होली का दिन था. कफ़ी तब सिर्फ तीन साल की थीं. सबको होली खेलता देख वो भी रंगों का त्योहार मनाने घर से बाहर निकलीं. लेकिन रंग की जगह उनके चेहरे पर कुछ दहशतगर्दों ने तेजाब फेंक दिया. हमले के बाद कफ़ी की जान तो बच कई. लेकिन चेहरा बुरी तरह झुलस गया और आंखों की रौशनी चली गई. अब इसके आगे कोई सीधा ये बताए कि कफ़ी ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की परीक्षा में 95 पर्सेंट से ज्यादा नंबर हासिल किए हैं तो आपके चौंक जाने को हम समझ सकते हैं.
एसिड अटैक के पीड़ित जिंदा बच भी जाएं तो भी मेंटल ट्रॉमा से निकलना उनके लिए जिंदगी भर का संघर्ष बन जाता है. उससे जूझते हुए कोई माइल्सटोन हासिल करना वाकई में मिसाल देने वाला कारनामा है. कफ़ी ने भी ऐसा ही काम किया है. बेशक इस कामयाबी के पीछे उनकी हिम्मत और योग्यता के अलावा परिवार का सपोर्ट भी शामिल है.
एसिड अटैक के बाद कफ़ी और उनके परिवार ने कभी हार नहीं मानी. उनके परिजनों छह सालों तक देश के कई अस्पतालों के चक्कर काटे हैं. हालांकि लाख कोशिशों के बाद भी कफ़ी की देखने की क्षमता वापस नहीं आ पाई.
कफ़ी पर ये हमला 2011 में हरियाणा के हिसार में हुआ था. आंखें गंवाने के बाद कफ़ी का स्कूल में अन्य बच्चों की तरह पढ़ना मुमकिन नहीं था. इसलिए माता-पिता उन्हें चंडीगढ़ के ब्लाइंड इंस्टीट्यूट में ले आए. यहीं पढ़ाई करते हुए कफ़ी ने दसवीं में 95.20 फीसद अंक हासिल किए हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपी हिना रोहतकी की रिपोर्ट के मुताबिक कफ़ी का सपना आईएएस ऑफिसर बनने का है. वो कहती हैं,
"आपकी जिंदगी में ऐसे लम्हे होते हैं जब आप सोचते हैं सबकुछ ख़त्म हो चुका है. पर मेरे मां-बाप ने हार नहीं मानी. मैं एसिड अटैक करने वालों को और बाकी सबको ये दिखाना चाहती हूं कि मेरे साथ जो कुछ भी हुआ, इसके बावजूद, मैं बेकार नहीं हूं."
हादसे के वक्त कफ़ी के पिता पवन एक लोहे की दुकान चलाते थे. हमले के बाद आगे परिवार चलाने के लिए परिवार को हिसार छोड़ना पड़ा. दूसरी तरफ हमले के तीनों आरोपी दो साल बाद जेल से बाहर आ गए. इसके खिलाफ 2019 में पवन ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मामले में सुनवाई पेंडिंग है. फिलहाल पवन चंडीगढ़ के सेक्टर 17 में चपरासी की नौकरी करते हैं. बेटी की कामयाबी पर पिता कहते हैं,
“हम अपनी बच्ची की जिंदगी बचाने में व्यस्त हो गए. इसी बीच हमें समझ आया कि हिसार पुलिस ने जो केस बनाया था, वो काफी कमजोर था और तीनों लोग जेल से रिहा कर दिए गए. हम छह साल तक भटकते रहे. दिल्ली (एम्स), हैदराबाद... हम उसे लेकर हर जगह गए, पर उसकी आंखों की रौशनी वापस नहीं आई. फिर मैं उसे हिसार के एक स्कूल ले गया. वहां उसने दो साल पढ़ाई की. वहां मैं हिसार कोर्ट में झाड़ू लगाता था. फिर मुझे अहसास हुआ कि मैं उसे ऐसे अच्छी शिक्षा नहीं दे पाऊंगा. तो मैं उसे लेकर चंडीगढ़ आ गया.”
कफ़ी भले देख नहीं पातीं, लेकिन अपने परिवार की समस्याओं से वाकिफ हैं. वो बताती हैं,
“चंडीगढ़ में अंधे लोगों के लिए एक अच्छा शिक्षा संस्थान था, इसलिए मेरा परिवार यहां आकर बस गया. मेरे परिवार ने अपनी सारी जमापूंजी मेरे इलाज में लगा दी. डॉक्टर्स ने मुझे बचा लिया, पर मैं अंधी हो गई. सालों पहले, मेरे इलाज पर 20 लाख रुपये खर्च किए गए थे.”
रिपोर्ट के मुताबिक कफी ने ब्रेल लिपि, एजुकेशन वीडियो और अन्य चीज़ों की मदद से सभी सब्जेक्ट्स के बेसिक्स को अच्छी तरह समझा. उसके बाद आगे की तैयारी की. उनके इरादों की ताकत के आगे ये कहना भी हल्का लगता है, फिर भी कहना तो पड़ेगा. बहुत कड़ी मेहनत करके कफ़ी ये मुकाम हासिल किया है. वो आगे ह्यूमैनिटिज़ की पढ़ाई करना चाहती हैं और आईएएस अधिकारी बनने का इरादा रखती हैं.