नई दिल्ली का जंतर मंतर. साल 1983. तब के BJP अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी सुबह टहलने निकले. ‘डाकू’ झपटा और वाजपेयी ज़ख़्मी हो गए. तब के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी दिल्ली में पड़ोसी हुआ करते थे वाजपेयी के. माफ़ी मांगने सपत्नीक वाजपेयी के घर पहुंचे. क्यों?
क्योंकि, 'डाकू' था प्रणव मुखर्जी का कुत्ता. और वही झपट पड़ा था वाजपेयी पर. एक उंगली में चोट आई थी वाजपेयी को. मुखर्जी ने इस दुर्घटना के लिए माफ़ी मांगी. वाजपेयी मुस्कुरा दिए. असल में ये दुर्घटनाओं का ही साल था.
लेकिन कुछ हादसों पर माफ़ी का मरहम नहीं लगता. जैसे टेलीफोन कनेक्शन. 83 में ही लाखों लोग 18 साल से टेलीफोन कनेक्शन के लिए क़तार में थे, और उनमें से ज़्यादातर का नंबर अगले 5 और बरसों तक नहीं आने वाला था. इंतज़ार हादसा था. जो भारी पड़ रहा था. स्कूटर और टेलीफोन कनेक्शन के इस भारी इंतज़ार के दौर में लोग करते क्या?
तमिल फ़िल्मों ने झक्क सिनेमाई पर्दे पर सिल्क स्मिता के भारी उरोज और चौड़े नितंब ठूंस दिए थे. लू वाली उदास भारी दुपहरों में लोग ना सो पा रहे थे और ना जाग रहे थे. जनता के सपनों और नींद की सरहद पर इसी दौर में एक उम्मीद की तस्करी हुई. दुनिया जीत लेने की उम्मीद.
इस उम्मीद की बात आज क्यों? क्योंकि एक फ़िल्म आ रही है '83'. कबीर खान बना रहे हैं. वर्ल्ड कप 83 पर बन रही है ये फ़िल्म. कपिलदेव का क़िरदार निभा रहे हैं रणवीर सिंह. काफ़ी वक़्त से तैयारी कर रहे हैं. लोग इंतज़ार कर रहे हैं इस फ़िल्म का. क्योंकि इस साल दुनिया के आसमान पर लिखा गया था 'भारत विश्व विजेता'.
# सियाही जिससे इतिहास लिखा गया
18 जून 1983. इंग्लैंड का टर्न ब्रिज वेल्स मैदान. ये तारीख़ क्रिकेट के इतिहास में धूल और पसीने से लिखी जानी थी. जब सदियों गुलाम रहा एक मुल्क दुनिया के सामने पीठ झाड़ के ताल ठोंकने वाला था. नटों का देश. नाटकों का देश. भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का देश. इंगलिस्तान वाले जिसे ‘सपेरों का देस’ कहते थे. आदि सपेरे शिव का देश. नटराज का देश.
दसवीं शताब्दी में चोल वंश की नटराज मूर्ति. जिसे काफ़ी समय तक अमेरिका के एक म्यूज़ियम में रखा गया. काफ़ी मशक्कत के बाद इसे वापस देश लाया गया
विश्व विजयी वेस्ट इंडीज़ के तूफ़ान का रुख मोड़कर इंडिया काफ़ी आगे निकल आया था. चार्ट पर इंडिया लिखने वाली सियाही और गाढ़ी, और पक्की हुई थी. लेकिन सेमीफाइनल से पहले गणित गड़बड़ाया. सामने दो मैच थे. दोनों भारी. दोनों ज़रूरी. ज़िम्बाब्वे और ऑस्ट्रेलिया. पिछली दो लड़ाइयां भारत हार चुका था. 74 करोड़ हिंदुस्तानी. एक हार. और सब मिट्टी हो जाता. नाउम्मीदी और उम्मीद का तराजू माशा-माशा बराबर. कांटा किसी भी तरफ़ झुकाने के लिए हवा का एक झोंका भी काफ़ी था. कांटे का मुक़ाबला.
कफ़नी रंग की जर्सी में दर्जन भर लड़ाके. सरदार ने मुट्ठियां भींची आसमान निहारा. इन लड़ाकों की छाती लोहार की धौंकनी थी. सदियों का लोहा पिघलकर आंखों की सुर्खी बन गया था. सात समंदर पार एक महादेश के ये लड़ाके निपट अकेले. BBC की हड़ताल. ना वो मैच किसी ने टेलीविजन पर देखा और ना रेडियो पर सुना. नटराज को तांडव करते भी कोई नहीं देख सकता था. शिव को शाप था. जिसने तांडव देखा वो भस्म होगा. 18 जून 1983 को तांडव होना था. आनन्द तांडव. इसलिए भारत ने आंखें मींच लीं. कान बंद कर लिए.
ये था कपिलदेव का विख्यात 'नटराज शॉट'
# टॉस जीतकर फंस गई टीम इंडिया
जिम्बाब्वे ने बल्लेबाज़ी के लिए न्यौता. लड़के तैयार थे. ‘पीटर रॉसन’ और ‘केविन करां’ ने भारत की बल्लेबाज़ी का बारूदी इम्तेहान लेना शुरू किया. भारत का टॉप ऑर्डर ध्वस्त. ना कोई समझाइश काम आई ना कोई सावधानी. उस दिन के अखबार की रपटें बताती हैं कि सट्टा बाज़ार भी निराश था. भारत ने एक के बाद एक 4 विकेट खो दिए. खाते में आए महज़ 9 रन. उस दिन दो ही चीज़ें आसमान छू रही थीं , एक तो कप्तान कपिल देव की नज़रें और दूसरी, सट्टा बाज़ार में भारत की हार का भाव. 1 के बदले 50 का भाव चल रहा था. 17 रनों पर भारत के नसीब का फ़ैसला हो गया था. 17 रन 5 विकेट. टीम ने सोचा था 300 रन बनाएंगे और अगर अगला मैच ऑस्ट्रेलिया से हार भी गए तो भी सेमीफाइनल में तो पहुंच ही जाएंगे. लेकिन मैच के शुरुआती 15 मिनट ही भारी पड़ गए. कहते हैं कि अगर भारत मैच जीतता तो सटोरियों को 1 रूपए का 50 रुपया मिलता. जिसने लाख लगाया उसे 50 लाख मिलते. लेकिन डूबते सूरज पर रुपया लगाता कौन?
कपिलदेव रामलाल निखंज ने लगाया. रुपया नहीं. अपनी हर वो रात लगाई जो तारे निहारते हुए गुजारी थी. जब कपिल ने अगले दिन के सूरज को तिरंगा देखा था. दर्जन भर लड़कों को छाती पर तिरंगा लपेटे क्रिकेट का ताज उठाए देखा था. आज उन रातों का हिसाब होना था. जब कपिल बल्ला लेकर हुमकते हुए निकले और ऊपर आसमान देखा तो कपिल ने चमकते दिन में देश की सदियों पुरानी रात आखों से ही माप ली थी.
पवेलियन से पिच तक की दूरी 100 यार्ड. उस दिन पवेलियन से कपिल नहीं निकले थे, निकला था इस आदि देश का एक जोगी. शमशान की राख माथे पर मलकर ज़िंदगी गाता हुआ सन्यासी. कपिल ने पिच से दस कदम दूर जब सिर मोड़कर देखा होगा तो कपिल को सिर झुकाए अपने लड़ाके दिखे होंगे? पराई मिट्टी पर एक बार फिर हारकर वतन की वापसी के लिए तैयार कफ़नी जर्सी दिखी होगी? ना. सरासर ना.
# आदि नट का त्रिनेत्र
कपिल ने उस दिन पवेलियन में सारा हिंदुस्तान देखा होगा. ईश्वर से की हुई इस महादेश की मांओं के प्रार्थना में जुड़े हाथ महसूसे होंगे. उस दिन कपिल के हाथ में बल्ला नहीं बही थी. 74 करोड़ हिंदुस्तानियों का हिसाब भारी था. सामने फुंकारते गेंदबाज़ थे. फ्रंटलाइन तबाह हो चुकी थी. कपिल देव को समंदर थामना था, असंभव लांघना था. कपिल की ओर फेंकी हर गेंद पर पवेलियन की सांसे टंग जाती थीं. कपिल को अच्छी तरह मालूम था कि अगर ड्रेसिंग रूम लौटे, तो कपिल अकेले नहीं लौटेंगे. साथ लौटेगा सिर झुकाए सारा देश.
सिर्फ़ दो जोड़ी गेंदें झेलकर कपिल की आंखें चुम्बक हो गईं और गेंद फौलाद. ज़िम्बाब्वे की गेंदबाज़ी के साथ वही हुआ जो थोड़ी देर पहले भारत की बल्लेबाज़ी के साथ हो रहा था. Absolute failure. ना पीटर रॉसन’ ठहर पा रहे थे और ना ही ‘केविन’ को कुछ समझ आ रहा था. आज सदियों की हूक उतारनी थी. मैदान में हुक शॉट, पुल शॉट, स्वीप, ड्राइव और कट का तूफ़ान उठा. ज़िम्बाब्वे समझ चुका था कि आज ये लड़का नहीं थमेगा.
ये कपिल का तांडव था. नीलकंठ का आनंद तांडव. उस दिन नटवर की बांसुरी पर नटराज तारी हुए हों जैसे. हुक शॉट पूरी दुनिया ने देखा था. लेकिन अब बारी थी दुनिया के लिए हुक शॉट के छोटे भाई ‘नटराज शॉट’ की. सिर से थोड़ा नीचे, कंधों से थोड़ा ऊपर. जैसे मछुआरा जाल फेंकता हो नाव के मुहाने पर खड़ा होकर. कपिल के इस शॉट को किसने पहली बार ‘नटराज शॉट’ कहा, ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता. लेकिन जिसने भी कहा अचूक कहा.
आदि नट शिव की नटराज भंगिमा. ख़ुशी में झूमते शिव. एक पांव ज़मीन पर दूसरा टखनों से 45 डिग्री कोण बनाता हुआ हवा में. चतुर्भुज शिव. एक हाथ में डमरू. दूसरे में अग्नि, तीसरा हाथ अभय की मुद्रा में. और चौथा हाथ इशारा करता है हवा में उठे हुए पांव की तरफ़. हवा में सटीक कोण पर लहराता पांव मोक्ष का रूप.
तंजौर के एक मंदिर में नटराज
# पता पूछती गेंद
उस दिन जिम्बाब्वे के ख़िलाफ़ कपिलदेव और नटराज एक हो गए थे. गेंद बॉलर एंड से निकलती तो थी, लेकिन सिर्फ़ पता पूछने भर कपिल के पास आती थी. और फिर कपिल के बताए पते पर फ़ौरन रवाना होती थी. किरमानी और रोजर बिन्नी ने बिटवीन दी विकेट कपिल का साथ दिया. पवेलियन में सिर थोड़ा और ऊंचे उठे. होंठ थोड़ा और मुस्कुराए. मुट्ठियां थोड़ा और भिंच रही थीं. लोगों के नथुनों से खिंची चली आ रही हवा में ऑक्सीजन कम कपिलदेव ज़्यादा थे.
भर मैदान 16 चौके और लॉन्ग ऑन पर 6 छक्के. नाबाद 175 रन. कुल 138 बॉल्स. तब वर्ल्ड कप होता था 60 ओवर का. और पूरे 60 ओवर तक कपिल पिच पर अंगद का पांव बने रहे. हिलाए ना हिले. ज़िम्बाब्वे ही नहीं पूरी दुनिया की उंगलियां दांतों तले थीं. कपिल ने इतिहासों का इतिहास बनाया था. Record of records. वन डे इंटरनेशनल में अकेले बल्लेबाज़ का सबसे ज़्यादा रनों का रिकॉर्ड. इस महादेश का अपने ODI क्रिकेट में पहला शतक. कप्तान कपिलदेव की सबसे मशहूर पारी.
ज़िम्बाब्वे को मिली 266 रन की चुनौती. मदनलाल ने गेंद संभाली और ज़िम्बाब्वे को संभलने का मौक़ा दिया नहीं. 42 रन देकर 3 विकेट झटके और ज़िम्बाब्वे 235 रन पर समेट दिया गया. और समय की रस्सी पर नंगे पांव नटकला दिखाती इंडियन क्रिकेट टीम चूकते-चूकते रह गई. ये उस वर्ल्ड कप का और शायद दुनिया का अकेला ऐसा क्रिकेट मैच है जिसकी कोई फुटेज किसी के पास नहीं. बीबीसी की हड़ताल थी. 2000 दर्शकों में से शायद ही किसी के पास कोई कैमरा रहा हो. इक्का-दुक्का तस्वीरें तो हैं. लेकिन नटराज अदृश्य ही रहे. स्मृतियों में शेष. देवताओं का शाप.
लेकिन नटराज की मूर्ति को ध्यान से देखें तो आनन्द तांडव करते नटराज शिव के दाहिने पांव के नीचे कुछ दबा होता है. शास्त्र कहते हैं कि ये एक बौना ‘अपस्मार’ हुआ करता था. अहंकार का प्रतीक. अपस्मार के दंभ को कुचलते हुए ही नटराज ने आनंद तांडव किया था. उस दिन ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ कपिलदेव जब-जब नटराज होते थे, ठीक तब-तब उनके पांवों ने भी एक अपस्मार भींच रखा होता था. विश्व क्रिकेट में क्रिकेट का आविष्कार करने वाली टीम का दंभ. उस दिन अपस्मार रौंदा गया. ठीक वैसे ही जैसे पिछले दो विश्व कपों में भारत की संभावनाएं कुचली गई थीं.
ये वही दिन था जब भारत में क्रिकेट की क़ायदे से नींव रखी गई. जब लगा कि अब इन दर्जन भर लड़कों का सीना कोई भी तूफ़ान झेलने के लिए तैयार है. कोई कितना भी भारी फौलाद बनकर आए. इनकी सांसों की धौंकनी के सामने टिक नहीं पाएगा.
अब अगर छाती पर तिरंगा लपेटे वर्ल्ड कप उठाने के लिए इस टीम को ईश्वर से भिड़ना पड़ता तो भी ये पल भर को ना हिचकते. जिसके साथ साक्षात नटराज हों उन्हें वैसे भी अभय हासिल था. उस साल भारत ने क्रिकेट के आसमान पर अपनी सदियों पुरानी रातों को घोलकर लिख दिया ‘विश्व विजेता’. दुनिया से कभी कोई जंग ना लड़ने वाले मुल्क ने उस साल दुनिया जीत ली. दो बार से अजेय की परिभाषा बन चुका वेस्ट इंडीज़ भी हमारे सामने घुटनों पर आ गया. कपिलदेव रामलाल निखंज ने अपने लड़ाकों के साथ वर्ल्ड कप उठाया. कुछ दशकों पहले ही आज़ाद हुआ मुल्क ठिठक गया. जिसकी उम्मीद नहीं थी वो मिल गया था.
- कपिलदेव ने ट्विटर पर अपना कवरपेज बनाया है उस तस्वीर को जिसमें उन्होंने 83 का विश्व कप थामा हुआ है (तस्वीर twitter)
# कागा सब तन खाइयो
कपिलदेव का ननिहाल और सूफ़ी संत बाबा फरीद की मज़ार एक ही शहर में है. पाकपट्टन शरीफ़. बाबे ने एक बात कही थी. अब उस बात को लोकगीत की तरह गाती है दुनिया. बाबा फरीद ने कहा था ‘कागा सब तन खाइयो, मोरा चुन-चुन खाइयो मास ... दो नैना मत खाइयो इन्हें पिया मिलन की आस.’ देश की आस 83 में कपिलदेव रामलाल निखंज और टीम ने पूरी कर दी. भारतीय क्रिकेट ने सांसों के बीज बोए थे, उस साल किसानों के बच्चों ने गेंद और बल्ले से आज़ादी की फसल काट ली.
अब सिनेमाई पर्दे पर वो मैच जिंदा किया जा रहा है. फ़िल्म बन रही है '83'. रणवीर सिंह कर रहे हैं कपिलदेव का किरदार. और कपिलदेव के किरदार में रणवीर याद दिलाएंगे उस बरस की जब टीम इंडिया ने उठाया था वर्ल्ड कप. इसी सिलसिले में बात हो रही थी कपिलदेव के 'नटराज शॉट' की.
आज कपिल देव का जन्मदिन है. कपिल आज 61 साल के हो गए. हमें नटराज शॉट से परिचित कराने वाले कपिल देव को हैप्पी बड्डे.
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