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सेंसेक्स और निफ्टी तो समझ आता है, लेकिन ये 'बुल मार्केट' और 'बियर मार्केट' क्या होता है?

पूरा देश लॉकडाउन हो गया, लेकिन स्टॉक मार्केट क्यों खुला है?

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टीवी पर जब भी स्टॉक एक्सचेंज का जिक्र होता है ये दोनों चीजें जरूर स्क्रीन पर आती हैं. BSE की बिल्डिंग और बुल.
पूरी दुनिया कोरोना वायरस के खौफ में है. 24 मार्च, 2020 को आधी रात से हमारे देश में हर जगह लॉकडाउन कर दिया गया है, ताकि कोरोना वायरस का प्रसार न हो सके. सड़कों पर सन्नाटा है. रेलवे, मेट्रो, फैक्ट्री, कमर्शियल प्लेस, सब बंद हैं. कुल मिलाकर सारा कारोबार बंद है. इस वायरस के प्रभाव से शेयर मार्केट अछूता नहीं है. शेयर मार्केट में निवेश करने वालों को आशंका है कि अगर स्थिति संभलती नहीं है, तो देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है. यही कारण है कि 23 मार्च को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 1135 अंकों की गिरावट के बाद 7610 पर बंद हुआ. निफ्टी 13 प्रतिशत नीचे आया, जो एक दिन में अब तक की सबसे ज्यादा गिरावट है. 8 अप्रैल, 2016 के बाद ये निफ्टी का सबसे निचला स्तर भी था. दूसरी ओर, बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स 3935 अंक नीचे गिरकर 25,981 पर बंद हुआ. ये 26 दिसंबर, 2016 के बाद सबसे निचला स्तर है.
इतना सब होने के बाद शेयर बाजार में हड़कंप मच गया. इस संकट से उबरने के उपाय खोजे जाने लगे. कोई कहने लगा कि शॉर्ट सेल पर बैन लगा देना चाहिए. किसी ने कहा कि ये 'बियर मार्केट' है. 'लोअर सर्किट' या 'सर्किट ब्रेकर' लगाने की भी बात कही जाने लगी. लेकिन मुद्दे की बात ये है कि ऊपर जिन शब्दों का जिक्र हुआ है, अधिकतर लोग उसके बारे में जानते ही नहीं है. ऐसे में उन खास टर्म के मतलब आसान भाषा में समझ लीजिए. बुल और बियर मार्केट क्या है?
बुल यानी बैल. बियर यानी भालू. अखबार के बिजनेस वाले पन्ने पर इन दोनों जानवरों की तस्वीरें अक्सर दिख जाती हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि इन दोनों जानवरों का स्टॉक मार्केट में क्या काम होता है?
दरअसल, इन दोनों को एक सिंबल की तरह यूज किया जाता है. अगर मार्केट में तेजी चल रही है, तो ये बुल मार्केट है. अगर मार्केट में गिरावट दर्ज हो रही है, तो ये बियर मार्केट है. अगर किसी इन्वेस्टर को लगता है कि कोई स्टॉक ऊपर जाएगा, तो इसका मतलब है कि वो इन्वेस्टर उस स्टॉक पर बुलिश है. वहीं इसके ठीक उलट, अगर किसी इन्वेस्टर को लगता है फलां स्टॉक गिरेगा, तो इसका मतलब है कि वो उस स्टॉक पर बियरिश है. कुल मिलाकर एक लाइन में कहें, तो बुल और बियर स्टॉक मार्केट की दिशा बताते हैं. क्या ये बियर मार्केट का दौर है?
शेयर मार्केट की स्थिति देखते हुए लोगों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि हम बियर मार्केट की तरफ बढ़ रहे हैं. क्या वाकई ऐसा है? हमने 'इंडिया टुडे' मैग्जीन के एडिटर अंशुमान तिवारी से ये सवाल पूछा. उन्होंने कहा,
यूरोप में बियर मार्केट की आहट शुरू हो गई है. अमेरिका अभी थोड़ा-सा बुल और बियर के बीच वाले फेज में है. इंडिया भी बियर मार्केट की तरफ बढ़ रहा है. निफ्टी उस स्तर तक चला गया था जहां वो नोटबंदी के समय में था. जब मंदड़ियों का बाजार होता है, जब बाजार पर बेचने वाले ज्यादा हावी हो जाते हैं, खरीदने वाले कम रहते हैं, तो ये बियर मार्केट होता है. इस समय बाजार में लगभग यही स्थिति है. एक शेयर को बेचने वाले 100 हैं, खरीदने वाले 25 हैं.
23 मार्च को दोनों प्रमुख सूचकांकों सेंसेक्स और निफ्टी का हाल (PTI)
23 मार्च को दोनों प्रमुख सूचकांकों सेंसेक्स और निफ्टी का हाल (PTI)

शॉर्ट सेलिंग को बैन करने की बात क्यों हो रही है?
सबसे पहले शॉर्ट सेलिंग का मतलब समझिए. स्टॉक मार्केट में लाभ कमाने के लिए जरूरी नहीं है कि जब भाव बढ़े, तभी आपको लाभ हो. स्टॉक का भाव गिरने पर भी आप लाभ कमा सकते हैं. इसके लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती है, उसे ही शॉर्ट सेलिंग कहते हैं. शॉर्ट सेलिंग में आप पहले ही मार्केट के गिरने का अनुमान लगा लेते हैं, फिर आप वो शेयर बेच लेते हैं, जो आपके पास होते ही नहीं हैं. जब वो सौदा पूरा करने का समय आता है, तब आप सौदा खरीद लेते हैं.
इसे ऐसे समझिए. आपको पता चला कि किसी कंपनी के भाव में गिरावट होने वाली है. आपने उस कंपनी के 10 शेयर 50 रुपए के भाव से बेच दिए. आपको मिले 500 रुपए. आपके बेचने के बाद, जैसा आपने अनुमान लगाया था, एक शेयर के दाम में पांच रुपए की गिरावट आती है. अब एक शेयर का भाव है 45 रुपए, और आपने 450 रुपए में दस शेयर खरीद लिए. आपको 50 रुपए का फायदा हो गया. हालांकि ये जरूरी नहीं है कि शॉर्ट सेलिंग में हर बार आपका अनुमान सही ही निकले. कई बार शेयर के दाम कम होने की जगह बढ़ जाते हैं और निवेशक को नुकसान उठाना पड़ जाता है.
अब आते हैं मुद्दे पर. इस पर बैन लगाने की बात क्यों हो रही है? अंशुमान तिवारी बताते हैं,
जब आपको मालूम है कि आने वाले समय में मार्केट गिरेगा, तो आप एडवांस में ही आज के रेट पर बेचने के लिए खड़े हो जाते हैं, क्योंकि आपको पता है कि कल बाजार और गिर जाएगा. शॉर्ट सेलिंग इस बात का संकेत देता है कि आने वाले समय में कितनी गिरावट होने वाली है. ये चर्चा जरूर चल रही है कि शॉर्ट सेलिंग को बैन कर दिया जाए. लेकिन ऐसा होगा नहीं, क्योंकि इसको बैन करने का मतलब है कि आप शेयर बाजार में गेम के जो नियम हैं, आप उन्हें बदल रहे हैं. कई देशों ने कुछ कैटेगरी में शॉर्ट सेलिंग बैन की है. सेबी भी ऐसा ही कर सकती है. बाकी शॉर्ट सेलिंग पर बैन बाजार की ट्रांसपरेंसी के हिसाब से ठीक नहीं मानी जाती.
क्या बंद हो सकता है शेयर मार्केट?
कोरोना वायरस की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लागू हो चुका है. सारी दुकानें बंद हैं. मार्केट बंद हैं. केवल आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों को ही घर से बाहर निकलने की छूट है. लेकिन स्टॉक एक्सचेंज में काम चालू है. ऐसे में एक सवाल ये भी है कि क्या शेयर मार्केट को भी कुछ दिन के लिए बंद किया जा सकता है? ट्विटर पर बाकायदा एक ट्रेंड चलाकर इस तरह की मांग भी की गई.
शेयर ब्रोकर्स के संगठन एन्मी ने भी 24 मार्च को सेबी को पत्र लिखकर दो दिन के लिए मार्केट बंद करने की मांग की. लेकिन सरकार इसे बंद करने के मूड में नहीं दिख रही. 23 मार्च को केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के सचिवों से शेयर ब्रोकिंग और डिपॉजिटरी सर्विसेज को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल करने को कहा, ताकि इनसे जुड़े लोगों को अपने ऑफिस तक पहुंचने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो. अंशुमान तिवारी कहते हैं,
सरकार भी नहीं चाहती कि स्टॉक एक्सचेंज बंद हो. 2008 की मंदी में मार्केट 60 प्रतिशत तक गिर गए गए थे. इसके बावजूद मार्केट बंद नहीं हुए थे. स्टॉक एक्सचेंज में क्राइसिस के समय नियम नहीं बदलने चाहिए. क्योंकि इससे क्रेडिबिलिटी खत्म होती है. जब मार्केट गिर रहा था, तो आपने लोगों को निकलने का मौका ही नहीं दिया. जो लोग मार्केट बंद कराने की वकालत कर रहे थे या ट्विटर पर ट्रेंड करा रहे थे, वो दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे. पता कैसे चलेगा कि लोग सोच क्या रहे हैं? बाजार ही तो बताता है कि लोगों का मूड क्या है, लोग सोच क्या रहे हैं.
2008 से कितना अलग है मौजूदा संकट?
2008 की जो मंदी थी, वो फाइनेंशियल सिस्टम से निकली थी. उसका असर ये हुआ कि बैंक डूब गए. कुछ देशों की अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई. ये सब फाइनेंशियल सिस्टम में मंदी की वजह से हो रहा था. रियल इकॉनमी यानी वास्तविक अर्थव्यवस्था इस मंदी से बची हुई थी. रियल इकॉनमी में लोग खर्च कर रहे थे. जीडीपी बढ़ रही थी. चूंकि फाइनेंशियल सिस्टम, रियल इकॉनमी को पूंजी देता है. उसके लिए मार्केट देता है. इसलिए मंदी का असर रियल इकॉनमी पर भी पड़ा. लेकिन सरकारों ने इससे उबरने के उपाय किए. बैंकों में ज्यादा पूंजी डाली गई. सेंट्रल बैंक ने बड़े पैमाने पर ब्याज दरें कम कीं. बैंकों को पुनर्गठित किया गया. जो बीमार बैंक थे, उन्हें मर्ज कर दिया गया. इसके बाद छह-आठ महीने में अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर आ गई.
स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव पर नजर गड़ाए बैठे ब्रोकर्स की सांकेतिक तस्वीर.
स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव पर नजर गड़ाए बैठे ब्रोकर्स (सांकेतिक तस्वीर)


मौजूद संकट इसलिए अलग है, क्योंकि ये रियल इकॉनमी से उठ रहा है. रियल इकॉनमी यानी खपत, निवेश, रोजगार, उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री आदि. इस बार मंदी यहां से उठ रही है. यहां कारोबार बंद हो रहे हैं. पूरे देश में लॉकडाउन है. हर कंपनी का प्रोडक्शन बंद है. फाइनेंशियल सिस्टम हमेशा रियल इकॉनमी को फॉलो करता है. इसलिए ये संकट वहां भी पहुंच जाएगा, क्योंकि डिफॉल्ट शुरू हो जाएंगे. लोग टैक्स नहीं चुका पाएंगे. कर्ज नहीं चुका पाएंगे.
मतलब, अगले सात-आठ महीने तक मार्केट में डिमांड आती नहीं दिख रही है.
बीएसई का बुल, जिसे मार्केट में तेजी का प्रतीक माना जाता है. (पीटीआई)
बीएसई का बुल, जिसे मार्केट में तेजी का प्रतीक माना जाता है. (पीटीआई)


मंदी की 'आग में घी' है कच्चा तेल
इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में मंदी है. कच्चे तेल की कीमतें बुरी तरह टूट रही हैं. तेल मंदी का गहरा असर दुनिया की कई सारी अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है, क्योंकि पूरा मिडिल ईस्ट, नॉर्थ अफ्रीका, रूस और अमेरिका की अर्थव्यवस्था काफी हद तक तेल पर निर्भर है. इन देशों में मंदी केवल कोरोना की वजह से ही नहीं, बल्कि तेल की कीमतें गिरने की वजह से भी आएगी.
आगे क्या होगा?
मौजूदा संकट से उबरने के लिए सरकारें क्या कर रही हैं? ये कितना लंबा हो सकता है? इस संकट से उबरने के उपायों के सवाल पर अंशुमान तिवारी कहते हैं,
अभी तो ये सिर्फ अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये मंदी कितनी गहरी है. कई देशों ने बेलआउट पैकज की घोषणा कर दी है. लेकिन धीरे-धीरे हर कोई ये स्वीकार कर रहा है कि हम एक लंबी मंदी में घुस रहे हैं. ये लंबी और गहरी सुरंग है. इससे उबरने की कोशिशें तो तब शुरू होंगी, जब हम कोरोना के प्रभाव से बाहर निकलेंगे. अभी तो सिर्फ नुकसान को सीमित करने की कोशिश चल रही है. ये इस तरह का संकट है, जिसकी किसी को भी आशंका नहीं थी.



सेंसेक्स, निफ्टी और शेयर बाजार. हमारी रोज़ाना की डिक्शनरी का हिस्सा हैं. मगर हम में से ज़्यादातर लोग इनके बारे में कुछ जानते नहीं. अख़बार का बिजनेस वाला पन्ना छोड़ आगे बढ़ जाते हैं, जबकि पैसा-रुपया तो सबके मतलब की बात है. हमें लगा, कहीं ऐसा तो नहीं कि भारी-भरकम बातों के कारण लोग इन्हें समझने में कन्नी काटते हों. अगर आपने भी आजतक कन्नी काटा है, तो आज मत काटिए, क्योंकि बिल्कुल आसान भाषा में हमने आपको समझाने की कोशिश की है. पढ़िए-
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