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और गिर गया रुपया, अब डॉलर की कीमत हुई 81 के पार

क्या गणित है रुपये का?

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रुपया ( सांकेतिक तस्वीर)

डॉलर के मुकाबले हमारा रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. 23 सितंबर को एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 81.09 पहुंच गई. ये पहली बार है जब रुपया 81 के स्तर से भी नीचे लुढ़क गया है. 23 सितंबर के शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया 23 पैसे लुढ़का. इस साल अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया 8 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है. गुरुवार को भी रुपया 89 पैसे कमजोर होकर 80.87 के स्तर पर बंद हुआ था.

बुधवार को अमेरिका के केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने अपनी कर्ज की दरों में 75 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है.अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है. अब अमेरिका में ब्याज दरें बढ़कर 3 से 3.25 फीसदी तक हो गई हैं. 

कुल 3.25 प्रतिशत तक का इजाफा कैसे-कब-कितना हुआ?

17 मार्च 2022 - 25 बेसिस प्वाइंट 0.25% से 0.50%

5 मार्च 2022 - 50 बेसिस प्वाइंट  0.75% से 1.00%

16 जून 2022 - 75 बेसिस प्वाइंट  1.5% से 1.75%

27 जुलाई 2022 - 75 बेसिस प्वाइंट 2.25% से 2.5%

21 सितंबर 2022 - 75 बेसिस प्वाइंट 3.00% से 3.25%

इस रेट को बढ़ाने के पीछे केंद्रीय बैंकों में अपने तर्क हैं.

ऐसे समझिए. दुनिया भर की जो अर्थव्यवस्थाएं हैं, उनकी हालत गड़बड़ है. क्यों? क्योंकि महंगाई है. और इस महंगाई के साथ ही ब्याज दरें भी कम हैं. अब ब्याज दरों के कम होने से एक बात ये होगी कि एक बड़ी संख्या में लोग लोन ले सकेंगे. क्योंकि उनको मूलधन के ऊपर जो ब्याज चुकाना है, वो कम है. तो मामला लालच देने वाला होगा. हर महीने की ईएमआई बनेगी.
लेकिन ऐसे में एक गड़बड़ी होगी. गड़बड़ी ये होगी कि इस ब्याज और किस्त वाले चक्कर में पैसे का फ़्लो मार्केट में ज्यादा रहेगा. लोग लोन लेते रहेंगे, ईएमआई भरते रहेंगे. उससे लोगों की मांग बढ़ेगी और ये मांग बढ़कर आपूर्ति से ज्यादा होगी. डिमांड और सप्लाई में अंतर की जो बात होती है, वो बात कर रहे हैं. अब सबको आलू खरीदना है और आलू कम है तो आलू का क्या होगा? जैसा आपने अमूमन देखा होगा कि आलू का दाम बढ़ जाएगा. यही यहाँ पर भी होगा.डिमांड से कम सप्लाई होने पर चीजों के दाम बढ़ जाएंगे. महंगाई आ जाएगी.

अब केन्द्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा तो क्या होगा?

सबसे पहले बैंकों से मिलने वाला लोन महंगा हो जाएगा. और लोन के महंगा होने से कम लोन बांटे जाएंगे और इससे मार्केट में करेंसी का सर्कुलेशन कम होगा. और जिस डिमांड और सप्लाई के गैप की अभी हम बात कर रहे थे, वो थोड़ा कम होगा और महंगाई को काबू में लाया जा सकेगा, ऐसा सोचते हैं केन्द्रीय बैंकों में मौजूद लोग. और ऐसा सोचना इसलिए भी समझ में आता है क्योंकि विदेशों में भी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी लोन और ईएमआई के चक्कर में नहीं फंसना चाहता. तो ऐसे में मार्केट में मांग बनी रहेगी. और चीजों के दाम नियंत्रित होते रहेंगे

अब अमरीका में रेट बढ़ने से दुनिया के दूसरे देशों के रेट और अमरीका के रेट में अंतर कम हो जाता है. इस वजह से दूसरे देशों को भी पैसे का फ़्लो कम रखने के लिए अपनी ब्याज दर बढ़ानी पड़ती है. 

दुनियाभर के दूसरे बैंक भी अपने ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं. बैंक ऑफ इंग्लैंड ने आधा फीसदी ब्याज दरें बढ़ाई हैं जबकि स्विस नेशनल बैंक भी 50 बेसिस प्वाइंट का इजाफा कर चुका है. अमेरिका में ज्यादा रिटर्न मिलने से दुनियाभर के निवेशक भारत समेत दूसरे देशों से अपना पैसा निकालकर अमेरिकी बाजारों में लगा रहे हैं इसका असर भारतीय बाजारों पर भी पड़ रहा है. शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफएफआई) ने गुरुवार को शुद्ध रूप से 2,509.55 करोड़ रुपये के शेयर बेचे. इसके चलते डॉलर के मुकाबले रुपया तेजी से कमजोर हो रहा है. इस साल जुलाई के शुरुआत में रुपया 80 के नीचे लुढ़क गया था तबसे कुछ सेशन को छोड़ दिया जाये इसमें लगातार गिरावट का दौर जारी है. कई अर्थशास्त्री ये भी अनुमान जता रहे हैं कि जल्द ही डॉलर के मुकाबले रुपया और गिरकर 82 के भी नीचे फिसल सकता है. 

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