युद्ध में क्या करने पर कोई देश या उसका नेता War Criminal हो जाते हैं?

06:12 PM Mar 22, 2022 |
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युद्ध के बाद क्या बचता है? धूल-धूसरित शहर, इमारतों का मलबा, जली हुई गाड़ियां, पलायन कर चुके शरणार्थी और मारे गए लोगों की संख्या बताने वाले आंकड़े. बचते हैं युद्ध बंदी और युद्ध अपराधी. खबर है कि यूक्रेन के बाद अब दुनिया के कई देशों ने रूस (Russia) पर War Crime यानी युद्ध अपराध के लिए मुक़दमे दर्ज किए हैं.

क्या होता है युद्ध अपराध?

कहते हैं जंग में सब जायज होता है. लेकिन ये पुरानी बात है. अब कोई देश युद्ध में मनमाना रुख अपनाता है तो उस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगने का खतरा रहता है. खासकर मानवाधिकार के मामले में. इसलिए कुछ नियम हैं जो मानने पड़ते हैं. इनका उल्लंघन युद्ध अपराध की श्रेणी में आता है.
रूस पर भी यूक्रेन के खिलाफ युद्ध अपराध करने के आरोप हैं. इसे लेकर यूक्रेन ने सबसे पहले 26 फरवरी को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) में रूस पर मुकदमा दायर किया था. इसके बाद 39 देशों ने ICC से मामले की जांच करने की मांग की थी. और अब कई अन्य देशों ने भी रूस पर युद्ध अपराध का मुकदमा दायर करवाया है. इनमें एस्टोनिया, लिथुआनिया, जर्मनी, पोलैंड, स्वीडन और स्लोवाकिया जैसे देश शामिल हैं. यूक्रेन की प्रॉसिक्यूटर जनरल इरिना वेनेडिक्टोवा ने अपने ट्वीट में भी इसकी जानकारी दी है. साल 1939 से 1945 तक दूसरा विश्व युद्ध हुआ. दुनिया के इतिहास में पहली बार परमाणु बम का भी इस्तेमाल हुआ. अलग-अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 5 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए. लेकिन ऐसी तबाही दोबारा न हो, इसके लिए साल 1949 में दुनियाभर के देशों के नेता स्विट्ज़रलैंड की राजधानी जेनेवा में इकट्ठा हुए. इस मीटिंग को जेनेवा कन्वेंशन कहा जाता है.
जेनेवा कन्वेंशन में युद्ध संबंधी कुछ नियम बनाए गए. मसलन, जंग होगी तो किस पर हमला किया जा सकता है, किन इमारतों को टारगेट किया जा सकता है, किन पर नहीं किया जा सकता, कौन से हथियारों का इस्तेमाल होगा, किन हथियारों के इस्तेमाल पर बैन रहेगा वगैरा-वगैरा, सब कुछ नियमों के तहत तय कर दिया गया. इनको नाम दिया गया इंटरनेशनल ह्यूमैनेटेरियन लॉ (International Humanatarian Law), जिन्हें लॉ ऑफ़ वॉर (Law Of War)  भी कहा जाता है.

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रूसी हमले में तबाह हुए अपने घर के सामने खड़ा एक यूक्रेनी नागरिक. (तस्वीर- पीटीआई)

कुल मिलाकर ऐसे 161 नियम हैं और दुनिया के 196 देशों ने इन्हें मान्यता दी है. जंग के दौरान सभी देशों के लिए ये नियम मानना जरूरी है. इनका उद्देश्य है उन लोगों की रक्षा करना जो जंग में शामिल नहीं हैं या जंग लड़ने की स्थिति में नहीं हैं.
खैर, लॉ ऑफ़ वॉर में ये भी लिखा है कि ये नियम कब लागू होंगे. मसलन अगर किसी देश में अंदरूनी लड़ाई चल रही है तो लॉ ऑफ़ वॉर लागू नहीं होगा. लेकिन अगर कोई दो देश आपस में युद्ध लड़ रहे हैं और हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है तो ये सभी नियम लागू होंगे. यूक्रेन में युद्ध में हताहत हुए बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की तस्वीरें याद करिए. लॉ ऑफ़ वॉर का महत्व समझ में आ जाएगा. ये भी कि इनका कितना पालन हो रहा है.
नियम क्या हैं, संक्षिप्त में बताए देते हैं.
#जंग के दौरान आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाया जा सकता. रिहायशी इलाकों, इमारतों, बच्चों के स्कूल, कॉलेज और आम लोगों के घरों पर हमला नहीं किया जा सकता. मेडिकल वर्कर्स और पत्रकारों पर भी हमला नहीं कर सकते. लेकिन रूसी हमलों में तबाह हुए यूक्रेन के अस्पतालों के मलबे भी हमने देखे हैं और कई पत्रकारों की नृशंस हत्या भी.
#नियमों के मुताबिक़ किसी भी मेडिकल यूनिट, ऐतिहासिक इमारत, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल पर हमला करना मना है. आम लोगों के लिए बनाए गए शेल्टर होम, राहत शिविरों और डिमिलिटराइज्ड जोन पर भी हमला नहीं कर सकते.
#युद्ध या किसी भी तरह का हमला करने से पहले चेतावनी देने का भी नियम है. बिना इसके जंग नहीं शुरू की जा सकती. जंग के दौरान आम नागरिकों की सुरक्षा और उन्हें युद्धग्रस्त इलाके से निकालने की जिम्मेदारी भी जंग लड़ रहे देशों की होती है. आम नागरिकों को कवच के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
#युद्ध के दौरान सैन्य ठिकानों को निशाना बनाना गलत नहीं है. मिसाल के तौर पर रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीव में एक टीवी टावर पर मिसाइल दागी थी. अगर इस इमारत में आम नागरिक नहीं थे तो इसे नियमों के खिलाफ़ नहीं माना जाएगा. और न ही इसे युद्ध अपराध माना जाएगा. सड़क, पुल, पावर स्टेशन, फैक्ट्री या कोई भी ऐसी इमारत जहां दुश्मन देश के सैनिक मौजूद हैं, वहां हमला करना युद्ध के नियमों के खिलाफ़ नहीं है.
#जंग के दौरान अगर एक देश आत्मसमर्पण करता है, तो उसके साथ अच्छा बर्ताव करने, उनका सम्मान कायम रखने की भी बात लॉ ऑफ़ वॉर में की गई है. युद्ध बंदियों के साथ भी मानवोचित व्यवहार किए जाने का नियम है.
ये कुछ सामान्य नियम हैं जिनके तहत युद्ध लड़ा जाना चाहिए. इन नियमों का आधार नैतिकता और मानवीयता है. लेकिन नियम बनाए जाने के बाद भी ज्यादातर बड़े युद्धों में इनको धता बताकर सैन्य कार्रवाइयां की गई हैं. यहां बात आती है नियम तोड़ने पर युद्ध अपराध तय करने वाले प्रावधानों की.

युद्ध अपराध

इंटरनेशनल ह्यूमैनेटेरियन लॉ के 44वें चैप्टर में युद्ध अपराध का जिक्र किया गया है. अगर कोई भी देश युद्ध के नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे युद्ध अपराध माना जाएगा. आम नागरिकों को निशाना बनाना, उन्हें बंधक बनाना, बलात्कार या अन्य कोई अमानवीय कृत्य करना, युद्धबंदियों की तस्करी करना, उनकी संपत्तियों पर कब्जा करना, प्रताड़ना देना, निर्दोष लोगों की हत्या करना और युद्ध बंदियों को ट्रायल से रोकना, ये सभी कृत्य युद्ध अपराध की श्रेणी में आते हैं. किसी भी ऐसी जगह, सड़क, गांव या कस्बे पर हमला करना जहां सैनिक नहीं हैं, युद्ध अपराध माना जाएगा.
ऐसा करने वाले देश के खिलाफ़ इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में केस चलाया जाएगा. ये मुक़दमे आमतौर पर युद्ध अपराध के आरोपी देश के राष्ट्राध्यक्षों या प्रमुख नेताओं पर चलाए जाते हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर आरोप लगे हैं कि इसमें इन सभी नियमों की धज्जियां उड़ाई गई हैं. रूस इन आरोपों के केंद्र में है. उसकी कथित विशेष सैन्य कार्रवाई के दौरान यूक्रेन से लगातार आम लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही हैं. उसकी कुल आबादी का करीब एक चौथाई हिस्सा या तो विस्थापित हो गया है या यूक्रेन से पलायन कर चुका है.
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की कई बार रूसी हमले को युद्ध अपराध बता चुके हैं. अमेरिका और यूरोप के कई देशों के नेता भी राष्ट्रपति पुतिन को युद्ध अपराधी करार देने की मांग कर रहे हैं. हालांकि कई जानकार मानते हैं कि इसका कोई व्यावहारिक निष्कर्ष निकलना मुश्किल है. उनका कहना है कि ये मुश्किल है कि कई देश मिलकर भी दुनिया की किसी एक अदालत में पुतिन या अन्य किसी संदिग्ध युद्ध अपराधी को ला पाएं.
हालांकि इससे पहले युद्ध अपराध के मामलों में कई देशों के शीर्ष नेताओं को सजा मिली है. लेकिन ये लंबी कवायद, चौतरफा दबाव और ख़ास तौर पर युद्ध की परिणति पर निर्भर करता है.


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