा.
एयरप्लेन नाम की इस मशीन के भी दो पंख होते हैं. आगे का हिस्सा पक्षियों की चोंच जैसा होता है. इसकी बॉडी पक्षियों के शरीर की नकल ही है. पक्षियों की इस नकल का ये सिलसिला यहीं नहीं रुका.
आपने कोई एयर-शो देखा है? टीवी पर तो देखा ही होगा?
जब कोई एयर-शो होता है तो प्लेन्स को ग्रुप में उड़ाया जाता है. इस प्रदर्शन की एक क्लासिक सी तस्वीर वो होती है जिसमें जहाज़ 'V फॉर्मेशन' बनाकर उड़ते हैं. एकदम स्वैग से.
V फॉर्मेशन या विक फॉर्मेशन को विक्टरी यानी विजय का संदेश देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. (सोर्स - विकिमीडिया)
'V फॉर्मेशन' मतलब V जैसी आकृति बनाकर उड़ना. अंग्रेज़ी का अक्षर V. एयरप्लेन्स का ये V फॉर्मेशन वाला स्वैग पक्षियों की नकल करके ही आया है. अगर आप आसमान ताकते हैं तो आपने ज़रूर देखा होगा -
कुछ पक्षी ग्रुप में एक स्पेशल आकृति बनाकर उड़ते हैं. और उनकी ये आकृति अंग्रेज़ी के अक्षर V जैसी होती है.सारे पक्षी ऐसा नहीं करते. सिर्फ कुछ 'माइग्रेटरी बर्ड्स' ऐसा करते हैं. माइग्रेटरी बर्ड्स यानी घुमंतु पक्षी जो लंबी दूरी तय करते हैं. लेकिन ये पक्षी ऐसा क्यों करते हैं? क्या वो भी ऐसा स्वैग के लिए करते हैं? जवाब है नहीं. वो अपना खर्चा बचाने के लिए ऐसा करते हैं. कैसा खर्चा?
माइग्रेटरी बर्ड्स को लंबी दूरी तय करनी होती है. ये V फॉर्मेशन उनका ऊर्जा बचाने का तरीका है. (सोर्स - विकिमीडिया)
पूरी बात बताते हैं. विस्तार से.
हवा का बहाव
आपने कभी पानी वाला जहाज़ देखा है? फिल्मों में तो देखा ही होगा. जब जहाज़ आगे जाता है तो उसके जस्ट पीछे वाला पानी नीचे दब जाता है. और साइड वाला पानी ऊपर को उछलता है.
बिलकुल ऐसा नहीं होता हवा के साथ. ये बस इमेजिन कराने के लिए एग्ज़ाम्पल दिया है. (सोर्स - विकिमीडिया)
लगभग ऐसा ही सीन तब होता है जब कोई पक्षी या जहाज़ हवा में आगे जाता है.
जैसे ही पक्षी आगे जाता है उसके जस्ट पीछे की हवा नीचे को जाती है. और उसकी साइड वाली हवा ऊपर को उठती है. ये साइड से उठती हवा किसी और पक्षी के लिए ईधन का काम करती है. और इसी ऊपर उठती हवा के लालच में पीछे वाला पक्षी साइड में उड़ता है.
पीछे का नज़ारा. जहां की हवा नीचे जा रही है इसे Downwash कहते हैं. और ऊपर जाने वाली वाली हवा को Upwash. (सोर्स - विकिमीडिया)
दरअसल पक्षियों की ज़्यादातर ऊर्जा ऊपर बने रहने में खर्च होती है. जिस इलाके में हवा ऊपर उठ रही होती है, वो फ्री में पक्षी को ऊपर धकेलती है. और वहां पक्षी को अपनी तरफ से कम एनर्जी खर्च करनी पड़ती है.
हर एक पक्षी को आगे वाले पक्षी से यही हवा चाहिए होती है. इसलिए वो आगे वाले की साइड में रहते हैं. और इस तरह एक के पीछे एक रहने से V की आकृति बन जाती है.
हमको कैसे पता कि कम एनर्जी खर्च होती है?
ये हमें हेनरी वाइमरस्कर्च की रिसर्च से पता चला. हेनरी को पता लगाना था कि इस V वाले ग्रुप में कौन पक्षी कितनी मेहनत कर रहा है? ये पता लगाने के लिए हेनरी ने पक्षियों के साथ 'हार्ट रेट मॉनीटर' फिट कर दिए. हार्ट रेट मॉनीटर मतलब दिल की धड़कन पता करने वाली मशीन. इस एक्सपेरीमेंट से पता चला कि आगे वाला पक्षी ज़्यादा हांफ रहा है और पीछे वाले कम हांफ रहे हैं.
ऐसा क्यों हो रहा है इसका कारण हम आपको बता ही चुके हैं. पीछे वाले पक्षी आगे वाले पक्षी की साइड वाली ऊपरी हवा से लिफ्ट ले रहे हैं.
नेता कौन बनेगा?
गुरु है तो ये बढ़िया सिस्टम. लेकिन ऐसे में तो आगे वाले पक्षी के साथ नाइंसाफी हो जाएगी. आगे वाले को बाकियों के मुकाबले ज़्यादा मेहनत करनी पड़ जाएगी. और पीछे वालों की मौज हो जाएगी. ऐसा होता तो कोई नेता ही नहीं बनता. लेकिन ऐसा नहीं होता है.
नाइंसाफी न हो इसलिए पक्षी लोग पोज़िशन बदलते रहते हैं. कभी कोई पक्षी आगे रहता है, कभी दूसरा. बारी-बारी से सबकी बारी आती है.
ऐसे बदला-बदली चलती रहती है. और लगभग हर पक्षी एकबार ग्रुप लीडर हो ही जाता है. (सोर्स - विकिमीडिया)
सही टाइमिंग
इस पूरी ग्रुप टास्क में टाइमिंग से बहुत फ़र्क पड़ता है. सही फायदा उठाने के लिए पीछे वाले पक्षी को सही टाइम पे पंख फड़फड़ाने होंगे.
आगे वाले पक्षी के साइड की हवा ऊपर तो आती है, लेकिन वो लहर जैसी होती है. कभी ऊपर तो कभी नीचे.जब लहर ऊपर हो तभी फायदा उठाने का समय रहता है. इसलिए पीछे वाले पक्षी सही टाइम देख कर पंख फड़फड़ाते हैं. हमें ये नहीं पता है कि वो हवा का बहाव सेंस करते हैं या आगे वाले पक्षी के पंख देखकर टाइमिंग मैच करते हैं.
क्रेडिट
ये बातें हमें पकी-पकाईं मिल गईं लेकिन ये सब स्टडी करना इतना आसान नहीं था. स्टीवन पॉर्चूगल और उनकी टीम ने 2013 में नेचर जर्नल में ये रिसर्च
पब्लिश की थी. उन्होंने पक्षियों के एक ग्रुप में लोकेशन और स्पीड सेंस करने वाले डिवाइस फिट किए थे.
ऐसी रिसर्च में दिक्कत ये आती है कि ये वाले ऐसे डिवाइस नहीं थे जो वायरलेस डेटा ट्रांसफर कर सकें. रिसर्च का सारा डेटा लेकर पक्षी उड़ जाते थे. और हाथ नहीं आते थे. इसलिए इस एक्सपेरीमेंट के लिए अलग से पक्षियों को ट्रेन किया गया था. उन पक्षियों में सेंसर फिट किए गए. पक्षियों ने उड़ान भरी. उनका सारा डेटा इकट्ठा किया गया. और हमें ये कमाल की बात पता चली.
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