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इस कंपनी ने नीरव मोदी स्टाइल में 14 बैंकों को साढ़े तीन हज़ार करोड़ का चूना लगाया!

अब CBI कंपनी के मालिकों को ढूंढ रही है

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नीरव मोदी और माल्या की ही तरह इस कंपनी ने भी ढेरों लोन लिया और चुकाने से मना कर दिया

CBI ने 14 बैंकों के समूह के साथ 3,592 करोड़ रुपये से ज्यादा की धोखाधड़ी के सिलसिले में जांच शुरू की है. मुंबई की कंपनी फ्रॉस्ट इंटरनेशनल लिमिटेड (FIL), उसके निदेशकों- उदय देसाई और सुजय देसाई के अलावा 11 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. कानपुर, दिल्ली, मुंबई सहित कई शहरों में कंपनी के ठिकानों पर छापेमारी की गई. आरोप है कि कंपनी ने बैंक ऑफ़ इंडिया समेत  14 बैंकों के समूह के साथ डिफॉल्ट किया है. आरोपियों के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी किया गया है, ताकि वे देश छोड़कर न भाग सकें.


# क्या है FIL का गुणा-गणित?

1995 में शुरू हुई ये कंपनी. कई तरह के व्यापार करती है. इसमें Agro बिज़नेस से लेकर Minerals, Metals, Bullion, Polymer, Chemical और Petro Products के साथ ही Plastic और Textiles का बिजनेस भी शामिल है. कारोबार फैला है दूर देशों तक. इनमें बांग्लादेश, चीन, संयुक्त अरब अमीरात से लेकर यूएस, वेस्टइंडीज़ और स्विट्ज़रलैंड तक शामिल हैं.


फ्रॉस्ट इंटर नैशनल ने आरोप के अनुसार वही काम किया है जो नीरव मोदी कर चुके हैं
फ्रॉस्ट इंटरनेशनल पर आरोप है कि उसने वही काम किया है, जो नीरव मोदी कर चुका है

# क्या है FIR में

2011 में 14 बैंकों का संघ बनने से पहले कंपनी ने Bank of India से 380.65 करोड़ रुपए का कर्ज लिया. सभी बैंकों से मिलाकर कुल कर्ज लिया 4061.95 करोड़ रुपया. इनमें Bank of India से लिए गए कुल रुपये थे 756.75 करोड़. FIL ने Indian Overseas Bank से भी 498.51 करोड़ रुपए का कर्ज लिया.

# कब से शुरू हुई गड़बड़

जनवरी 2018. कंपनी के ज़्यादातर बैंक अकाउंट NPA, माने कि Non-Performing Assets बनने लगे. जनवरी 2019 में एक फ़ॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट आई. इसमें कंपनी के फंड डायवर्जन पर सवाल खड़े किए गए. कंपनी शक के घेरे में आई. कथित तौर पर कंपनी ने फंड को अनसिक्योर्ड लोन और एडवांस के तौर पर गैर-कारोबारी पार्टियों को डायवर्ट कर दिया.

जांच में कंपनी के लेन-देन में हेरफेर पाया गया. साथ ही दिखाए गए कई ट्रेडिंग पार्टियों का अस्तित्व ही नहीं था. एक्सपोर्ट दिखाया तो गया, लेकिन एक्सपोर्ट के लिए माल की डिटेल ग़लत बताई गई. जिस शिप से एक्सपोर्ट बताया गया, उसका मूवमेंट डेटा भी FIL की बताई जानकारी से अलग निकला. न तो सामान लोड होने की कोई जानकारी, न ही ऑर्डर डिस्चार्ज होने का कोई डेटा. यहीं से कंपनी के नकली एक्सपोर्ट की पोल खुली.


कंपनी शुरू करने वाले उदय देसाई, इन्होंने कई NGO भी शुरू और बंद किए
कंपनी शुरू करने वाले उदय देसाई, इन्होंने कई NGO भी शुरू और बंद किए

# गड़बड़ियां और भी थीं

FIL की विदेश में हुई 18 कंपनियों से डील भी फ़र्जी बताई गई. जितने भी पेमेंट हुए, वो किसी थर्ड पार्टी ने रिसीव किए. रिपोर्ट में बताया गया कि 4,374 करोड़ की ख़रीद और चार हज़ार करोड़ की बिक्री अलग-अलग कंपनियों से हुई, लेकिन पेमेंट बार-बार एक ही ग्रुप को होता रहा. FIL की हज़ारों करोड़ की ख़रीद और बिक्री को फ़र्जी बताया गया, क्योंकि उसमें बेचने और ख़रीदने वाली कोई पार्टी असल में थी ही नहीं.


# और फिर मामला ठंडा

आरोप है कि बैंकों ने जब FIL को लोन वापसी के लिए नोटिस भेजे, तो बैंकों को किसी तरह का जवाब नहीं मिला. कंपनी ने जो लोन लिया था, वो फंड ही डायवर्ट कर दिया गया था. इसलिए रिकवरी मुश्किल हो गई. जनवरी 2019 में बैंक ऑफ़ इंडिया की शिकायत पर कंपनी को लुक आउट सर्कुलर जारी हुआ. इसी तरह का सर्कुलर साल 2018 में भी जारी हो चुका था, लेकिन तब शिकायत की थी Indian Overseas Bank ने. फ़िलहाल देसाई और बाक़ी लोगों के ख़िलाफ़ तलाशी अभियान CBI चला रही है. दिल्ली, कानपुर और मुंबई में कंपनी के ठिकानों पर CBI लगातार छापे मार रही है.


खेती और खाद की बात करने वाली फ्रॉस्ट कंपनी ने असल में खेती के लिए कभी कुछ किया ही नहीं
खेती और खाद की बात करने वाली फ्रॉस्ट कंपनी ने असल में खेती के लिए कभी कुछ किया ही नहीं

# फर्जी दस्तावेज

आरोप है कि कंपनी के निदेशकों ने बैंक ऑफ इंडिया की अगुवाई वाले कर्जदाता बैंकों के समूह को भुगतान करने में चूक की है. कंपनी और उसके निदेशकों, जमानतदारों और अन्य अज्ञात लोगों ने फर्जी दस्तावेज जमा किए और बैंक से ली गई पूंजी की हेराफेरी कर उसे दूसरी जगह भेज दिया.



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