कहानी जिगना वोरा की, जिन पर छोटा राजन गैंग से एक जर्नलिस्ट का मर्डर करवाने का आरोप लगा

01:50 PM Feb 10, 2022 |
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‘स्कैम 1992’ के बाद हंसल मेहता अपनी अगली वेब सीरीज़ लेकर आ रहे हैं. उन्होंने ट्विटर पर अनाउंस किया कि वो नेटफ्लिक्स के लिए ‘स्कूप’ नाम की सीरीज़ डायरेक्ट कर रहे हैं. जिसकी शूटिंग शुरू हो चुकी है. शो के ऑफिशियल सिनॉप्सिस के मुताबिक,
स्कूप एक कैरेक्टर ड्रामा है, जो जागृति पाठक नाम की क्राइम जर्नलिस्ट की जर्नी दिखाएगी. उसकी दुनिया बदल जाती है, जब एक दिन उसे साथी जर्नलिस्ट जयदेब सेन के मर्डर के चार्ज में गिरफ्तार कर लिया जाता है. फिर जेल में उसे वो लोग मिलते हैं, जिनके खिलाफ एक वक्त उसने रिपोर्टिंग की थी. वो अब अपने ट्रायल के ज़रिए सच के बाहर आने का इंतज़ार करती है.
‘स्कूप’ जर्नलिस्ट जिगना वोरा की लिखी बायोग्राफी ‘Behind the Bars in Byculla: My Days in Prison’ पर बेस्ड है. जिगना ने जेल में हुए अनुभव पर अपना संस्मरण लिखा. 2019 में मैचबॉक्स पिक्चर्स ने जिगना की किताब के राइट्स खरीद लिए थे. हालांकि, तब न्यूज़ आई थी कि इसे श्रीराम राघवन डायरेक्ट करने वाले हैं. लेकिन किसी वजह से प्लान बदलना पड़ा और अब हंसल मेहता डायरेक्टर वाली चेयर संभालेंगे. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक करिश्मा तन्ना सीरीज़ में जिगना का किरदार निभाएंगी, जिनका नाम शो में जागृति पाठक रखा गया है. शो के डायरेक्टर होने के साथ-साथ हंसल मेहता इसके को-क्रिएटर भी हैं. ‘थप्पड़’ की राइटर रही मृण्मयी लागू का नाम भी ‘स्कूप’ के क्रिएटर्स में शामिल है.
अपने मीडिया स्टेटमेंट में हंसल मेहता ने कहा था कि ये बुक पढ़ते समय उन्हें एहसास हुआ कि इस कहानी को स्क्रीन पर लाना बेहद ज़रूरी है. क्या थी जिगना वोरा की कहानी, क्यों मीडिया ही इस जर्नलिस्ट के खिलाफ हो गई, जेल में उनकी दुनिया फिल्मी जेलों से कितनी भयावह थी, आज आपको ये पूरी कहानी बताएंगे.
# लाइसेंस प्लेट, छोटा राजन और एक मर्डर
11 जून, 2011. दोपहर करीब 03 बजे का समय. मुंबई का पवई इलाका. मिड डे में क्राइम एंड इंवेस्टिगेटिव एडिटर रहे ज्योतिर्मय डे, जिन्हें मीडिया सर्कल में जे डे भी कहा जाता था, मोटरसाइकिल पर अपने घर लौट रहे थे. तभी चार बाइक सवार उनका पीछा करने लगे. उन्हें घेरकर उन पर गोलियां चलाने लगे. उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन तब तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी. जेडे हत्याकांड के बाद मीडिया इंडस्ट्री में हड़कंप मच गया. पत्रकारिता की क्राइम बीट में वे जाना-माना नाम थे. दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन जैसे अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर्स पर रिपोर्ट कर चुके थे.
डे के करीबी बताते हैं कि वो बहुत गुप्त तरीके से काम करते थे. कंप्यूटर पर कोई स्टोरी फाइल करते, तो स्क्रीन को घुमा लेते ताकि कोई दूसरा न देख पाए. अपनी बीवी तक को खबर नहीं देते कि किस स्टोरी पर काम कर रहे हैं. फोन में अपने सोर्सेज़ का नाम अजीबोगरीब ढंग से सेव करते. जैसे किसी पुलिसवाले का नाम WWF से सेव किया हुआ था.

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क्राइम रिपोर्टर्स के बीच जाना-माना नाम थे जेडे. फोटो - FinancialExpress

इंडिया रिपोर्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जेडे के मर्डर के बाद छोटा राजन ने कुछ पत्रकारों को फोन कर इसकी पूरी ज़िम्मेदारी ली. उसने कहा कि डे उसके खिलाफ लिखते थे, जिस बात से वो तंग आ चुका था. पवई पुलिस स्टेशन में मर्डर का केस दर्ज हुआ. जिसके बाद जांच क्राइम ब्रांच हो सौंप दी गई. मर्डर के 16 दिन बाद ही क्राइम ब्रांच ने सात लोगों को गिरफ्तार किया. उन सात में से एक शख्स था सतीश कालिया. वो शूटर. जिसने जेडे पर गोलियां चलाई थीं. आरोपियों से पूछताछ चली. पूछताछ के आधार पर क्राइम ब्रांच ने तीन और लोगों को अरेस्ट किया.
पकड़े गए लोग छोटा राजन की गैंग से जुड़े थे. राजन को वांटेड करार दिया जा चुका था. उसकी तलाश जारी थी. क्राइम ब्रांच ने आरोपियों पर Maharashtra Control of Organised Crime Act यानी मकोका लगा दिया. यहां बता दें कि मकोका टेररिज़्म  या ऑर्गनाइज़्ड क्राइम से जुड़े अपराधियों पर लगाया जाता है. 07 जुलाई, 2011 को मकोका लगाया गया. इस केस में अगला बड़ा डेवेलपमेंट आया करीब चार महीने बाद. जब पुलिस ने 25 नवंबर को जर्नलिस्ट जिगना वोरा को अरेस्ट किया. पुलिस के मुताबिक जिगना ने ही जेडे का मर्डर करने के लिए छोटा राजन को उकसाया था. साथ ही पुलिस का ये भी कहना था कि जिगना ने जेडे की बाइक का लाइसेंस प्लेट नंबर और घर का पता छोटा राजन को दिया था.


# कौन थीं जिगना वोरा?
जिगना के कलीग रहे दीपक लोखंडे ने इंडिया टुडे के संगीत सेबेस्टियन को बताया कि जिगना को हमेशा लगता था कि वो पत्रकारिता की दुनिया में काफी लेट आईं. जर्नलिज़्म में आने से पहले उन्होंने बतौर अप्रेंटिस कुछ वकीलों के साथ काम किया. फ्री प्रेस जर्नल के साथ अपनी पत्रकारिता का सफर शुरू किया. लोखंडे ने बताया कि वो हमेशा बाकी रिपोर्टर्स से कुछ अलग करना चाहती थीं. अपनी जगह बनाना चाहती थीं. अपनी इसी अप्रोच के चलते करियर का पहला दशक पूरा होने से पहले वो एशियन एज में डेप्यूटी चीफ रिपोर्टर बन चुकी थीं.


क्राइम ब्रांच के मुताबिक जिगना ने छोटा राजन को जेडे के मर्डर के लिए उकसाया था. फोटो - इंडिया टुडे

जब पुलिस ने कहा कि जिगना की जेडे से ‘प्रोफेशनल राइवलरी’ थी, तो ये बात उनके पुराने कलीग्स को खटकी. मिड डे के उस समय के एग्ज़ेक्युटिव एडिटर रहे सचिन कालबाग ने इंडिया टुडे को बताया कि जेडे जिगना से काफी सीनियर थे. ऐसे में दोनों के बीच किसी प्रोफेशनल राइवलरी का सवाल ही पैदा नहीं होता. लेकिन क्राइम ब्रांच अब भी अपने स्टैंड पर कायम था. उनके मुताबिक उनके पास जिगना के खिलाफ ठोस सबूत थे. बाकी आरोपियों की तरह उन पर भी मकोका लगा दिया गया.


# “टॉप क्राइम रिपोर्टर से मर्डरर बना दिया”
अरेस्ट के बाद जिगना को जेल भेज दिया गया. अपने उन दिनों के अनुभव को उन्होंने ‘Behind the Bars in Byculla’ में जगह दी. जिगना ने अपनी किताब में बताया कि शुरुआती कुछ दिन उनसे खाना नहीं खाया गया. प्लेट में दो चपाती, थोड़ी सब्ज़ी और दाल परोसी जाती. ऐसी पानी से भरी दाल, जिसमें बाल तैरते दिखते. किसी तरह हिम्मत जुटाकर भी खाना नहीं खा पातीं. प्लेट साइड में रख रोने लग जाती, कि बिना किसी गलती के उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है.
जिगना लिखती हैं कि टॉइलेट्स की हालत ऐसी थी कि सांस रोककर इस्तेमाल करना पड़ता था. जेल में सुबह 5:30 बजे सभी कैदियों की गिनती होती थी. अपराध के आधार पर दो-दो कैदियों की जोड़ियां बनाई जाती. जैसे दो चोर एक साथ, दो खूनी एक साथ. जिगना लिखती हैं कि गिनती के वक्त उनकी जोड़ी किसी के साथ नहीं बनाई जाती. वो अकेले बैठा करतीं, क्योंकि पूरे जेल में वो अकेली थीं, जिस पर MCOCA लगाया गया था. जेल में लोग उन्हें लेकर बातें करते कि क्या वो एक आतंकवादी है, या फिर उनके अंडरवर्ल्ड से ताल्लुकात हैं.


जिगना ने अपने पूरे ट्रायल के दौरान क्या कुछ फेस किया, उसी अनुभव को अपनी बुक में जगह दी. फोटो - Amazon.in

मीडिया से होने के बावजूद जिगना को मीडिया से कोई सपोर्ट नहीं मिला. NDTV को दिए एक इंटरव्यू में वो बताती हैं कि अरेस्ट के बाद मीडिया पूरी तरह उनके खिलाफ हो गई थी. उन्हें टॉप क्राइम रिपोर्टर से मर्डरर करार दे दिया गया. जिगना बताती हैं कि उन्हें लेकर तमाम तरह की नेगेटिव स्टोरीज़ चलाई गईं. मीडिया सर्कल्स में लोग बातें करते कि इसने सफल होने के लिए लोगों से हमबिस्तर होने का रास्ता चुना. जिगना को ये बातें चुभती, फिर भी भरोसा था कि उनके साथ न्याय होगा.
जेल में करीब नौ महीने रहने के बाद 27 जुलाई, 2012 को जिगना वोरा को बेल मिल गई. उनके वकील ने दलील दी कि वो एक सिंगल मदर हैं, और अपने बच्चे का ध्यान रखना चाहती हैं. जिगना को बेल मिलने के करीब तीन साल बाद छोटा राजन की गिरफ़्तारी हुई. राजन को इंडोनेशिया में पकड़ा गया था. जहां से डिपोर्ट कर के इंडिया लाया गया. सरकार ने आदेश दिया कि छोटा राजन से जुड़े सभी केसों की जांच CBI को सौंपी जाए. ऐसे में जेडे मर्डर केस की जांच भी CBI के पास आ गई.
CBI ने अपनी चार्जशीट में यही लिखा कि जिगना ने ही छोटा राजन को जेडे का मर्डर करने के लिए उकसाया था. उनके मुताबिक कुछ फोन कॉल्स के आधार पर वो ऐसा कह रहे थे. हालांकि, जब ट्रायल कोर्ट में ये केस पहुंचा तो बेंच ने कहा कि ये कोई ठोस सबूत नहीं, जिससे साबित हो सके कि जिगना का इस मर्डर से कनेक्शन था. बेंच ने CBI की अपील को खारिज कर दिया. 2018 में कोर्ट ने जिगना को रिहा कर दिया. सरकार ने इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील की.
हाई कोर्ट ने सरकार की अपील खारिज कर दी और जिगना की रिहाई का ऑर्डर कायम रखा. जिगना ने NDTV को दिए इंटरव्यू में ही बताया कि जेल से रिहा होने के बाद उन्हें मीडिया इंडस्ट्री में दोबारा मौका नहीं मिला. उनका भी मन ऊब गया. उन्होंने मीडिया इंडस्ट्री में ऑप्शन तलाशने बंद कर दिए. आज के समय में जिगना एक प्रोफेशनल टैरो कार्ड रीडर हैं.
‘शाहिद’ और ‘अलीगढ़’ जैसी फिल्मों के ज़रिए रियल लाइफ स्टोरीज़ को स्क्रीन पर लाने वाले हंसल मेहता से उम्मीदें हैं कि वो जिगना वोरा की कहानी को उसकी पूरी डेप्थ दे पाएंगे. ‘ग्रहण’ की राइटर रही अनु सिंह चौधरी, ‘भोसले’ के को-राइटर रहे मिरत त्रिवेदी और वैकुल ‘स्कूप’ की राइटिंग टीम का हिस्सा हैं. ‘स्कूप’ की शूटिंग शुरू हो चुकी है, और सब कुछ ठीक रहा तो हंसल मेहता का पहला नेटफ्लिक्स प्रोजेक्ट इसी साल रिलीज़ किया जाएगा.


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