गद्दाफ़ी तख़्तापलट के जरिए सत्ता में आए थे. शुरुआत से ही वेस्टर्न कंपनियों के ख़िलाफ़ थे. लीबिया में अमेरिकी दखल को उन्होंने खत्म कर दिया था. इस वजह से दोनों देशों में अदावत चल रही थी. अमेरिका ने क्लब पर हुए हमले का जवाब दिया.
42 सालों तक लीबिया पर राज करने वाले गद्दाफ़ी का अंत अरब क्रांति में हुआ. अमेरिका ने लीबिया में गद्दाफ़ी के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक हुई. हमले में गद्दाफ़ी तो बच गए, लेकिन उनकी एक बेटी की मौत हो गई. इस सर्जिकल स्ट्राइक का बदला लेने की प्लानिंग हुई. गद्दाफ़ी ने अपने प्लान को अमलीज़ामा पहनाया, ठीक दो साल बाद. जब साल आया, 1988 का. और तारीख़ 21 दिसंबर की. लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट से PAN AM Flight संख्या 103 ने उड़ान भरी. प्लेन में थे 243 यात्री. जबकि 16 क्रू मेंबर्स भी उसमें मौजूद थे. कुल 259 लोग. इनमें से 189 अमेरिका के थे. ये प्लेन फ़्रैंकफर्ट से लंदन पहुंचा था. अब उसे न्यू यॉर्क होते हुए डेट्रॉयट तक जाना था.
चार दिन बार क्रिसमस था. अधिकतर लोग क्रिसमस मनाने अपने घर लौट रहे थे. हीथ्रो एयरपोर्ट से उड़ने के 40 मिनट बाद ही विमान में जोर का धमाका हुआ. उस वक़्त प्लेन 35,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था. धमाके ने प्लेन को मरोड़ दिया. आग की लपटों में लिपटा मलबा और लाशें नीचे बरसने लगीं.
नीचे था स्कॉटलैंड का लॉकरबी शहर. लोग अपने रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त थे. पर उस दिन मौत बरसी. मलबे के नीचे आकर 11 लोग मारे गए. प्लेन में सवार 259 लोगों में से एक भी ज़िंदा नहीं बचा. उस हमले ने कुल 270 बेकसूर लोगों को बेमौत मार डाला था. ये उस वक़्त किसी सिविलियन प्लेन में हुआ सबसे बड़ा हमला था. बाद में अमेरिका में हुए 9/11 के हमले ने इस वीभत्स रेकॉर्ड को पीछे किया.
हादसा इतना खतरनाक था कि नीचे मौजूद घर मलबे में बदल गए.
प्लेन में 21 देशों के यात्री थे. जांच शुरू हुई. 19 जांच एजेंसियों ने मिलकर काम संभाला. लीड में थी अमेरिकी जांच एजेंसी, फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन. यानी FBI. ये FBI के इतिहास का सबसे बड़ा जांच अभियान था. FBI ने कई देशों में जाकर 10 हज़ार लोगों से पूछताछ की थी. अगले तीन साल तक एजेंसियां अपना सिर धुनती रहीं.
फिर फ़ोरेंसिक एक्सपर्ट को रेडियो का एक टुकड़ा मिला. नाख़ून के बराबर का. इसे किसी बैग में बांधा गया था. फिर एक टाइमर का टुकड़ा मिला. एक शर्ट पर. CIA को पता चला कि इनका इस्तेमाल पहले भी हो चुका है. ये जांच उन्हें लीबिया ले गई. लीबियन सीक्रेट सर्विस के दो एजेंटों को इसका जिम्मेदार ठहराया गया.
लीबिया ने दोनों को कटघरे में खड़ा करने से मना कर दिया. इसके जवाब में अमेरिका और UN ने लीबिया पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए. जब हालत खराब हुई, तब गद्दाफ़ी ने दोनों को ट्रायल के लिए सौंपा. 2001 में एक एजेंट अब्देलबासेत अल-मगरही को दोषी पाया गया. उसे आजीवन क़ैद की सज़ा सुनाई गई. दूसरे आरोपी पर दोष साबित नहीं हो सका. उसे बरी कर दिया गया. अल-मगरही को 2009 में कैंसर हो गया. स्कॉटलैंड सरकार ने उसे जेल से रिहा कर दिया. लीबिया लौटने पर अल-मगरही का हीरो की तरह स्वागत हुआ. 2012 में उसकी मौत हो गई.
अल-मगरही जब माफ़ी पा कर लीबिया लौटा, उसका हीरो की तरह स्वागत किया गया.
क्या लीबिया सरकार ने इस हमले का दोष स्वीकारा? इसका जवाब हां-ना दोनों में होगा. 2003 के साल में गद्दाफ़ी ने लॉकरबी हमले की ज़िम्मेदारी ली. और, मारे गए लोगों की फ़ैमिली को मुआवजा भी दिया. हालांकि, गद्दाफ़ी ने ये कभी नहीं माना कि इस बम हमले का आदेश उन्होंने दिया था.
ये माना गद्दाफ़ी के एक मंत्री ने. जब 2011 में लीबिया में अरब क्रांति की लहर चली, गद्दाफ़ी को दर-दर भागना पड़ रहा था. उस वक़्त भूतपूर्व न्याय मंत्री मुस्तफ़ा अब्दुल जलील का बयान आया था. जलील ने कहा था कि उस प्लेन में बम विस्फ़ोट का आदेश गद्दाफ़ी ने ही दिया था. हालांकि, बाद में इस बयान का खंडन कर दिया गया. अक्टूबर, 2011 में गद्दाफ़ी की हत्या हो गई.
इस साल हमले के 32 बरस पूरे हो रहे हैं. अमेरिका का जस्टिस डिपार्टमेंट इस हमले के एक संदिग्ध पर केस चलाने की तैयारी कर रहा है. कहा जा रहा है कि अबू अगीला मसूद नामक इस शख़्स ने हमले में इस्तेमाल हुआ बम बनाया था. हम उम्मीद करते हैं कि इस मामले में न्याय का घेरा पूरा होगा.