जिस वक्त कांग्रेस में अध्यक्ष पद की चर्चा होनी चाहिए थी, उस वक्त पार्टी राजस्थान में उठे सियासी बवाल (Rajasthan Political Crisis) को ठंडा करने की कोशिश में जुटी है. और इस पूरे घमासान की वजह है अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) की सियासी अदावत. वो अदावत जो 2018 में राजस्थान चुनाव के वक्त शुरू हुई, क्योंकि सवाल कुर्सी का था. वही कुर्सी जो आज दांव पर लगी है. और दावेदार भी वही दोनों हैं, जो 2018 में थे. तब आलाकमान की मान मनौव्वल के बाद गहलोत को कुर्सी मिल गई और सचिन पायलट खाली हाथ रह गए.
पायलट के हाथ आई कुर्सी छीनने वाले गहलोत ने जब उन्हें विधानसभा के गेट पर रुकवा दिया था!
विधानसभा के कर्मचारी ने पायलट से कहा- आप यहां से नहीं जा सकते!
पायलट खाली हाथ रह गए हैं, ये सरकार बनने के कुछ दिनों बाद धीरे-धीरे साफ होने लगा था. हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का ऐलान होने के साथ ही एक बार फिर इस बात की चर्चा तेज़ हो गई थी कि गहलोत पार्टी अध्यक्ष बनेंगे, तो सचिन पायलट मुख्यमंत्री बन सकते हैं. लेकिन कल, 25 सितंबर को हुए सियासी ड्रामे ने इसमें एक नया मोड़ ला दिया. गहलोत की सियासी तिकड़म ने पायलट और कुर्सी के बीच एक बार फिर अड़ंगा लगा दिया है.
लेकिन गहलोत और पायलट की इस अदावत की कहानी में एक किस्सा और है. आज गहलोत ने पायलट का कुर्सी तक जाने वाला रास्ता रोका है, लेकिन 2018 में तो उन्होंने पायलट के विधानसभा जाने के रास्ते को ही रोक दिया था!
‘इंडिया टुडे’ के पत्रकार शरत कुमार बताते हैं कि राजस्थान के शपथ ग्रहण समारोह में भी दोनों के बीच मनमुटाव देखने को मिला था. शपथ ग्रहण के दौरान सचिन पायलट ने अपनी कुर्सी राज्यपाल के बगल में लगाने को कहा. कहा जाता है कि अशोक गहलोत ने इसका विरोध किया. कहा कि उपमुख्यमंत्री का पद कोई संवैधानिक पद नहीं है. इसलिए राज्यपाल और मुख्यमंत्री की कुर्सी के बगल में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं लग सकती. मगर पायलट ने अपनी कुर्सी लगवाई.
सरकार बनी. मंत्रालयों का बंटवारा हुआ. सचिन पायलट को ‘मलाईदार’ कहा जाने वाला पीडब्ल्यूडी मंत्रालय दिया गया. लेकिन अशोक गहलोत ने उनके पर कतर दिए. उन्होंने ये तय कर दिया कि कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट बिना सीएमओ के पास नहीं होगा. मंत्री होते हुए भी पायलट बड़े फैसले नहीं ले पा रहे. बाद में तो गहलोत ने पायलट की ऐसी स्थिति और खराब कर दी. पायलट ने कांग्रेस आलाकमान से शिकायत कर दी कि उनके विधानसभा क्षेत्र में भी उनकी नहीं सुनी जाती है.
विधानसभा के गेट पर रोके गए पायलटशरत कुमार बताते हैं कि राजस्थान विधानसभा में मुख्य द्वार से केवल राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री आते हैं. पहली बार जब विधानसभा शुरू हुई, तो उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट उसी रास्ते से आए. एक दिन तो वह आ गए, मगर दूसरे दिन जैसे ही आए, विधानसभा के कर्मचारी ने उन्हें रोक लिया. कहा कि आप विधायकों और मंत्रियों के रास्ते से आइए. सचिन पायलट जिद पर अड़ गए, तो अशोक गहलोत ने उनके आगंतुकों के रास्ते से आने का प्रावधान कर दिया. यानी बीच का रास्ता निकाला गया कि न तो मुख्यमंत्री के रास्ते से आएंगे, न मंत्रियों के रास्ते से आएंगे, वह दूसरे रास्ते से ही आएंगे.
वीडियो: सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच ऐसेे सुलझ सकता है मुख्यमंत्री की कुर्सी का पेंच?