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कांग्रेस को कर्नाटक में सत्ता दिलाने वाले सुनील कानुगोलू कौन हैं?

BJP और PM मोदी की सफलता में बड़ी भूमिका निभा चुके हैं. परदे के पीछे काम करने वाले इस रणनीतिकार की तस्वीरें भी नहीं मिलेंगी.

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कांग्रेस की जीत के पीछे सुनील कानुगोली की बड़ी भूमिका. (तस्वीरें- इंडिया टुडे और साउथ फर्स्ट से साभार)

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की है. 135 विधायक चुनकर आए हैं. सत्ताधारी बीजेपी 66 सीटों पर सिमट गई. कर्नाटक का चुनाव प्रचार के मामले में हाई प्रोफाइल रहा. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस इसे बड़ी जीत की तरह देख रही है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट कांग्रेस के प्रचार अभियान और मेनिफेस्टो को जीत की वजह बता रहे हैं. इसको समझने के लिए केवल बीते कुछ महीनों के चुनाव प्रचार और चुनावी घोषणा पत्र पर नजर डालने से काम नहीं चलेगा. कांग्रेस में इस बदलाव के पीछे एक नाम की चर्चा बहुत चली है. चुनावी रणनीतिकार सुनील कानुगोलू की. जिन्हें कांग्रेस का 'प्रशांत किशोर' भी कहा जाता है.

सबसे पहले साल 2022 की शुरुआत में चलते हैं. उस समय खूब चर्चा चलती थी कि प्रशांत किशोर 2024 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की चुनावी रणनीति तैयार करेंगे. तब प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात भी की थी. उन्होंने सोनिया गांधी के सामने एक प्रेजेंटेशन दिया था. लेकिन इन सबके बावजूद बात नहीं बनी थी. कहा जाता है कि किशोर को कांग्रेस में शामिल होने के लिए कहा गया था. लेकिन वे नहीं माने थे.

पिछले साल कांग्रेस से जुड़े सुनील

इधर, सुनील कानुगोलू भी अपने प्रेजेंटेशन के साथ तैयार थे. उन्होंने पहले ही कांग्रेस के लिए काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन आगे के लिए कांग्रेस ने सुनील के सामने शर्त रखी कि वो पार्टी से सलाहकार के तौर पर नहीं, बल्कि स्थायी रूप से जुड़ेंगे. सुनील मान गए. यानी अभी वो कांग्रेस के सदस्य भी हैं. पहले ही काम में कर्नाटक और तेलंगाना की जिम्मेदारी मिली. बताया जाता है कि 2024 लोकसभा की पूरी जिम्मेदारी सुनील की टीम पर है.

40 साल के सुनील कर्नाटक के बेल्लारी जिले के रहने वाले हैं. उनके पिता कन्नड़ भाषी हैं और मां तेलुगू. शुरुआती पढ़ाई लिखाई बेल्लारी में ही हुई. फिर पूरा परिवार चेन्नई चला गया. वहां आगे की पढ़ाई की. फिर अमेरिका गए. वहां मास्टर्स की दो डिग्री लीं- एक फाइनैंस में और एक एमबीए की डिग्री. पढ़ाई के बाद मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी McKinsey में काम भी किया. साल 2009 में सुनील अमेरिका से भारत वापस आए.

व्यक्तिगत रूप से सुनील बिल्कुल लो प्रोफाइल हैं. मीडिया की चमक-धमक से दूर रहने वाले. परदे के पीछे से काम करना ज्यादा पसंद है. इसलिए कई चुनावों में राजनीतिक दलों को जीत दिलाने के बावजूद कभी मीडिया के सामने नहीं आए. सुनील की मौजूदगी किसी भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नहीं है. वॉट्सऐप पर भी अपनी फोटो नहीं लगाते हैं. यहां तक कहा जाता है कि उनकी इतनी कम फोटो सार्वजनिक हैं कि मीडिया वाले गलत तस्वीर लगा देते हैं.

कभी बीजेपी के लिए प्रचार करते थे सुनील

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सुनील कानुगोलू और प्रशांत किशोर ने बीजेपी के लिए एक साथ काम किया था. नरेंद्र मोदी की 'ब्रांड पीएम' छवि बनाने के लिए एक संगठन बनाया गया था. सिटिजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (CAG). प्रशांत किशोर ने इस CAG में कई बड़े संस्थानों से पढ़ाई करने वाले यंगस्टर्स को जोड़ा था. विदेशी यूनिवर्सिटी, IITs और IIMs से पढ़ाई कर चुके दिग्गज जुड़े थे. सुनील भी इसी टीम का हिस्सा थे. चुनाव से पहले 'चाय पे चर्चा', 3D रैली, सोशल मीडिया प्रोग्राम, मैराथन जैसे कई कैंपेन चलाए गए थे. नरेंद्र मोदी की छवि और बीजेपी की बड़ी जीत में CAG के कैंपेन का बड़ा रोल माना जाता है.

प्रशांत किशोर ने बाद में कुछ लोगों के साथ मिलकर CAG को इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (I-PAC) बना दिया. किशोर बीजेपी से अलग हो गए. लेकिन सुनील कानुगोलू ने बीजेपी के साथ काम करना जारी रखा. प्रशांत किशोर से अलग होने के बाद साल 2016 में सुनील ने डीएमके के लिए काम किया. चर्चित 'नमाक्कु नामे' कैंपेन उन्हीं का डिजाइन किया हुआ था. डीएमके चुनाव हारी थी, लेकिन स्टालिन बड़े नेता बनकर उभरे थे. सुनील ने इसके बाद दोबारा बीजेपी के लिए काम शुरू किया था.

प्रशांत किशोर के साथ काम करने के दौरान ही अमित शाह और सुनील के अच्छे समीकरण बने थे. बीजेपी ने जब 'असोसिएशन ऑफ ब्रिलिएंट माइंड्स' को स्पॉन्सर किया था तो उसको लीड करने वालों में सुनील कानुगोलू भी शामिल थे. 2017 के यूपी चुनाव में बीजेपी के कैंपेन की पूरी जिम्मेदारी सुनील की ही थी. ओबीसी सम्मेलन जैसे इवेंट सुनील की रणनीति ही बताई जाती है. हालांकि कुछ महीनों बाद समीकरण बदल गए. सुनील भी बीजेपी से अलग हो गए. 2019 लोकसभा चुनाव में AIADMK के लिए कैंपेन बनाया. फिर पंजाब में अकाली दल के साथ भी काम किया. इसके बाद 2021 विधानसभा चुनाव में डीएमके की मदद के लिए आए.

इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई बताते हैं कि सुनील के बीजेपी से अलग होने की वजह शायद पार्टी की रणनीति रही है. क्योंकि बीजेपी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहती है. सुनील को लगा था कि 2017 के बाद पार्टी उन्हें प्रशांत किशोर की तरह अहमियत देगी, जो कि हुआ नहीं. इसलिए सुनील ने एक पार्टी के लिए काम करने की बजाय अलग रणनीति बनाई. यूपी चुनाव (2017) के कुछ ही महीनों बाद उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ दिया. हालांकि सरदेसाई इसे एकमात्र वजह नहीं मानते हैं.

कर्नाटक में सुनील की रणनीति

प्रशांत किशोर से अलग होने के बाद सुनील ने चुनावी कैंपेंनिंग के लिए अपनी कंपनी शुरू की- माइंडशेयर एनालिटिक्स. इस तरह धीरे-धीरे उन्होंने अपनी अलग छवि बनाई. कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने कर्नाटक के लिए तैयारी शुरू कर दी थी. जानकार बताते हैं कि सुनील की टीम ने कर्नाटक की सभी सीटों पर सर्वे किया था. राजदीप सरदेसाई के मुताबिक, कांग्रेस नेतृत्व ने जरूर टिकटों का बंटवारा किया, लेकिन ये भी तथ्य है कि सुनील की टीम ने राहुल गांधी को जो सर्वे सौंपा था, उसी के आधार पर टिकटों का बंटवारा हुआ. 

राजदीप के मुताबिक पूरे चुनाव में  सुनील ने बैकरूम ऑपरेटर की तरह काम किया. वे कभी खुद को आगे नहीं करते हैं, ना ही प्रशांत किशोर की तरह हावी होते हैं. बकौल सरदेसाई, सुनील को आप एक बढ़िया टीम प्लेयर बोल सकते हैं.

कांग्रेस के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी ने पिछले 8 महीनों में पांच सर्वे किए थे. नेता के मुताबिक, कुछ सीटों को छोड़ दें, तो उम्मीदवारों का चयन सुनील कानुगोलू की टीम के सर्वे के आधार पर ही हुआ था. इसी सर्वे के आधार पर 70 हॉट सीटें चुनी गई थीं.

कर्नाटक में सुनील कानुगोलू के कैंपेन

कहा जाता है कि सुनील भी प्रशांत किशोर की तरह इवेंट और मीडिया मैनेजमेंट में माहिर हैं. कर्नाटक में भी कई सारे चुनावी कैंपेन उन्हीं के डिजाइन किए हुए हैं. चुनाव से पहले कांग्रेस का "PayCM" कैंपेन काफी चर्चित रहा था. ये सुनील का ही आइडिया बताया जाता है. दरअसल, राज्य के कॉन्ट्रैक्टर्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर राज्य की बीजेपी सरकार पर बड़ा आरोप लगाया था. आरोप ये था कि राज्य सरकार हर काम के लिए 40 पर्सेंट कमीशन मांगती है. इस मुद्दे को विपक्ष ने लपक लिया. कांग्रेस ने बीजेपी सरकार को '40 पर्सेंट वाली सरकार' का तमगा दे दिया.

पिछले साल सितंबर में कांग्रेस ने कमीशनखोरी के आरोपों पर बाकायदा एक कैंपेन लॉन्च कर दिया था. दीवारों पर PayCM के पोस्टर चिपकाए गए. इसमें पेटीएम के QR कोड की तरह एक कोड बनाया गया. इस पर सीएम बसवराज बोम्मई की तस्वीर थी और लिखा था- यहां 40 पर्सेंट स्वीकार किए जाएंगे. यहां तक कि कांग्रेस ने '40 पर्सेंट सरकार' नाम की एक वेबसाइट लॉन्च कर दी. पूरे चुनाव के दौरान '40 पर्सेंट' एक कीवर्ड बना रहा.

दीवारों पर PayCM के पोस्टर (फोटो- पीटीआई)

इसी तरह नंदिनी और अमूल के बीच हुए विवाद को कन्नड़ अस्मिता से जोड़ना उन्हीं की रणनीति का हिस्सा है. अमूल ने 5 अप्रैल को ट्वीट कर कर्नाटक में एंट्री की घोषणा की थी. इसके बाद से ही कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाना शुरू कर दिया कि यह राज्य के नंदिनी ब्रांड को खत्म करने की कोशिश है. कांग्रेस ने इसे कर्नाटक की अस्मिता से जोड़ दिया था. कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टैग कर लिखा था कि आपने पहले ही कन्नड़ लोगों से बैंक, पोर्ट और एयरपोर्ट छीन लिया. क्या अब आप हमसे नंदिनी को भी छीनने की कोशिश कर रहे हैं?

इस मुद्दे पर कर्नाटक के लोग बंट गए थे. खूब बवाल हुआ था. ट्विटर पर कर्नाटक के लोगों ने अमूल का बहिष्कार करना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया पर कई लोग ये भी कहने लगे थे कि अमूल के आने से दूध का दाम बढ़ जाएगा.

तो ये हैं सुनील की चुनावी रणनीति के कुछ उदाहरण. उनके पास चुनावी रणनीति तैयार करने में अब 10 साल का अनुभव है. पिछले साल जब वो कांग्रेस से जुड़े थे, तभी उन्हें उस टास्क फोर्स में शामिल कर लिया गया था जो 2024 चुनाव का काम देख रहा है. इस टास्क फोर्स में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पी चिदंबरम, मुकुल वासनिक, जयराम रमेश, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन, प्रियंका गांधी और रणदीप सिंह सुरजेवाला शामिल हैं.

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