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यूयू ललित बने देश के नए चीफ जस्टिस, जानिए उनके किन फैसलों ने मचाया था भयानक बवाल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई पद की शपथ.

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देश के नए CJI के तौर पर शपथ लेते UU Lalit. (फोटो: ANI)

जस्टिस यूयू ललित (Justice UU Lalit) ने देश के नए मुख्य न्यायाधीश (CJI) के तौर पर शपथ ले ली है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद की शपथ दिलाई. पूर्व CJI एनवी रमना ने जस्टिस यूयू ललित के नाम की अनुशंसा की थी. CJI रमना का कार्यकाल 26 अगस्त को समाप्त हुआ. कानून मंत्रालय ने CJI एनवी रमना से अपने उत्तराधिकारी के नाम की अनुशंसा करने का आग्रह किया था, जिसके बाद रमना ने यूयू ललित का नाम आगे किया था.

जस्टिस यूयू ललित CJI के पद पर तीन महीने से भी कम समय के लिए रहेंगे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जज 65 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं. इसी साल 8 नवंबर को जस्टिस यूयू ललित 65 साल के हो जाएंगे. यानी कि उसी दिन वे रिटायर हो जाएंगे. 

कौन हैं Justice UU Lalit?

जस्टिस उदय उमेश ललित मुंबई से वास्ता रखते हैं. उनका जन्म 9 नवंबर, 1957 को हुआ. वो वकीलों के परिवार से ताल्लुक रखते हैं. पिता जस्टिस यूआर ललित क्रिमनिल लॉयर थे. बाद में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया था. अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए जस्टिस यूयू ललित पहले वकील और फिर जज बने.

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जस्टिस यूयू ललित ने अपने कानूनी करियर की शुरुआत 1983 में शुरू की. 1985 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में काम किया. बाद में वो देश की राजधानी दिल्ली चले आए. साल 2004 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर नियुक्त किया गया था. फिर साल 2014 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया. इस बीच उन्होंने CBI के लिए स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की भूमिका भी निभाई.

Justice UU Lalit के बड़े मामले

एक वकील के तौर पर जस्टिस यूयू ललित ने कई बड़े मामलों में पैरवी की. ब्लैक बक और चिनकारा शिकार मामले में वो एक्टर सलमान खान (Salman Khan) के वकील थे. वहीं थलसेना अध्यक्ष की उम्र के विवाद में उन्होंने जनरल वीके सिंह की पैरवी की थी.  

सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता विनायक सेन के देशद्रोह के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार के वकील के तौर पर जस्टिस यूयू ललित ने सेन की जमानत का विरोध किया था. वहीं हसन अली खान मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भी वो वकील थे. टूजी स्पेक्ट्रम मामले में भी वो सरकारी वकील थे.

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एक वकील के तौर पर जस्टिस यूयू ललित ने 1994 में बाबरी मस्जिद से जुड़े एक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कल्याण सिंह की पैरवी की थी. बाद में जब सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद के मामले में सुनवाई हो रही थी, तो इसी आधार पर जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस सुनवाई के लिए गठित की गई बेंच से अलग कर लिया था.

दरअसल, अयोध्या भूमि विवाद मामले में वक्फ बोर्ड की तरफ से बताया गया था कि जस्टिस यूयू ललित बाबरी मस्जिद से जुड़े मामले में एक वकील रह चुके हैं. इसके बाद जस्टिस यूयू ललित ने कहा था कि वो इस मामले की सुनवाई से हटना चाहते हैं. उनके इस फैसले का बेंच में शामिल तत्कालीन CJI समेत दूसरे जस्टिस ने समर्थन किया था.

Justice UU Lalit के बड़े फैसले

जस्टिस यूयू ललित उस बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. वो उस बेंच में भी बैठे, जिसने SC/ST केस में जांच से पहले FIR ना दर्ज करने का फैसला सुनाया था. इस फैसले को लेकर बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. बाद में केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए इस फैसले को पलट दिया था.

एक और फैसले को लेकर जस्टिस यूयू ललित चर्चा में रहे. वो उस बेंच का भी हिस्सा रहे, जिसने महिलाओं के उत्पीड़न के संबंध में बनाई गई IPC की धारा 498A के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाने का फैसला दिया था. यही नहीं, जस्टिस ललित उस बेंच में भी शामिल थे, जिसने हिंदू मैरिज एक्ट पर आदेश दिया था कि अगर रजामंदी से तलाक के केस में समझौते की गुंजाइश ना हो तो छह महीने का वेटिंग पीरियड खत्म हो सकता है.

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केरल के पद्मनास्वामी मंदिर से जुड़े एक फैसले में भी जस्टिस यूयू ललित ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया था कि इस मंदिर के प्रबंधन का अधिकार पूर्ववर्ती त्रावणकोर राजपरिवार के पास है. पॉक्सो एक्ट के तहत 'स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट' वाले बॉम्बे होई कोर्ट के फैसले को भी जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने पलटा था. दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि केवल 'स्किन टू स्किन' कॉन्टैक्ट को ही यौन शोषण माना जाएगा. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यौन शोषण की मंशा से किया गया कोई भी एक्ट इस अपराध की श्रेणी में ही आएगा.   

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