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चीन ने अमेरिका के पड़ोसी देश में क्या नया कांड कर दिया?

चीन ने अमेरिका की जासूसी के लिए क्या जाल बिछाया है?

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चीन ने अमेरिका की जासूसी के लिए क्या जाल बिछाया है?

27 अक्टूबर 1962 की तारीख़ को अक्सर दुनिया के इतिहास का सबसे ख़तरनाक दिन माना जाता है. वो दिन, जब अमेरिका और सोवियत संघ परमाणु युद्ध के मुहाने पर पहुंच गए थे. जब परमाणु बम का बटन दबते-दबते रह गया.

क्या हुआ था अक्टूबर 1962 में?

सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइलें तैनात करने का फ़ैसला किया था. गुपचुप तरीके से सप्लाई भी शुरू हो गई थी. क्यूबा, अमेरिका की सीमा के पास है. वहां फ़िदेल कास्त्रो की सरकार थी. कास्त्रो कम्युनिस्ट थे और सोवियत संघ के ख़ास दोस्त भी. क्यूबा को पुरानी दुश्मनी का बदला भी लेना था. इसलिए, उसने सोवियत संघ की मिसाइलों के लिए अपनी ज़मीन दे दी थी. कई दिनों तक अमेरिका को इसकी भनक तक नहीं लगी. तभी उसका एक टोही हवाई जहाज क्यूबा के ऊपर से उड़ा. संयोग से उसके कैमरे में मिसाइल फ़ैसिलिटी की तस्वीरें आ गईं. फिर पता चला कि सोवियत संघ 20 जहाजों में मिसाइल भरकर भेज रहा है.

इसके बाद जद्दोज़हद शुरू हुई. सोवियत संघ को रोकने का. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी के पास चार विकल्प थे. सर्जिकल स्ट्राइक, क्यूबा पर हमला, कूटनीतिक दबाव और ब्लॉकेड. कैनेडी ने क्यूबा की नाकेबंदी का फ़ैसला किया. उसने अपने नौसैनिक जहाज और पनडुब्बियां समंदर में जमा कर लीं. इसके कारण टकराव की स्थिति पैदा हो गई. कैनेडी ने हमले की धमकी दी. अमेरिका ने अपनी फ़ोर्स भी तैयार कर ली थी. लेकिन फिर सोवियत संघ के लीडर निकिता ख्रुश्चेव ने अपने जहाजों को वापस बुला लिया. मगर तनाव फिर भी कम नहीं हुआ. 27 अक्टूबर को क्यूबा के ऊपर एक अमेरिकी जेट को शूट कर दिया गया. इसके चलते युद्ध का ख़तरा चरम पर पहुंच गया. मगर अंतिम समय पर कैनेडी और ख्रुश्चेव ने संयम का परिचय दिया और पीछे हट गए. इस घटना को इतिहास में क्यूबन मिसाइल क्राइसिस के नाम से जाना जाता है.

51 बरस बाद एक बार फिर क्यूबा, अमेरिका की चिंता का कारण बन गया है. इस बार दूसरे किनारे पर अमेरिका का नया दुश्मन है. चीन. ख़बर है कि चीन, क्यूबा में स्पाई स्टेशन बना रहा है. डील भी हो गई है. इसके ज़रिए अमेरिका पर नज़र रखी जाएगी. क्यूबा और अमेरिका, दोनों ने इससे इनकार किया है. चीन ने कुछ भी कहने से मना कर दिया है. लेकिन जानकार कह रहे हैं, बिना आग के धुआं नहीं उठता. ये दावा निराधार तो कतई नहीं है. चीन ने जैसे का तैसा जवाब देने का मन बना लिया है. ये अमेरिका के लिए ख़तरनाक है.

- क्यूबा में चीनी स्पाई स्टेशन पर छपी रिपोर्ट में क्या है?
- इस स्पाई स्टेशन से अमेरिका को क्या ख़तरा है?
- और, ये रिपोर्ट चीन-अमेरिका के रिश्तों पर क्या असर डालेगी?

आज की कहानी एक रिपोर्ट से शुरू होती है. जिसने दुनिया के दो सबसे ताक़तवर देशों में हड़कंप मचा दिया है. जिसके कारण दो देशों को बयान जारी करना पड़ा. एक ने चुप्पी साध ली. कई लोग 1962 के क्यूबन मिसाइल क्राइसिस को याद करने लगे. वो दौर, जब दुनिया परमाणु युद्ध के मुहाने पर पहुंच गई थी.

लेकिन कौन सी रिपोर्ट और कैसा खुलासा?

08 जून 2023 को अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल में वॉरेन स्ट्रॉबेल और गॉर्डन ल्यूबोल्ड ने लिखा,
Cuba to Host Secret Chinese Spy Base Focusing on U.S.

यानी,

क्यूबा में चीन का जासूसी बेस, फ़ोकस अमेरिका पर होगा

वॉरेन और गॉर्डन ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से दर्ज किया था,

चीन, क्यूबा में अपना स्पाई स्टेशन बना रहा है. उनके बीच समझौता चुका है. इस स्पाई स्टेशन का इस्तेमाल अमेरिका के सैन्य अड्डों और दूसरे अहम ठिकानों पर नज़र रखने के लिए किया जाएगा. इसके बदले क्यूबा को हज़ारों करोड़ रुपये की रकम मिलेगी. चीन-क्यूबा के बीच हुई इस सीक्रेट डील के बारे में अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को पता है.

इस रिपोर्ट में और भी कई चौंकाने वाली जानकारियां थीं. मसलन,

> स्पाई स्टेशन में ऐसी मशीनें लगेंगी, जिससे अमेरिका की ज़मीन पर ईमेल, फ़ोन कॉल, सेटेलाइट ट्रांसमिशन और हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन पर नज़र रखी जा सकेगी.

> जासूसी वाली पोस्ट अमेरिका के फ़्लोरिडा से महज 160 किलोमीटर की दूरी पर होगी. इससे अमेरिका का पूरा दक्षिणी हिस्सा स्पाई स्टेशन के दायरे में आ जाएगा. इस हिस्से में अमेरिका के कई अहम सैन्य अड्डे हैं.

> क्यूबा के ग्वांतनामो बे में अमेरिका का अपना मिलिटरी बेस है. क्यूबा की नाराज़गी के बावजूद उसने बेस छोड़ने से इनकार कर दिया था. अमेरिका इस बेस का इस्तेमाल सिग्नल इंटेलिजेंस जुटाने के लिए करता है. स्पाई स्टेशन बनने के बाद इस बेस पर भी चीन की नज़र होगी. इससे दोनों देशों के बीच टकराव हो सकता है.

> अमेरिकी अधिकारियों ने स्पाई स्टेशन की मौजूदा स्थिति बताने से इनकार कर दिया. उन्होंने ये भी नहीं बताया कि इसकी लोकेशन क्या होगी. इसके कारण आशंका वाली स्थिति बनी हुई है.

रिपोर्ट छपी तो हंगामा हुआ. अमेरिका में राजनीति शुरू हो गई. बाइडन की पार्टी के कुछ सांसदों ने चिंता जताई. विपक्षी नेताओं ने इसको मुल्क की सुरक्षा का सवाल बना लिया. इसे बाइडन सरकार की नाकामी के तौर पर पेश किया जा रहा है. राष्ट्रपति पद की दावेदारी पेश करने वालीं निक्की हेली ने इसको हाथोंहाथ लिया. ट्वीट किया,

‘सिर्फ जून में चीन ने अमेरिका के एक फ़ाइटर जेट और एक नौसैनिक जहाज की घेराबंदी की. अब वो क्यूबा में जासूसी का अड्डा तैयार कर रहा है. राष्ट्रपति बाइडन हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. उन्हें चीन की ग्रीन एनर्जी की नीतियों की अधिक चिंता है. उन्हें अब जाग जाना चाहिए. चीन का ख़तरा हमारे दरवाज़े पर आ पहुंचा है.’

अमेरिका की संसद है, कांग्रेस. इसके दो सदन हैं. निचला सदन है हाउस ऑफ़ रेप्रजेंटेटिव्स है. ऊपरी सदन सेनेट है. सेनेट की इंटेलिजेंस कमिटी के चेयरमैन और वाइस-प्रेसिडेंट ने बयान जारी कर चिंता जताई है. कहा, ये अमेरिका की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक है. बाइडन सरकार को इस ख़तरे से निपटने के लिए ज़रूरी कदम उठाने चाहिए.

अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA ने रिपोर्ट पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया.
अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने रिपोर्ट का खंडन किया. 

अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी कांउसिल के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि हमने रिपोर्ट देखी है लेकिन ये सही नहीं है. हालांकि, उन्होंने इस बात का जवाब नहीं दिया कि रिपोर्ट का कौन सा हिस्सा उन्हें गलत लगा. ये ज़रूर बोले कि क्यूबा और चीन के संबंधों को लेकर हमारी चिंताएं हैं.

वॉल स्ट्रीट जर्नल के खुलासे पर क्यूबा का बयान आया. क्यूबा के उप विदेश मंत्री ने कहा,

8 जून को वॉल स्ट्रीट जर्नल ने छापा कि कथित तौर पर क्यूबा और चीन के बीच जासूसी बेस बनाने को लेकर डील हुई है. ये रिपोर्ट पूरी तरह से झूठी और बेबुनियाद है.इस किस्म की भ्रामक सूचनाएं फैलाने के लिए अमेरिका अधिकारी कुख्यात रहे हैं.

चीन ने रिपोर्ट पर कुछ भी कहने से मना कर दिया. कहा, हमें इसकी कोई जानकारी नहीं है.

अमेरिकी न्यूज़ चैनल CNN ने भी खुफिया एजेंसियों के दो सोर्सेज़ से बात की. दोनों ने दावा किया कि डील तो हो गई है, लेकिन अभी ज़मीन पर काम शुरू नहीं हुआ है.
सरकारी बयानों में भले ही गंभीरता नहीं दिखती हो, लेकिन जानकार कुछ और कहानी बताते हैं. उनका कहना है कि इस खुलासे को हल्के में नहीं लिया जा सकता.

इसकी तीन बड़ी वजहें हैं?

नंबर एक. चीन का ट्रैक रिकॉर्ड.

तीन घटनाओं पर ग़ौर कीजिए.

1. अक्टूबर 2009. भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग(रॉ) ने रिपोर्ट दी कि चीन, नेपाल की ज़मीन का इस्तेमाल भारत पर जासूसी के लिए कर रहा है. उसने बॉर्डर पर स्टडी सेंटर खोले हुए हैं जिसके ज़रिए खुफिया जानकारियां इकट्ठा की जा रहीं हैं.

2. अप्रैल 2017. चीन पर कम्बोडिया में चुनाव आयोग, गृह और विदेश मंत्रालय से जुड़ी जानकारियां हैक करने का आरोप लगा.

3. जनवरी 2021.  इंडोनेशिया के मछुआरों को समंदर में अंडरवॉटर ड्रोन्स मिले. इसके लिए भी चीन को ज़िम्मेदार ठहराया गया.
ये कुछ उदाहरण भर हैं. चीन और भी दूसरे तरीकों से दूसरे देशों के इंटरनल मैटर में दखल देता रहा है. पिछले कुछ बरसों में इसकी संख्या बढ़ी है. मसलन, यूरोप और अमेरिका में सीक्रेट पुलिस स्टेशन चलाना हो, थिंक-टैंक्स के ज़रिए दूसरे देशों की नीतियों को प्रभावित करना या पैसे या डेट् ट्रैप के माध्यम से छोटे-मोटे देशों को परेशान करना.

जनवरी 2023 में अमेरिका ने चीन पर जासूसी बलून भेजने का आरोप लगाया था. चीन ने कहा था कि ये गुब्बारा हमारा ही है. इसको जासूसी के लिए नहीं, बल्कि मौसम की जानकारी के लिए बनाया गया था. लेकिन गलती से ये उड़कर अमेरिका की तरफ चला गया. इस सफ़ाई के बावजूद अमेरिका ने बलून को फ़ाइटर जेट भेजकर गिरवा दिया था. इस पर चीन ने नाराज़गी जताई थी. उसी समय विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन का चीन दौरा तय था. मगर उन्होंने पहले ही इसको रद्द कर दिया. जून में उनका एक और चीन दौरा तय हुआ है. मगर उससे पहले ही जासूसी स्टेशन वाली रिपोर्ट आ गई है. ब्लिंकन पर एक बार फिर से सख़्त फ़ैसला लेने का दबाव पड़ने लगा है.

नंबर दो. क्यूबा-अमेरिका संबंधों का इतिहास.

क्यूबा कैरेबियन सागर में पड़ता है. अमेरिका के दक्षिण में. सबसे नजदीकी स्टेट है, फ़्लोरिडा. क्यूबा की ज़मीन से उसकी दूरी लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर है. इस दूरी को कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों से भी भेदा जा सकता है. इसके अलावा, समुद्री बॉर्डर पर निगरानी रख पाना भी इतना आसान नहीं है. इसी वजह से अमेरिका ने अपने पड़ोस में अपने हित की सरकारों को समर्थन दिया. इसके लिए उसने हत्याओं से लेकर सैन्य तख़्तापलट जैसी घटनाओं को अंजाम दिया. उसने क्यूबा में भी यही कोशिश की.

क्यूबा में 1959 तक बटिस्टा की सरकार थी. बटिस्टा क्रूर था, तानाशाह था, मानवाधिकारों का उल्लंघन करता था, मगर वो अमेरिका के लिए फायदेमंद था. इसलिए, उसे सपोर्ट मिलता रहा.
फिर आया 1959 का साल. क्यूबा में क्रांति हुई. फिदेल कास्त्रो की गुरिल्ला सेना ने बटिस्टा सरकार को उखाड़ फेंका. बटिस्टा भाग गए. कास्त्रो कम्युनिस्ट थे. उनका झुकाव सोवियत संघ की तरफ था.

इससे अमेरिका को तगड़ा झटका लगा था. जो भी संपत्तियां अमेरिकन लोगों के हाथों में थी, उन्हें कास्त्रो ने नेशनलाइज़ कर दिया. उन्होंने बटिस्टा समर्थकों को रास्ते से हटाना भी शुरू किया. जो अभी तक कास्त्रो की सरकार को पलटने का ख़्वाब देख रहे थे, उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा. इनमें से अधिकतर अमेरिका पहुंचे. CIA ने इन्हें जमा किया. ट्रेनिंग दी. और, उन्हें विद्रोह करने के लिए तैयार किया. इस गुट का नाम रखा गया, ब्रिगेड 2506. इसका काम क्यूबा में घुसकर कास्त्रो की सरकार गिराना था.

अप्रैल 1961 में इस ब्रिगेड को क्यूबा के बे ऑफ़ पिग्स में उतारा गया. इन्होंने सरप्राइज़ अटैक कर शुरुआती बढ़त बना ली. लेकिन जल्दी ही कास्त्रो की सेना ने उन्हें पस्त कर दिया. ब्रिगेड के सौ से ज़्यादा लोग मारे गए. हज़ार से ज़्यादा अरेस्ट हुए. इस घटना के बाद दोनों देशों के रिश्ते उस मोड़ पर पहुंच गए, जहां से वापस आना नामुमकिन था. इसी का बदला लेने के लिए कास्त्रो ने सोवियत संघ को मिसाइल तैनात करने के लिए अपनी ज़मीन दी थी. इसकी कहानी हम शुरुआत में सुना चुके हैं.

क्यूबन मिसाइल क्राइसिस के बाद रिश्ते और बिगड़े. अमेरिका ने क्यूबा को आतंकियों को पैसा खिलाने का आरोप लगाया. आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए. क्यूबा को अलग-थलग कर दिया गया. CIA ने कई दफ़ा फ़िदेल कास्त्रो को मारने की कोशिश भी की. इसने भी तनाव बढ़ाया. फिर 2015 में बराक ओबामा के कार्यकाल में रिश्ता सुधारने का प्रयास शुरू हुआ. कई प्रतिबंध हटाए गए. उस साल दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहां दूतावास शुरू किया. मार्च 2016 में ओबामा क्यूबा के आधिकारिक दौरे पर गए. जनवरी 2017 में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए. उन्होंने प्रतिबंधों को दोबारा लागू कर दिया. कोविड के समय क्यूबा को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा. हालांकि, बाद में उसने ख़ुद की वैक्सीन्स डेवलप कर लीं. जनवरी 2021 में जो बाइडन राष्ट्रपति बने. उन्होंने रिश्तों में सुधार लाने की कोशिश की. लेकिन अभी भी दोनों देशों पर पुराना इतिहास हावी है. ये इतिहास उन्हें एक-दूसरे को शक़ की नज़र से देखने के लिए बाध्य करता है.

- तीसरी वजह चीन की मंशा से जुड़ी है.

पिछले कुछ बरसों में चीन ने विस्तारवाद की नीति पर बढ़-चढ़कर काम कर रहा है. साउथ चाइना सी से लेकर साउथ अमेरिका तक उसने अपना वर्चस्व बढ़ाया है. उसने साउथ अमेरिका के कई देशों को ताइवान की मान्यता खत्म करने के लिए तैयार किया है.  साउथ चाइना सी में उसने कई बार अमेरिका के टोही विमानों और जहाजों की घेराबंदी की है. कई बार सीधे टकराव की स्थिति भी पैदा हुई है. ऑस्ट्रेलिया के पास सोलोमन आईलैंड्स में उसने मिलिटरी बेस बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. फिलहाल, विदेश में उसका इकलौता मिलिटरी बेस जिबूती में है. हालांकि, म्यांमार और फ़िलिपींस में गुप्त तरीके से सेना की तैनाती की रिपोर्ट्स भी आईं हैं. इसके अलावा, ताइवान को लेकर दोनों देश उलझते रहते हैं. चीन किसी भी कीमत पर ताइवान को अपना हिस्सा बनाना चाहता है. अमेरिका ने कहा है अगर हमला हुआ तो वो जवाब देगा. इन कोशिशों में चीन हर बार अप्रत्यक्ष तौर पर अमेरिकी प्रभुत्व के लिए चुनौती बनकर उभरता है. क्यूबा में स्पाई स्टेशन बनाने की रपटों के बीच ये घटनाएं एक बार फिर से सुर्खियों में हैं.

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