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जब मोदी ने नैपकिन पर संदेश भिजवाया, हिमाचल का मंत्री कार से कूदा और सरकार गिर गई

जब एक विधायक को रास्ते से उठाकर बनाई गई सरकार, फिर मोदी-नड्डा की जोड़ी ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया.

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रमेश धवाला और प्रेम कुमार धूमल (फोटो- फेसबुक)

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 12 नवंबर को वोटिंग होनी है. राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी एक बार फिर सरकार बनाने के लिए जोर लगा रही है. पिछले तीन दशकों से राज्य में हर 5 साल में सरकार बदलती रही है. कांग्रेस और बीजेपी स्पष्ट बहुमत से चुनाव जीतती रही है. लेकिन 1998 का विधानसभा चुनाव ऐसा हुआ कि दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिली थी. चुनाव के बाद कई सियासी तिकड़मबाजियां हुई. सीएम आवास से लेकर सड़क तक. बिल्कुल सिनेमा की तरह! पूरा किस्सा आपको बताते हैं.

दी लल्लनटॉप के राजनीतिक किस्सों पर खास कार्यक्रम 'नेतानगरी' में इस बार 1998 के हिमाचल चुनाव पर चर्चा हुई. वरिष्ठ पत्रकार डॉ शशिकांत शर्मा ने चुनाव के बाद का पूरा किस्सा सुनाया. तब नरेंद्र मोदी हिमाचल के चुनाव प्रभारी थे. रमेश धवाला टिकट नहीं मिलने के कारण बीजेपी से बगावत कर बैठे थे. वे शांता कुमार (पूर्व सीएम) गुट से थे. रमेश धवाला निर्दलीय चुनाव जीते थे. तीन सीटों पर भारी बर्फबारी के कारण चुनाव नहीं हुए थे. कांग्रेस 31 सीटों पर जीती थी और बीजेपी 29. बीजेपी के एक विधायक का हार्ट अटैक से निधन हो गया था. 

रमेश धवाला का अपहरण!

सरकार बनाने की जोर आजमाइश जारी थी. जेपी नड्डा की ड्यूटी लगाई कि वे रमेश धवाला को मनाएं. धवाला ने बीजेपी को समर्थन देने के लिए शर्त रख दी कि प्रेम कुमार धूमल के बदले शांता कुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाए. पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस ने बीजेपी को समर्थन दे दिया. इस तरह बीजेपी के साथ भी विधायकों की संख्या 32 हो गई. हालांकि वो अब भी बहुमत के आंकड़े से पीछे थी.

उधर, चुनाव से पहले वीरभद्र सिंह को भरोसा था कि वे सत्ता में दोबारा वापस आएंगे. लेकिन परिणाम अनुकूल नहीं आया था. पत्रकार शशिकांत शर्मा बताते हैं, 

"रमेश धवाला जब शिमला की तरफ आ रहे थे तो उनका एक तरह से अपहरण हो गया. उन्हें उठा लिया गया. फिर अचानक एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में धवाला ने बताया कि वे वीरभद्र सिंह को अपना समर्थन देते हैं. उन्होंने एक और विधायक के समर्थन का दावा किया था. वीरभद्र सिंह ने तत्कालीन राज्यपाल रमा देवी के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया. रात के 2 बजे विधायकों की परेड हुई और वीरभद्र सिंह की सरकार बन गई."

सरकार जरूर बन गई लेकिन खतरा मंडरा रहा था. क्योंकि समर्थन देने वाला विधायक बीजेपी का बागी था. रमेश धवाला को सरकार में मंत्री पद दिया गया. शशिकांत शर्मा के मुताबिक, धवाला को मुख्यमंत्री आवास में रखा गया था. वहां इतनी सुरक्षा थी कि वे किसी से ना बात कर सकते थे और ना ही किसी से मिल सकते थे. जब वे सचिवालय आते थे तो उनके साथ पुलिस की एक बड़ी टीम साथ होती थी. ये सब पूरे 6 दिन तक चला. किसी भी तरह के दबाव के सवाल को वे खारिज कर देते थे.

नैपकिन पर लिखकर भिजवाया मैसेज

फिर, नरेंद्र मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि रमेश धवाला को हम वापस लाएंगे और कांग्रेस की सरकार गिरेगी. शशिकांत शर्मा बताते हैं कि उसी दौरान सीएम आवास में काम करने वाले एक वेटर को काम में लगाया गया. नैपकिन पर रमेश धवाला के लिए एक संदेश लिखकर भेजा गया. संदेश यही कि आप बीजेपी के हैं और कांग्रेस वाले आपको कभी नहीं अपनाएंगे. फिर उसी वेटर के जरिये धवाला ने भी मैसेज भेजा कि उन्हें डराया जा रहा है. धवाला ने ये भी लिख दिया कि उन्हें सीएम आवास से निकाला जाए तो वे बीजेपी के साथ आ जाएंगे.

बीजेपी ने रणनीति तैयार की. अगले दिन धवाला को फिर मैसेज गया कि जब वे सचिवालय की तरफ जाएंगे तो वे एक यूटर्न पर अपनी गाड़ी से कूद जाएंगे. वहां राकेश पठानिया उन्हें लेने आएंगे. 100 मीटर की दूरी पर उनकी गाड़ी खड़ी होगी. अगले दिन इसी रणनीति पर काम हुआ. यूटर्न पर गाड़ी जैसे ही धीमी हुई रमेश धवाला निकलकर भाग गए. वहां से सीधे नरेंद्र मोदी के पास पहुंचे. फिर नरेंद्र मोदी ने राज्यपाल को फोन कर बताया कि सरकार का एक विधायक उन्हें समर्थन दे रहा है इसलिए बीजेपी को सरकार बनाने के लिए बुलाया जाए.

राज्यपाल ने बीजेपी को मना कर दिया. हिमाचल विकास कांग्रेस के चार विधायकों को राज्यपाल के पास लाया गया. फिर भी वो नहीं मानीं. उधर, दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी. तब राज्यपाल ने खुद प्रेम कुमार धूमल को फोन किया कि आइए और सरकार बनाने का दावा पेश कीजिए. 12 मार्च 1998 को विधानसभा का सत्र बुलाया गया. रमेश धवाला और हिमाचल विकास कांग्रेस के सभी विधायक भी आए. दूसरी ओर वीरभद्र सिंह दावा करते रहे कि उनके पास अब भी रमेश धवाला का समर्थन है.

BJP ने कांग्रेस MLA को बना दिया विधानसभा अध्यक्ष

अंत में जब बहुमत साबित करने की बात आई तो उससे पहले ही वीरभद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया. और 6 दिन पुरानी उनकी सरकार गिर गई. हालांकि कांग्रेस ने फिर दावा किया कि बीजेपी के पास भी बहुमत नहीं है. कांग्रेस का कहना था कि उनके पास भी 31 विधायक हैं और बीजेपी के पास भी इतने ही विधायक हैं. फिर बीजेपी ने एक और चाल चली. कांग्रेस के एक विधायक गुलाब सिंह को गुप्त तरीके से विधानसभा अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया गया. गुलाब सिंह, सुखराम के करीबी थे. वोटिंग के दौरान गुलाब सिंह बीजेपी के खेमे में चले गए और अध्यक्ष बन गए. इससे कांग्रेस का एक विधायक कम हो गया. अध्यक्ष की गिनती ना विपक्ष में होती है और ना ही पक्ष में. और इस तरह राज्य में प्रेम कुमार धूमल की सरकार बन गई.

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