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इतने सारे पैसे? अडानी फिर से कुछ बड़ा करने वाले हैं!

अडानी ग्रुप ने बड़ी मीटिंग की है.

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अडानी इंटरप्राइज़ेस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की शुक्रवार 25 नवंबर को अहमदाबाद में एक मीटिंग होगी.

मान लीजिए आप पर बहुत सारे लोग भरोसा कर रहे हों. आपको पैसा दे रहे हों. और इसी बीच आपको पैसा देने वाले आपको बोल दें कि यार बहुत ज्यादा भौकाल दे रहे हैं. थोड़ा इनपे टॉर्च मारो तो. तो क्या होगा? पैसा देने वाले थोड़ा अचकचा जाएंगे. पैसा देने के नाम पर दरेरा देंगे. थोड़ा बचेंगे. लेकिन आपको काम के लिए पैसा चाहिए तो चाहिए. वो जरूरी भी है. और साथ में ये भी दिखाना है कि आप भरोसे के लायक बंदे हैं. तो ऐसे में आप क्या करेंगे? पैसा जुटाएंगे. फंड रेज़ करेंगे. ऐसी ही कुछ हालत है अडानी समूह की. अडानी वाली कंपनियों को ढेर सारा पैसा चाहिए. और ये पैसा पाने के लिए की जाने वाली है फंडरेज़िंग, और इस पर ही है आज का खर्चा पानी.

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी समूह को 5 बिलियन डॉलर यानी 40 हजार 794 करोड़ रुपये की जरूरत है. और ये जरूरत तब पैदा हुई है, जब अडानी समूह के कुछ निवेशकों ने अपने सहयोगियों से कहा कि कंपनी का लेवरेज कम करें. लेवेरेज यानि निवेश का वो तरीका जब उधार से लिए गए पैसों से प्रॉफ़िट कमाया जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक निवेशकों ने कहा कि यही वाला काम करना है. और इसके बाद ही अडानी समूह के बारे में पैसा जुटाने की खबरें आईं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वो इसी वजह से पैसा जुटा रहे हों, कारण कुछ भी हो सकता है, लेकिन जानकारों को यही लगता है मामला.

पैसे जुटाने के लिए अडानी समूह कहां गया है? खबरों की मानें तो अबू धाबी में मौजूद मुबादला इन्वेस्टमेंट कंपनी और अबू धाबी निवेश प्राधिकरण समेत कुछ और निवेशकों की ओर अडानी समूह ने रुख किया है. इसके अलावा मिडिल ईस्ट और कनाडा की कुछ निवेशकों की ओर अडानी समूह ने रुख किया है, ऐसी भी बात रिपोर्ट्स के माध्यम से पता चलती हैं. और इसी सबको लेकर आज यानी 25 नवंबर को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की एक मीटिंग होने वाली है.

मौजूदा हफ्ते की शुरुआत में अपनी एक्सचेंज फाइलिंग में अडानी इंटरप्राइज़ेस ने कहा था कि अडानी इंटरप्राइज़ेस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की शुक्रवार 25 नवंबर को अहमदाबाद में एक मीटिंग होगी. इस मीटिंग का मकसद होगा कि पब्लिक ऑफरिंग, अलॉटमेंट या, या साथ में, कंपनी में हिस्सेदारी के एवज में फंड रेज़ किया जा सके, जिसके लिए सभी संवैधानिक और नियामक मंजूरी के साथ कंपनी के सभी शेयरहोल्डर्स की मंजूरी का भी ध्यान रखा जाएगा."

खबरों के मुताबिक, अडानी समूह का लक्ष्य है 40 हजार 794 करोड़ पैदा करने का. फिर जब मैं ये स्क्रिप्ट लिख रहा था तो एक और खबर फ़्लैश हुई. खबर ये कि मीटिंग हो गई और मीटिंग से ये बात निकलकर सामने आई कि कंपनी की हिस्सेदारी की पब्लिक ऑफरिंग के जरिए 20 हजार करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे.

लेकिन वो लेवेरेज वाला प्वाइंट तो रह ही गया. वो प्वाइंट ये है कि रेटिंग एजेंसी फिच की कर्ज का अध्ययन करने वाली यूनिट Creditsights ने सितंबर में कहा था कि अडानी समूह Deeply Overleveraged है और साथ में ये भी पुछल्ला भी जोड़ दिया था कि ये कंपनी में बहुत ज्यादा निवेश लंबे समय में निवेशकों को नुकसान कराएगा.

इससे अडानी को हासिल क्या होगा? ये सवाल बड़ा है. ऐसे समझिए कि अडानी समूह ने अपने इस कदम से भरोसे पैदा करने की कोशिश की है. और जब आपको पैसा चाहिए हो, तो ये जरूरी होता है बताना कि आपको पैसा देने वाले लोग घाटे में नहीं रहेंगे, उन्हें उनका पैसा वापिस मिलेगा और मुनाफा कमाएंगे, सो अलग. आप ठीक ठाक परफॉर्म करते हैं तो कर्ज के बाजार में आपकी साख वापिस आ सकती है, ये भी बात जरूरी है और ध्यान देने लायक है.

यानी मामला साफ है. और बात ये भी है कि ये पहला मौका नहीं है, जब कंपनियां ऐसा कर रही हों. कंपनियां लंबे समय से मुनाफे के साथ-साथ साख की लड़ाई लड़ती रही हैं.ये लड़ाइयाँ तब और जरूरी हो जाती हैं, जब आपको पैसा चाहिए हो. जब आपको पैसा कमाना हो. और जब आपको जमकर पैसा कमवाना भी हो. मुकेश अंबानी वाले रिलायंस ने भी 2020 में ऐसा ही किया था. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ की हिस्सेदारी के एवज में कमाए 27 बिलियन डॉलर यानी 2.20 लाख करोड़.

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