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बिना मांगे जितना पैसा मोदी सरकार ने SBI को दिया, उतने में 9 बार चांद पर जा सकते हैं!

ये खबर बताती है कि मूंछे अगर नत्थूलाल जैसी होनी चाहिए, तो किस्मत होनी चाहिए SBI जैसी. कि पैसा मांगो न मांगो, मिलता रहे.

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एसबीआई (सांकेतिक तस्वीर)

आप जानते हैं 8 हज़ार 800 करोड़ कितना होता है? इसरो वाले जानते हैं. वो इतने पैसे में 9 बार चंद्रयान -2 भेज सकते हैं. तब भी पार्टी के लिए पैसा बच जाएगा. सोचिये, इतना होता है 8800 करोड़. और इतना ही मिल गया स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी एसबीआई को. वो भी बिना मांगे. 

जी हां. जैसे बड़े बड़े शहरों में छोटी छोटी बातें हो जाती हैं, उसी तरह सरकार भी बिना मांगे बैंकों को पैसा दे देती है. ये बात है 2017-18 की. पता अब चली, जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक CAG की एक रिपोर्ट आई. इस रिपोर्ट को 27 मार्च 2023 को संसद में पेश किया गया. इसके मुताबिक डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज (DFS) ने रीकैपिटलाइजेशन के लिए ये पैसा दिया था. सादी भाषा में - सरकार बैंक में पैसे डाल रही थी. ताकि उसकी बैलेंस शीट सुधरे. डीएफएस केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है.

लेकिन पैसा मांगा किसने था भाई?

दिलचस्प बात ये है कि एसबीआई ने सरकार से पैसे मांगे ही नहीं थे. कैग की रिपोर्ट बताती है कि डीएफएस ने एसबीआई को पैसा देते समय अपने अपने ही मानक के हिसाब से यह आकलन करना जरूरी नहीं समझा कि बैंक को पैसों की जरूरत है भी या नहीं. 

सरकार क्यों देती है किसी बैंक को पैसा?

दरअसल सरकार पब्लिक सेक्टर बैंकों को उनकी ज़रूरतों के हिसाब से बीच-बीच में पैसा देती रहती है. हालांकि यह फंड पूरी तरह ठोक-पीट-जांच करने के बाद ही दिया जाता है. इसके अलावा सरकार आरबीआई के नियमों के हिसाब से बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ समेत कई चीजों की निगरानी करती है. आपको बता दें कि आरबीआई बैंकों को जब लाइसेंस देता है तो कई तरह के नियम बनाता है और बैंक ठीक से काम करें इसकी निगरानी भी करता है. कई बार ऐसा भी होता है कि बैंक वित्तीय संकट में फंस जाते हैं. इनको संकट से उबारने को आरबीआई समय-समय पर ज़रूरी फैसले करता है. 'प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन' इसी तरह का फ्रेमवर्क है, जो किसी बैंक की वित्तीय सेहत का पैमाना तय करता है. आरबीआई को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पर्याप्त पूंजी नहीं है, उधार दिए पैसे से आय नहीं हो रही और मुनाफा नहीं हो रहा है तो उस बैंक को पीसीए में डाल देता है.

इस रिपोर्ट में यह जानकारी भी दी गई है कि सरकारी बैंकों को पैसे देने के लिए डीएफएस ने आरबीआई नियमों के दायरे से बाहर जाकर फ़ैसले किए. रिज़र्व बैंक ने पहले ही सुझाव दिया था कि बैंकों को एक फ़ीसदी ज़्यादा रक़म दी जानी चाहिए. इसकी वजह से बैंकों में क़रीब 7786 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी डाली गई थी. SBI ही नहीं बल्कि डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र को भी वित्त वर्ष 2019-20 में 831 करोड़ रुपये दिये थे. जबकि बैंक ने 798 करोड़ रुपये ही मांगे थे.

ये खबर बताती है कि मूंछे अगर नत्थूलाल जैसी होनी चाहिए, तो किस्मत होनी चाहिए SBI जैसी. कि पैसा मांगो न मांगो, मिलता रहे.

इति.

वीडियो: खर्चा पानी: आपके PF का पैसा कितना सुरक्षित है?