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'असुर 2' देखने पर मजबूर कर देंगी ये पांच बातें, चौथी वाली एकदम नई है

ये पांचों बातें आपको सीरीज की तरह ही अचंभे में डाल देंगी.

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असुर 2 में अरशद वारसी ने कमाल किया है

असुर 2 को ऑडियंस खूब पसंद कर रही है. लिखाई, डायरेक्शन, ऐक्टिंग और दूसरे पहलुओं पर खूब बात हो रही है. इसकी एन्डिंग पर तमाम फैन थ्योरीज चल रही हैं. कहीं निखिल ही असली असुर तो नहीं, या वो महिला जिसे दिखाई नहीं देता या फिर खुद धनंजय. इन सब पर अलग से किसी रोज़ बात करेंगे. अभी हम मुद्दे पर आते हैं. आपको कुछ ऐसी बातें बताते हैं, जिसकी वजह से असुर 2  को देखा जाना चाहिए. उससे पहले आप यहां क्लिक करके इसका रिव्यू पढ़ डालिए.

# चौंकाने की क्षमता

सबसे पहली बात है, 'असुर 2' की चौंकाने की क्षमता. ये एकाध जगह को छोड़कर प्रेडिक्टिबल कतई नहीं है. आप आगे की घटनाओं पर बिल्कुल तुक्का नहीं मार पाते. जो सोचते हैं, अक्सर उसका उल्टा होता है. हर एपिसोड में ये आपको स्तब्ध करती है. सीरीज में कुछ बिलावजह नहीं घटता. हर घटना का कुछ उद्देश्य है. यदि कोई किडनैप हो रहा है. उस वक़्त आपको ये बेकार की बात लग सकती है. पर आगे सबकुछ जस्टीफ़ाई किया जाता है. शायद पिछले कुछ सालों में जितनी भी भारतीय सीरीज आई हैं. उसमें से इस सीरीज के क्लिफ़हैंगर सबसे ज़ोरदार हैं. हर एपिसोड के बाद ये आपको ऐसी जगह पर छोड़ देती है कि अगला एपिसोड देखना ही पड़ता है. ये मेकर्स की एक बहुत सही चाल है. यदि पूरा सीजन लीक न होता. एक-एक करके एपिसोड आते, तो शायद सबको अगले का बेसब्री से इंतज़ार होता.

# जुड़ाव

तीन तरह के क्राइम सस्पेंस थ्रिलर होते हैं. एक में ऑडियंस और किरदारों दोनों को कातिल का नहीं पता होता. दूसरे में ऑडियंस को पता होता है, पर किरदारों को नहीं पता होता. ऐसे मौके पर ऑडियंस खुद को फिल्मी किरदारों से आगे समझती है. तीसरी तरह के क्राइम सस्पेंस थ्रिलर में स्क्रीन के अंदर के किरदारों और बाहर बैठे दर्शकों दोनों को कातिल का पता होता है. इसलिए जनता इसमें कैरेक्टर्स के साथ चलती है. और खुद को उनसे जुड़ा हुआ पाती है. जैसे स्क्रीन के अंदर कोई पुलिस वाला दिमाग लगाता है, ठीक उसी तरह स्क्रीन के बाहर बैठी ऑडियंस किलर को ढूंढ़ने में अपना दिमाग लगाती है. 'असुर 2' इसी तीसरे प्रकार की सस्पेंस थ्रिलर है. आप इससे थोड़ा ज़्यादा जुड़ा हुआ और इसके साथ महसूस करते हैं.

# लेयर्ड स्क्रीनप्ले

कहते हैं कि स्क्रीनप्ले किसी भी फिल्म का बाइबल होता है. जैसा स्क्रीनप्ले वैसा ही आउटपुट बनकर निकलेगा. 'असुर 2' की लिखाई बहुत कमाल है. न के बराबर क्लीशेज. एक-एक कैरेक्टर आपको अपनी ओर खींचता है. इसमें हर चीज़ का मोटिव है. हाल ही में हमने 'दहाड़' देखी. उसमें सीरियल किलर का मोटिव साफ  नहीं होता. पर 'असुर 2' में सब स्पष्ट है. इसकी कहानी परतदार है. सारी परतें एक साथ नहीं हटतीं. स्क्रीनप्ले इस करीने से सजाया गया है, सभी लेयर्स एक-एक करके अनफोल्ड होती हैं. कहानी बहुत तार्किकता से बुनी गई है. आप किसी चीज़ पर सवाल नहीं उठा सकते. बाक़ी बहुत बारीकी से देखेंगे, तो कुछ चीजें तो मिलेंगी ही. जैसे VFX अच्छा नहीं मिलेगा. कोडिंग वाले सीन्स में कुछ खामियां मिलेंगी. पर नरेटिव में कहीं कोई दिक्कत नहीं है.

# रिलीजन और रियलिटी के बीच संतुलन

वेद-पुराणों से उठाए गए संदर्भों को बहुत ढंग से इस्तेमाल किया गया है. इन्हें वास्तविकता के साथ सलीके से पिरोया गया है. धर्म को कहीं पर भी रीजनिंग पर हावी नहीं होने दिया गया है. जैसे ही धर्म तर्क पर हावी होता है, तुरंत एक नया तर्क आ जाता है. किलर धार्मिक रेफरेंसेज का सहारा लेकर दुनिया को अधर्म की ओर मोड़ रहा है. इसलिए यहां ये भी रिस्क था कि धर्म कहीं विलेन तो नहीं बन रहा है. पर मेकर्स ऐसा होने नहीं देते. कमाल ये है कि डायलॉग्स ऐसे लिखे गए हैं कि ईश्वर में मानने वाले जितने तार्किक हैं, उतने ही ईश्वर को न मानने वाले. रिलीजन-रियलिटी के बीच बराबर संतुलन बनाया गया है.

# बेहतरीन अदाकारी

कितना भी अच्छा स्क्रीनप्ले लिखा गया हो! कितनी भी अच्छी सिनेमैटोग्राफी हो! यदि ऐक्टर्स ने अच्छा काम न किया हो, तो सब किए-कराए पर पानी फिर जाता है. पर 'असुर 2' में ऐक्टर्स ने कमाल काम किया है. खासकर छोटे शुभ जोशी का किरदार विशेष बंसल ने जीवंत कर दिया है. वो अभिनय का ऐसा बार सेट करते हैं कि बड़े शुभ जोशी का किरदार निभाने वाले अभिषेक चौहान फीके नज़र आते हैं. अरशद वारसी ने भी अद्भुत काम किया है. वो धनंजय राजपूत के रोल में बहुत रियल लगे हैं. विशेष बंसल और अरशद वारसी के बेहतरीन परफ़ॉर्मेंस के लिए भी 'असुर 2' को देखना बनता हैं.

बहुत-सी ऐसी बातें हैं, जिनको हम अभी नहीं बता सकते. क्योंकि अभी सारी जनता ने पूरा सीजन देखा नहीं होगा. और हम स्पॉइलर्स देना नहीं चाहते. बाक़ी आप कमेन्ट बॉक्स में बताइए, 'असुर 2' को क्यों देखा जाना चाहिए?

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