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कहानी कॉमेडी किंग राजू श्रीवास्तव की, जिनमें इंदिरा गांधी की नक़ल ने मिमिक्री का बीज बोया था

जिस 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' ने पहचान दिलाई उसे ही क्यों छोड़ आए थे राजू श्रीवास्तव? पढिए ऐसे ही तमाम किस्से और उनकी जीवन यात्रा.

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दूरदर्शन के सीरियल में राजू और शक्तिमान में राजू(बाएं से दाएं)

उस ज़माने में कीपैड वाला अर्ध डिजिटल फोन हुआ करता था. उसके एसडी कार्ड में होते थे कई सारे गाने और गजोधर भैया की कॉमेडी. गजोधर भैया ने जब शोले देखी, हमने भी उनके साथ देखी. धन्नो के सिनेमाई पर्दा चीरकर बाहर आने का डर हमें भी बराबर बना रहा. हमने उनकी बेवड़ों की पिच्चर देवदास भी देखी. उन्होंने ट्रेन का सफर किया. हमने भी किया. गजोधर भैया जहां-जहां गए हम उनके कंधे पर चढ़े रहे. हालांकि कई बार हंसते-हंसते वहां से गिर भी पड़े. पर उनके साथ-साथ चले. वो हंसाते और हम पेट पकड़-पकड़कर हंसते. वो भी हमारे साथ हंसते, इवन उनका पूरा शरीर हंसता है. जिनकी कॉमेडी ने उन्हें अमर कर दिया, आज हम आपको उनकी जीवन यात्रा पर लिए चलते हैं.

इंदिरा गांधी की नक़ल ने राजू में मिमिक्री का बीज बो दिया

25 दिसंबर 1963. कानपुर में बलई काका के यहां जन्म. नाम रखा गया सत्य प्रकाश उर्फ राजू. बलई काका पेशे से कोर्ट में पेशकार थे और अवध रीजन के मशहूर हास्य कवि माने जाते हैं. राजू बड़े हुए. पिता की कविता का उन पर भी असर हुआ. वो उन्हें स्टेज पर देखकर सोचते, कभी मैं ऐसे ही स्टेज पर परफ़ॉर्म करूंगा. उन्हें बचपन से ही तालियां और अटेन्शन चाहिए होता. इसलिए दिन में जब पिता कचहरी चले जाते, राजू उनके झोले से डायरी निकालते. छत पर धूप में उसके पन्ने पलटते. उनके आने से पहले जल्दी-जल्दी कुछ लाइनें याद करके उसी तरह रख देते. फिर स्कूल में अलग-अलग मौकों पर उन कविता की लाइनों को सुनाते. लोग तारीफ़ करते, राजू को मज़ा आता. उनको सबकी नकल करने का भी खूब शौक था. घर में टीवी था नहीं, इसलिए रेडियो सुनते थे. घर का माहौल ऐसा था कि पिता के सामने रेडियो पर कोई रोमैन्टिक गाना बजता, राजू असहज हो जाते. जैसा कि लगभग सभी मिडल क्लास परिवारों में होता है, आज से 40-42 साल पहले और होता रहा होगा. 

बहरहाल, रेडियो पर वो इंदिरा गांधी की आवाज़ सुनते और उसकी नक़ल करते. घर में कोई आता, पिता कहते: ''बेटा सुनाओ ज़रा इंदिरा जी कैसे बोलती हैं'' राजू सुनाते और बदले में तारीफ़ पाते. बलई काका क्या जानते थे कि उनका ये मामूली बढ़ावा राजू के अंदर कौन-सा बीज रोप रहा है. वो बीज था मिमिक्री का और हाज़िर जवाबी का. एक दफा पिता ने कहा, "तुम लोग बिजली होने के बावजूद भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे. हम लालटेन और स्ट्रीटलाइट में बैठकर पढ़ते थे." राजू तपाक से बोल उठे, "क्यों आप दिन में पढ़ाई नहीं करते थे?" पिता थोड़ा नाराज़ हुए, फिर हंसकर चले गए. उनमें बोलने का कीड़ा ढंग से पनपा, क्रिकेट कमेंट्री से. स्कूल में मैच होता, उन्हें माइक थमा दिया जाता. वो धारदार कमेंट्री करते. दरअसल उन्हें इसलिए भी बुलाया जाता था कि वो कमेंट्री के दौरान लोगों की निजी ज़िंदगी के किस्से लपेटकर सुनाते थे, जिसमें सबको खूब मज़ा आता था.

अमिताभ के रूप में राजू 

अमिताभ और धर्मेन्द्र की शोले ने राजू की लाइफ बदल दी

एक दिन स्कूल गए तो उनका क्लासमेट संतोष कक्षा में गब्बर बना फिर रहा था. महफ़िल ज़मी हुई थी, संतोष बेल्ट ज़मीन में घसीटता हुआ पूछ रहा था, ''कितने आदमी थे?'' लड़के-लड़कियां ठहाका मारकर हंस रहे थे. राजू को लगा ये क्या बवाल चीज़ है बे! उन्होंने संतोष को पकड़ा और पूछा, ये सब कहां से सीखा? संतोष ने बताया ‘शोले’ फ़िल्म से. अब राजू को फिल्मों का कुछ अतापता नहीं था. चूंकि माता जी सख्त थीं. इससे पहले कभी कोई फ़िल्म देखी ही नहीं थी. उनकी माता को लगता सिनेमा देखना जैसे शराब पीना. ये बात तब की है, जब वो आठवीं क्लास में पढ़ते थे. 

खैर, उन्होंने संतोष से पूरी जानकारी ली. पता चला टिकट खरीदकर कोई भी फ़िल्म देख सकता है. टिकट खरीदने के लिए चाहिए थे 1 रुपये 90 पैसे. किसी तरह 4-4 आने बचाकर पैसे जुटाए. एक दिन घर से निकले स्कूल के लिए, पहुंच गए सिनेमा हॉल. ‘शोले’ देखकर अमिताभ बच्चन का भयंकर असर हुआ. एक दिन पोस्टर पर ऐक्ट्रेस अमिता का नाम पढ़कर फ़िल्म देखने पहुंच गए. पूरी फ़िल्म भर अमिताभ बच्चन का इंतज़ार करते रहे. अमिताभ की मिमिक्री करने लगे. धीरे-धीरे ये बात आस-पड़ोस में फैल गई. जानने वाले लोग उनको अपने यहां पार्टीज़ में अमिताभ की मिमिक्री करने के लिए बुलाने लगे. आगे चलकर एक दौर ये भी आया, जब राजू को जूनियर अमिताभ कहा जाने लगा. पर राजू की मां को ये सब पसंद नहीं था. माता जी कहतीं, ‘अम्ताब बच्चन रोटी नाई देत हैं. सनीमा हाल जाए से दाल, चावल, रोटी नाई मिलत है.’ हालांकि बाद में जब राजू जूनियर अमिताभ के रूप में फेमस हो गए, तो मां से मज़ाक किया करते. एक जगह उन्होंने बताया:

बाद में हमलोग मजाक करते थे कि 'अब अम्ताब बच्चनै रोटी देहैं.' उन्हीं की नकल कर-कर के हमारी पेमेंट बढ़ी या उनकी डबिंग करके बहुत पैसे मिले. एक तरह से अमिताभ से पहचान बनी. अम्मा को पता नहीं था, तो चिढ़ती थीं.

अमिताभ की मिमिक्री के लिए मिले थे पहली बार 50 रुपए

लोगों को लगता है मुंबई पहुंचने से पहले राजू ने कानपुर में बहुत शोज़ किए होंगे. पर ठीक से देखें तो उन्होंने सिर्फ़ एक शो ही किया था. वो सबके यहां ऐसे ही बुलावे पर चले जाते. अमिताभ बच्चन की मिमिक्री करते. तालियां और तारीफ़े लेकर लौट आते. एक दिन उन्हें एक शो करने बुलाया गया. राजू ने अमिताभ की मिमिक्री की. पर इस बार सिर्फ़ तालियां नहीं मिलीं. ऑर्गेनाइजर ने उनकी जेब में 50 का नोट रख दिया. राजू नोट लेकर घर चले आए. दूसरे दिन वो 50 रुपए ऑर्गेनाइजर को वापस लौटाने पहुंच गए. राजू को लगा था कि ये रुपए उन्हें बस रखने के लिए दिए गए थे. फिर उन्हें पता चला ये उनका मेहनताना है. ये पहली बार था, जब राजू ने जाना, कॉमेडी और मिमिक्री से पैसे भी कमाए जा सकते हैं.

शक्तिमान में राजू श्रीवास्तव 

मूवी देखने गए राजू का भांडा फूट गया

बहरहाल, ये तो सब बहुत बाद की बाते हैं. एक दिन राजू की मां को कहीं से पता चल गया कि ये स्कूल से बंक करके सिनेमा देखने जाता है. वो उन्हें सिनेमा हॉल ढूंढ़ने पहुंच गईं. उस दिन उन्हें बहुत डांट पड़ी. पर राजू ठहरे गजोधर भैया. उन्होंने एक युक्ति निकाली. मां धार्मिक थीं, इसलिए रामलीला जाने देती थीं. वो रामलीला का पूछकर जाते, वहां से मूवी देखने निकल जाते. एक दिन इसमें भी पकड़े गए. मूवी से लौटकर आए. अम्मा ने पूछा, "आज रामलीला में क्या हुआ?" बोले,"हुआ क्या, धनुष भंग हुआ." मां शुरू हो गईं. एक बार लताड़ना शुरू किया तो रुकी ही नहीं. दरअसल राजू का भांडा फूट गया था. उस दिन बारिश हो गई थी, इसलिए रामलीला कैंसल हो गई थी, हुई ही नहीं.

मुंबई भागने का असफल प्रयास

मां को धीरे-धीरे उनके दोस्तों से ये पता चल गया था कि राजू जिनकी नक़ल करते हैं, जिन्हें छिप-छिपकर सिनेमा हॉल देखने जाते हैं, वो सब मुंबई में रहते हैं. उनको अंदेशा था, ये लड़का एक दिन मुंबई ना चला जाए. अंदेशा सही भी साबित हुआ. एक दिन राजू मुंबई के लिए घर से बिना बताए निकल लिए. उनके किसी दोस्त ने मां को बता दिया कि अभी-अभी राजू निकले हैं, उनको स्टेशन की तरफ़ जाते देखा है. माता जी घर से उनके कुछ दोस्तों के साथ निकली. कानपुर सेंट्रल के प्लेटफ़ॉर्म नंबर दो पर ट्रेन लगी थी. हर डिब्बे में राजू को खोजा जाने लगा. बड़ी मशक्कत के बाद एस थ्री में वो मिले. उन्हें घर लाया गया. फिर वही डांटने का कार्यक्रम हुआ और मामला शांत हो गया.

एक बार असफल हो चुके राजू ने मुंबई के लिए प्रयास जारी रखा. इसी ललक में वो 1981-82 के आसपास मुंबई आ गए. आ तो गए थे, काम नहीं था. उस समय मुंबई में कॉमेडियन्स की खास इज्जत नहीं थी. उनको बड़े-बड़े म्यूजिकल या डांस शोज़ में फिलर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. राजू के मुंबई पहुंचने पर जॉनी लीवर सरीखे लोगों ने उनकी खूब मदद की. हालांकि ऐसा कहा जाता है राजू ने ऑटो रिक्शा भी चलाया. पर छोटे-मोटे कॉमेडी शोज़ जारी रखे. उसी दौरान उन्हें एक कॉमेडी शो 'टी टाइम मनोरंजन' का पता चला. ऑडीशन दिया, सेलेक्ट हो गए. इस शो में उनके साथ स्मृति ईरानी और सुरेश मेनन समेत उस दौर के कई नए चेहरे शामिल हुए थे.

एक ऑडियो कैसेट ने राजू को मशहूर कर दिया

खैर, एक बार राजू श्रीवास्तव अनुराधा पौडवाल के शो में स्टैन्ड अप के लिए गए थे. वहां गुलशन कुमार भी आए हुए थे. उन्हें राजू का काम खूब पसंद आया. इसके बाद टी-सीरीज़ के बैनर तले उन्होंने कॉमेडी स्केचेज की ऑडियो कैसेट निकालने का फैसला किया. 'हंसना मना है' नाम से एक कैसेट आई. इसमें उनके साथ जॉनी लीवर, सुदेश भोसले और सुरेन्द्र शर्मा जैसे कॉमेडियन्स का काम भी था. इस कैसेट के आने के बाद राजू काफ़ी मशहूर हो गए. उनको लोग चेहरे नहीं, पर आवाज़ से जानते थे. कई बार उन्होंने ऑटो में अपनी ऑडियो टेप सुनकर ड्राइवर से कहा, "ये क्या बजा रहे हो? कोई गाना बजाओ." ड्राइवर उनसे कहता, "अरे, सुनिए तो, अभी आगे मज़ा आएगा."

वाह तेरा क्या कहना में राजू

एक शो और कॉमेडी पटल पर छा गए राजू

ये सब हो रहा था, इसी दौरान वो फिल्मों में भी छोटे-मोटे रोल करने लगे थे. उनकी पहली फ़िल्म थी, 1988 में आई अनिल कपूर की 'तेज़ाब'. फिर 'मैंने प्यार किया', 'बाजीगर', 'आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया', ‘बिग ब्रदर’ और ‘बॉम्बे टू गोवा’ जैसी तमाम फिल्मों में काम किया. वो काम तो कर रहे थे, पर जैसी प्रसिद्धि उन्हें चाहिए थी, मिल नहीं रही थी. हम आज जिन राजू श्रीवास्तव को जानते हैं, वो पहचान उन्हें फिल्मों से नहीं टीवी से मिली. पहले तो उन्होंने 'शक्तिमान' में धुरंधर सिंह का रोल किया. इससे उन्हें लोग थोड़ा-थोड़ा जानने लगे. भारत के घर-घर में उन्हें पहचान दिलाई 2005 में आए शो 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' ने. ये एक स्टैन्डअप कॉमेडी शो था. राजू इसके सेकंड रनर अप रहे. पहले वो इस शो में जाना नहीं चाहते थे. क्यों नहीं जाना चाहते थे? अभी बताते हैं. उससे पहले एक छोटा-सा और किस्सा सुन लीजिए.

मिथुन की बिना कोई फ़िल्म देखे कर डाली मिमिक्री

जब राजू मुंबई पहुंचे तो उन्होंने एक ऑर्केस्ट्रा ग्रुप जॉइन किया. उस दौर में मुंबई में कॉमेडी ग्रुप्स को ऑर्केस्ट्रा ग्रुप्स कहा जाता था. वो जिस ग्रुप में शामिल हुए, इस ग्रुप को मशहूर अदाकारा और प्रेजेंटर तबस्सुम लीड किया करती थी. इसमें उनके साथ जॉनी लीवर और सुदेश भोसले जैसे कॉमेडियन्स थे. उनके ग्रुप की पूरी बस निकलती थी और वो लोग एक से डेढ़ महीने तक घूम-घूमकर शोज़ किया करते थे. ऐसे ही एक टूर पर वो लोग निकले. इसी दौरान मिथुन चक्रवर्ती की ‘डिस्को डांसर रिलीज़’ हुई, वो फेमस हो गए. अब होता ये कि राजू स्टेज पर जाकर अलग-अलग ऐक्टर्स की मिमिक्री करते, जैसे: अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और धर्मेन्द्र. पर भीड़ से आवाज़ आती, "मिथुन...मिथुन का करो कुछ." कई बार ऐसा हुआ. ग्रुप में से किसी ने मिथुन को इससे पहले न देखा था और न ही आवाज़ सुनी थी. वो कैसे मिमिक्री कर देते. फिर जिस बस से वो गए थे, उसके ड्राइवर ने मिथुन की फ़िल्म देखी थी. उससे राजू ने सीखा और सीखककर मिथुन की नक़ल की. उन्हें लगा कि मिथुन की आवाज़ तक सुनी नहीं है, लोग पसंद ही नहीं करेंगे. पर बिना कोई फ़िल्म देखे, राजू ने जो किया वो हिट हो गया. वंस मोर की आवाज़ें आने लगी. ये है राजू का जलवा.

जिस शो ने पहचान दी, उसे ही छोड़ आए थे राजू

बहरहाल, हम ऊपर एक किस्सा छोड़कर आए थे और वो राजू की जिंदगी का अहम पड़ाव और अहम किस्सा भी है. दरअसल जब राजू को 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' के लिए कॉल आई तो उनको लगा, एक जज के तौर पर उन्हें बुलाया जा रहा है. क्योंकि उस समय तक वो कॉमेडियन के तौर पर काफ़ी मशहूर हो चुके थे. जब राजू पहुंचे तो उन्हें पता चला, ऑडीशन देना है और एक पार्टीसिपेंट के तौर पर उन्हें बुलाया गया है. वो वहां से लौट आए. फिर उसके डायरेक्टर पंकज सारस्वत ने उन्हें फोन किया कि एक एपिसोड कर लो. सही लगे तो आगे करना. 

राजू फिर पहुंचे. अब वहां जितने पार्टीसिपेंट थे, सब राजू को पहले से ही जानते थे. उसमें सुनील पॉल, एहसान कुरैशी, भगवंत मान और दूसरे लोग थे. वो राजू के पास आए. बोले, आप तो जज बनकर आए होंगे. किसी ने कैमरा निकाला कि यहां जीते या हारें, राजू के साथ फोटो खिंचा लें, तो मुंबई आना सफल हो जाए. कई कॉमेडियन्स तो राजू को अपना आदर्श मानते थे. राजू फिर लौट आए. ऐसे करके वो तीन-चार बार शो से लौट आए. 

राजू का ‘हां पहले ये कर लो’ वाला मीम खूब मशहूर है

अब की बार पंकज सारस्वत उनके घर आ गए. उन्हें समझाया और अमिताभ बच्चन के शो केबीसी का हवाला दिया. दरअसल उस समय अमिताभ की काफ़ी आलोचना हुई थी कि इतना बड़ा स्टार टीवी कर रहा है. तब जाकर राजू माने और एक एपिसोड शूट किया. उसका जब प्रोमो आया, तो कई बड़े ऑर्गेनाइजर्स ने उनको फोन करके कहा, "एक शो का प्रोमो आया है, उसमें तुम्हारे जैसा एक लड़का है. तुम तो नहीं हो?" राजू कुछ बोल पाते उससे पहले ही उनसे कहा गया कि उसमें सब नए लड़के हैं, वहां तुम नहीं जाना. फिर राजू का मन ठिठक गया. मगर जब पहला एपिसोड हिट हो गया, तो उन्होंने शो करने की ठानी. उस शो के बाद राजू ऐसा मशहूर हुए कि क्या कहने. उनके गजोधर के किरदार ने तो आग लगा दी. दरअसल ये किरदार उन्होंने उठाया था, अपने ननिहाल से. वहां एक गजोधर नाम के बाल काटने वाले थे. वो बाल काटते हुए मस्त एक से एक किस्से सुनाते. जब राजू को मुंबई में ऐसे किसी किरदार की ज़रूरत पड़ी, तो उन्होंने उसी को चुना. राजू ने तो चुना सो चुना. उस किरदार ने राजू को ऐसा चुना कि वो गजोधर भैया ही हो गए.

तो ये थी हम सबके प्यारे गजोधर भैया की कहानी. आपको कैसी लगी? कमेन्ट में हमें ज़रूर बताएं.