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गौतम अडाणी अब 5G में कौनसा खेल करने वाले हैं?

अडाणी ग्रुप ने 5G में 100 करोड़ निवेश करने का किया ऐलान.

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सांकेतिक फोटो (इंडिया टुडे)

आज से बहुत साल पहले की बात है. तकरीबन 14 साल पहले की. हम पहली बार मोबाइल फोन लेने बाज़ार गए. दुकानदार ने पूछा - रिम वाला या सिम वाला. हम मोबाइल तो लेना चाहते थे, लेकिन ये मालूम नहीं था कि मोबाइल भी दो तरह का होता है - CDMA वाला, जैसा कि reliance india mobile माने RIM बनाता है, और GSM, जैसी सर्विस एयरटेल वगैरह दिया करते थे. अब हमने ले ली GSM वाली सेवा. तब हमें ये मालूम नहीं था, कि हम 2G क्रांति का हिस्सा बन रहे हैं. वही 2जी, जिसके साोथ एक वक्त ''स्कैम'' चिपक गया था. बहुत समय चिपका ही रहा, बवाल हुआ, लेकिन किसी का बिगड़ा कुछ नहीं. खैर, 2 जी की देन थी कि घर-घर मोबाइल आया, किफायती दरों में लोग एक दूसरे से बात करने लगे. इसके बाद आया 3G, जिसने बड़े पैमाने पर मोबाइल इंटरनेट दिया. और इसके बाद आया 4G, जिसने डेटा को सस्ता किया और इंटरनेट को रफ्तार दी. अब मोबाइल तकनीक की एक नई पीढ़ी भारत में कदम रखने वाली है, नई जनरेशन - 5 G. घर-घर फोन पहले से है, और तेज़ इंटरनेट भी 4 G ने ही दे दिया था. तब 5G की ज़रूरत क्या है? और ये आ भी गया तो आपको क्या फायदा होगा? आज इसी बारे में बात करेंगे, क्योंकि आज से 5G की नीलामी शुरू हो गई है. बाज़ार के पुराने खिलाड़ियों के अलावा अडाणी ने भी 5 G के लिए बोली लगाई है. इसीलिए दिलचस्पी ज़रा बढ़ गई है.

3 जी, 4 जी, 5 जी में जी माने ''जनरेशन'' होता है, इतना तो आप जानते ही हैं. इसीलिए आज हम कहानी बाबा आदम के ज़माने से शुरू नहीं करेंगे. इतनी बात आप समझते ही हैं कि हर नए G के साथ तकनीक उन्नत हो जाती है. ग्राहक के लिए सुविधाएं बढ़ जाती हैं. आज आपको कुछ बातें स्पेक्ट्रम नीलामी के बारे में बताते हैं. क्योंकि आज से प्रक्रिया शुरू हुई है. सबसे पहला सवाल तो यही है कि भैया स्पेक्ट्रम होता क्या है, जिसके लिए बोली लग रही है. आप सभी ने कभी न कभी साइंस लैब में जाकर प्रिज़म एक्सपेरिमेंट किया ही होगा. कांच के प्रिज़म से खेलने का सुख अलग ही होता है. जब उसमें से प्रकाश गुज़रता है, तो अनेक रंगों में बंट जाता है. ये रंग हमेशा एक क्रम में ही बंटते हैं. जो रंगों का संकलन आप देखते हैं, वो कहलाता है स्पेक्ट्रम - अलग अलग तरंगों का समूह.

जो प्रकाश हम देखते हैं, वो भी एक तरंग है. और तरंग सिर्फ एक प्रकार की नहीं होती. जो प्रकाश हम देख पाते हैं, उसके इर्द गिर्द दो और तरंगों का नाम आपने खूब सुना होगा - इंफ्रारेड और अल्ट्रावायलेट. इसी तरह रेडियो तरंगें भी होती हैं. इंसान ने तरंगों का इस्तेमाल बहुत अच्छे से सीखा है. माइक्रोवेव से हम खाना बनाते हैं, एक्स रे से हम शरीर के अंदर झांकते हैं और रेडियो की मदद से हम कम्यूनिकेट करते हैं, संदेश एक जगह से दूसरी जगह भेजते हैं. आपकी जेब में जो मोबाइल फोन है, तकनीकि रूप से वो भी एक रेडियो है. वो मैसेज रिसीव कर सकता है, भेज भी सकता है. इसीलिए वो टू वे रेडियो हुआ. अब रेडियो को काम करने के लिए रेडियो तरंगों का इस्तेमाल करना होगा. लेकिन सारे रेडियो अगर एक ही फ्रीक्वेंसी की तरंग पर काम करने लगें, तो सब गड़बड़ हो जाएगा. इसीलिए अलग-अलग मोबाइल कंपनियां, स्पेक्ट्रम में अलग-अलग फ्रीक्वेंसी की तरंगों पर काम करती है.

भारत में पूरे स्पेक्ट्रम पर भारत सरकार का अधिकार है. इसका इस्तेमाल सरकार अपनी ज़रूरत के हिसाब से कर सकती है, मसलन सेना की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए. पूरे स्पेक्ट्रम में से कुछ फ्रीक्वेंसियों पर काम करने का अधिकार मोबाइल कंपनियां खरीद सकती हैं. और इसके लिए सरकार नीलामी का सहारा लेती है. ध्यान दीजिए, स्पेक्ट्रम कोई ठोस वस्तू नहीं होता, जिसे नीलाम किया जा रहा है, न ही रेडियो तरंगों को ही नीलाम किया जा सकता है. नीलामी से बस ये तय किया जा सकता है कि कौनसी फ्रीक्वेंसी की रेडियो तरंग पर कौनसी कंपनी अपनी सेवाएं दे सकती है. आज से सरकार ने 72 गीगा हर्ट्स तरंगों पर अधिकार नीलाम करना शुरू किया है. रिज़र्व प्राइस है 4.3 लाख करोड़ रुपए. माने सरकार कम से कम इतना पैसा तो कमाना ही चाहती है. एक बार खरीदने पर स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के अधिकार 20 साल तक लागू रहेगा.

चार कंपनियां स्पेक्ट्रम की दौड़ में अग्रणी हैं - रिलायंस जियो, एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और अडाणी एंटरप्राइज़ेस. इन सभी कंपनियों से Earnest Money Deposit जमा कराया गया है. माने हर कंपनी ने एक तय रकम सरकार के पास पहले ही जमा कर दी है. अगर कोई कंपनी नीलामी में अधिकार खरीद ले, लेकिन बाद में भाग जाए, तो अर्नेस्ट मनी को ज़ब्त कर लिया जाएगा. जो कंपनी, जितना ज़्यादा अर्नेस्ट मनी जमा कराती है, उसे स्पेक्ट्रम मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है. इसीलिए अर्नेस्ट मनी को देखकर एक तुक्का मारा जा सकता है कि 5G सेवाओं में कौन कितना बड़ा खिलाड़ी बनेगा -

रिलायंस जियो - 14 हज़ार करोड़
भारती एयरटेल - साढ़े 5 हज़ार करोड़
वोडाफोन आइडिया - 22 सौ करोड़ 
अडाणी एंटरप्राइज़ेस - 100 करोड़

यहां एक बात ध्यान देने वाली है. ज़रूरी नहीं है कि कम अर्नेस्ट मनी देने वाला स्पेक्ट्रम भी कम खरीदे. वो चाहे जितना स्पेक्ट्रम खरीद सकता है, और चाहे जितना बड़ा कारोबार स्थापित कर सकता है. इसीलिए अर्नेस्ट मनी वाली बात को ज़्यादा नहीं खींचा जा सकता. अडाणी को लेकर ये कहा जा रहा है कि वो बहुत थोड़ा स्पेक्ट्रम खरीदकर एक प्राइवेट नेटवर्क स्थापित करेगा, जो हवाई अड्डों या डेटा सेंटर पर काम आएगा. अडाणी समूह ने अपने बयान में भी यही संकेत दिए थे. लेकिन ये इंफॉर्म्ड गेसवर्क है. माने एक तरह का कयास. जो सही साबित हो सकता है, नहीं भी हो सकता है.

टेलिकॉम सेक्टर की मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए सरकार इस बार एक विकल्प दिया है. कंपनियां चाहें तो स्पेक्ट्रम फीस को EMI में बांट सकती हैं. जो कंपनियां इस तरह से फीस चुकाना चाहती हैं, वो अधिकतम 20 किस्तों में फीसद को बांटेंगी. अगर कंपनियां पूरा पैसा एक साथ देना चाहें, तब भी रकम जमा कराने के लिए 2 साल मिलेंगे.

स्पेक्ट्रम मिलने के बाद क्या होगा?

स्पेक्ट्रम मिलते ही कंपनी आपको 5 जी का सिम पकड़ा दे, ऐसा नहीं होगा. पहले माना जा रहा था कि 5 जी सेवाएं अगस्त से मिलने लगेंगी. लेकिन अब इसकी संभावना कम ही है. एयरटेल, जियो और वोडाफोन सितंबर या अक्टूबर से 5 जी की कमर्शियल टेस्टिंग शुरू सकते हैं. सबसे पहले जिन शहरों के लोगों को फायदा मिलेगा उनमें दिल्ली, गुरुग्राम, बेंगलुरू, कोलकाता, मुंबई, चंडीगढ़, जामनगर, अहमदाबाद, चैन्नई, हैदराबाद, लखनऊ, पुणे, और गांधीनगर के नाम शामिल हैं.

सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव कह चुके हैं कि साल के अंत तक देश के 20 से 25 शहरों में 5जी सेवा मिलने लगेगी. फिलहाल ये कंपनियां टेस्टिंग में लगी हुई हैं. टेलिकॉम रेग्यूलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया TRAI भी टेस्टिंग कर रही है. अब तक आप सोच रहे होंगे कि भैया सब बता रहे हो, ये नहीं बता रहे हो कि 5जी कनेक्शन लें या न लें. फायदा क्या है?

5G का सबसे बड़ा फायदा इंटरनेट की स्पीड में है. ये 4G से दस गुना ज्यादा तेज़ इंटरनेट दे सकता है. मिसाल के लिए एक फिल्म को डाउनलोड करने में अभी अगर 7 मिनट लगते हैं तो 5G में सिर्फ 6 सेकेंड लगेंगे. ये तो हुई अपनी, यानी एक आम इंटरनेट यूजर की बात. इसके अलावा इस तकनीक से और भी कई काम आसान हो जाएंगे. जैसे रोबोट से ऑपरेशन करवाना, क्योंकि रियल टाइम में तेज और बिना रुके इंटरनेट मिल सकेगा. तेज़ इंटरनेट अब भी हमारे पास है, लेकिन इसमें बटन दबाने और हरकत होने के बीच एक डीले है, तो 5 जी के आने के बाद लगभग शून्य हो जाएगा. अपने आप चलने वाली गाड़ियां या ट्रक (सेल्फ ड्राइविंग विहिकल) को चलाना 5जी आने के बाद पहले से आसान हो जाएगा.

इसके अलावा 5 जी आने पर हम बहुत सारे डिवाइस एक दूसरे से न सिर्फ जोड़ सकते हैं, बल्कि वो एक दूसरे के साथ रीयल टाइम सूचनाएं बांट सकते हैं. हम ड्रोन को ड्रोन से जोड़ सकते हैं, ड्रोन को प्लेन से जोड़ सकते हैं और इन दोनों को फोन से जोड़ सकते हैं. इसीलिए 5 जी के आने के बाद इसका इस्तेमाल लॉजिस्टिक्स से लेकर डिफेंस, हर जगह होगा. चीन ने 5जी पर इतना ध्यान इसीलिए दिया, क्योंकि रक्षा क्षेत्र में 5 जी ऐसी ताकत है, जो हर कोई अपने पास चाहता है. हाल ही में चीन ने भारत से लगी सीमा पर 5 जी नेटवर्क देना शुरू किया. अब भारत की तरफ से भी यही कदम उठाया जा रहा है. डिवाइस की बढ़ी हुई कनेक्टिविटी से सिर्फ फौज को फायदा नहीं होगा. हमारे घर में बहुत सारे उपकरण अब इंटरनेट से जुड़े हैं. हमारा एसी, टीवी, बिजली का बल्ब तक. 5 जी के आने के बाद ये सब और परिष्कृत होगा. AI, माने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल छोटी छोटी चीज़ों के लिए हो पाएगा. मशीनें हमारे अनुभव से सीख पाएंगी, और उस हिसाब से हमें सेवाएं दे पाएंगी.

5 G के साथ भारत में सिर्फ नई तकनीक ही नहीं आएगी. भारतीय टेलिकॉम बाज़ार में प्रतिस्पर्धा पर भी इसका बहुत बड़ा असर पड़ेगा. ''बाज़ार में प्रतिस्पर्धा'' सुनकर बात एक बार में समझ नहीं आती. इसीलिए एक छोटा सा उदाहरण देते हैं. आपमें से जो लोग कभी न कभी गांव में रहे हैं, वो जल्दी हमारी बात पकड़ लेंगे. फर्ज़ कीजिए एक शहर से बहुत दूर गांव में परचून की एक ही दुकान है. तेल, नमक शक्कर - कुछ भी लेना है, आपको इसी दुकान पर जाना पड़ेगा. ऐसे में दुकानदार से मोलभाव का सवाल ही नहीं उठता. लेकिन यदि 3 दुकानें हों, तो आराम से मोलभाव कीजिए. एक दुकान में माल या भाव पसंद नहीं आया, तो दूसरी पर जाइए, वहां भी मज़ा नहीं आया तो तीसरी पर जाइए. ध्यान दीजिए, विकल्प नाम के लिए नहीं होने चाहिए. उनमें प्रतिस्पर्धा करने का दम भी होना चाहिए. वर्ना कितनी ही दुकान खुल जाएं, अगर माल नहीं तो आपको जाना वहीं पड़ेगा.

अब इस गांव की जगह देश को रख दीजिए. और परचून की दुकान की जगह मोबाइल कंपनियां. साल 2007-8 के बाद जब 2G क्रांति आई, तब पहली बार हर घर में मोबाइल फोन आया. और आईं ढेर सारी कंपनियां - Reliance India Mobile, Tata Indicom, Airtel, Uninor, Idea, Vodafone, Virgin और BSNL, जिसके सिम के लिए एक वक्त चिरौरी करनी पड़ती थी. माने प्रतिस्पर्धा थी और इसीलिए ग्राहक को फायदा मिलता था.

लेकिन 3 G और 4 G सेवाओं के आते-आते मोबाइल कंपनियां या तो बंद होने लगीं, या फिर उन्हें दूसरी कंपनियों से हाथ मिलाना पड़ा. 4 G के साथ रिलायंस जियो ने बाज़ार में कदम रखा, उसके बाद तो बाज़ार का चरित्र ही बदल गया. अब ईन-मीन-तीन कंपनियां बची हुई हैं - जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया. लेकिन ये संख्या तीन पर कबतक रहेगी, बताया नहीं जा सकता. कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिए.

20 अप्रैल 2022 को इकनॉमिक टाइम्स पर कल्याण परबत की एक रिपोर्ट छपी. इसमें टेलिकॉम रेग्यूलेट्री अथॉरिटी ऑफ इंडिया TRAI द्वारा जारी आंकड़ों का उल्लेख था. इनके मुताबिक भारतीय बाज़ार में सबसे बड़ा खिलाड़ी था जियो. दूसरे नंबर पर था एयरटेल और तीसरे नंबर पर वोडाफोन आइडिया. फरवरी 2022 में -

>जियो ने 1 करोड़ ग्राहक जोड़े, कुल ग्राहक हो गए 37 करोड़ 90 लाख
> एयरटेल ने 12 लाख ग्राहक जोड़े, कुल ग्राहक हो गए 35 करोड़ 10 लाख
> वोडाफोन-आइडिया के 30 लाख ग्राहक घटे, कुल ग्राहक हो गए 22 करोड़ 60 लाख

ग्राहक, जियो और एयरटेल के भी घटे थे, लेकिन कुल जमा उन्हें बढ़त ही मिली. यही नहीं, फरवरी 2022 से पहले के 7 महीनों में भी जियो सबसे ज़्यादा ग्राहक जोड़ने वाली कंपनी रही. हाईस्पीड इंटरनेट कनेक्शन, जिसे हम घरेलू ब्रॉडबैंड कह देते हैं, उसमें भी जियो और एयरटेल का प्रदर्शन बेहतर होता गया. सरकारी कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड BSNL का प्रदर्शन खराब होता गया.

किसी मोबाइल कैरियर का प्रदर्शन खराब रहने के कई कारण हो सकते हैं. मसलन कॉल ड्रॉप होना, नेटवर्क खराब होना या फिर वित्तीय समस्याएं. लेकिन कुल जमा बात यही है कि ग्राहकों के पास विकल्प कम होते जा रहे हैं. 5G की नीलामी में अडाणी एंटरप्राइज़ेस के आने से बाज़ार में एक नया खिलाड़ी के आने की आहट है. लेकिन अडाणी या किसी और कंपनी के आने बाद बाज़ार में विकल्प बढ़ जाएंगे, ऐसा कहना जल्दबाज़ी होगी.

फिलहाल सूचना है कि पहले दौर की बोलियां खत्म हो चुकी हैं. ये देखने को मिला है कि कंपनियां आक्रामक होकर बोली नहीं लगा रही हैं. तो दूसरे दौर में बोलियां लग रही हैं. आने वाले दिनों में ही साफ होगा कि किस कंपनी को कितना स्पेक्ट्रम मिला, लेकिन ये तय है कि बड़े खिलाड़ी जियो और एयरटेल ही होंगे. 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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