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नसीरुद्दीन शाह को कॉलेज फीस के लिए चाहिए थे 600 रुपए, जेब में पांच रुपए भी नहीं थे, आगे क्या हुआ?

उन्होंने ये भी बताया उनके एक्टिंग गुरु ने उन्हें गद्दार कह डाला था.

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नसीर बताते हैं कि उनके भाइयों ने उनकी काफी मदद की.

Naseeruddin Shah के पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा एक्टर बने. नसीर अपनी ज़िद पर कायम थे. जब लगा कि अब्बा नहीं मानेंगे तो कच्ची उम्र में घर से भाग गए. एक महीना मुंबई रहे. स्ट्रगल किया. राजेन्द्र कुमार की फिल्म ‘अमन’ में पहली बार कैमरे का सामना किया. बस एक झलक भर के लिए दिखे. घर पर आकर बोल दिया कि लंबा-चौड़ा सीन था. फिल्म वालों ने काट दिया. खैर नसीर बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता को कई मौकों पर निराश किया. कॉलेज में लड़ाई-झगड़े करते. बिन बताए शादी कर ली. 

पिता सब भूल-चूक माफ कर चुके थे. इस पॉइंट पर नसीर नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ रहे थे. उनके एक्टिंग गुरु इब्राहीम अलकाज़ी चाहते थे कि वो डायरेक्शन की तरफ आ जाएं. अलकाज़ी वही शख्स थे जिन्होंने ओम पुरी, नसीर और सुरेखा सीकरी जैसे लोगों को एक्टिंग सिखाई. नसीर ने ‘द लल्लनटॉप’ से की हालिया बातचीत में बताया कि अलकाज़ी उन्हें डायरेक्शन की तरफ खींचना चाहते थे. लेकिन वो एक्टर बनना चाहते थे. ज़िद कर के एक्टिंग कोर्स में ही रहे. इस बात पर नाराज़ होकर अलकाज़ी ने उन्हें गद्दार कहा था. नसीर आगे बताते हैं,

कोर्स खत्म होने को आया तो मुझे ख़याल आया कि अब मैं क्या करूंगा. क्योंकि वो (अलकाज़ी) ख़फा थे तो मुझे रेपरटरी कंपनी में लेने नहीं वाले थे. वो उन्होंने साफ कर दी बात. युववाणी के पंद्रह रुपये मिलते थे टीवी पर, एक ब्लैक एंड वाइट चैनल था. जिस पर कभी-कभी नाटक भी हो जाया करते थे. रेडियो पर दस रुपये या पंद्रह रुपये का चैक लेकर ऑल इंडिया रेडियो से हम रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जाते थे. वो बिल्कुल सामने था AIR के. और मेरे सामने जो बंदा है वो 20 हजार रुपये का चैक कैश करा रहा है, और वहीं मैं कह रहा होता था कि पंद्रह रुपये का चैक है. तो मुझे ख़याल आया कि शायद फिल्म इंस्टिट्यूट जाना चाहिए. शायद कुछ काम मिले, कम से कम पेट तो भर सकूंगा. भले ही दो साल और.

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एक प्ले के दौरान ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह. 

ये बात नसीर के पिता को मंज़ूर नहीं थी. उनका कहना था कि दो साल मैं तुम्हें सपोर्ट नहीं करने वाला. तुम को जो अच्छा लगे वो करो. नसीर ने फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के लिए अप्लाई किया. उनका सिलेक्शन भी हो गया. आगे बताते हैं,      

मेरे भाइयों ने मेरी मदद की दो साल. बाबा ने नहीं की. लेकिन जब मेरा दाखिला हुआ फिल्म इंस्टिट्यूट में तो 600 रुपये की जरूरत थी एडमिशन फीस के लिए, वो मेरे पास थे नहीं, पांच रुपये नहीं थे मेरे पास. मैंने तार भेजा उनको कि मुझे छह हजार रुपये की सख्त जरूरत है फौरन. और मैं उम्मीद कर रहा था कि मना कर देंगे. लेकिन अगले दिन टेलीग्राफिक मनी ऑर्डर से वो 600 रुपये उन्होंने भेजे, पता नहीं कहां से उन्होंने इकट्ठे किए. 

नसीर बताते हैं कि एक तरफ जहां उनके पिता उनसे नाराज़ रहते थे. तो दूसरी तरफ उनके दिल में ऐसी दयालुता भी थी. नसीर के कॉलेज का एडमिशन लगभग नामुमकिन लग रहा था. ऐसे में उनके पिता ही सबसे पहले मदद को आगे आए.

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