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वो 7 क्रांतिकारी भारतीय फिल्में, जिन्हें इंडिया में बैन कर दिया गया

इनमें से एक फिल्म के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर गुड़गांव स्थित मारुति के कारखाने में जलवा दिए गए थे.

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सभी फिल्में है बहुत कमाल की

5 मई को एक फिल्म आई है 'दी केरला स्टोरी'. इसे बंगाल सरकार ने बैन कर दिया. माने फिल्म को बंगाल के थिएटर्स में नहीं देखा जा सकता. पर क्या ये पहला मौका है, जब किसी भारतीय फिल्म को बैन किया गया, या उसे थिएटर में दिखाने से रोक लगाई गई? जवाब होगा नहीं. इससे पहले भी तमाम फिल्में रहीं, जिन्हें पूरे भारत में बैन किया गया या फिर किसी राज्य में प्रतिबंध लगाया गया. आइए खेला शुरू करते हैं.

1) किस्सा कुर्सी का

डायरेक्टर: अमृता नाहटा
कास्ट: राज किरण, सुरेखा सीकरी, शबाना आज़मी

फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ 1975 में रिलीज होने वाली थी. इमरजेंसी के दौर में हर फिल्म को पहले सरकार देखती थी और बाद में रिलीज करती थी. इसे देखने के बाद उस वक़्त की इंदिरा सरकार को लगा, ये उनके मारुति कार प्रोजेक्ट का मखौल उड़ा रही है. सरकार की नीतियों को बदनाम कर रही है. दरअसल फिल्म में राजनीतिक पार्टी का चुनाव चिह्न ‘जनता की कार’ था. उस वक्त मारुति कार संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जिसे जनता की कार बताया गया था. इसके प्रिंट जब्त कर लिए गए. बाद में ये भी आरोप लगा कि प्रिंट मुंबई से मंगवाकर गुड़गांव स्थित मारुति कारखाने में जलवा दिए गए. इसके लिए संजय गांधी को जेल भी जाना पड़ा. जिस प्रिंट को जलाकर नष्ट कर दिया गया था, उस फिल्म में राज बब्बर लीड रोल में थे. चूंकि फिल्म के ओरिजनल प्रिंट्स ही जलाकर नष्ट कर दिए गए थे, इसलिए इमरजेंसी हटने के बाद 1977 में दोबारा फिल्म बनी. हालांकि दूसरी बार बनी फिल्म में राज बब्बर ने काम नहीं किया. फिल्म में राज किरण, सुरेखा सीकरी और शबाना आज़मी मुख्य भूमिकाओं में थे.

2) आंधी

डायरेक्टर: गुलज़ार
कास्ट: संजीव कुमार, सुचित्रा सेन

गुलज़ार की फिल्म 'आंधी' भी 1975 में रिलीज हुई थी. पर रिलीज के कुछ दिनों बाद इसे बैन कर दिया गया. कहा गया ये फिल्म इंदिरा गांधी पर बनी है और उन्हें गलत तरीके से फिल्म में दिखाया गया है. उस समय दक्षिण भारत में एक पोस्टर लगा दिया गया था. इस पर लिखा था- 'अपनी प्राइम मिनिस्टर को स्क्रीन पर देखें.' एक फिल्म मैगजीन में लिखा गया- 'आजाद भारत की महान महिला राजनेता की कहानी देखिए.' इसके बाद फिल्म विवादों में आई. कहा जाता है विवाद के बाद इंदिरा गांधी के स्टाफ ने मूवी देखी और रिलीज की इजाज़त भी दे दी. लेकिन रिलीज के 20 हफ्ते बाद फिल्म को बैन कर दिया गया. तब गुलज़ार से कहा गया कि इसमें ड्रिंकिंग और स्मोकिंग वाले सीन को फिर से शूट किया जाए. फिल्म फरवरी में रिलीज हुई और जून में इमरजेंसी लग गई. इस कारण से 1977 तक ये बैन रही. फिर जब जनता पार्टी की सरकार बनी, इसे दोबारा रिलीज किया गया. ये सुचित्रा सेन की आखिरी हिंदी फिल्म थी.

3) बैंडिट क्वीन

डायरेक्टर: शेखर कपूर 
कास्ट: सीमा बिस्वास, निर्मल पांडे

शेखर कपूर की एक भयंकर क्रांतिकारी फिल्म 'बैंडिट क्वीन' को भी बैन का सामना करना पड़ा. ये फूलन देवी की ज़िंदगी पर आधारित थी. कहते हैं उस समय फूलन देवी ने इसकी सटीकता पर सवाल उठाया और कहा कि ये फिल्म अगर नहीं हटाई गई, तो वो थिएटर के बाहर आत्मदाह कर लेंगी. खैर वो मामला तो सुलट गया था. फिल्म पहले थिएटर में रिलीज हुई. बाद में महिलाओं के खिलाफ दिखाई गई यौनिक हिंसा के चलते इसे थिएटर में दिखाने पर रोक लगा दी गई. सीमा बिस्वास ने फिल्म में फूलन देवी की भूमिका निभाई थी. इसे बेस्ट फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला. भारत की तरफ से इसे ऑस्कर में भी भेजा गया.

4) ब्लैक फ्राइडे

डायरेक्टर: अनुराग कश्यप
कास्ट: पवन मल्होत्रा, केके मेनन, आदित्य श्रीवास्तव

'ब्लैक फ्राइडे' अनुराग कश्यप की क्रिटिकली अक्लेम्ड फिल्म है. इस फिल्म में मुंबई ब्लास्ट होने से पहले की प्लानिंग को दिखाया गया था. ये हुसैन जैदी की किताब 'ब्लैक फ्राइडे: द ट्रू स्टोरी' पर आधारित है. इसे पहली बार 2004 में लोकैर्नो फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीन किया गया था. इसके बाद फिल्म को भारत में रिलीज किया जाना था. ये पहुंची सेंसर बोर्ड के पास और इसे दो साल तक रिलीज नहीं होने दिया गया. इस पर बैन लगा रहा. हालांकि, बाद में बैन हटा दिया गया और 2007 में ये भारत में रिलीज हुई. ऐसा कहा जा रहा था कि फिल्म 1993 ब्लास्ट की असली कहानियों पर आधारित थी, इसलिए सेंसर बोर्ड इसको लेकर बहुत सतर्क था. इसमें कॉंग्रेस सरकार की भूमिका भी बताई गई. सेंसर ने 'ब्लैक फ्राइडे' को इस शर्त पर सर्टिफिकेट दिया कि इसमें एक डिसक्लेमर जोड़ा जाए. इसमें लिखा जाए कि फिल्म में दिखाए गए दृश्यों में किसी व्यक्ति पर कोई आरोप नहीं लगाया जा रहा है. उन्हें दोषी या निर्दोष नहीं कहा जा रहा है. इसमें पवन मल्होत्रा, केके मेनन और आदित्य श्रीवास्तव मुख्य भूमिकाओं में थे.

5) पांच

डायरेक्टर: अनुराग कश्यप
कास्ट: केके मेनन, आदित्य श्रीवास्तव

अनुराग कश्यप की एक और फिल्म 'पांच', जो सेंसर बोर्ड के चक्कर में बैन रही. इसे सिनेमाघर भी नहीं नसीब हुए. ये अनुराग कश्यप की पहली फिल्म थी. इसे भी 'ब्लैक फ्राइडे' की तरह सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट नहीं दिया. कहा गया कि इसमें हत्या, सेक्स और ड्रग्स का महिमामंडन किया गया है. इसे बहुत ज़्यादा बढ़ाचढ़ाकर दिखाया गया है. इसलिए फिल्म बैन की गई. पर 2001 में इसे सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया. पर निर्माता और वितरकों की किसी समस्या के चलते 'पांच' थिएटर में रिलीज नहीं हो सकी. बाकी पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर फिल्म मौजूद है. 'पांच' पुणे में हुए जोशी-अभ्यंकर सीरियल मर्डर केस पर आधारित है. इस घटना के एक अभियुक्त मुन्नवर शाह ने इसे किताबी शक्ल दी. मराठी भाषा की इस किताब का नाम था 'यस, आय एम गिल्टी'. ऐसा माना जाता है कि फिल्म इसी पर बेस्ड है. इसमें केके मेनन और आदित्य श्रीवास्तव मुख्य भूमिकाओं में हैं.

6) फिराक़

डायरेक्टर: नंदिता दास
कास्ट: नसीरुद्दीन शाह, संजय सूरी, दीप्ति नवल, रघुवीर यादव

नंदिता दास की पहली फिल्म 'फिराक़' को 2009 में भारत में रिलीज किया गया था. इससे पहले इसे TIFF में दिखाया जा चुका था. ये 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित थी. ये दंगों के बाद की कहानी है. इसमें नसीरुद्दीन शाह, संजय सूरी, दीप्ति नवल और रघुवीर यादव मुख्य भूमिकाओं में हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ये फिल्म गुजरात में उस समय बैन की गई. ऐसा भी कहा गया कि वितरक ज़्यादा पैसे मांग रहे हैं, इसलिए फिल्म वहां के सिनेमाघरों में नहीं रिलीज हुई. पर नंदिता दास इससे इनकार करती हैं. इससे पहले भी 2002 दंगों पर बनी एक और फिल्म 'परज़ानिया' को गुजरात में थिएटर मालिकों ने दिखाने से मना कर दिया था. इसका कारण बजरंग दल की धमकियों को बताया गया था.

7) अनफ़्रीडम

डायरेक्टर: राज अमित कुमार
कास्ट: आदिल हुसैन, प्रीति गुप्ता, विक्टर बनर्जी

लेस्बियन और आतंकी ऐंगल लिए फिल्म 'अनफ़्रीडम' को भारत में 2014 में बैन कर दिया गया. इस फिल्म को कभी थिएटर में नहीं रिलीज किया गया. ये सेंसर बोर्ड की छन्नी से नहीं गुज़र पाई. सेंसर ने इसे सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया. कारण बताया गया सेम सेक्स रिलेशनशिप और धार्मिक कट्टरवाद. सेंसर बोर्ड ने फिल्म से तमाम सीन उड़ाने को कहा. पर डायरेक्टर राज अमित कुमार नहीं माने. वो इसके खिलाफ भारत सरकार के सूचना और प्रसारण अपीलीय ट्रीब्यूनल गए. पर वहां से उन्हें निराशा हाथ लगी और फिल्म को पूरी तरह से बैन कर दिया गया. इसमें आदिल हुसैन, प्रीति गुप्ता और विक्टर बनर्जी मुख्य भूमिकाओं में थे. 

नेट पर खोजेंगे तो आपको बैन मूवीज की लिस्ट में और कई फिल्में मिलेंगी. जैसे दीपा मेहता की ‘फायर’. पर ऐसी फिल्मों को आधिकारिक रूप से बैन नहीं किया गया. इन्हें थिएटर मालिकों ने रिलीज करने से इनकार किया. या फिर कुछ अन्य समस्याएं रहीं. पर इनके रिलीज न हो पाने में कोई सरकारी संस्था नहीं शामिल रही.

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