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Twitter के पब्लिक से प्राइवेट कंपनी बनने के क्या मायने हैं ?

यह सवाल आपके जेहन में भी होगा कि ट्विटर के पब्लिक कंपनी से प्राइवेट कंपनी बनने के क्या मायने हैं? क्या उसकी गवर्निंग और कामकाज का ढांचा बदल जाएगा? उसके बोर्ड, कर्मचारियों और निवेशकों पर इसका क्या असर होगा ?

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एलॉन मस्क और पराग अग्रवाल की सांकेतिक तस्वीर (साभार-आजतक)

दुनिया के सबसे अमीर आदमी एलॉन मस्क ने माइक्रो ब्लॉगिंग प्लैटफॉर्म ट्विटर (Twitter) को 44 अरब डॉलर यानी करीब 3.36 लाख करोड़ रुपये में खरीदकर उसे एक पब्लिक कंपनी से प्राइवेट कंपनी बना दिया है. सौ फीसदी हिस्सेदारी के साथ मस्क इस प्राइवेट कंपनी के सुप्रीमो होंगे.
यह सवाल आपके जेहन में भी होगा कि ट्विटर के पब्लिक कंपनी से प्राइवेट कंपनी बनने के क्या मायने हैं? क्या उसकी गवर्निंग और कामकाज का ढांचा बदल जाएगा? उसके बोर्ड, कर्मचारियों और निवेशकों पर इसका क्या असर होगा ? और सबसे बढ़कर यह कि एक प्राइवेट कंपनी के रूप में यह सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म हमारे लिए कितना बदल जाएगा ?

पब्लिक और प्राइवेट में अंतर

सबसे पहले हम पब्लिक और प्राइवेट कंपनी के बीच के अंतर को समझ लें. पब्लिक कंपनी वो है, जो किसी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होती है और इसके शेयरों की सार्वजनिक रूप से ट्रेडिंग होती है. कोई भी व्यक्ति किसी पब्लिक कंपनी के शेयर खरीदकर उसका हिस्सेदार हो सकता है. ट्विटर एक प्राइवेट कंपनी के रूप में तो 16 साल पहले ही वजूद में आ गई थी, लेकिन पब्लिक कंपनी बनी साल 2013 में, जब इसका आईपीओ (IPO) आया और यह न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हुई. प्राइवेट कंपनियां शेयर बाजारों में लिस्टेड नहीं होतीं और उनकी हिस्सेदारी एक या कुछ लोगों के पास होती है.

पब्लिक कंपनी की बागडोर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के हाथ में होती है, जैसा कि ट्विटर का बोर्ड इस डील के लिए ही हाल में काफी चर्चा में था. चूंकि पब्लिक कंपनी लिस्टेड होती है, उसे अपनी सभी व्यावसायिक जानकारियां स्टॉक एक्सचेंज और मार्केट रेग्युलेटर के साथ शेयर करनी होती हैं. यहां तक कि तिमाही वित्तीय नतीजे और बड़ी खरीद-बिक्री भी. साल में कम से कम एक बार जनरल मीटिंग बुलानी पड़ती है. प्राइवेट कंपनी पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती. जाहिर है पब्लिक कंपनी में ज्यादा पारदर्शिता होती और उसकी माली हालत से लेकर प्रॉफिट-लॉस की जानकारी बाहर-भीतर सभी को होती है. दूसरी ओर प्राइवेट कंपनी पर निजी कंट्रोल के चलते वहां फैसले एकतरफा और तेजी से होते हैं. कई मायनों में कारोबारी नियंत्रण ज्यादा होता है.

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सांकेतिक तस्वीर

मस्क के हाथ में जॉब और सैलरी

ट्विटर के प्राइवेट कंपनी बन जाने का इसके प्रशासनिक ढांचे पर सबसे बड़ा असर यह होगा कि सौ फीसदी हिस्सेदारी के साथ एलॉन मस्क एक तरह से इसके सुप्रीमो होंगे. सभी फैसले वह स्वतंत्र रूप से कर सकेंगे. उनके ऊपर न तो किसी बोर्ड की निगरानी होगी और न ही उसके प्रति उनकी कोई जवाबदेही. हां, कंपनी को कॉरपोरेट लॉ और संबंधित कानूनों का पालन जरूरी करना होगा.
मस्क को पूरा अधिकार होगा कि वह बोर्ड को भंग कर दें या कर्मचारियों की छंटनी करें या उनकी सैलरी के ढांचे में बदलाव करें. हालांकि मौजूदा शर्तों और नियमों के मुताबिक अगर वह एक साल के भीतर कंपनी के सीईओ पराग अग्रवाल को हटाते हैं, तो उन्हें 42 मिलियन डॉलर का भुगतान करना होगा. यह रकम सुनने में बड़ी भले ही लगे, लेकिन कंपनी सूत्रों के हवाले से आ रहीं रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि इतनी बड़ी कंपनी खरीदने के बाद मस्क के लिए यह रकम मामूली है और वह पराग को जल्द ही हटा सकते हैं.
इसके पीछे दो दलीलें दी जा सकती हैं. एक तो 14 अप्रैल को मस्क ने ही कहा था कि उन्हें ट्विटर के मैनेजमेंट में भरोसा नहीं है. दूसरा, ट्विटर बोर्ड के अध्यक्ष ब्रेट टेलर ने हाल ही में कहा था कि एक बार मस्क कंपनी के चेयरमैन बन गए तो वह एक नया सीईओ हायर करेंगे.
जाहिर है, कंपनी के बड़े अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी गाज गिर सकती है. हालांकि सीईओ पराग अग्रवाल ने सौदे के ऐलान के बाद कर्मचारियों के साथ एक मीटिंग में कहा है कि फिलहाल छंटनी जैसी कोई संभावना नहीं है.

बात कर्मचारियों की चली है तो पब्लिक और प्राइवेट कंपनी के बीच के एक मोटे अंतर को समझ लें. पब्लिक कंपनी अक्सर अपने कर्मचारियों को इक्विटी शेयर्स भी ऑफर करती है. यानी अधिकारियों या कर्मचारियों के पास कंपनी में हिस्सेदारी लेने के मौके होते हैं. लेकिन प्राइवेट कंपनी में कर्मचारियों को कोई हिस्सेदारी नहीं मिलती. ऐसा करना पूरी तरह मालिक की इच्छा पर है. वह भी गिनेचुने लोगों को ही दे सकता है. अब ट्विटर में यह मस्क पर निर्भर है कि वह सैलरी स्ट्रक्चर में इक्विटी ऑप्शन को बरकरार रखते हैं या नहीं.

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ट्विटर की सांकेतिक तस्वीर

आप अब भी शेयर खरीद सकते हैं ?

अब बताते हैं कि कंपनी के शेयर होल्डर्स या निवेशकों पर क्या असर होता है. चूंकि पब्लिक कंपनी की कुछ या ज्यादातर हिस्सेदारी आम जनता के हाथ में होती है, ऐसे में जब कोई व्यक्ति किसी पब्लिक कंपनी को खरीदता है तो असल में वह हर शेयर होल्डर से उसके पास मौजूद शेयर खरीदता है. वह भी मौजूदा कीमतों से ऊपर दाम चुकाकर. जैसा ट्विटर के मामले में हुआ है.
इस महीने के शुरू में जब एलॉन मस्क ने ट्विटर में 9 फीसदी हिस्सेदारी ली थी, तब ट्विटर के एक शेयर का मूल्य करीब 40 डॉलर था. शुरुआती ऑफर के दौरान उन्होंने खुद कहा था कि ट्विटर खरीदने के साथ ही वह इसके शेयर होल्डर्स को 38 फीसदी प्रीमियम दे रहे होंगे. फिर मोलभाव शुरू हुई और आखिरकार बात 54.20 डॉलर प्रति शेयर पर बनी. डील की अटकलों के बाद कंपनी के शेयरों में भी जबर्दस्त उछाल दर्ज हुई और आज कंपनी के शेयरों का मूल्य लगभग वहीं पहुंच गया है, जितने पर मस्क ने कंपनी खरीदी है. अगर ट्विटर के शेयरों का मूल्य नहीं भी बढ़ता यानी 40 डॉलर के आसपास ही ठहरा रहता तो भी इस डील के मुताबिक हर शेयर होल्डर को प्रति शेयर 54.20 डॉलर के हिसाब से भुगतान होता.

कंपनी के प्राइवेट होने की औपचारिक प्रक्रिया पूरी होने पर एलॉन मस्क एक टेंडर ऑफर के जरिए सभी सार्वजनिक रूप से होल्ड किए गए शेयरों के एवज में 54.20 डॉलर की दर से भुगतान करेंगे. एक शेयर होल्डर के रूप में आपको यह सौदा मंजूर हो या न हो, आपको पैसे देकर कंपनी की हिस्सेदारी से मुक्त कर दिया जाएगा.

आपके मन में यह ख्याल भी आ रहा होगा कि क्यों न ट्विटर के शेयर अभी खरीद लें. भारत में रहने वाले लोग भी NSE IFSC या कुछ ब्रोकरेज हाउसेज के जरिए अमेरिका में लिस्टेट कंपनियों के शेयर आसानी से खरीद सकते हैं. लेकिन ट्विटर के शेयर अब आपके लिए घाटे का सौदा साबित होंगे. मसलन अगर कंपनी के शेयर 54.20 डॉलर से ऊपर ट्रेड करने लगें और आप उसी रेट पर खरीद लें तो कुछ दिन बाद आपको 54.20 डॉलर का रेट ही मिलेगा. यानी आपको नुकसान उठाना पड़ेगा.

ट्विटर तो एक बड़ी कंपनी है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि छोटी कंपनियों के पब्लिक से प्राइवेट होने के दौरान आम लोगों को जानकारी नहीं होती और अटकलों के कारण शेयरों के दाम उस कीमत से भी ज्यादा हो जाते हैं, जितने पर कंपनी बिकी होती है. ऐसे में ऊपर खरीदारी करने वालों को भारी नुकसान होता है. कई बार ब्रोकरेज हाउसेज और एक्सचेंज आम निवेशकों को इस बारे में सूचित करने लगते हैं कि फलां कंपनी बिक चुकी है और कंपनी डीलिस्ट होने वाली है.

वीडियो- ट्विटर के मौजूदा सीईओ पराग अग्रवाल रहेंगे या हटा दिए जाएंगे?