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RBI ने 'मिलीभगत' वाले लोन की लगाम कस दी है

देश में मौजूदा हजारों नॉन बैंकिंग फाइनेंसिंग कंपनियों (NBFC) को तीन लेयर्स में बांटा गया है. अपर लेयर में आरबीआई की ओर से लेंडिंग और डिपॉजिट दोनों की मान्यता रखने वाली देश की शीर्ष-10 एनबीएफसी शामिल हैं.

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आरबीआई ने अर्थव्यवस्था का इंजन कही जाने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लोन पर कड़ी निगरानी बिठा दी है. एनबीएफसी (NBFC) नाम को हल्के में ले रहे हों तो आपको याद दिला दें कि दो-तीन साल पहले IL&FS और DHFL नाम की दो वित्तीय कंपनियों से जुड़े लोन घोटालों ने कई सेक्टरों, शेयर बाजारों और यहां तक कि पूरी इकॉनमी में हलचल मचा दी थी. आरबीआई ने ऐसे घोटालों की संभावना कम करने के मकसद से एनबीएफसी लोन के नियमों को और कड़ा कर दिया है. जहां एक ओर किसी गलत इरादे से अपनों को लोन बांटने या किसी खास कंपनी को फायदा पहुंचाने के मकसद से दिए जाने वाले लोन के मद्देनजर कई बंदिशें लगा दी गई हैं, वहीं रियल एस्टेट जैसे संवेदनशील सेक्टरों को मिलने वाले लोन के लिए भी कड़ी शर्तें रखी गई हैं.

देश में मौजूदा हजारों नॉन बैंकिंग फाइनेंसिंग कंपनियों (NBFC) को तीन लेयर्स में बांटा गया है. अपर लेयर में आरबीआई की ओर से लेंडिंग और डिपॉजिट दोनों की मान्यता रखने वाली देश की शीर्ष-10 एनबीएफसी शामिल हैं. इससे नीचे मिडल लेयर में 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा एसेट रखने वाली एनबीएफसी को शामिल किया जाता है और 1000 करोड़ रुपये से कम एसेट वाली कंपनियों को बेस लेयर एनबीएफसी की कैटेगरी में रखा गया है. आरबीआई ने तीनों ही कैटेगरी की कंपनियों के लोन के नियमों को सख्त कर दिया है.

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फाइनेंसिंग की सांकेतिक तस्वीर (साभार: आजतक)

 

नए नियमों के तहत एनबीएफसी अपने डायरेक्टर, सीईओ या डायरेक्टर के रिश्तेदारों को पांच करोड़ रुपये से ज्यादा के लोन नहीं दे सकतीं. ऐसा करना जरूरी हुआ तो बोर्ड की मंजूरी लेनी होगी. ऐसी किसी कंपनी को लोन नहीं दे सकती हैं, जिनमें एनबीएफसी के डायरेक्टर या उनके रिश्तेदारों का कोई हित हो या उनमें से कोई लोन लेने वाली कंपनी में पार्टनर, कर्मचारी या स्टेक होल्डर हो. एनबीएफसी को सभी सेंसिटिव सेक्टरों खासकर रियल एस्टेट को जारी लोन के बारे में आरबीआई को बताना होगा.कोई एनबीएफसी किसी रियल एस्टेट कंपनी को तभी लोन दे सकेगी, जब उस रियल्टर के प्रोजेक्ट को सभी सरकारी और स्थानीय प्राधिकरणों की मंजूरियां मिल चुकी हों. किसी कंपनी को शेयरों और अन्य सिक्योरिटीज के अगेंस्ट दिए गए लोन का भी खुलासा करना होगा.

ताकि न हों घोटाले !

एनबीएफसी पर आरबीआई की सख्ती कई कॉरपोरेट ग्रुप्स के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं, जिन्होंने एनबीएफसी की दुकान तो खोल रखी है, लेकिन अब उनकी ही फाइनेंसिंग कंपनी अपने ग्रुप की दूसरी कंपनियों को खुलकर लोन नहीं दे पाएगी. माना जा रहा है कि इन नियमों से फंड डायवर्जन और घोटाले की नीयत से होने वाली फाइनेंसिंग का रास्ता कुंद होगा. आरबीआई की इस कवायद का मकसद हाल में हुए बड़े एनबीएफसी घोटालों के दोबारा होने की संभावना कम करना है. ऐसे बड़े घोटालों में IL&FS यानी इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज के करीब एक लाख करोड़ के घोटाले, जिनमें हजारों करोड़ के लोन डूबने की शिकायतें भी शमिल हैं, आज भी हम सबके जेहन में हैं. एक और एनबीएफसी दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (DHFL) की ओर से कॉरपोरेट घरानों और कंपनियों को बांटे गए लोन के साथ ही कंपनी के डूबने के मामले ने पूरे देश के एनबीएफसी सिस्टम पर सवालिया निशान लगा दिया था. हालांकि इन दोनों ही कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया और जांच में कई दूसरी कंपनियों के उनके घोटालों में शामिल होने और मनी-लॉन्डरिंग तक के मामले सामने आए. दीवान फाइनेंस पर तो आरोप लगे कि उसने सैकड़ों फर्जी कंपनियां बनाकर खुद ही उन्हें हजारों करोड़ के लोन आवंटित कर दिए. कई एनबीएफसी कंपनियों ने फर्जी बिल्डरों से मिलकर उन्हें ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए लोन जारी कर दिए, जो सिर्फ कागजों पर थे. अभी भी देश में ऐसे कई मामलों की जांच चल रही है.

(इस मसले पर विस्तृत चर्चा के लिए देंखे वीडियो-खर्चापानी)

NBFC के लोन पर RBI ने क्यों कसी लगाम ?