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क्या CIA ने मोसाद को ईरान में बचाया?

माइक पोम्पियो की किताब में हुआ खुलासा.

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(सांकेतिक तस्वीर AFP)

‘मोसाद के एजेंट्स बाहर जाकर फंस गए थे. हम ना होते तो उनका बचना मुश्किल था.’
‘जमाल खशोग्जी की मौत दुखद थी. लेकिन हमें एक बात समझनी होगी कि वो पत्रकार नहीं था.’
‘बालाकोट स्ट्राइक के बाद भारत और पाकिस्तान न्युक्लियर वॉर के लिए तैयार थे. अमेरिका ने इसको रोका.’

ये तीनों दावे अमेरिका के पूर्व विदेशमंत्री माइक पोम्पियो के हैं. इस पर पूरी दुनिया में हंगामा मचा है. हालांकि, दावों और हंगामों की तासीर यहीं तक सीमित नहीं है. पोम्पियो ने एक पूरी किताब लिखी है. नाम है, नेवर गिव एन इंच: फ़ाइटिंग फ़ॉर द अमेरिका आई लव. पोम्पियो जनवरी 2017 से अप्रैल 2018 तक सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (CIA) के डायरेक्टर रहे. इसके बाद वो जनवरी 2021 तक अमेरिका के विदेशमंत्री थे. इस दौरान पोम्पियो कई ऐसी अहम अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के गवाह बने, जिनमें अमेरिका का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दखल था. मसलन, ईरान न्युक्लियर डील से अमेरिका की वापसी, तालिबान के साथ शांति समझौता, इस्तांबुल में सऊदी अरब के दूतावास में जमाल खशोग्जी की हत्या, पुलवामा में आतंकी हमला और बालाकोट स्ट्राइक आदि. विदेशमंत्री होने के नाते इन मसलों पर अमेरिका का पक्ष तय करने में पोम्पियो की भी भूमिका थी. उस दौर की अमेरिका की फ़ॉरेन पॉलिसी के बारे में उनसे बेहतर कम ही लोग जानते होंगे. इस लिहाज से उनकी किताब बेहद ख़ास दस्तावेज हो सकती थी. हालांकि, 24 जनवरी को लॉन्च होने के बाद से ही इसमें दर्ज तथ्यों पर सवाल खड़े हो रहे हैं. इज़रायल और अमेरिका में पोम्पियो के दावों को खारिज किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि पोम्पियो ने अपना हित साधने के लिए ऊलजुलूल बातें लिखीं है.

अमेरिका के पूर्व विदेशमंत्री माइक पोम्पियो

तो आइए जानते हैं,

- माइक पोम्पियो की किताब पर बवाल क्यों हो रहा है?
- उनकी किताब में किए दावों का बैकग्राउंड क्या है?
- और, राजनेता सनसनीखेज किताबें क्यों लिखते हैं?

नंबर एक. CIA ने मोसाद को बचाया.

पोम्पियो ने मोसाद के पूर्व डायरेक्टर योसी कोहेन के साथ हुई फ़ोन पर एक बातचीत का ज़िक्र किया है. कोहेन जनवरी 2016 से जुलाई 2021 तक मोसाद के डायरेक्टर थे. बकौल पोम्पियो, एक दिन वो यूरोप के किसी देश में लैंड कर रहे थे. तभी उनके पीए ने बताया, ‘मिस्टर डायरेक्टर, डायरेक्टर योसी कोहेन आपसे तुरंत बात करना चाहते हैं.

पोम्पियो ने लिखा है,

योसी का नाम सुनकर मैं चौंका और तुरंत प्लेन के अंदर चला गया. मुझे क्लासीफ़ाइड बातचीत के लिए बने कमरे में ले जाया गया. कोहेन लाइन पर बने हुए थे. दूसरी तरफ से आ रही आवाज़ शांत और गंभीर थी. कोहेन ने कहा, ‘माइक, मेरी टीम एक ज़रूरी मिशन के लिए गई थी. और, अब मुझे उन्हें निकालने में समस्या आ रही है. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?
बकौल पोम्पियो, मैं योसी की हर बात को गंभीरता से लेता था. वो भी मेरे लिए उतना ही उदार था. मैं अपने दोस्तों की मदद के लिए हमेशा तैयार था. मैंने कोई सवाल नहीं पूछा. जल्दी ही पूरी दुनिया में मेरे लोग हरकत में आ चुके थे. हमने उनकी टीम से संपर्क किया और 24 घंटे के अंदर वे सेफ़ हाउसेस में पहुंच चुके थे. अगले दो दिनों में वे अपने घर में थे. और, पूरी दुनिया को इस बात का पता भी नहीं चला कि, सबसे ख़तरनाक खुफिया ऑपरेशंस में से एक मुकम्मल हो चुका था.

माइक पोम्पियो ने कहानी तो बता दी. लेकिन ये नहीं बताया कि वो किस ऑपरेशन की बात कर रहे हैं. उन्होंने कोई तारीख़ नहीं बताई और ना ही देश का नाम लिया. हालांकि, जिस दौर में पोम्पियो CIA के डायरेक्टर थे, उसमें मोसाद ने सबसे बड़ा ऑपरेशन ईरान में किया था. जनवरी 2018 में मोसाद के एजेंट्स तेहरान की एक हाई-सिक्योरिटी फ़ैसिलिटी में घुसे. वहां से उन्होंने पांच सौ किलो से अधिक वजन के सीक्रेट एटमी डॉक्यूमेंट्स चुराए. और, फिर उन्हें उठाकर इज़रायल ले आए थे. इस ऑपरेशन के बारे में पब्लिक में तीन महीने बाद जानकारी बाहर आई थी. जब इज़रायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने उन डॉक्यूमेंट्स को सबके सामने दिखाया. उन्होंने दावा किया कि ईरान चुपके से परमाणु हथियार बना रहा है. इसका पता हमें 2016 में लग चुका था. तब से मोसाद उन डॉक्यूमेंट्स को निकालने के प्लान में जुटी हुई थी. (अगर आप यूएस-ईरान न्युक्लियर डील, मोसाद ऑपरेशन और ईरान के न्युक्लियर प्रोग्राम पर विस्तार से जानना चाहते हैं, तो दुनियादारी के पुराने ऐपिसोड्स देख सकते हैं. वीडियोज़ के लिंक डिस्क्रिप्शन में मिल जाएंगे.)
आज हमारा फ़ोकस पोम्पियो के दावे पर रहेगा.

पोम्पियो ने लिखा है कि ऑपरेशन में एक वक़्त ऐसा आया, जब मोसाद के एजेंट्स का बाहर निकलना मुश्किल था. तब CIA ने उनकी मदद की थी.
इज़रायल ने इस दावे पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. हालांकि, सरकारी सूत्रों ने इससे साफ इनकार किया है. जेरूसलम पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने बताया कि तेहरान से न्युक्लियर फ़ाइल्स चुराने में अमेरिका की कोई मदद नहीं ली गई थी.

अगर पहले की बात करें तो, इज़रायल सरकार ने कभी भी इस सीक्रेट ऑपरेशन से इनकार नहीं किया. बल्कि उन्होंने इसे खुले में स्वीकारा. प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने प्रेस को बुलाकर इसका प्रचार भी किया. हालांकि, उन्होंने CIA की मदद के बारे में कभी कुछ नहीं कहा. इस मामले में एक बड़ा बयान जून 2021 में आया था. उसी महीने योसी कोहेन मोसाद के डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए थे. इसके बाद उन्होंने इज़रायल के ‘चैनल 12’ को एक इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने ईरान वाले ऑपरेशन की बारीक जानकारियां दी थीं. उन्होंने बताया था कि ऑपरेशन में 20 एजेंट शामिल थे. उनमें से एक भी इज़रायली नागरिक नहीं था. ऑपरेशन को तेल अवीव के कमांड सेंटर में लाइव देखा जा रहा था.

कोहेन ने ये भी कहा कि पूरे ऑपरेशन में एक भी एजेंट को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. हालांकि, कुछ को ईरान से बाहर ज़रूर निकालना पड़ा. उन्होंने ये भी बताया कि भागने के दौरान ईरानी सेना उनके पीछे लगी थी. लेकिन एजेंट्स उन्हें चकमा देकर निकलने में सफल रहे. कोहेन ने ये बात तो स्वीकारी कि ईरान में उनके एजेंट्स फंस गए थे. लेकिन उन्होंने ये कभी नहीं कहा कि CIA वाले उनकी मदद के लिए आए थे.

जेरूसलम पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक ये माना जा रहा था कि इज़रायल ने ऑपरेशन के बारे में अमेरिका को पहले ही बता दिया था. इसके बाद ही उनके एजेंट्स न्युक्लियर आर्काइव्स चुराने घुसे थे. अगर CIA के शामिल होने वाले दावे की पुष्टि हुई तो, ये ऐतिहासिक होगा. ऐसा पहली बार हो रहा होगा कि, अमेरिका ने पब्लिकली मोसाद के साथ मिलकर ऑपरेशन चलाने की बात स्वीकारी हो. अभी के लिए सबसे बड़ी दुविधा ऑपरेशन की टाइमिंग को लेकर है.

पोम्पियो के कार्यकाल में जुलाई 2020 में ईरान में परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़खरीज़ादेह की हत्या हुई थी. इस हत्या का आरोप भी मोसाद पर लगा था. इसके अलावा, जनवरी 2020 में इराक़ की क़ुर्द फ़ोर्सेज़ के मुखिया क़ासिम सुलेमानी की हत्या में भी मोसाद का नाम आया था. हालांकि, दोनों ही समय पर माइक पोम्पियो ना तो CIA के डायरेक्टर थे, और ना ही, मोसाद के एजेंट्स के फंसने की रिपोर्ट सामने आई. जानकारों का कहना है कि अगर पोम्पियो का दावा किसी और सीक्रेट ऑपरेशन से जुड़ा है, तो ये हाल के दिनों का सबसे चौंकाने वाला खुलासा होगा.

मोहसिन फ़खरीज़ादेह

अब दावा नंबर दो. ‘जमाल खशोग्जी पत्रकार नहीं था.’

पोम्पियो ने अपनी किताब में सऊदी अरब मूल के पत्रकार जमाल खशोग्जी पर भी लिखा है. खशोग्जी अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट के लिए कॉलम लिखते थे. वो सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और सऊदी किंगडम की पुरातनपंथी रीतियों की आलोचना करते थे. इसके कारण वो सत्ता के निशाने पर आए. 2017 में उन्हें सऊदी अरब छोड़कर भागना पड़ा.भले ही जमाल ने सऊदी अरब छोड़ दिया, लेकिन सरकार ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. 02 अक्टूबर 2018 को जमाल इस्तांबुल स्थित सऊदी दूतावास में गए. और, फिर कभी बाहर नहीं निकले. अंदर ही उनकी हत्या कर दी गई थी. जमाल की हत्या की पुष्टि होने में दो हफ़्ते लग गए. जांच एजेंसियों ने दावा किया कि जमाल की हत्या का आदेश MBS ने दिया था. MBS इस आरोप से इनकार करते हैं. उनका कहना है कि उन्हें इस साज़िश की कोई जानकारी नहीं थी. 2022 में अमेरिका सरकार ने MBS के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया.

पोम्पियो ने खशोग्जी पर लिखा,

‘उसकी मौत दुखद थी, लेकिन हमें ये समझना होगा कि वो कौन था? वो उतना ही पत्रकार था, जितना कि मैं और मेरे जैसे दूसरे जाने-माने लोग. हमारा लिखा कभी-कभार पब्लिश हो जाता है, लेकिन हम दूसरी चीजें भी करते हैं. जैसा कि न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में दर्ज है, खशोग्जी आतंकियों के समर्थक मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ दोस्ताना संबंध रखते थे.’
इन दावों पर वॉशिंगटन पोस्ट के सीईओ फ़्रेड रयान का जवाब आया है. उन्होंने पोम्पियो को लताड़ लगाई है. उन्होंने कहा है कि,

‘खशोग्जी का इकलौता गुनाह ये था कि वो भ्रष्टाचार और दमन को उजागर कर रहे थे. दुनियाभर में अच्छे पत्रकार हर दिन यही करते हैं. ये शर्मनाक है कि पोम्पियो एक बहादुर इंसान की ज़िंदगी और उनके काम का मज़ाक उड़ाने के लिए झूठ फैला रहे हैं. वो अपनी किताब की बिक्री बढ़ाने के लिए एक ऐसे शख़्स को झूठा करार दे रहे हैं, जिसने अमेरिका की नैतिक प्रतिबद्धता से प्यार किया था.’

जमाल खशोग्जी

मुस्लिम ब्रदरहुड से संबंध के आरोप पर खशोग्जी की पार्टनर हनान ने नाराज़गी जताई है. उन्होंने कहा कि उनके पति ने हमेशा 9/11 के आतंकी हमलों का विरोध किया. उन्हें हमेशा ये लगता रहा कि इस हमले के सबसे बड़ा नुकसान सऊदी नागरिकों को झेलना पड़ा, क्योंकि इसने उन्हें असहिष्णु साबित कर दिया था.
हनान ने ये भी कहा कि पोम्पियो मेरे पति के बारे में कुछ नहीं जानते. उन्हें चुप रहने की ज़रूरत है.

अब तीसरे दावे की तरफ़ चलते हैं. इसका संबंध भारत से है.

पोम्पियो ने किताब में दावा किया है कि भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध के कगार पर पहुंच गए थे. ये 2019 की बात है. जब भारत ने पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में सर्जिकट स्ट्राइक की थी. इसके बाद पाकिस्तान परमाणु हमले की तैयारी कर रहा था. पोम्पियो के मुताबिक, ये बात उन्हें भारत की तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज बताई थी. भारत ने भी इसका जवाब देने की तैयारी कर ली थी.
पोम्पियो ने लिखा,

‘मुझे नहीं लगता कि किसी को इस बात का अंदाज़ा होगा कि, भारत और पाकिस्तान का झगड़ा परमाणु हमले के कितने क़रीब पहुंच गया था. हनोई की वो रात मैं कभी नहीं भूलूंगा, ऐसा लग रहा था कि उत्तर कोरिया से परमाणु हथियार पर बातचीत करना हमारे लिए काफ़ी नहीं था, जो हमें ये देखना पड़ रहा था. भारत-पाकिस्तान एक दूसरे को धमकियां दे रहे थे.’

पोम्पियो आगे लिखते हैं,

‘हनोई में, मुझे भारतीय विदेश मंत्री से बात करने के लिए जगाया गया. उनका मानना ​​था कि पाकिस्तान परमाणु हमले की तैयारी कर रहा है. उन्होंने मुझे बताया कि भारत भी अपनी तैयारी तेज करने पर विचार कर रहा है. मैंने उनसे कहा कि अभी कुछ ना करें और हमें इस मामले को सुलझाने के लिए कुछ वक़्त दें.’

पोम्पियो का दावा है कि उन्होंने परमाणु युद्ध को रोकने के लिए पूरी रात काम करते रहे. उन्होंने उस रात भारत और पाकिस्तान की सरकारों से लगातार बात की. तब जाकर संकट को टाला जा सका.

अब ये समझते हैं कि, पोम्पियो ने ये किताब लिखी क्यों?

इसकी सबसे बड़ी वजह टाइमिंग से जुड़ी है. माइक पोम्पियो 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. रिपब्लिकन पार्टी के इंटरनल इलेक्शन में उन्हें सबसे बड़ी चुनौती डोनाल्ड ट्रंप से मिलने वाली है. जानकारों का कहना है कि पोम्पियो ने पूरी किताब में ख़ुद को सेंटर में रखने की कोशिश की है. उन्होंने हर कहानी में ख़ुद को लीडर की तरह पेश किया है. उन्होंने दावा करना चाहा है कि अगर वो ना होते तो क़यामत को रोकना मुश्किल था. ऐसे समय में, जबकि ट्रंप सीक्रेट दस्तावेजों को चुराने और दूसरे मसलों पर ढीले पड़ने के आरोपों से जूझ रहे हैं, पोम्पियो के पास उस खाली जगह को भरने का पूरा मौका है. ये किताब उनके लिए सीढ़ी बन सकती है.

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