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मुसलमानों की वो क़ौम, जिसे मुसलमान ही क़त्ल कर दे रहे हैं

रोहिंग्या मुस्लिम की बात करने वालों को इन क़ौमों का दर्द भी महसूस करना चाहिए.

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अफ़ग़ानिस्तान में हज़ारा समुदाय की औरतें रेप की शिकार हुईं, ये सब तालिबानी दौर में हुआ. और आज भी हो रहा है. (Photo : Reuters)
रोहिंग्या मुसलमान. जिनपर म्यांमार में ज़ुल्म हो रहा है. गोली मारी जा रही है. घरों में आग लगा दी जा रही है. वो देश छोड़कर भाग रहे हैं. म्यांमार सेना कह रही है कि वो उग्रवादियों को मार रही है. जबकि मीडिया में बच्चों और औरतों की लाशों की तस्वीरें सामने आ रही हैं. एक लाख से ज्यादा रोहिंग्या बांग्लादेश पलायन कर चुके हैं. रोहिंग्या क़ौम की तरह ही कुछ ऐसी और क़ौमें हैं, जो ज़ुल्म की शिकार हैं. अब से नहीं बरसों से. दुनिया की ये वो क़ौमें हैं, जो सदियों से एक ही देश में रहने के बावजूद मुहाजिर बनकर रह गईं. अपने ही देश में उनको मार दिया जाता है. दरबदर हैं. उनका अपना देश नहीं. 'दरबदर क़ौमें' सीरीज की पहली क़िस्त में पढ़िए 'हज़ारा' क़ौम के बारे में. जो मुसलमान होकर भी मुसलमानों के ज़ुल्म की शिकार है.

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हज़ारा समुदाय

6 साल पहले पाकिस्तान के इलाके मरियाबाद में एक पर्चा बांटा गया, जिसमें लिखा था, 'पाकिस्तान का मतलब शुद्ध लोगों की जगह. 'हज़ारा समुदाय' के लोगों को यहां रहने का अधिकार नहीं है. हमारा अभियान इस अशुद्ध क़ौम को खत्म करना है. हम पाकिस्तान के हर शहर और हर कोने में शिया और शिया हज़ारा क़ौम के लोगों को खत्म करना चाहते हैं.'
और ऐसा हुआ भी. आए दिन पाकिस्तानी मीडिया में ख़बरें. 'हज़ारा लोगों पर हमला. शिया को गोली मारी. हज़ारा क़ौम के इतने लोग धमाके में मरे. ज़िम्मेदारी फलां लश्कर या संगठन ने ली.' 10 सितंबर को ही पाकिस्तान में हज़ारा समुदाय के 3 लोगों को गोली मार दी गई. हज़ारा लोगों पर ये ज़ुल्म पाकिस्तान में कम अफगानिस्तान में ज़्यादा हुआ. जब अफगानिस्तान में तालिबानियों का राज था, तब हज़ारा क़ौम का कत्लेआम किया गया. औरतों के रेप किए गए.
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तो आखिर कौन हैं ये लोग जो ज़ुल्म के शिकार हैं.
क्यों उनपर बम फोड़ दिए जाते हैं?

कौन हैं हज़ारा?

हज़ारा मध्य अफ़गानिस्तान में बसने वाली और दरी फ़ारसी की हज़ारगी उपभाषा बोलने वाली क़ौम है. दरी फ़ारसी अफगानिस्तान में बोली जाने वाली आधुनिक फ़ारसी का एक रूप है, जो पश्तो के अलावा वहां की संवैधानिक राजभाषा है. हज़ारा बिरादरी के लोग शिया इस्लाम के मानने वाले होते हैं. इसी वजह से पाकिस्तान में शिया और हज़ारा दोनों निशाने पर रहते हैं. क्योंकि सुन्नी कट्टरपंथ उनको मुसलमान नहीं मानता.
इस बारे में क्लियर नहीं कि हज़ारा का नाम कहां से आया? इसके पीछे ये थ्योरी बताई जाती है कि मंगोल शासन के वक़्त हज़ार सैनिकों का दस्ता तैयार किया गया था, संभव है कि हज़ारा उन्हीं मंगोल सैनिकों के वंशज हैं.
चंगेज़ खां
चंगेज़ खां मंगोल था.

हज़ारा लोगों के नाम मंगोल हस्तियों पर होते हैं, जैसे कि 'तुलई ख़ान हज़ारा' जो चंगेज़ ख़ान के सबसे छोटे बेटे तोलुइ ख़ान के सम्मान में रखा जाता है. चंगेज़ खान मंगोल था. हज़ारा लोग अक्सर शक्ल-सूरत से भी मंगोल नस्ल के लगते हैं. दिखने में कुछ-कुछ चीनी जैसे.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कट्टरपंथ के निशाने पर रहता है हज़ारा समुदाय. (Photo : Reuters)
हज़ारा क़ौम पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कट्टरपंथ के निशाने पर रहती है. (Photo : Reuters)

13वीं सदी में इलखानी साम्राज्य ईरान और अज़रबैजान से शुरू हुआ था. तुर्की-मंगोल इलख़ान साम्राज्य बाद में शिया धर्म को अपना चुका था. इस वजह से भी हज़ारा लोगों का शिया होना मंगोलों से मेल खाता है.
कुछ लोगों का मानना है कि हज़ारा शुद्ध मंगोल नहीं हैं, बल्कि मंगोलों और मध्य एशिया की अन्य प्राचीन जातियों का मिश्रण हैं, जैसे कि तुषारी लोग, कुषाण लोग या उस इलाके में ईरानी भाषाएं बोलने वाले लोग.
बताया जाता है कि करीब 200 साल पहले ब्रिटिश भारत में हजारा समुदाय के लोग अफगानिस्तान से प्रवास कर पाकिस्तानी हिस्से में पहुंचे, जहां वे सर्दियों में सड़क बनाते और खान में काम करते थे. ब्रिटिश सरकार ने उनका इस्तेमाल अफगानिस्तान के खिलाफ जंग में भी किया. भारत से अलग होने के बाद भी पाकिस्तान ने हज़ारा क़ौम को कभी नहीं अपनाया, क्योंकि पाकिस्तान में सुन्नी कट्टरपंथ हावी हो गया था.
खुफिया एजेंसी आईएसआई पर आरोप है कि उसने शिया मुसलमानों पर निशाना साधने वाले सुन्नी चरमपंथियों को बढ़ावा दिया, ताकि ईरान से मुकाबला किया जा सके. ईरान की ज्यादातर आबादी शिया मुसलमानों की है. और हज़ारा को न अपनाए जाने की वजह उनका शिया इस्लाम को मानना ही था. हालांकि कुछ हज़ारा सुन्नी इस्लाम को मानने वाले भी हैं.
अफगनिस्तान में तालिबानी शासन के टाइम हज़ारा समुदाय का कत्लेआम किया गया. (Photo : Reuters)
अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के टाइम हज़ारा समुदाय का कत्लेआम किया गया. (Photo : Reuters)

साल 1996 से लेकर 2001 तक तालिबानी शासन के दौरान अफगानिस्तान में हज़ारा लोगों पर खूब ज़ुल्म हुए. तालिबानियों ने इन लोगों पर ऐसा शासन किया कि अफगानिस्तान के बामियान प्रान्त और दायकुंदी प्रान्त, जोकि हज़ारा प्रधान इलाके थे उनमें भूखमरी फैली. उनको मारा गया. इससे बचने के लिए वो पाकिस्तान और ईरान पलायन कर गए.
पाकिस्तान के अखबार 'डेली टाइम्स' ने बलोचिस्तान में 'सांप्रदायिक हिंसा या हजारा शियों की मौत' के हेडिंग से एक लेख छापा. इस लेख में बताया गया था कि हज़ारा शिया अफगानिस्तान से बलोbaloचिस्तान आए वहां ब्रिटिश सरकार के जमाने में उन्हें निचली जाति माना जाता था. ये स्वस्थ, ऊर्जावान और मेहनती होते हैं. पाकिस्तानी शासकों ने ये सोचा था कि ब्रिटिश सेना के चले जाने के बाद हज़ारा लोग 'गोरखा' की जगह ले लेंगे.
पाकिस्तानी सेना ने हज़ारा बाशिंदों को सेना में बहाल किया. इनमें से कुछ ऊंचे पदों पर पहुंचे. इसकी एक मिसाल ये है कि 60 के दशक में जनरल मुहम्मद मूसा खान हज़ारा कमांडर इन चीफ बनाए गए थे. रिटायरमेंट के बाद उन्हें पश्चिमी पाकिस्तान का गवर्नर बनाया गया था.
मुहम्मद मूसा पाकिस्तान में कमांडर इन चीफ बने थे.
मुहम्मद मूसा पाकिस्तान में कमांडर इन चीफ बने थे.

1980 के दशक में मूसा बलोचिस्तान के गवर्नर बने उन्होंने एक अध्यादेश जारी करके हजारा को बलोचिस्तान में एक स्थानीय आदिवासी समूह करार दिया था. अपनी कड़ी मेहनत के सहारे आर्थिक रूप से ये एक समृद्ध समुदाय बन गया. क्वेटा की 20 से 25 प्रतिशत दुकानों के मालिक यही लोग हैं और यही बात शिया विरोधी लोगों को खटकती है.

कैसा बर्ताव होता है इस क़ौम के साथ

खालिद हुसैनी का एक नॉवेल है 'द काइट रनर' जिसपर बाद में फिल्म भी बनी है. ये उन दो दोस्तों की कहानी है, जिसमें एक पश्तून होता है और दूसरा हज़ारा क़ौम का. फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह हज़ारा क़ौम वाले को प्रताड़ित किया जाता है. उसका रेप होता है. उसके बेटे को सेक्शुअली हैरेस किया जाता है. उसको मार दिया जाता है. बाद में उसका पश्तून दोस्त उसके बेटे को बचाता है. ये वो सच है जो हज़ारा के साथ अफगानिस्तान में हुआ. और होता है.
खालिद हुसैनी के नॉवेलद काइट रनर पर फिल्म बनी थी. (फिल्म का सीन)
खालिद हुसैनी के नॉवेलद काइट रनर पर फिल्म बनी थी. (फिल्म का सीन)

अफगानिस्तान में हज़ारा औरतों के रेप, बच्चों को अगवा कर लेना. औरतों को गुलाम बना लेना तालिबानी दौर के टाइम में आम बात थी. अफगानिस्तान में हामिद करजई की सत्ता आई. उनके 10 साल तक राष्ट्रपति रहने के बाद भी हालात नहीं बदले. अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए कभी उन्होंने चरमपंथ पर नकेल नहीं कसी. आज भी हज़ारा लोगों पर आए दिन हमले होते रहते हैं.
तालिबान के बाद अफगानिस्तान में हामिद करजई के राष्ट्रपति बनने के बाद भी हमले नहीं रुके. (Photo : Reuters)
तालिबान के बाद अफगानिस्तान में हामिद करजई के राष्ट्रपति बनने के बाद भी हमले नहीं रुके. (Photo : Reuters)

अफगानिस्तान के मैदान शहर के पश्चिम में 40 किलोमीटर के राजमार्ग को 'मौत की सड़क' के तौर पर जाना जाता है. इस सड़क के बारे में बताया जाता है कि कट्टरपंथी हज़ारा लोगों को 'भेड़ों और गायों' की तरह काट देते हैं.
साल 2015 में इस सड़क से मुसाफिरों को काबुल से हज़ाराजात ले जाने वाले ड्राइवर मोहम्मद हुसैन ने बताया था, 'जब इससे गुजरते हैं तब डर के मारे मुंह सूख जाता है.'
हज़ाराजात अफगानिस्तान के मध्य पहाड़ों का एक इलाका है, जहां पर हज़ारा समुदाय पारंपरिक रूप से रहता है. हुसैन का कहना था कि उसने इस सड़क पर इतनी सिर कटी लाशें देखीं हैं कि उन्हें देखकर बीमार पड़ गया था. इन लोगों को तालिबानियों ने मारा था.
साल 2015 में हज़ारा समुदाय के 7 लोग मारे गए थे, उसके विरोध में प्रदर्शन करतीं हज़ारा औरतें. (Photo : Reuters)
साल 2015 में 7 लोग मारे गए थे, उसके विरोध में प्रदर्शन करतीं हज़ारा औरतें. (Photo : Reuters)

जुलाई 2016 की घटना है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में हज़ारा लोग बिजली लाइन को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. दो आत्मघाती बम धमाके हुए. 80 लोग मारे गए. 231 ज़ख़्मी हो गए. आईएसआईएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली.
ये ही हाल पाकिस्तान में है. आए दिन गोली से मार दिए जाते हैं. फरवरी 2013 में पाकिस्तान के क्वेटा में हज़ारा लोगों पर बड़ा हमला हुआ. 80 लोग मारे गए. इनमें 70 लोग हज़ारा थे. उनकी कब्रें तैयार हो चुकी थीं, लेकिन शिया हज़ारा ने उन्हें दो दिन तक दफन नहीं किया था. मांग थी कि उनके इलाके को सेना के हवाले किया जाए. आखिर कब तक वो इस तरह मरते रहेंगे.
फरवरी 2013 में पाकिस्तान के क्वेटा में हज़ारा लोगों पर बड़ा हमला हुआ. 80 लोग मारे गए थे. (Photo : Reuters)
फरवरी 2013 में पाकिस्तान के क्वेटा में हज़ारा लोगों पर बड़ा हमला हुआ. 80 लोग मारे गए थे. (Photo : Reuters)

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि 2010 से 2014 के बीच शिया हज़ारा क़ौम के लोगों को पाकिस्तान में खास तौर पर निशाना बनाया गया. 450 लोग को 2012 में मारा गया, तो 2013 में 400 को. पाकिस्तान में हज़ारा लोगों को निशाना बनाने का सिलसिला सबसे ज़्यादा 2008 में शुरू हुआ और हर किस्सा पहले से ज्यादा दर्दनाक लगता है. कभी ईरान में तीर्थयात्रा के लिए जाते हुए उन्हें बस से उतार कर मार दिया जाता है, कभी उन्हें बम से उड़ा दिया जाता है, तो कभी मस्जिद में नमाज़ पढ़ते वक्त.
पाकिस्तान में 1980 से 1985 के बीच जनरल जिया उल हक़ की सरकार के दौर में देश का इस्लामीकरण हुआ और सिपाह-ए-साहबा जैसे संगठनों को फैलने का अवसर मिला सिपाह-ए-साहबा जो बाद में लश्कर-ए-झांगवी बन गया था, उसने अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही शिया पर हमले करने शुरू कर दिए थे.
साल 2011 में हज़ारा समुदाय के 13 लोगों को पाकिस्तान के क्वेटा में गोली मार दी गई थी. (Photo : Reuters)
साल 2011 में हज़ारा समुदाय के 13 लोगों को पाकिस्तान के क्वेटा में गोली मार दी गई थी. (Photo : Reuters)

उसका ज़ुल्म जब दुनिया के सामने आने लगा तो पाकिस्तान सरकार ने 2001 में उसपर प्रतिबंध लगा दिया. 2003 में अमेरिका ने भी इसे उग्रवादी गुट करार दिया, लेकिन इनके खिलाफ कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. ऊपर से लश्कर-ए-झांगवी को पाकिस्तानी तालिबान जैसे संगठन लगातार मदद देते रहे हैं, क्योंकि ये भी वही काम कर रहे थे जो तालिबानी. सुन्नी कट्टरपंथ को बढ़ावा देना और गैर सुन्नी लोगों को मार देना.

किस देश में कितनी संख्या?

1. अफगानिस्तान CIA ( Central Intelligence Agency) द वर्ल्ड फैक्टबुक अमेरिका की वो एजेंसी है जो सभी देशों के आंकड़े पेश करती है. 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में 19वीं सदी तक 25 लाख से ज्यादा हज़ारा लोग थे. ये संख्या अफगानिस्तान की पॉपुलेशन की 67 परसेंट थी. जो अब 9 परसेंट ही है. तालिबानी दौर में हज़ारा लोगों का नरसंहार हुआ. तालिबानी दौर खत्म होने के बाद कुछ हालात सुधरे, लेकिन पूरी तरह नहीं. अब अफगानिस्तान में इनकी संख्या 20 परसेंट के करीब है. क्लियर जनगणना न होने की वजह से सही आंकड़े सामने नहीं हैं. अनुमान लगाया जाता है कि इनकी संख्या 50 लाख के करीब है.
2. ईरान जब तालिबान ने अफगानिस्तान में हज़ारा लोगों का कत्लेआम किया तो उन्होंने पड़ोसी देश पाकिस्तान और ईरान में शरण ली. यहां इनकी संख्या करीब 4 लाख बताई जाती है. ईरान शिया मुल्क होने की वजह से हज़ारा लोगों के लिए महफूज़ जगह है.
पाकिस्तान के क्वेटा में हज़ारा समुदाय के बच्चे. अफगानिस्तान में तो ये ऐसी सुविधा मिलना भी दूभर है. (Photo : Reuters)
क्वेटा के एक स्कूल में हज़ारा समुदाय के बच्चे. अफगानिस्तान में इनकी शिक्षा सिर्फ नाम की है. (Photo : Reuters)

3. पाकिस्तान यहां पर 5 लाख के करीब हज़ारा हैं. लेकिन हालात यहां भी अफगानिस्तान वाले ही हैं. कट्टरपंथियों की गोली उनको निशाने पर लेने के लिए मौके तलाशती रहती है.
4. ऑस्ट्रेलिया 18 हज़ार के करीब शिया ऑस्ट्रेलिया में भी बताए जाते हैं. जब पाकिस्तान में भी उनपर ज़ुल्म होने लगा तो वो ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया में शरण लेने को मजबूर हो गए. एक बार तो समुद्री रास्ते से ऑस्ट्रेलिया जाते वक़्त हज़ारा लोगों की नाव पलट गई और जितने भी सवार थे सब मर गए.

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