पेट्रोल पंपों पर सेना, सड़कों पर भूखे लोग, परीक्षा के लिए कागज तक नहीं, श्रीलंका की ये गत कैसे बनी?

04:32 PM Mar 31, 2022 |
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जगह थी श्रीलंका की राजधानी कोलंबो. तारीख थी 21 अप्रैल, 2019. ईस्टर का दिन था. कोलंबो में अचानक से धमाके हुए. तीन चर्च और इतने ही होटल को निशाना बनाया गया. इस आतंकी हमले में कम से कम 253 लोगों की मौत हुई. श्रीलंका के लोग डर गए. साथ ही साथ डर गए श्रीलंका में जाने वाले सैलानी. इस पूरे घटनाक्रम ने श्रीलंका के टूरिज्म सेक्टर पर बुरा असर डाला. 25 साल से अधिक समय तक चले गृह युद्ध के बाद टूरिज्म सेक्टर ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस सेक्टर के प्रभावित होने से श्रीलंका की धीमी पड़ती अर्थव्यस्था और धीमी हो गई.
श्रीलंका की ईस्टर बॉम्बिंग को एक साल भी नहीं बीता था कि कोविड महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया. पूरी दुनिया के टूरिज्म सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा. इसमें श्रीलंका का भी पर्यटन क्षेत्र शामिल रहा. इस बीच देश की नई नवेली सरकार के आर्थिक फैसले 'कंगाली में आटा गीला' जैसे साबित हुए. श्रीलंका की आर्थिक हालत बहुत तेजी से बिगड़ी और लगातार बिगड़ती ही गई. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि देश में खाने पीने की चीजों की कमी हो गई है. कागज और स्याही की कमी की वजह से बच्चों के एग्जाम रद्द करने पड़े हैं. पेट्रोल-डीजल और गैस की भारी कमी है. लोग एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा पा रहे हैं और ना ही थोड़ी बहुत जरूरी चीजें बचीं. उनके घरों में बिजली नहीं आ रही है. लाखों लोगों की नौकरी एक झटके में चली गई है. सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए लोग सड़कों पर निकल आए हैं. आखिर कैसे हुआ ये सब?

IMF के कर्ज और ट्रेड डेफिसिट

साल 2009 में श्रीलंका का गृह युद्ध खत्म हुआ. इसके बाद अनुमान लगाया गया कि देश में स्थिरता आने से जीडीपी भी तेजी से बढ़ेगी. ऐसा हुआ भी. 2009 से 2012 के बीच श्रीलंका की आर्थिक वृद्धि 8 से 9 फीसदी के बीच रही. इस समय श्रीलंका का टूरिज्म सेक्टर खूब फला फूला. साथ ही साथ श्रीलंका ने चाय और रबड़ का निर्यात कर वैश्विक बाजार में अपनी जगह बना ली. हालांकि, 2013 के आते-आते वैश्विक बाजार में वस्तुओं की कीमतें गिरीं. इसके कारण श्रीलंका का निर्यात घटा और आयात बढ़ा. ध्यान देने वाली बात है कि श्रीलंका अपनी जरूरत की ज्यादातर चीजें बाहर से ही आयात करता है. इसमें खाने पीने का सामान भी शामिल है.

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Sri Lanka का जीडीपी ग्राफ. (फोटो: इंडिया टुडे)

गृह युद्ध खत्म होने के तुरंत बाद श्रीलंका की महिंद्रा राजपक्षे सरकार को इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) की तरफ से लगभग एक लाख 97 हजार करोड़ रुपये का लोन मिला. इस बीच निर्यात ना बढ़ने की स्थिति में श्रीलंका के फॉरेन एक्सचेंज में कमी आने लगी. जो भी कमाई होती, उसका बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में खर्च हो जाता. श्रीलंका की सरकार कर्ज चुका नहीं पाई और जरूरत की चीजों का आयात तो होना ही था. ऐसे में सरकार ने साल 2016 में IMF से एक और लोन लिया. 4 हजार करोड़ रुपये का. इस लोन को देते हुए IMF ने श्रीलंका के ऊपर कड़ी शर्तें लगा दीं. 2021 की आखिरी तिमाही में श्रीलंका की जीडीपी वृद्धि दर 3.4 फीसदी रह गई.

नई सरकार की गलत नीतियां

इस बीच श्रीलंका में सत्ता विरोध के सुर तेज होने लगे. नवंबर 2019 के आम चुनाव में गोटबाया राजपक्षे ने जीत हासिल की. उन्होंने सत्ता में आते ही दो काम किए. पहला, उर्वरकों के आयात पर रोक लगा दी. दूसरा, वैट में भारी कटौती की. ये दोनों ही वादे उन्होंने चुनावी कैंपेन के दौरान किए थे. गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका को पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती वाला देश बनाना चाहते थे. उर्वरकों के आयात पर रोक लगाने से देश के कृषि उत्पादन पर बुरा असर पड़ा. श्रीलंका के चाय और रबर के उत्पादन में कमी आई. जिससे उसका निर्यात प्रभावित हुआ. दूसरी तरफ, वैट में कटौती से सरकारी राजस्व में भी कमी आई. फिर रही सही कसर कोविड महामारी ने पूरी कर दी. श्रीलंका का फॉरेन एक्सचेंज भंडार एकदम से बैठ गया.


ईस्टर बॉम्बिंग और कोरोना महामारी ने Sri Lanka के टूरिज्म सेक्टर को तहस-नहस कर दिया. (फोटो: इंडिया टुडे)

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि श्रीलंका की आर्थिकी कोविड महामारी के आने के पहले से ही संकट में चल रही थी. ईस्टर बॉम्बिंग और उसके बाद कोविड महामारी ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की रीढ़ को तोड़ने का काम किया. अनौपचारिक क्षेत्र पूरी तरह से तबाह हो गया. ये श्रीलंका की कुल वर्कफोर्स का 60 फीसदी हिस्सा है. संकट इतना गहरा था कि दो साल के अंदर देश के फॉरेन रिजर्व में 70 फीसदी की कमी आ गई. साल 2020 की शुरुआत में श्रीलंका के पास 2 लाख 35 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व था, जो 2022 के फरवरी में 67 हजार 578 करोड़ रुपये रह गया.
कोरोना महामारी की वजह से ही दुनियाभर में कई लोगों की नौकरी गई. दूसरे देशों में काम करने वाले श्रीलंका के नागरिक भी बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए और वापस लौटे. इसकी वजह से उनकी तरफ से भेजी जानी वाली विदेशी मुद्रा में भी कमी आई. इसने संकट को और गहरा कर दिया.

पैसों को खाया जा सकता है?

फॉरेन एक्सचेंज की कमी और लगातार बढ़ते कर्ज का असर आखिरकार जरूरी चीजों के आयात पर पड़ा. लगातार घटते हुए फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व को बचाने के लिए गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने जरूरी चीजों के आयात पर रोक लगा दी. इसी दौरान रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल और गैस की सप्लाई भी प्रभावित हुई. इससे श्रीलंका में तेल और गैस की भी किल्लत हो गई. तेल की किल्लत होने से बिजली का उत्पादन भी प्रभावित हुआ. लंबे समय तक लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंची. तेल और गैस महंगे हुए तो असर दूसरी चीजों की कीमतों पर भी पड़ा. मामूली दवाइयों की कीमतें तक आसमान छूने लगीं. लोगों के पास खाने की किल्लत हो गई. श्रीलंका का रुपया डॉलर के मुकाबले बहुत तेजी से गिरा. फिलहाल श्रीलंका में महंगाई दर 15 फीसदी के आसपास है, जो साल 2008 के बाद से सर्वाधिक है. इस बीच श्रीलंका को इस साल करीब एक लाख 18 हजार करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना है.


Sri Lanka के वित्त मंत्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोग. (फोटो: रॉयटर्स)

अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका में इस समय पेट्रोल पंपों और गैस स्टेशनों के बाहर लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं. लोग सुबह 4 बजे से ही इन लाइनों में लग जाते हैं. अफरातफरी ना मचे, इसलिए इन जगहों पर सेना को तैनात किया गया है. लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. जिनके पास पैसे हैं, वो भी आसमाान छूती कीमतों की वजह से खरीदारी करने में असमर्थ हैं और सवाल पूछ रहे हैं कि क्या पैसों को खाया जा सकता है? बुजुर्गों का कहना है कि उन्होंने ऐसा दौर कभी नहीं देखा.
इस बीच श्रीलंका की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कई जगह ये प्रदर्शन अपनेआप वजूद में आए तो कई जगह विपक्षी दल इनका नेतृत्व कर रहे हैं. इस बीच श्रीलंका की सरकार दूसरे देशों में नया कर्ज लेने की कोशिश कर रही है. इनमें मुख्य तौर पर भारत और चीन का नाम शामिल है.


वीडियो- श्रीलंका ने चीन से लोन लिया, चुकाते-चुकाते दिवालिया होने की कगार पर क्यों पहुंचा?
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