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सेबी ने Nippon India म्यूचुअल फंड और Yes Bank के बीच निवेश की जांच क्यों शुरू कर दी है?

सेबी को शक है कि इस निवेश में निवेशकों के पैसे का दुरुपयोग किया गया है

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सेबी (फाइल फोटो)

मार्केट रेगुलेटर सेबी ने निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड और प्राइवेट बैंक यस बैंक के बीच निवेश की जांच शुरू कर दी है. सेबी को शक है कि इस निवेश में निवेशकों के पैसे का दुरुपयोग किया गया है. समाचार एजेंसी रायटर्स की रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड देश का सबसे बड़ा विदेशी स्वामित्व वाला फंड है. अब जानते हैं कि पूरा मामला क्या है. दरअसल निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड जब अनिल अंबानी की कंपनी हुआ करती थी जिसका नाम था रिलायंस म्यूचुअल फंड. लेकिन बाद में अनिल अंबानी ने अपनी इस कंपनी को जापान की निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस की सहयोगी कंपनी निप्पान इंडिया को बेच दिया. अक्टूबर 2019 में हुए इस सौदे के तहत निप्पॉन ने रिलायंस एसेट मैनेजमैंट कंपनी की 75 फीसदी हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था.

इस डील के साथ ही रिलायंस म्यूचुअल फंड का मालिकाना हक उसके पास चला गया और उसने नाम बदलकर निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड हो गया. लेकिन अनिल अंबानी की यह कंपनी निप्पॉन को बेचने से पहले यानी साल 2016 से साल 2019 के बीच रिलायंस म्यूचुअल फंड ने यस बैंक के बॉन्ड्स में मोटा पैसा निवेश निवेश किया था.  इसके कुछ समय बाद यस बैंक ने अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियों के सिक्योरिटीज में बड़ा निवेश किया था. यहीं पेंच फंस गया. अब सेबी को शक है कि कहीं रिलायंस म्यूचुअल फंड ने किसी डील के तहत तो यस बैंक में पैसा तो नहीं लगाया. सेबी का नियम है कि फंड हाउसों की मुख्य यानी पैरेंट कंपनी निवेशकों के पैसों का उपयोग नहीं कर सकती है. 

यस बैंक ने एडिशनल टियर 1 यानी AT-1 बॉन्ड के जरिये निवेशकों से करोड़ों रुपये जुटाए थे. इस बॉन्ड्स में म्यूचुअल फंड कंपनियों समेत संस्थागत निवेशकों ने निवेश किया था. इनमें निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड, फ्रैंकलिन टेंपलटन, बार्कलेज और कोटक म्यूचुअल फंड शामिल हैं. इसमें सबसे ज्यादा करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड की थी. अदालत को भेजे गए दस्तावेजों के मुताबिक साल 2016 से 2019 के बीच यस बैंक द्वारा जारी किए गए AT-1 बॉन्ड्स का सबसे बड़ा निवेशक निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड था. यस बैंक ने तीन साल में कुल मिलाकर करीब 84,100 करोड़ रुपये बॉन्ड जारी किये थे . इसमें करीब 25 हजार करोड़ रुपये अकेले निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड ने निवेश किये थे.

लेकिन यस बैंक के पूर्व प्रमोटर राणा कपूर का घोटाला सामने आने के बाद 2020 में यस बैंक डूबने के कगार पर आ गया था. उस समय बैंक को डूबने से बचाने के लिए आरबीआई को आगे आना पड़ा था. रिजर्व बैंक ने यस बैंक की रिस्ट्रक्चरिंग का प्लान पेश कर यस बैंक के 8415 करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड्स को राइट ऑफ कर दिया था. राइट ऑफ का मतलब यह मान लेना है कि यह पैसा डूब गया और इस पैसे को बैलेंसशीट से हटा दिया जाता है. इस तरह से यस बैंक के बॉन्ड्स के निवेशकों का काफी पैसा डूब गया था. दरअसल इस बॉन्ड का इंटरेस्ट रेट सामान्य से ज्यादा था और इसकी वजह यह है कि इसमें एक शर्त थी कि बैंक के दिवालिया होने की स्थिति में इन बॉन्ड्स को राइट ऑफ किया जा सकता है. इस तरह से बॉन्ड में पैसा लगाने वाले निवेशक खुद को डगा महसूस कर रहे हैं. इस मामले में बॉन्ड धारकों ने अदालत में केस भी किया है.

अगर सेबी की जांच में ये आरोप सही पाये जाते हैं तो म्यूचुअल फंड और बैंक दोनों के मालिकों और अधिकारियों पर मोटा जुर्माना लगाया जा सकता है. इसके साथ ही इन्हें शेयर मार्केट से भी बैन किया जा सकता है. रायटर्स की ये रिपोर्ट बताती है कि निप्पॉन इंडिया फंड के मौजूदा मालिक और पुराने मालिक यानी अनिल अंबानी भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं और यस बैंक और उसके पूर्व अधिकारियों पर भी सेबी की गाज गिर सकती है. हालांकि, इस पूरे मामले पर न्यूज एजेंसी रायटर्स को निप्पॉन इंडिया, अनिल अंबानी समूह, यस बैंक और सेबी की तरफ से इस बारे में कोई जवाब नहीं मिला है. दिसंबर 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक निप्पॉन इंडिया देश का चौथा सबसे बड़ा म्युचुअल फंड हाउस है और इसका एसेट अंडर मैनेजमैनट यानी AUM करीब 3 लाख करोड़ रुपये है.

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