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GST मुआवजा बंद हुआ तो क्या करेंगे राज्य ?

आधे से ज्यादा राज्य जीएसटी घाटे और फिस्कल डेफिसिट से जूझ रहे हैं

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जीएसटी की सांकेतिक तस्वीर

एक तरफ देश का कुल जीएसटी कलेक्शन अब तक के रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया है, वहीं राज्यों के खजाने में अब भी बहुत ज्यादा जीएसटी नहीं आ रहा है. उस पर से राज्यों को जीएसटी कलेक्शन में होने वाले घाटे की भरपाई के लिए पांच साल तक केंद्र से मिलने वाले मुआवजे की मियाद जून 2022 में खत्म हो रही है. राज्य इसे अगले पांच साल तक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार इसे बढ़ाने से इनकार कर चुकी है. जीएसटी दरें बढ़ाकर टैक्स रेवेन्यू बढ़ाने की चर्चा भी जोरों पर है, लेकिन सरकार ने ऐसी किसी संभावना से इनकार किया है. एसबीआई की एक ताजा रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि अधिकांश राज्य सरकारें अपना आधा टैक्स रेवेन्यू लोकलुभावन स्कीमों पर उड़ा रही हैं और उन्हें अपने खर्चे सीमित करने की जरूरत है. ऐसे सवाल उठता है कि जून 2022 के बाद राज्य सरकारों की माली हालत क्या होगी ? अगर राजस्व के मोर्चे पर उनका घाटा जारी रहा तो उनके पास और क्या-क्या विकल्प होंगे ?

पांच राज्यों की GST ग्रोथ 15 % से ज्यादा 
1 जुलाई 2017 को जब जीएसटी लागू हुआ तो इसमें करीब डेढ़ दर्जन टैक्स समाहित हो गए थे. इनमें राज्यों का वैट और दूसरे कई बड़े टैक्स भी थे. राज्यों को चिंता थी कि उनके राजस्व के सारे बड़े स्रोत तो जीएसटी में चले गए, ऐसे में नई टैक्स प्रणाली में उनका टैक्स रेवेन्यू बढ़ने के बजाय घट गया तो क्या होगा ? तब केंद्र सरकार ने जीएसटी कानून में ही राज्यों को 14% रेवेन्यू ग्रोथ की गारंटी दी. यानी इससे कम टैक्स मिलने पर उनके घाटे की भरपाई केंद्र को करनी थी. लेकिन यह गारंटी 5 साल के लिए ही थी. दो महीने बाद यानी जून 2022 में इस गारंटी की मियाद खत्म हो रही है. और साथ ही पैदा हो सकता है भारतीय संघीय इतिहास का एक बड़ा आर्थिक विवाद. क्योंकि पांच राज्यों को छोड़कर बाकी सभी राज्य मुआवजे की मांग करते दिखाई दे रहे हैं. 
मार्च महीने में देश का कुल जीएसटी कलेक्शन रिकॉर्ड 1.42 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया. अगर मार्च के आंकड़ों को ही देखें तो पंजाब, हरियाणा, ओडिशा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ही ऐसे राज्य हैं, जहां जीएसटी कलेक्शन 15% से ज्यादा हुआ है. पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जीएसटी ग्रोथ 10 फीसदी से कम रही है. बाकी राज्यों की ग्रोथ 5 पर्सेंट से कम है या माइनस में है. ऐसे में 15% ऊपर ग्रोथ वाले राज्यों को छोड़ दें तो बाकियों को मुआवजे की जरूरत होगी. ऐसा तब है, जब देश के कुल जीएसटी कलेक्शन में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है. बीते पांच साल में हालात और भी खराब रहे हैं. दिल्ली जैसा धनी राज्य भी शुरू के वर्षों में 14% जीएसटी ग्रोथ को तरसता रहा है. ज्यादातर पहाड़ी राज्यों का जीएसटी रेवेन्यू तो माइनस में चल है.

केंद्र को भी लेना पड़ा लोन

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि केंद्र सरकार अब तक राज्यों के घाटे की भरपाई कहां से कर रही थी और अब आगे क्यों नहीं कर सकती ? असल में केंद्र यह भरपाई अपनी जेब से नहीं करती. इसके लिए कई उत्पादों पर जीएसटी कंपेनसेशन सेस लगाया जाता है और उस मद में जो रकम आती है, उसी से राज्यों को उनके घाटे के मुताबिक पैसा दिया जाता है. यह कंपेनसेशन सेस तंबाकू, सिगार, सिगरेट, पान मसाला (गुटखा), खैनी से लेकर पेट्रोल, एलपीजी और डीजल व्हीकल्स तक की बिक्री पर वसूला जाता है. 
इस सेस के रेट्स में जमीन आसमान का फर्क है. पेट्रोल पर सिर्फ एक फीसदी सेस लगता है, जबकि पान मसाला, सिगरेट और तंबाकू जैसे सिन-गुड्स कहे जाने वाले उत्पादों पर यह 61% से 200 फीसदी तक की ऊंची दरों से वसूला जाता है. 
लेकिन सब कुछ वैसा नहीं होता, जैसा हम प्लान करते हैं. हुआ ये कि पिछले कुछ सालों में इस सेस से होने वाली वसूली ही घटती चली गई. चूंकि केंद्र सरकार के हाथ बंधे थे और कानूनन उसे राज्यों को मुआवजा देना ही था. इसके लिए केंद्र ने मार्केट से लोन उठाना शुरू किया. कोविड प्रभावित पिछले दो सालों में राज्यों के घाटे को कंपेनसेट करने के लिए केंद्र को 2.69 लाख करोड़ रुपये का लोन लेना पड़ा है. इसका असर यह होगा कि यह गारंटी जून में भले ही खत्म हो जाए, लेकिन केंद्र सरकार अब तक लिए गए लोन को चुकाने के लिए यह सेस वसूलती रहेगी.

राज्यों को मिलेगा विशेष पैकेज ?
जीएसटी घाटे से जूझ रहे कई राज्यों में केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी की सरकारें भी हैं. कंपेनसेशन की जरूरत उन्हें भी है. ऐसे में संभव है कि केंद्र सरकार राज्यों को उनके हाल पर यों ही नहीं छोड़ देगी. ऐसी रिपोर्टें आ रही हैं कि केंद्र राज्यों के लिए एक विशेष पैकेज ला सकती है. जिसके तहत किसी खास प्रोजेक्ट के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी. राज्यों को कुछ वस्तुओं पर स्पेशल लेवी या कह लें कि एक तरह का विशेष कर लगाने की इजाजत भी मिल सकती है. और आसान शर्तों पर लोन भी दिया जा सकता है. लेकिन ये सब सिर्फ अटकलें हैं. और ऐसी ही एक अटकल सुर्खियों में है कि जीएसटी के 5% स्लैब को खत्म कर उसमें शामिल वस्तुओं और सेवाओं को 3% और 8% स्लैब में बांट दिया जाएगा. हालांकि इस पर केंद्र की ओर से सफाई भी आ गई है कि ऐसी कोई योजना या प्रस्ताव नहीं है. लेकिन रेट्स में बदलाव के आसार बनते जा रहे हैं. हमने टैक्स एक्सपर्ट से जानना चाहा कि टैक्स स्लैब में बदलावों से रेवेन्यू बढ़ने की संभावना कितनी है?. इसका आम आदमी पर कितना बोझ पड़ेगा ? और क्या राज्यों के पास कई इनोवेटिव उपाय भी है, जिससे रेवेन्यू बढ़ सकता है. (एक्सपर्ट व्यू के लिए देखें-वीडियो : खर्चापानी)

आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपइया ?
एक तरफ राज्य सरकारें टैक्स घाटे का रोना रो रही हैं, वहीं दूसरी ओर एक आर्थिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राज्य सरकारें आमदनी से ज्यादा खर्चे कर रही हैं. खासकर चुनावी वादों और लोकलुभावन कामों पर जरूरत से ज्यादा पैसे लुटाए जा रहे हैं. इससे राज्यों का राजकोषीय घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट बढ़ रहा है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च रिपोर्ट इकोरैप (Ecowrap) में कहा गया है कि तेलंगाना राज्य ने अपने कुल राजस्व का 35% लोकलुभावन स्कीमों पर खर्च किया है. राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, वेस्ट बंगाल और केरल ने अपने राजस्व का 5 से 19 फीसदी तक रकम ऐसी स्कीमों पर खर्च की हैं. अगर राज्य सरकारों के अपने टैक्स रेवेन्यू के प्रतिशत के रूप में देखें तो कुछ राज्य टैक्स रेवेन्यू का 63 फीसदी रकम लोकलुभावन स्कीमों पर खर्च कर रहे हैं. 
रिपोर्ट में 18 राज्यों की वित्तीय स्थिति के विश्लेषण के हवाले से बताया गया है कि इन राज्यों का राजकोषीय घाटा स्टेट जीडीपी के 4 फीसदी के करीब पहुंच गया है, जबकि छह राज्यों का घाटा तो 4 फीसदी के चिंताजनक स्तर को भी पार कर गया है. वित्तवर्ष 2021-22 में बिहार का राजकोषीय घाटा स्टेट जीडीपी का 8.3 फीसदी तक चला गया है. कुछ राज्यों में जीडीपी ग्रोथ तो ज्यादा है, लेकिन हैरानी की बात है कि उनका टैक्स कलेक्शन गिर रहा है. कई मुफ्त सार्वजनिक सेवाओं के चलते भी घाटा बढ़ा है. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि राज्यों को अपने एक्सपेंडिचर हेड्स यानी खर्चों को तार्किक बनाने की जरूरत है.

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