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क्या चीनी कंपनियां भारत को चूना लगा रही हैं?

चीनी कंपनियों पर कार्रवाई का भारतीय मोबाइल बाज़ार पर क्या असर पड़ेगा?

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ओप्पो औरफ वीवो के खिलाफ ईडी ने की कार्रवाई (फोटो: इंडिया टुडे)

जून 2020 से पहले एक आम भारतीय चीन को बहुत अलग नज़र से देख करता था. भारत वहां से सस्ता सामान आयात करता, बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए चीन जाते, चीनी कंपनियां भारत में भारी भरकम निवेश करतीं और दोनों देशों के नेताओं के बीच नज़र आती घनिष्ठता. फिर गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष हुआ और तनाव चरम पर पहुंच गया. चारों तरफ से चीन को जवाब देने की मांग तो थी, लेकिन सरकार के सामने विकल्पों का अकाल था. लद्दाख में पासा ताकत के बल पर पलटना संभव नहीं था. और चीन से व्यापारिक संबंध खराब करना या तोड़ना भारत के लिए आत्मघाती होता.

फिर कुछ चाइनीज़ मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया. कुछ चीनी कंपनियों के ठेके रद्द भी किए गए. तब से लेकर आज तक लद्दाख के हालात में बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं आया है. इसीलिए जब जब ''चीन'' और ''कार्रवाई'' शब्द साथ में आते हैं, भारतीय बहुत दिलचस्पी लेते हैं. इन दिनों भी ऐसा ही हो रहा है. क्योंकि चीनी मोबाइल कंपनियों पर टैक्स चोरी के आरोप में छापे पड़ रहे हैं, बैंक खाते सीज़ हो रहे हैं. पहले VIVO पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई हुई और अब OPPO पर कस्टम्स ड्यूटी की चोरी का आरोप लगा है.

ओप्पो और वीवो पर लगे आरोपों और कार्रवाई पर आएं, इससे पहले ज़रूरी है कि आप बीबीके इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन को जानें. BBK एक चीनी मल्टीनैशनल कॉन्गलॉमरेट है. मतलब BBK के मातहत ढेर सारी कंपनियां हैं जो पूरी दुनिया में पसरी हुई हैं. ये सारी कंपनियां कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स बनाती हैं. माने टीवी, कैमरा, स्मार्टफोन वगैरह. खासकर स्मार्टफोन्स की दुनिया में BBK बहुत बड़ा नाम है. अब आप पूछ सकते हैं कि भैया इतना बड़ा नाम है हमने कभी क्यों नहीं सुना? तो इसका जवाब ये है कि आपने BBK भले न सुना हो, लेकिन इसके शुरू किए ब्रैंड्स को ज़रूर जानते होंगे -

ओप्पो
वीवो
रीयलमी
वन प्लस

स्मार्टफोन चलाने वाले भारतीयों में शायद ही कोई होगा, जिन्होंने इन ब्रैंड्स के बारे में नहीं सुना होगा. एक वक्त वो था, जब भारतीय मोबाइल बाज़ार में नोकिया, सैमसंग और मोटरोला जैसी पश्चिमी या कोरियाई कंपनियों का बोलबाला था. जिनके पास मोटा पैसा था, वो एपल के डिवाइस लेते थे. तब चीनी कंपनियों के मोबाइल फोन और स्मार्टफोन घटिया क्वालिटी के माने जाते थे. इसीलिए इन्हें सिर्फ मजबूरी में ही खरीदा जाता था. बीबीके इलेक्ट्रॉनिक्स ने जो मोबाइल फोन बनाए, उन्होंने इस धारणा को तोड़ दिया. इनके बनाए स्मार्टफोन्स में अच्छी क्वालिटी और परफॉर्मेंस. और तुरुप का इक्का - दाम.

कम कीमत पर भी इन फोन्स में वैसे फीचर होते थे, जो सैमसंग या एपल अपने टॉप गैजेट्स में देते थे. इसीलिए इनकी बिक्री धड़ाधड़ हुई. युवा इनकी वेबसाइट पर टकटकी लगाए रहते कि कब नया स्टॉक आए और फोन लपका जाए. इसके अलावा वन प्लस ने cheap chinese phone वाली धारणा को भी तोड़ा. ये ब्रैंड मीडियम और प्रीमियम रेंज के स्मार्टफोन बनाता है, जो खासे लोकप्रिय हैं.

बीबीके और शाओमी जैसी कंपनियों के फोन्स ने सिर्फ एपल और सैमसंग की नींद हराम नहीं की. याद कीजिए 2014-15 का वक्त. तब लावा और माइक्रोमैक्स जैसे भारतीय ब्रैंड्स बाज़ार में पकड़ बना रहे थे. ऐसा लग रहा था कि आखिरकार भारतीय कोड करने से आगे बढ़कर फोन भी बनाने लगे हैं. 2015 में भारतीय कंपनियां बाज़ार के दो तिहाई हिस्से पर काबिज़ थीं. लेकिन चीनी स्मार्टफोन्स ने इन्हें तबाह कर दिया. टेकआर्क नाम की रीसर्च फर्म के हवाले से बिज़नेस स्टैंडर्ड ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 2015 में चीनी कंपनियों के पास भारतीय स्मार्टफोन बाज़ार का 32 फीसदी हिस्सा था. आज ये बढ़कर 65 फीसदी हो गया है.

लद्दाख में तनाव और खासकर गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद चीनी स्मार्टफोन्स के बहिष्कार की बातें तो बहुत हुई हैं, लेकिन बाज़ार बातों से नहीं, अच्छे प्रॉडक्ट से चलता है. चीनी कंपनियों के दाम, क्वालिटी और फीचर का तोड़ फिलहाल किसी के पास नहीं है. इसीलिए भारतीय स्मार्टफोन बाज़ार पर चीनी कंपनियों की पकड़ मज़बूत होती जा रही है. इस पकड़ को बनाए रखने में जिन कंपनियों की भूमिका है, उनमें ओप्पो और वीवो भी हैं.

आइए अब इन दोनों कंपनियों पर लगे आरोपों की बात करें. 7 जुलाई को इंडिया टुडे पर मुनीष चंद्र पांडे की एक रिपोर्ट छपी. रिपोर्ट की हेडलाइन में एक आंकड़ा था, जिसे पढ़कर आपका दिमाग भी घूम जाएगा. 62 हज़ार 476 करोड़ रुपए. जी हां. आपने ठीक सुना. इतने में इसरो चंद्रयान - 2 को 62 बार धरती से चांद पर भेज देता. और 500 करोड़ से ज़्यादा बचा भी लेता.
ED ने आरोप लगाया था कि वीवो ने 62 हज़ार 476 करोड़, माने अपने टर्नओवर का तकरीबन आधा भारत से चीन भेज दिया, ताकि वो टैक्स से बच सके. 62 हज़ार करोड़ अगर आधा ही टर्नओवर है, तो आप कंपनी और उसपर लगाए गए भ्रष्टाचार के इल्ज़ाम का वज़न समझ सकते हैं.

खैर, इल्ज़ाम पर लौटते हैं. ED ने 5 जुलाई को वीवो और उससे जुड़ी कंपनियों के 48 ठिकानों पर छापे मारे. इस दौरान 119 बैंक अकाउंट्स को सीज़ किया गया. इनमें तब 465 करोड़ रुपए मौजूद थे. हैरानी तो तब हुई जब एजेंसी के हाथ 2 किलो सोने के बिस्किट और 73 लाख रुपए कैश भी लग गए. जबकि कॉर्पोरेट दुनिया में लेनदेन के लिए सोने या कैश का इस्तेमाल कभी नहीं होता. जैसे ही सोना और कैश मिला, प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट PMLA के प्रावधान कार्रवाई में शामिल कर लिये गए.

ED सूत्रों ने आरोप लगाया कि वीवो भारत में घाटा दिखाना चाहती थी, ताकि उसे टैक्स कम चुकाना पड़े. टेक बाज़ार पर नज़र रखने वाले जानते ही हैं कि साल 2020-21 के लिए वीवो ने 300 करोड़ का घाटा दिखाया था. इसीलिए जब ED की तरफ से आरोप लगा, तो इसे गंभीरता से लिया गया.

वीवो के खिलाफ ये कार्रवाई अचानक नहीं हुई थी. दिसंबर 2021 में ही कॉर्पोरेट मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने दिल्ली में Grand Prospect International Communication Pvt Ltd के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई थी. ये कंपनी वीवो से ही जुड़ी हुई है. मंत्रालय ने आरोप लगाया कि GPICPL को पंजीकृत कराते हुए फर्जी पहचान पत्र और गलत पता दिया गया. 
मंत्रालय की तहरीर पर दिल्ली पुलिस ने FIR दर्ज कर की और फिर इस FIR के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने अपने यहां मामला कायम कर जांच शुरू कर दी. अपनी जांच में ED ने पाया कि GPICPL ने वाकई गलत पता दिया था. जिस पते पर कंपनी के डायरेक्टर का आवास बताया गया, वहां एक सरकारी इमारत मिली.

ED ने ये भी कहा कि 2014-15 में जब वीवो भारत में पंजीकृत हुई, उसके एक साल बाद ही उसके पूर्व निदेशक बिन लोऊ ने एक के बाद एक 18 कंपनियां खोलीं, जो कि पूरे भारत में फैली हुई हैं. बिन लोऊ ही GPICPL के निदेशक हैं. कुछ और लोग भी हैं, जिन्होंने इसी तरह कंपनियां खोलीं. बाद में ये सारी कंपनियां बड़ी-बड़ी रकम वीवो इंडिया को ट्रांसफर करने लगीं. 

वीवो पर कार्रवाई हुई तो दिल्ली स्थित चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने प्रतिक्रिया दी. कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि भारत चीनी कंपनियों को एक ऐसा माहौल देगा, जिसमें पक्षपात नहीं होगा और जांच या कार्रवाई में कानून का पालन होगा.

वीवो अपने यहां पड़े छापे को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची. कंपनी ने मांग की, कि उसके बैंक खातों पर लगे प्रतिबंध को हटाया जाए, ताकि वो बकाया पेमेंट कर सके. आज दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई. ED ने कहा कि गैर कानूनी तरीके इकट्ठा की गई रकम बढ़ती जा रही है. सिर्फ एक हफ्ते में कम से कम 12 सौ करोड़ रुपए के हेरफेर का पता चला है, जिसे एजेंसी प्रोसीड्स ऑफ क्राइम, माने अपराध के ज़रिये कमाया पैसा मान रही है. सारी दलीलें सुनकर दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले को 28 जुलाई के लिए मुल्तवी कर दिया. और कुछ अंतरिम आदेश दिए. इसके तहत वीवो अपने बैंक खातों से लेनदेन कर सकता है. लेकिन पहले उसे ED के यहां साढ़े 9 सौ करोड़ रुपए की बैंक गैरंटी जमा करानी होगी. इसके अलावा कंपनी को अपने खातों में कम से कम 251 करोड़ रुपए जमा रखने होंगे.

अब आते हैं ओप्पो पर. जिन लोगों को सेल्फी खींचना पसंद है, उन्होंने ओप्पो का नाम ज़रूर सुना होगा. ये उन शुरुआती कंपनियों में थी, जिन्होंने फ्रंट कैमरा की क्वालिटी पर बहुत ध्यान दिया ताकि सेल्फी बढ़िया आए. इस कंपनी ने भी साल 2020-21 में 2 हज़ार करोड़ का घाटा दिखाया था. 1ा 3 जुलाई, माने आज डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस की तरफ से एक बहुत बड़ा आरोप ओप्पो पर लगाया गया. ये एजेंसी भारत में स्मगलिंग पर कार्रवाई करने वाली सबसे बड़ी एजेंसी है. DRI ने आरोप लगाया कि ओप्पो ने 4 हज़ार 390 करोड़ की कस्टम ड्यूटी की चोरी की है. इसके लिए मोबाइल के पुर्ज़ों के आयात के दौरान कंपनी ने गलत तरह से छूट का फायदा उठाया. एजेंसी ने कहा कि ओप्पो इंडिया को बकाया कस्टम ड्यूटी चुकाने का आदेश दे दिया गया है. एजेंसी ओप्पो इंडिया, उसके कर्मचारियों और ओप्पो चाइना से पेनल्टी भी वसूलना चाहती है. क्योंकि ओप्पो इंडिया ने कथित रूप से ओप्पो चाइना को रॉयल्टी भेजी. लेकिन इसे आयातित माल की कीमत में जोड़कर नहीं दिखाया. इससे कस्टम ड्यूटी की गिनती गड़बड़ा गई.

आइए अपना ध्यान BBK इलेकट्रॉनिक्स से इतर चीनी कंपनियों पर लगाते हैं. एक कंपनी है शाओमी. भारतीय मोबाइल बाज़ार में एक कामयाब ब्रैंड. खूबियां कमोबेश वही, जो BBK के ब्रैंड्स में हैं. इसी साल जनवरी में DRI ने शाओमी इंडिया पर भी तीन सालों के भीतर साढ़े छह सौ करोड़ की कस्टम ड्यूटी चोरी का आरोप लगाया. ये जानकारी भी छापों के बाद सामने आई. कहानी कमोबेश वीवो और ओप्पो जैसी ही है.

भ्रष्टाचार पर सख्त से सख्त कार्रवाई की ज़रूरत है. और इस बात की भी, कि मोबाइल फोन जैसे आम डिवाइस बनाने में भारतीय कंपनियां महारत हासिल करें. कॉन्सेप्ट बनाने में भारतीय कंपनियों का कोई जवाब नहीं है. लेकिन किफायती दाम पर बढ़िया टेक प्रॉडक्ट्स हम अभी नहीं बना पाए हैं. जब तक ऐसा रहेगा, हम सख्त कार्रवाई से पहले सोच सोचकर कदम उठाने को मजबूर रहेंगे.