# आप अपने पसंदीदा खिलाड़ी के लिए किस हद तक जा सकते हैं?
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# दोस्त छोड़ देंगे, घर छोड़ देंगे?
# गांव छोड़ देंगे, शहर छोड़ देंगे?
# अपना राज्य छोड़ देंगे, देश छोड़ देंगे?
# बस छोड़ेंगे ना? देश तोड़ने की धमकी तो नहीं दे पाएंगे?
अब आप सोच रहे होंगे कि ये क्या खिचड़ी पक रही है? मैं क्या बकैती किए जा रहा हूं. किसी प्लेयर के लिए देश तोड़ने की धमकी कौन दे सकता है? जरूर मैं किसी काल्पनिक कहानी का ज़िक्र करने जा रहा हूं. अगर आप ये सब सोच रहे हैं तो थम जाइए. ठंडा पानी पीजिए और ध्यान से जानिए उस सच्ची कहानी को, जब एक प्लेयर के लिए इटली के एक शहर ने देश तोड़ने की धमकी दे डाली.बात साल 1983 की है. ब्राज़ील के दिग्गज क्लब फ्लामेंगो के लिए खेलने वाले ऑर्थर अतुनिस कोइब्रे पर इटली के दिग्गजों, एसी मिलान और एएस रोमा की नज़र पड़ी. ज़िको के नाम से फेमस ऑर्थर का खेल देख मिलान और रोमा दोनों ललचा गए. दोनों क्लबों ने उसे अपने साथ जोड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी. लेकिन बेहद गरीबी से उठा ज़िको इतने बड़े क्लब्स से जुड़ने में हिचकिचा रहा था. और इस हिचकिचाहट का फायदा उठाया उडिनेसे ने.
# Udinese और Zico
उडिनेसे. इटली के फ्रिउली स्वायत्त क्षेत्र के शहर उडिने की टीम. उडिनेसे ने ज़िको के सामने तुरंत चालीस लाख डॉलर का प्रस्ताव रख दिया. छोटी टीम से आया ये ऑफर देख ज़िको झट से तैयार हो गए. ढिंढोरा पिट गया. वर्ल्ड फुटबॉल के दिग्गज ज़िको उडिने आ रहे हैं. स्वागत की तैयारियों जोरों पर थीं. कि तभी कांड हो गया.पुरानी फिल्मों के खलिहर आशिकों की तरह मिलान और रोमा भी रिजेक्शन बर्दाश्त नहीं कर पाए. दोनों ने इटैलियन फुटबॉल फेडरेशन से चुगली की. कहा कि ये छुटकऊ इतना पैसा ला कहां से रहे हैं? फिनांशियल गारंटी का चोंचला लगाकर पूरी डील रोक दी गई. ज़िको को अपना उद्धारक मान चुके फुटबॉल के दीवाने उडिने के लोगों पर वज्रपात हो गया. रोना-पिटना मच गया. उडिने शहर से शुरू हुआ हाहाकार जल्दी ही पूरे फ्रिउलि में फैल गया.
हाथों में बैनर-तख्तियां लिए लोग सड़कों और गलियों में भर गए. पूरा इलाका मानो थम गया. लोग इटैलियन फुटबॉल फेडरेशन के साथ इटली की सरकार से भी नाराज़ थे. उनका मानना था कि इस अन्याय के खिलाफ इटली की सरकार को उनका साथ देना चाहिए. लेकिन सरकार बेचारी गरीबों का साथ कहां दे पाती है? मजबूर इटली की सरकार इस मामले से दूर ही रही और विरोध बढ़ता गया.
'हमें चाहिए... आजादी. हम लेके रहेंगे, आजादी.'हालांकि इस आजादी में एक पेंच था. वे इटली से आजाद तो होना चाहते थे, लेकिन खुदमुख्तार नहीं. इटली से अलग होकर वे फिर से ऑस्ट्रिया का हिस्सा बनना चाहते थे. पहले फ्रिउलि पर ऑस्ट्रिया का राज था और वे लोग वापस अपने इतिहास को जीना चाहते थे. उस दौर में सड़कों पर ये नारा आम था,
O Zico, O Austria अर्थात- ज़िको या ऑस्ट्रिया.ये दंगल लंबा चलता उससे पहले सरकार को समझ आ गया. कि फ्रिउलि के लोगों ने शेर नहीं पाला. उन्होंने दिया है वोट, और वो चाहते हैं जवाबदेही. सरकार की जवाबदेही तय हुई. सरकार ने इटैलियन फुटबॉल फेडरेशन को कसा और अमीरों से दोस्ती टूट गई. ज़िको की डील पूरी हुई और वह आ गए फ्रिउलि के शहर उडिने.
# टूटी उम्मीदें, लौटे ज़िको
हालांकि ज़िको के साथ आई अच्छे दिनों की उम्मीद पहले ही सीजन टूट गई. ज़िको की फ्री-किक कमाल की थी. लेकिन यह सिर्फ टीवी डिबेट्स का पारा बढ़ाने के काम आई. उडिनेसे का हाल नहीं सुधर पाया. बीते सीजन छठे नंबर पर रही टीम इस बार नौवें नंबर पर थी. पर्सनल लेवल पर ज़िको के लिए यह साल बहुत शानदार रहा. उन्हें प्लेयर ऑफ द ईयर चुना गया. इटैलियन लीग में गोल करने के मामले में भी वह दूसरे नंबर पर रहे. लेकिन इसका उनकी टीम को कोई फायदा नहीं हुआ.अगले सीजन तो और हद हो गई. ज़िको चोटों से पस्त रहे, रेफरीज से भिड़ गए. और अपने क्लब को दोयम दर्जे का बता दिया. बोले,
'योग्यता ही नहीं है तो नौकरी (टाइटल) कैसे मिलेगा?'
ये सब हंगामा चल ही रहा था कि ज़िको पर टैक्स चोरी के आरोप भी लग गए. जल्दी ही ज़िको वापस फ्लामेंगो की फ्लाइट में थे. ज़िको और फ्रिउलि अलग हो चुके थे. और साथ ही टूट गया फ्रिउलि का विश्वगुरु बनने का सपना भी.
# God Of Football Zico
फ्लामेंगो लौटने के बाद ज़िको कुछ साल और खेले. फिर रिटायर हो गए. उनकी रिटायरमेंट के बाद ब्राज़ील में चुनाव हुए. यह कई सालों बाद ब्राज़ील में हुए पहले राष्ट्रपति चुनाव थे. इसमें जीते फेरनान्डो डे मेलो ने ज़िको को स्पोर्ट्स मिनिस्टर बना दिया. लेकिन ज़िको का मन एक बार फिर मचला. वह साल 1991 में ज़ापानी फुटबॉल टीम कशीमा एंटलर्स से जुड़ गए. ज़िको साल 1994 तक एंटलर्स से खेले.ज़िको ने कशीमा के लिए ऐसा खेल दिखाया कि जापानियों ने उन्हें गॉड ऑफ फुटबॉल की उपाधि दे दी. कशीमा सॉकर स्टेडियम के बाहर आज भी उनकी मूर्ति लगी है. एक अटैकिंग मिडफील्डर के रूप में खेलने वाले ज़िको को 'व्हाइट पेले' भी कहा जाता है. साक्षात पेले ने एक बार कहा था,
'सालों साल तक, जो एक प्लेयर मेरे आसपास पहुंचा वो ज़िको था.'रिटायरमेंट के बाद ज़िको ने तमाम टीमों को कोचिंग दी. दो साल तक वह इंडियन सुपर लीग (ISL) टीम फुटबॉल क्लब गोवा के भी कोच थे. 3 मार्च 1953 को पैदा हुए ज़िको आजकल अपनी आखिरी प्रोफेशनल टीम कशीमा एंटलर्स के टेक्निकल डायरेक्टर हैं.
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