अमेरिका में सैनिक तिलक लगा सकता है, इंडियन आर्मी में क्या है नियम? जानें

06:37 PM Mar 26, 2022 | अभय शर्मा
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अमेरिका की वायु सेना में एक भारतीय मूल के सदस्य को ड्यूटी के दौरान तिलक लगाने की अनुमति दी गई है. दर्शन शाह अमेरिकी वायु सेना में एक एयरोस्पेस मेडिकल टेक्नीशियन हैं. वह दो साल से अमेरिकी एयरफ़ोर्स से तिलक लगाने की मांग कर रहे थे. उनकी इस मांग को दुनिया भर से भारी समर्थन मिला. जिसके बाद 22 फरवरी, 2022 को उन्हें पहली बार वर्दी के साथ तिलक लगाने की अनुमति दे दी गई.
दर्शन शाह का जन्म US के मिनेसोटा में एक गुजराती परिवार में हुआ. उनका परिवार बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (BAPS) को मानता है. इस संस्था का धार्मिक प्रतीक एक लाल बिंदु या 'चांदलो' है, जो नारंगी रंग के यू-आकार के तिलक से घिरा हुआ होता है. दर्शन अपने अधिकारियों से ड्यूटी के दौरान यही तिलक लगाने की मांग कर रहे थे.

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दर्शन शाह दो साल से तिलक लगाने की इजाजत मांग रहे थे | फोटो: Charles Munoz / US airforce

दर्शन शाह भारतीय मूल के पहले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्हें धार्मिक पहचान के साथ ड्यूटी करने की इजाजत मिली है. अप्रैल 2016 में एक बेहद अहम फैसले में अमेरिकी सेना ने अपने एक सिख अधिकारी को दाढ़ी रखकर और पगड़ी पहनकर सेवा जारी रखने की अनुमति दी थी. इस फैसले के बाद 28 वर्षीय कैप्टन सिमरतपाल सिंह पहले ऐसे सिख सैनिक बन गए थे, जिन्हें अमेरिकी सेना में कार्य करने के दौरान उनकी धार्मिक आस्था बरकरार रखने की अनुमति मिली.
इसके बाद सितंबर 2021 में अमेरिकी नेवी ने भी इसी तरह का एक बड़ा फैसला लिया. उसने अपने एक 26 वर्षीय सिख नौसैनिक अधिकारी को कुछ सीमाओं के साथ पगड़ी पहनने की इजाजत दे दी. बताते हैं कि अमेरिकी नौसेना ने अपने 246 साल के इतिहास में पहली बार किसी सैनिक को यह इजाजत दी.


कैप्टन सिमरतपाल सिंह को पहले अस्थायी अनुमति मिली थी, बाद में उन्हें स्थायी तौर पर दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने की इजाजत मिली | फोटो: आजतक

अमेरिकी सेना में भारतीय मूल के लोगों को अपनी धार्मिक पहचान के साथ ड्यूटी करने की इजाजत मिलने के बीच यह सवाल खड़ा होता है कि अपने देश यानी भारत की सेना में धार्मिक पहचान को लेकर क्या नियम हैं. आइए जानते हैं कि इंडियन आर्मी में क्या कोई तिलक लगाकर या दाढ़ी बढ़कर ड्यूटी कर सकता है.

एयरफोर्स अधिकारी अंसारी आफताब अहमद पहुंचे थे कोर्ट

इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) को जॉइन करने के चार साल बाद जब अंसारी आफताब अहमद ने दाढ़ी रखने की अनुमति मांगी तो उन्हें इंडियन एयरफोर्स के नियमों के मुताबिक इसकी इजाजत नहीं मिली. जिसके बाद अंसारी 40 दिन की छुट्टी पर चले गए और ड्यूटी पर दाढ़ी बढ़ाकर वापस लौटे. अंसारी को आईएएफ के नियम न मानने के लिए 2008 में नौकरी से हटा दिया गया.
अंसारी इस फैसले के खिलाफ कोर्ट चले गए. उन्होंने मौलिक और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के आधार पर सेना में मुस्लिमों को दाढ़ी रखने की इजाजत दिए जाने की मांग करते हुए केस फाइल कर दिया. अंसारी का तर्क था कि जिस तरह सिखों को सेना में उनके बाल न कटाने व पगड़ी पहनने का अधिकार मिलता है, उसी तरह मुस्लिमों को भी दाढ़ी रखने का अधिकार दिया जाए.
अंसारी द्वारा दाढ़ी रखने देने के लिए दायर याचिका पर जुलाई 2008 में सुनवाई करते हुए पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा,
'दाढ़ी रखना मुस्लिमों के लिए बाध्यकारी या कोई पक्का धार्मिक नियम नहीं है...सेना के हर सदस्य के चेहरे की पहचान महत्वपूर्ण है, खासकर जब वह वर्दी में हो. इसलिए आपको यह इजाजत नहीं दी जा सकती.'


सुप्रीम कोर्ट ने अंसारी आफताब अहमद की याचिका खारिज कर दी

इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. दिसंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अंसारी आफताब अहमद की याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट का कहना था,
'भारतीय वायुसेना में धार्मिक आधार पर अफसर दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते. नियम अलग हैं और धर्म अलग. दोनों एक-दूसरे में दखल नहीं दे सकते.'

भारतीय सेना में अलग-अलग नियम

भारतीय सेना में सिखों को छोड़कर किसी भी व्यक्ति को अपनी धार्मिक पहचान जाहिर करने का अधिकार नहीं है. नियमों के मुताबक कोई भी जवान माथे पर तिलक या विभूति और कलाई या बांह पर धागा नहीं बांध सकता. ये नियम भारतीय थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के लिए ही लागू हैं. हालांकि, दाढ़ी बढ़ाने के मामले में तीनों सेनाओं में ये नियम थोड़े-बहुत बदलाव के साथ लागू हैं. भारतीय थलसेना सिखों के अलावा कुछ विशेष रेजिमेंट्स के जवानों को अस्थाई तौर पर दाढ़ी बढ़ाने की अनुमति दे सकती है
. वहीं, इंडियन नेवी के जवान अपने कमांडिंग ऑफिसर की इजाजत से दाढ़ी रख सकते हैं. इसके अलावा अगर नेवी के किसी जवान के चेहरे पर चोट बगैरह का निशान है, तो वह मेडिकल रिपोर्ट दिखाकर चोट के निशान को छिपाने के लिए दाढ़ी बढ़ा सकता है.


भारत की थल सेना, वायु सेना और नेवी तीनों, सिखों को छोड़कर ड्यूटी के दौरान किसी को भी अपनी धार्मिक पहचान उजागर करने से रोकती हैं | प्रतीकात्मक फोटो: आजतक

इंडियन एयर फोर्स की बात करें तो 2003 में आए एक निर्देश के मुताबिक एयर फोर्स में सिर्फ उन्हीं (मुस्लिमों) को दाढ़ी और मूंछ रखने की इजाजत है, जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2002 से पहले हुई है. लेकिन किसी भी हालत में इन्हें भी बिना मूंछ के दाढ़ी रखने की इजाजत नहीं है. साथ ही इनकी दाढ़ी की लंबाई इतनी ही होनी चाहिए, जो कि मुट्ठी में लेने पर उससे बाहर
न निकले.
इन सख्त नियमों के बावजूद कुछ विशेष परस्थितियों में मुस्लिम जवानों को अस्थायी तौर पर दाढ़ी रखने की इजाजत दी जा सकती है
. उदाहरण के तौर पर रमजान में रोजा रखने के दौरान मुस्लिम जवान इजाजत लेकर दाढ़ी बढ़ा सकते हैं. यह अनुमति इस निर्देश के साथ दी जाती है कि रोजा खत्म होने के बाद दाढ़ी को क्लीन करवाना होगा, अन्यथा इसे अनुशासनात्मक अपराध माना जाएगा.


सिख धर्म में धार्मिक नियम है, इसलिए सेना में उन्हें पगड़ी पहनने और दाढ़ी रखने की इजाजत दी जाती है | प्रतीकात्मक फोटो: इंडिया टुडे

सेना में क्यों धार्मिक पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए?

सेना में किसी सैनिक को अपनी धार्मिक पहचान जाहिर करने से रोकने के ये सख्त नियम क्यों बनाए गए हैं, इसे लेकर 'द लल्लनटॉप' ने कुछ सैन्य अधिकारियों से बात की. इन अधिकारियों ने मोटी-मोटी दो वजहें बताईं. पहली- सेना सीधे देश की सुरक्षा से जुड़ी होती है. ऐसे में हर सैनिक की एक साफ़ पहचान होना जरूरी है. अगर बार-बार चेहरे की पहचान बदलने अनुमति दे दी गई, तो कोई इसका फायदा उठाकर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ भी कर सकता है. सिखों की भी दाढ़ी समेत फोटो ली जाती है, जिसमें ये सुनिश्चित किया जाता है कि चेहरा पूरी तरह से समझ में आए. एक तर्क यह भी है कि अगर आर्मी में हर किसी को उसकी धार्मिक मान्यताओं को अभिव्यक्ति करने की आजादी दे दी गई, तो इससे एक यूनिट के तौर पर सेना की सामूहिक पहचान को चोट पहुंचेगी.


दी लल्लनटॉप शो: सेना में डोगरा, सिख, राजपूत और जाट रेजिमेंट हैं, तो अहीर रेजिमेंट क्यों नहीं बनाई जा रही?
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