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मोसाद का जासूस लादेन के बाप से मिला और इजरायल ने गेम पलट दिया!

कहानी मोसाद के उस शातिर जासूस की, जो दुश्मन देश का प्रधानमंत्री बनने वाला था.

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एली कोहेन इस्राइल की खुफिया एजेंसी के सबसे बहादुर और साहसी जासूस थे. इस्राइल इन्हें आज भी अपना हीरो मानता है (तस्वीर-Wikimedia Commons/IMDB)

सामने स्क्रीन पर दिख रहा नक्शा देखिए, इजरायल और सीरिया के बीच पहाड़ियों वाला एक इलाका है.  इसे गोलन हाइट्स कहते हैं. 1967 तक गोलन हाइट्स सीरिया के कब्ज़े में था. फिर 1967 में सिक्स डे वॉर के दौरान इजरायल ने इस इलाके पर कब्ज़ा किया. और यहां अपनी बस्तियां बना ली. इन बस्तियों में एक का नाम एलियाद रखा गया है. ये नाम पड़ा है उस शख्स की याद में जिसके बिना इजरायल 1967 का युद्ध शायद नहीं जीत पाता. ये कहानी है एक जासूस की. ऐसा जासूस जो तीन साल इजरायल के सबसे बड़े दुश्मन की राजधानी के केंद्र में बैठा रहा. और इस दर्ज़े तक पहुंच गया, जहां लोग उसे प्रधानमंत्री बनाने की मांग करने लगे. खेल खुला तो उसे सड़क पर सब सामने फांसी पर लटका दिया गया, उसकी लाश भी उसके देश नहीं आ पाई. लेकिन आज भी जिसे इजरायल अपना सबसे बड़ा हीरो मानता है. (Israeli spy Eli Cohen)

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Eli Cohen
एली कोहेन 1961 से 1965 तक एक इस्राइली जासूस के तौर पर अपने दुश्मनों के बीच सीरिया में रहे और खुफिया जानकारी जुटाई (तस्वीर- wikimedia commons)

शुरुआत करते हैं साल 1964 में हुई एक घटना से. सीरिया की राजधानी दमिश्क़ के एक पुराने से होटल के अंधियारे कमरे में दो लोगों की मुलाक़ात होती है. और कुछ रोज़ बाद इजरायल और सीरिया के बीच युद्ध छिड़ जाता है. शुरुआत छिटपुट झड़प से हुई थी. सीरिया की फौज ने इजराइल के कुछ ट्रैक्टरों पर गोली चला दी. और बदले में इजरायल ने सीरियाई मोर्चों को तहस नहस कर दिया. इजरायल इतने पर ही नहीं रुका. दोनों देशों के बीच बहने वाली जॉर्डन नदी पर सीरिया सालों से नहरें बना रहा था ताकि इजराइल की तरफ जाने वाले पानी को मोड़ा जा सके. मौका देखकर इजराइल के मिराज विमानों ने इन नहरों पर भी बमबारी कर उन्हें नष्ट कर दिया. (Eli Cohen: The Mossad's Master Spy)

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लड़ाकू विमान सीरिया के पास भी थे. नए मिग, जो उन्हें सोवियत रूस से मिले थे. लेकिन सीरिया ने इनका उपयोग नहीं किया. क्यों? क्योंकि सीरियाई पायलटों की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई थी. इजरायल ने जिस तरह सुनियोजित हमला किया, उससे पता चलता था कि उन्हें इस बात की जानकारी थी. साथ ही नहरों के डिज़ाइन का भी उन्हें पता था. बड़ा सवाल था, कैसे? क्योंकि ये बात सिर्फ सीरियाई सेना के बड़े अधिकारियों तक सीमित थी.

इस सवाल का जवाब था, वो मीटिंग, जिसका जिक्र हमने अभी कुछ देर पहले किया था. इसी मीटिंग से इजराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद (Mossad) को सारी जानकारी मिली थी. जिसने जानकारी दी, वो नहरों के निर्माण का कांट्रेक्टर था. इस शख्स का नाम था मुहम्मद बिन अवाद, हालांकि उसका लास्ट नेम ज्यादा फेमस है.- लादेन. ये ओसामा बिन लादेन(Osama bin Laden) का बाप था. लेकिन ये कहानी लादेन की नहीं है. ये उस शख्स की कहानी है जिसने लादेन से सारी जानकारी निकलवाई थी. इस शख्स का नाम था एली कोहेन उर्फ़ कमेल अमीन थाबेत.

ट्रेनिंग और भर्ती

एली कोहेन की कहानी जानने के लिए हमें साल 1954 में चलना होगा. कोहेन की उम्र तब 30 बरस थी. वो मिश्र में था. और वहां बम विस्फोट कर रहा था. ताकि मिश्र की क़ानून व्यवस्था ख़राब हो जाए. इस प्लान के पीछे भी मोसाद थी. हालांकि कोहेन अभी तक मोसाद का एजेंट नहीं बना था. वो अपने साथियों के मदद के लिए ये सब कर रहा था. इस दौरान पुलिस ने उसे पकड़ा और जेल में डाल दिया. सबूतों के अभाव में रिहाई हुई और 1957 में वो इजरायल आ गया. यहां उसने शादी की और अपना घर बसा लिया. कुछ साल बाद उसे एक नौकरी का ऑफर मिला. ये ऑफर इजरायली सेना के ख़ुफ़िया धड़े, ‘अमन’ की तरफ से आया था. अमन की यूनिट 131 में उसके जासूसी का प्रशिक्षण दिया गया. ताकि उसे सीरिया की राजधानी दमिश्क भेजा जा सके.

दमिश्क क्यों? क्योंकि सीरिया इस वक्त इजरायल के लिए बड़ा सरदर्द बना हुआ था. सीरियाई फौज गोलन हाइट्स की पहाड़ियों से लगातार इजरायल के हिस्से में गोलाबारी करती थी. इससे भी बड़ी दिक्कत थी कि जॉर्डन नदी. जो दोनों देशों से होकर बहती थी. इसके पानी के बिना इजरायल का काम नहीं चल सकता था. इस मौके को भांपते हुए सीरिया नदी पर नहरों का जाल बना रहा था ताकि पानी का रुख मोड़ा जा सके. नहर परियोजना की जानकारी हासिल करने के लिए इजरायल को एक जासूस की जरुरत थी. और इस काम के लिए उन्होंने कोहेन को चुना.

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ओसामा बिन लादेन के पिता मुहम्मद बिन अवाद सीरिया में नहरों के कांट्रेक्टर थे, उन्होंने एली कोहेन तक खुफिया जानकारी पहुंचाई थी (तस्वीर- factsanddetails.com/wikimedia commons)

कोहेन को 6 महीने की ट्रेनिंग दी गई. जिस दौरान उसे तरह-तरह के हुनर सीखने थे. मसलन उसके सामने चाबी, सिगरेट, पेन और कुछ कागज़ रखे जाते थे. जिन्हें सिर्फ दो सेकेण्ड देखकर उसे उनकी डिटेल्स याद करनी होती थीं. साथ ही उसे टैंकों तोपों, लड़ाकू विमानों को पहचानना सिखाया गया. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अब बारी थी एक नई पहचान गढ़ने की. एली कोहेन को एक नया नाम दिया गया, कमेल अमीन थाबेत. जिसकी पहचान कुछ यूं थी-

थाबेत का जन्म लेबनान में हुआ था. उसके माता पिता सीरिया से थे. और उसे चाचा अर्जेंटीना में बस गए थे. उसके जन्म के कुछ समय बाद उसके चाचा ने उसके परिवार को अर्जेंटीना बुला लिया और वहीं उसकी पढ़ाई हुई. उसके पिता कपड़ों के व्यापारी थे. लेकिन एक बार बड़ा घाटा होने के कहते उसके पिता सदमे से चल बसे थे. 6 महीने बाद उसकी मां की भी मौत हो गई थी. थाबेत ने एक ट्रेवल एजेंसी में नौकरी की और फिर कारोबार की दुनिया में आ गया. जहां जल्द ही वो अर्जेंटीना का एक बड़ा व्यापारी बन गया.
कहानी अच्छी थी और इसे अमली जामा पहनाने के लिए थाबेट का अर्जेंटीना जाना जरूरी था. थाबेट अपने परिवार को ये सब नहीं बता सकता था, इसलिए उसने अपनी पत्नी से कहा कि उसे यूरोप में एक नौकरी मिली है. ऐसा कहकर वो अर्जेंटीना चला गया.

दमिश्क में अपना आदमी

अर्जेटीना में थाबेत ने लोगों से पहचान बढ़ाई. वो पार्टियों में जाने लगा. ऐसी ही एक पार्टी में उसकी मुलाक़ात, अमीन अल हाफेज़ से हुई. जो उस समय सीरिया की सेना में एक जनरल थे. और आगे थाबेत के लिए बड़े काम के साबित होने वाले थे. इसके लिए उसका सीरिया जाना जरूरी था. कुछ रोज़ बाद उसने अर्जेंटीना में रहने वाले एक रसूखदार अरब से दोस्ती की. और एक रोज़ बातों ही बातों में उससे सीरिया जाने की इच्छा जाहिर की. दमिश्क जाने का इंतज़ाम हुआ और जनवरी 1962 में कमेल अमीन थाबेत सीरिया पहुंच गया.

सीरिया पहुंचकर भी उसने वही तरीका अपनाया. उसने कारोबारी लोगों से दोस्ती बनाई, खूब दान दक्षिणा दी. और जल्द ही एक सीरिया के सम्मानित व्यापारियों में उसे गिना जाने लगा. अब बस जरुरत थी सरकार तक पहुंच बनाने की. ये मौका भी जल्द ही मिला. 1963 में एक सैन्य तख्तापलट में अमीन अल हाफेज़ सीरिया के राष्ट्रपति बन गए. वही जनरल जिनसे थाबेत अब तक गहरी दोस्ती बना चुका था. और जिनकी बदौलत अब सीरिया की ख़ुफ़िया जानकारी उसके हाथ लगने वाली थी.

दमिश्क के एक पॉश इलाके में थाबेत ने बंगला ख़रीदा था. यहां पार्टियां होती थीं, जिनमें सेना के बड़े जनरल और सरकार के सारे मंत्री शरीक होते थे. खुद राष्ट्रपति भी इन महफ़िलों की रौनक बढ़ाते थे. महफ़िलों में जाम टकराते, शराब अंदर जाती तो राज़ बाहर आते. जिन पर शराब का असर नहीं होता , उनके लिए शबाब मौजूद रहता. थाबेत सरकार और सेना के अधिकारियों के पास लड़कियां भेजा करता. जो वापिस आकर उसे कई ख़ुफ़िया जानकारियां देती. जब ये तरीका भी काम न आता तो थाबेत एक और तरकीब अपनाता. अब तक उसका राजनैतिक रसूख इतना बढ़ गया था कि उसे मंत्रीमंडल से जोड़ने की बातें उठने लगी थीं.

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अमीन अल हाफेज़ 27 जुलाई 1963 से 23 फरवरी 1966 तक सीरिया के राष्ट्रपति रहे (तस्वीर- wikimedia commons/Amazon)

अल हाफेज़ उसे रक्षा मंत्री बनने का न्योता दे चुके थे. और कई लोग तो उसे प्रधानमंत्री का दावेदार बताने लगे थे. इसी रसूख के भरोसे वो सेना के जनरलों को भी खरी-खोटी सुना देता था. वो इजरायल की भरपूर बुराई करता और कहता कि सेना के जनरल इजरायल के खिलाफ पर्याप्त आक्रामक नहीं है. उन्हें और हमले करने चाहिए. ये सुनकर जनरलों का खूब खौलने लगता. वो उसे खुद बॉर्डर तक लेकर जाते और वहां तमाम हथियार, तोप टैंक आदि उसे दिखाते.

इन जानकारियों को मोसाद के पास पहुंचाने का थाबेत का तरीका भी अनूठा था. वो छोटी-छोटी डिब्बियों में कागज़ छुपाकर अर्जेंटीना में अपने दोस्तों तक पहुंचाता, जहां से ये जानकारी इजरायल तक पहुंच जाती. हालांकि इस काम में टाइम अधिक लगता था. इसलिए थाबेत एक और तरीक़ा अपनाता था. रेडियो उपकरण की मदद से वो अपने संदेश सीधे इज़रायल में मोसाद के पास भेजता था. उसका घर  मुख्यालय के एकदम करीब था. जहां से रोज़ ऐसे हजारों रेडियो ट्रांसमिशन होते थे. इसलिए पकड़े जाने की सम्भावना न के बराबर थी.

इन तरीकों से उसने तमाम ख़ुफ़िया जानकारियां मोसाद तक पहुंचाई. इन जानकारियों की बदौलत इजराइल को जॉर्डन पर बन रही नहरों का पूरा खाका मिला. हर बार वो हमला कर नहर निर्माण को तोड़ डालते थे. यहीं से उन्हें पता चला कि सीरियाई एयर फ़ोर्स के मिग विमान उड़ने की हालत में नहीं हैं. ये सब थाबेत की बदौलत हुआ लेकिन खुद उसकी हालत दिन पर दिन बदतर होती जा रही थी. तीन साल तक दोहरा चरित्र निभाते-निभाते थाबेत परेशान हो गया था. इन सालों में उसे सिर्फ एक दो बार ही अपने परिवार से मिलने का मौका मिला. एक दुश्मन देश में वो एकदम अकेला था और इस दौरान उसे झूठी पहचान बनाए रखनी थी. इसी तनाव से गुजरते हुए एक दिन उससे बड़ी गलती हो गई.  

#थाबेत का राज़ कैसे खुला?

साल 1964 तक सीरिया की सरकार को शक होने लगा था कि उनके बीच कोई जासूस है. रात को मंत्रीमंडल की बैठक में जो फैसला होता वो अगली सुबह इजरायल के अखबारों में छपा होता. इजरायल के हमले इतने सटीक होते कि उन्हें बिना किसी पूर्व जानकारी के अंजाम देना असंभव था. ये जानकारी बहुत तेज़ी से इजरायल तक पहुंच जाती थी. जिसका मतलब ये सन्देश रेडियो के माध्यम से ट्रांसमिट हो रहे थे. अधिकारियों ने जासूसी ट्रांसमिटर की खोज शुरू की.  लेकिन जीतोड़ कोशिश के बावजूद वे फेल रहे.

जनवरी 1965 में उनकी किस्मत खुली, तब सोवियत रूस ने नई तकनीक वाले कुछ सुरक्षा उपकरण सीरिया को भिजवाए. जिस रोज़ नए उपकरण लगे, उनकी जांच के लिए सेना के ट्रांसमिशन को 24 घंटे तक बंद कर दिया गया. अधिकारियों ने पाया कि एक जगह से रेडियो सन्देश अभी भी प्रसारित हो रहा है. उन्होंने सोर्स खोजने की कोशिश की. अंधेरे रास्ते में वो एक मकान की ओर बढ़े लेकिन बीच में ही प्रसारण बंद हो गया. सामने देखा तो वहां कमेल अमीन थाबेत का घर था. इस घर में घुसने की हिम्मत किसी की न थी. जब एक वरिष्ठ अधिकारी को ये बताया गया तो उसने बात को दरकिनार करते हुए कहा, तुमसे कोई भूल हुई होगी.  उसी शाम को एक बार फिर जासूसी ट्रांसमिशन शुरू हुआ. अधिकारी एक बार फिर उसके पीछे गए. मशीन एक बार फिर थाबेत के घर की ओर इशारा कर रही थी.

Eli Cohen death
18 मई, 1965 को दमिश्क में एक सार्वजनिक चौराहे पर एली कोहेन को फांसी पर लटका दिया गया, उनके गले में एक बैनर भी लटकाया गया था, जिसपर लिखा था, 'सीरिया में मौजूद अरबी लोगों की तरफ से' (तस्वीर- Getty)

अगली सुबह आठ बजे फौज थाबेत के घर में दाखिल हुई और उन्हें रंगे हाथ धर लिया गया. जिस वक्त उन्हें पकड़ा गया, वो ट्रांसमिशन के बटन दबाने में बिजी थे. उन्हें जेल में डालकर भयंकर टॉर्चर किया गया. थाबेत ने अपनी असलियत कबूल कर ली. उनका असली नाम एली कोहेन दुनिया के सामने आ चुका था. सीरियाई सरकार के सभी आला अफसरों और मंत्रियों का उनसे रिश्ता था. इसलिए जल्दबाज़ी में एक  मिलिट्री कोर्ट में मुक़दमा चलाकर कोहेन को फांसी की सजा सुना दी गई. कोहेन को छुड़ाने की कई कोशिशें की गई. इजरायल ने सीरिया को उन्नत तकनीक के कृषि औज़ार देने की पेशकश की. लेकिन सीरिया तैयार नहीं हुआ.

18 माई 1965 के रोज़ आधी रात को उन्हें जगाकर जागकर सफ़ेद कपड़े पहनाए गए.  उन्हें दमिश्क के एक चौक पर ले जाया गया. उनके सीने में एक बड़ा सा पोस्टर चिपकाया गया, जिसमें अरबी में उनका गुनाह और सजा लिखी हुई थी. इसके बाद सबके सामने उन्हें फांसी पर लटका दिया गया. उनका शव कई देर वहां लटका रहा. और लोग उसे देखते हुए चौक से गुजरते रहे. 
जैसे ही  इजरायल में प्रसारित लोग सड़कों पर उतर गए. कोहेन रातों रात देश के हीरो बन गए.

इजरायल ने कोहेन का शव मांगा लेकिन सीरिया ने उसे लौटाने से इंकार कर दिया. कोहेन की मौत के दो साल बाद इज़रायल और अरब देशों के बीच  डे वॉर हुई. इस युद्ध में कोहेन की जीत के पीछे कोहेन का बड़ा हाथ था. उनके द्वारा लन हाइट्स में सीरियाई सेना के फ़ॉर्मेशन और हथियारों से जुड़ी जानकारी से इज़रायल को युद्ध में काफ़ी मदद मिली थी. कोहेन की ज़िंदगी पर Netflix पर द स्पाई नाम से एक सिरीज़ मौजूद है. बहुत बढ़िया बनाई है, चाहें तो देख सकते हैं.

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