9 दिसंबर को सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (SEBI) ने एल्गोरिदमिक ट्रेडिंग पर कुछ रेगुलेशन लाने के लिए एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया
. इस पेपर में SEBI ने एल्गो ट्रेडिंग पर कुछ नए नियम बनाने का प्रस्ताव दिया और 15 जनवरी तक इस बारे में स्टेकहोल्डर्स और आम निवेशकों के व्यूज भी मांगे. SEBI ये नियम क्यों बनाना चाहता है, इनसे क्या बदलेगा, ये सब जानेंगे. लेकिन पहले ये समझते हैं कि एल्गोरिदमिक ट्रेडिंग यानी एल्गो ट्रेडिंग क्या है.
एल्गो ट्रेडिंग (आपकी कृपा से सब काम चल रहा है)
एक मेरे परिचित हैं. ज़मीन बेचने-खरीदने का काम करते हैं. अक्सर उन्हें हमने कहते सुना है- ये ज़मीन भी हाथ से निकल गई. उनसे हमने एक दिन पूछ लिया कि क्या दिक्कत है जिसकी वजह से आपका काम बढ़िया नहीं चल रहा. उन्होंने दो तीन दिक्कतें बताईं- एक कि जितना मेरा बजट है उसमें अच्छी लोकेशन में प्रॉपर्टी नहीं मिल पाती. दूसरा मिलती भी है तो सही रीसेल वैल्यू नहीं मिलती. तीसरी और सबसे बड़ी दिक्कत है कि जो ठीक मुनाफ़ा देने वाली प्रॉपर्टी मेरे बजट में हैं वो बिक जाती हैं और मुझे पता नहीं चलता.अब तीनों दिक्कतों के समाधान के बतौर हमने उन्हें सलाह दी कि आप एक ‘फील्ड वर्कर’ नौकरी पर रख लीजिए. उसे एक पर्चा मेंटेन करके दीजिए कि आपको कैसी प्रॉपर्टी चाहिए, और उसके बाद सारे शहर में ऐसी प्रॉपर्टीज़ की खोजबीन पर उसे लगा दीजिए. ये तो हो गई एक रियल स्टेट बाज़ार की बात, वो भी एक इंडिविजुअल की. अब रुख करते हैं शेयर ट्रेडिंग की तरफ़.
शेयर्स की दुनिया में भी ऐसा ही एक ‘फील्ड वर्कर’ है जो दिन-रात 24 घंटे आपके लिए अच्छे और मुनाफ़ा देने वाले शेयर्स ढूंढता रहता है. आपकी सेट की हुई शर्तों पर अगर किसी कंपनी के शेयर खरे उतरते हैं तो उनकी खरीद और बिक्री भी करता है. आपको कुछ नहीं करना, बस कुछ चीज़ें सेट कर देनी हैं. जैसे आपका बजट, और आपकी प्रायोरिटी बता सकने वाले कुछ पैरामीटर्स वगैरह. उसके बाद आराम ही आराम है.
शेयर ट्रेडिंग को आसान बनाने वाली प्रक्रिया का नाम है एल्गोरिदमिक ट्रेडिंग या एल्गो ट्रेडिंग. SEBI ने इसकी ऑफिशियल डेफिनिशन भी दी है,
कोई भी ऑर्डर जो ऑटोमेटिक लॉजिक का इस्तेमाल करके जेनेरेट किया जाता है उसे एल्गो ट्रेडिंग कहेंगे.ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे टेस्ला की कार में एक बार डेस्टिनेशन डाल दिया और सीट बेल्ट लगाकर बैठ गए. उसके बाद कार का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एल्गोरिदमिक डेटा और उस पर एप्लाई की गई डेटा साइंस गाड़ी चलाने से लेकर, भीड़ में स्पीड कम करने, मोड़ पर गाड़ी मोड़ने और सारे ट्रैफिक रूल्स फॉलो करते हुए आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा देगी.
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एल्गो ट्रेडिंग के पीछे एक जटिल कंप्यूटर तकनीक काम करती है (प्रतीकात्मक फोटो - बिज़नेस टुडे)
एल्गो ट्रेडिंग का मैकेनिज्म
एल्गो ट्रेडिंग काम कैसे करती है इसे समझने के लिए पहले ये समझ लेते हैं कि टेस्ला की कार बिना ड्राइवर कैसे चलती है. दो शब्दों में इसका जवाब है- डेटा साइंस. लेकिन अगर इसके मैकेनिज्म पर जाएं तो सब कुछ उस डेटा पर टिका है जो कार का सॉफ्टवेयर और उसके सेंसर कलेक्ट करते हैं. जैसे सड़क पर कहां टर्न है, ट्रैफिक सिग्नल क्या इंस्ट्रक्शन दे रहा, आगे चल रही दूसरी गाड़ी की रफ़्तार कितनी है और कार का मालिक कितनी रफ़्तार पर चलना पसंद करता है. इसी कलेक्टेड डेटा के हिसाब से टेस्ला की कार अपने सफ़र के लिए पैटर्न बना लेती है और उन्हीं को फॉलो करते हुए बिना ड्राइवर की ज़रूरत के अपना सफ़र तय करती है.बिल्कुल ऐसा ही एल्गो ट्रेडिंग में होता है. शेयर ट्रेडिंग के लिए एल्गोरिदम भी कई तरह के डेटा का कलेक्शन और उसका इस्तेमाल करता है. जैसे इन्वेस्टर का रुख, उसके इंवेस्टमेंट की रकम, उसका शेयर्स में इंटरेस्ट और ट्रेडिंग का उसका पैटर्न. इसके अलावा इन्वेस्टर भी कुछ इंस्ट्रक्शन देता है. जैसे उसे कमोडिटीज़ में इन्वेस्ट करना है या किसी कंपनी के शेयर्स में, कितने टाइम के लिए इन्वेस्ट करना है, कितने रुपए के नीचे के शेयर्स खरीदने हैं और कितने फ़ीसद प्रॉफिट लेकर उन्हें बेचना है, वगैरह-वगैरह. इन्हीं पहले से दिए गए निर्देशों और कलेक्टेड यूसेज पैटर्न के बेसिस पर एल्गो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स इन्वेस्टर के लिए स्टॉक्स या दूसरे एसेट क्लासेज़ में ऑटोमेटिक खरीदारी और बिक्री करते हैं. एक आसान उदाहरण से समझते हैं-
मान लीजिए आपने कमांड दी कि हर बार जब रुपया US डॉलर के मुकाबले 2 फीसद नीचे गिरे तो ITC के 100 शेयर्स खरीदने हैं. या जब मेरे Infosys के शेयर की वैल्यू 20 फ़ीसद बढ़ जाए तो सारे शेयर बेच देने हैं. ये तो सिर्फ़ दो कमांड हैं. एक निवेशक जितने चाहे क्राइटेरिया और जितने चाहे कमांड दे सकता है. ऑफ़कोर्स कई सारे वेरिएबल्स के बेसिस पर, जैसे प्राइस, टाइम, बजट, शेयर वॉल्यूम वगैरह.
एल्गो ट्रेडिंग निवेशकों का शारीरिक और मानसिक श्रम तो बचाती ही है, बल्कि शेयर ट्रेडिंग की रफ़्तार भी बढ़ा देती है (प्रतीकात्मक फोटो- pixabay)
अब इसके बाद आपको कुछ नहीं करना. बाकी सारा काम आपके लिए एल्गोरिदम करेगा. ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी शेयर ब्रोकर से अपने लिए शेयर खरीने को कहना. अब सवाल है कि जब शेयर ब्रोकर हैं तो फिर इसकी क्या ज़रूरत. ये वैसा ही सवाल है कि जब घोड़ा-गाड़ी है तो फ़रारी की क्या ज़रूरत. ज़रूरत है क्योंकि एक कहावत है- 'टाइम इज़ मनी.'
एल्गोरिदम आपके लिए शेयर ब्रोकर वाले काम हज़ार गुना कम वक़्त में कर देता है. दूसरा ये कि सबकुछ कंप्यूटर टेक्नोलॉजी से हो रहा है तो किसी गलती की गुंजाइश भी नहीं. आपके पोर्टफोलियो की पूरी निगरानी, आपके दिए इंस्ट्रक्शंस के आधार पर हर सेकंड सैकड़ों छोटे-बड़े डिसिशन मेकिंग वाले काम सबकुछ आपके लिए एल्गोरिदम करेगा. न आपको घंटों कंप्यूटर स्क्रीन पर बैठकर दिमाग खपाने की ज़रूरत है और न ही खुद से कोई बाई या सेल ऑर्डर देने की ज़रूरत.
एल्गो ट्रेडिंग कितनी पुरानी शय
वेस्टर्न कंट्रीज़ में दशकों से एल्गो ट्रेडिंग हो रही है. भारत में भी साल 2008 से SEBI की परमीशन मिलने के बाद से एल्गो ट्रेडिंग शुरू हो गई थी. लेकिन उस वक़्त ये ‘ओपेन टू ऑल’ नहीं थी. शुरुआत में सिर्फ इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर्स ही इसका इस्तेमाल कर सकते थे. लेकिन जब स्टॉक एक्सचेंजेज़ ने शेयर ब्रोकर्स और फिनटेक कंपनियों को अपने सर्वर्स पर एक्सेस देना शुरू किया तो एल्गो ट्रेडिंग आम लोगों तक पहुंचना शुरू हुई. साल 2012 में SEBI ने ऐसे ऑर्डर्स के मामले में स्टॉक एक्सचेंजेस के लिए कुछ नियम भी तय किए, और ये ज़रूरी कर दिया कि एल्गो ऑर्डर्स में शेयर्स की कीमतें, क्वालिटी लिमिट और गलत एल्गोज़ को चेक किया जाए और हर महीने एक रिपोर्ट तैयार की जाए.एल्गो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स
सामान्य तौर पर एल्गो ट्रेडिंग का इस्तेमाल म्यूचुअल फंड्स, हेज फंड्स, इंश्योरेंस कंपनीज़, बैंक्स और ऐसे ही दूसरे फाइनेंस से जुड़े बड़े इंस्टिट्यूशंस करते हैं. वजह? बड़े पैमाने पर ट्रेडिंग ह्यूमन एफर्ट से हो पाना संभव ही नहीं है.इनके अलावा पिछले कुछ सालों में फिनटेक फर्म्स के आने से शेयर मार्केट में रिटेल भागीदारी तेज़ी से बढ़ी है. अब माइक्रो इन्वेस्टर्स भी इन प्लेटफॉर्म्स पर शेयर ट्रेडिंग कर रहे हैं, Zerodha, 5Paisa, Alice Blue Algo, Fox Trader, Master Trust वगैरह कुछ ऐसे ही एल्गो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स हैं.
लेकिन कहते हैं न कि हर नई तकनीक के साथ कम्पटीशन, फ्रॉड और झूटी गारंटी के वादे भी बाज़ार में आते हैं, वही दिक्कत एल्गो ट्रेडिंग के साथ भी है. कई एल्गो ट्रेडिंग की सुविधा देने वाले कई प्लेटफॉर्म्स इन्वेस्टर्स को ज्यादा मुनाफे की गारंटी देते हैं जबकि असल में ऐसा होता नहीं है और इन्वेस्टर्स को कई बार धोखाधड़ी और नुकसान झेलना पड़ता है. और यही SEBI की चिंता का सबब है.
SEBI उन एल्गो प्लेटफॉर्म्स पर सख्त्ती करना चाहती है जो ज्यादा प्रॉफिट की गारंटी देकर इन्वेस्टर्स को नुकसान पहुंचाते हैं (फोटो सोर्स -आज तक)
SEBI की चिंता
साल 2018 में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फाइनेंशियल मैनेजमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की फाइनेंशियल मार्केट में एल्गो ट्रेडिंग का शेयर करीब 50 फ़ीसद तक पहुंच गया है जबकि US में सभी ट्रेड्स का करीब 80 फ़ीसद हिस्सा ‘एल्गो ट्रेडिंग’ का है.हमारे यहां स्टॉक एक्सचेंजेज़, ब्रोकर्स के सबमिट किए हुए एल्गोज़ को API यानी एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस का इस्तेमाल करके अप्रूव करते हैं. लेकिन कई बार रिटेल इन्वेस्टर्स के एल्गोज़ को न ही ब्रोकर आइडेंटिफाई कर पाते हैं न ही एक्सचेंजेज़. माने कई बार ये क्लियर नहीं हो पाता कि कोई ट्रेड जो API लिंक से आया है वो एल्गो ट्रेड है या नॉन-एल्गो.
SEBI ने अपने कंसल्टेशन पेपर में कहा है-
'इस तरह के बिना एप्रूव किए गए एल्गोज़ मार्केट के लिए ख़तरा हो सकते हैं और सिस्टमैटिक मार्केट में हेरफेर करने के अलावा रिटेल इन्वेस्टर्स को ज्यादा रिटर्न की गारंटी का लालच देने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं.'SEBI ने ये भी चेतावनी दी है कि एल्गो स्ट्रेटेजी अगर ठीक से काम न कर सकी तो छोटे इन्वेस्टर्स को बड़ा नुकसान हो सकता है, क्योंकि थर्ड-पार्टी एल्गो प्रोवाइडर्स पर कोई रेगुलेशन नहीं है और न ही नुकसान की स्थिति में छोटे इन्वेस्टर्स की शिकायतों के लिए कोई मैकेनिज्म बनाया गया है. SEBI ने अपने कंसल्टेशन पेपर में कुछ सुझाव भी दिए हैं. जैसे-
# API के मध्यम से हो रहे सारे ऑर्डर्स को एल्गो ऑर्डर्स ही माना जाए.हालांकि SEBI के कंसल्टेशन पेपर में शामिल इन तमाम सुझावों पर फाइनेंस मार्केट के लोग मिली-जुली प्रतिक्रया दे रहे हैं. ऑनलाइन स्टॉक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म Zerodha Broking Limited के फाउंडर और CEO नितिन कामत ने कहा,
# एल्गो ऑर्डर्स पर नियंत्रण की ज़िम्मेदारी स्टॉक ब्रोकर्स लें.
# हर API लिंक के साथ स्टॉक एक्सचेंज की दी हुई यूनिक ID टैग की हुई हो.
# एल्गोज़ में बिना अथॉरिटी के होने वाले अल्टरेशन को चेक करने के लिए तकनीकी टूल्स हों.
# एल्गोज़ के लिए ब्रोकर्स खुद स्ट्रेटेजी डेवेलप करें या एप्रूव्ड वेंडर्स की सर्विस लें.
‘SEBI ने गारंटीड रिटर्न का वादा करने वाले अनरेगुलेटेड एल्गो प्लेटफॉर्म्स पर नियंत्रण करने के लिए जिस तरह से प्लान बनाया है उसका मतलब है कि स्टॉक ब्रोकर्स को APIs ऑफर करना बंद करना होगा. टेक्नोलॉजी के फ्यूचर के लिए ये दो कदम पीछे जाने जैसा है.’
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