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अमृतपाल सिंह 'खालिस्तान आंदोलन' का बड़ा चेहरा कैसे बना, ये है पूरी कहानी

पुलिस को दो बार चकमा देने के बाद अमृतपाल ने सरेंडर किया.

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वारिस पंजाब दे के मुखिया अमृतपाल सिंह (फोटो- इंडिया टुडे/बंदीप सिंह)

18 मार्च 2023. दोपहर के करीब 12 बज रहे थे. तरणतारण जिले में पड़ने वाले गाँव हरिके से होकर एक गाड़ियों का काफिला गुजर रहा था. इसमें सबसे आगे एक सफ़ेद रंग की मर्सडीज GLS 400डी चल रही थी, जिसका नंबर था, HR 72 E 1818. बरनाला की तरफ जा रही सड़क पर जैसे ही यह काफिला आगे की तरफ बढ़ा तो सामने एक पुलिस नाकाबंदी दिखाई दी. भारी पुलिस जाब्ते को देखकर मर्सडीज चला रहे शख्स को थोड़ा अंदेशा हुआ. उसने औचक तरीके से यू-टर्न ले लिया. इसके बाद पुलिस की गाड़ियां काफिले के पीछे लग गईं. कई किलोमीटर चले चूहे-बिल्ली के इस खेल में आखिरकार पुलिस ने काफिले की कुछ गाड़ियों को दबोच लिया. लेकिन पुलिस को जिस शख्स की सबसे ज्यादा तलाश थी वो अपने कुछ साथियों के साथ भागने में कामयाम रहा. शख्स का नाम अमृतपाल सिंह. 'वारिस पंजाब दे' नाम की सिख जत्थेबंदी का मुखिया.

लेकिन 23 अप्रैल की सुबह आखिर ये खबर आ ही गई कि अमृतपाल को पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. खबरों के मुताबिक अमृतपाल ने पंजाब के मोगा में खुद सरेंडर किया. 

अमृतपाल के खिलाफ शुरू हुआ पुलिस अभियान अचानक नहीं हुआ था. पंजाब में बढ़ रही खालिस्तानी गतिविधि पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय लगातार नजर बनाए हुए थी. जनवरी के महीने में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने अमृतपाल पर एक डोजिएर गृह मंत्रालय को सौंपा था. बीती 2 मार्च को गृह मंत्री अमित शाह और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच हुई बैठक के बाद अगले दिन CRPF की 18 कंपनियां पंजाब के लिए रवाना कर दी गई थीं. तब तक यह तय हो  गया था कि पंजाब में खालिस्तानी अतिवादियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई होने वाली है. फिलहाल पंजाब में तनावपूर्ण शांति है. इंटरनेट बंद है और अफवाहें हवा में तैर रही हैं. लेकिन इस पूरी कहानी की शुरुआत कैसे हुई? कैसे तीन दशक तक ठुड्डेलाइन रहने के बाद खालिस्तानी आन्दोलन फिर से अपने उरूज पर है? इस कहानी को समझने के कई सिरे हैं, जिसमें से एक हमें अमृतसर के कस्बे अजनाला तक ले जाता है.

अमृतसर का कस्बा अजनाला. पाकिस्तान सीमा से सटा यह कस्बा 1857 के विद्रोह और अंग्रेजी शासन की बर्बरता का गवाह रहा है. 1857 में लाहौर में तैनात 26वीं नेटिव इन्फेंट्री के 282 विद्रोही सिपाहियों को लाहौर के डिप्टी कमिश्नर फैड्रिक हेनरी कूपर ने क़त्ल करवाकर अजनाला के एक सूखे कुअें में दबवा दिया था. आज यह जगह 'शहीदां दा खू' के नाम जानी जाती है. लेकिन 23 फरवरी को अजनाला एक ऐसे बलवे का गवाह बनने जा रहा था, जिसे इतिहास में पंजाब पुलिस के घटते इकबाल के सबूत के तौर पर दर्ज किया जाएगा.

23 फरवरी के रोज 'वारिस पंजाब दे' नाम की सिख जत्थेबंदी के जत्थेदार अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में तलवार,डंडे और कृपाण से लैस हजारों प्रदर्शनकारियों ने अजनाला पुलिस थाने पर धावा बोल दिया. पुलिस की तरफ से लगाए गए बैरिकेड उखाड़कर तलवार लहराते हुए प्रदर्शनकारी पुलिस थाने के अन्दर घुसे और अगले कई घंटों तक पुलिस थाने को बंधक बनाए रखा. अमृतपाल अपने एक साथी लवप्रीत सिंह उर्फ़ तूफ़ान की रिहाई की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. लवप्रीत सिंह को पुलिस ने 17 फरवरी के रोज एक नामजद शिकायत के चलते गिफ्तार किया था. चमकौर साहिब के रहने वाले वरिंदर ने अजनाला पुलिस को दी लिखित शिकायत में कहा था कि वो अजनाला में दमदमी टकसाल (अजनाला) के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे. उन्हें यहाँ से लवप्रीत और उसके अगवा करके ले गाए और फिर उनके साथ मारपीट करके छोड़ दिया. इस मामले में लवप्रीत के अलावा अमृतपाल सिंह के खिलाफ भी मुकदमा हुआ था.

पंजाब पुलिस बैकफुट पर

अमृतपाल के हिंसक प्रदर्शन के बाद पुलिस पूरी तरह से बैकफुट पर नजर आई. आलम यह था कि अमृतसर (ग्रामीण) के एसएसपी सतिंदर सिंह को मीडिया के सामने लवप्रीत सिंह तूफ़ान को रिहा करने और उनके खिलाफ चल रहा मुकदमा खत्म करने का आश्वासन देने पड़ा. इसके बाद अमृतपाल और उसके हथियारबंद साथियों ने थाना खाली किया. अमृतपाल का यह प्रदर्शन चालीस साल पहले घटी ऐसी ही एक घटना की याद दिलाता है.

19 जुलाई 1982. दमदमी टकसाल के जत्थेदार जरनैल सिंह भिंडरावाले के करीबी सिपहसालार अमरीक सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. अमरीक सिंह उस समय आल इंडिया सिख स्टूडेंट फेडरेशन के अध्यक्ष हुआ करते थे. उनके खिलाफ अमृतसर निरंकारी मंडल के प्रोपगेंडा सेक्रेटरी जोगिंदर सिंह पर जानलेवा हमला करने का आरोप था. तत्कालीन राज्यपाल चेन्ना रेड्डी जब अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के दर्शन के लिए आए तो अमरीक सिंह ने आल इंडिया सिख स्टूडेंट फेडरेशन के गिरफ्तार साथियों की रिहाई की मांग करते हुए चेन्ना रेड्डी के साथ बदसलूकी की थी. उसके बाद रेड्डी ने व्यकतिगत तौर पर उसकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे.

अमरीक सिंह भिंडरावाले का सबसे करीबी आदमी हुआ करता था. वो भिंडरावाले के गुरु करतार सिंह भिंडरावाले का बेटा था. अमरीक सिंह की गिरफ्तारी के बाद भिंडरावाले ने सबसे पहले अपना बेस मेहता चौंक गुरूद्वारे से बदलकर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर कॉम्प्लेक्स में बने गुरु नानक निवास सराय कर लिया. भिंडरावाले ने अमरीक सिंह की रिहाई के लिए मोर्चा शुरू किया. इस मोर्चे को संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और जगदेव सिंह तलवंडी का समर्थन हासिल हुआ. लोंगोवाल और तलवंडी दोनों शिरोमणि अकाली दल के दो धड़ों का प्रतिनिधित्व करते थे. इन तीनों ने मिलकर 'धर्म युद्ध मोर्चा' नाम से प्रदर्शन शुरू किए. इसके बाद पंजाब की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई. अमृतपाल सिंह और जरनैल सिंह भिंडरावाले के बीच यह एकलौता इत्तेफाक नहीं है. पूरी कहानी को समझने के लिए हमें अमृतसर के गांव जल्लूपुर-खेड़ा चलना होगा.

अपने साथियों के साथ अमृतपाल सिंह (फोटो- इंडिया टुडे/प्रभजोत गिल)

पंजाब के अमृतसर जिले का गांव जल्लुपुर खेड़ा. शाम के करीब पांच बज रहे थे. करीब 20-25 लोग एक जाजम पर बैठे हुए हैं. उनसे करीब 100 गज की दूरी पर एक गुरुद्वारा है जिसमें कुछ सेवादार शाम के लंगर की तैयारी में जुटे हुए हैं. गुरुद्वारे और जाजम पर बैठे लोगों के दरम्यान प्लास्टिक शीट का एक सात फीट ऊंचा वी अकार का तंबू तना हुआ है. इसके दरवाजे पर चार राइफलधारी जवान मुस्तैदी से खड़े हुए हैं. सामने एक मजबूत कद-काठी का निहंग सिख हाथ में बरछा लिए सामने कुर्सी पर बैठा हुआ है. जाजम पर बैठे लोग तंबू की तरफ इंतजार करती निगाहों से ताक रहे हैं. तभी एक 29 साल का नौजवान तंबू से बाहर नमूदार होता हैं. सिर पर बसंती रंग का परना, सफ़ेद बाना और हाथ में कत्थई म्यान वाली शमशीर. वो बड़ी नफासत के साथ महज 10 गज की दूरी पर बिछी जाजम की तरफ बढ़ता है. उससे पहले कुछ सेवादार उसका कंबल और बैठने का आसन ले जाकर जाजम पर रख देते है. यह नौजवान अपने आसन पर बैठता है. चारों राइफलधारी उसके पीछे खड़े हो जाते हैं. वो अपनी शमशीर आगे अपनी गोद में रखकर लोगों से मुखातिब होता है. नौजवान का नाम अमृतपाल सिंह. पंजाब की राजनीति में किसी धूमकेतु की तरफ उभरने वाले अमृतपाल सिंह के पास हर रोज दर्जनों मुलाकाती अपनी समस्याओं के निपटारे के लिए आते हैं.

जल्लुपुर-खेड़ा के पास ही गांव मूक जोगेवाल के रहने वाले 70 साल के अमर सिंह शान्ति से अपनी बारी का इंतजार करते हैं. थोड़ी देर बाद वो अमृतपाल को पंजाबी में अपनी समस्या बताते हैं, 

“आड़तिया 20 साल से मेरे खाकर बैठा हुआ है. साल 2000 में मैंने कुछ जमीन बेचकर उसे पांच लाख रूपए दिए थे. अब वो लौटा नहीं रहा है. कितने ही दिनों से चक्कर काट रहा हूँ. पुलिस में भी रिपोर्ट लिखवाई लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला.”

अमृतपाल बड़ी गंभीरता से बात सुनता है. फिर अपने एक सहयोगी को निर्देश देता हैं, "तूफ़ान को काम पर लगाओ." इसके बाद वो अमर सिंह से मुखातिब होता है, "आप इनको आड़तिये का नाम और नंबर लिखवा दो."

सबसे आखिर में नौजवानों का एक जत्था मुलाकात के लिए आता है. 'हम आपके साथ हैं' के आश्वासन के कुछ रुपए और एक इस्पात का तीर भेंट करता है. इस्पात का तीर 80-90 के दशक के पंजाब में चली खालिस्तानी मिलिटेंसी के केंद्र में रहे जरनैल सिंह भिंडरावाले की शख्सियत के साथ कुछ इस कदर नत्थी रहा है कि उनका एक नाम 'तीरवाले बाबा' भी पड़ गया था. लेकिन इस्पात तीर 29 साल के इस नौजवान और भिंडरावाले के बीच की इकलौती कड़ी नहीं है. इस पूरे सिलसिले को समझने के लिए हमें चार महीने पीछे चलना होगा.

अमृतपाल सिंह की दस्तारबंदी

पंजाब के मोगा जिले का गांव रोडे. लगभग दो हजार घरों की आबादी वाले इस गांव से लगभग हर सिख वाकिफ है. यह सिखों के धार्मिक संस्थान दमदमी टकसाल के 14वें जत्थेदार और खालिस्तानी आन्दोलन के केंद्र में रहे संत जरनैल सिंह भिंडरावाले का पैतृक गांव है. फरवरी 2018 में इस गांव में भिंडरावाले की याद में एक गुरुद्वारा कायम किया गया जिसे नाम दिया गया, 'गुरुद्वारा संत खालसा'. 29 सितम्बर 2022 को इस गुरूद्वारे के परिसर में हजारों की भीड़ जमा थी. मौका था 'वारिस पंजाब दे' के नए जत्थेदार अमृतपाल सिंह की दस्तारबंदी का. पंजाबी में दस्तार सिर पर बंधने वाले साफे को कहा जाता है. यह मुखिया नियुक्त किए जाने की सांकेतिक रस्म है. इस मौके पर दमदमी टकसाल सहित पंजाब के कई गुरुद्वारों से लोग शामिल हुए थे.

सिख धर्म का सुप्रीम कोर्ट कहे जाने वाले अकाल तख़्त के जत्थेदार और भिंडरावाले के भतीजे जसबीर सिंह रोडे ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की. मंच से उन्होंने एक जरुरी बात कही, 

“आप सब संगत के मन में कोई भुलावा ना रहे, इसलिए यह बात साफ़ करना जरुरी है. यह दस्तारबंदी 'वारिस पंजाब दे' जत्थेबंदी के नए जत्थेदार भाई अमृतपाल सिंह की दस्तारबंदी है.”

जसबीर सिंह रोडे को यह स्पष्टीकरण देने की जरूरत क्यों आन पड़ी. पूरे कार्यक्रम को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया था कि अमृतपाल सिंह को नए भिंडरावाले के तौर पर पेश किया जा सके. 'वारिस पंजाब दे' वकील से अभिनेता बने दीप सिद्धू के द्वारा शुरू सितम्बर 2021 में शुरू की गई जत्थेबंदी थी. इस जत्थेबंदी का रोडे गांव से कोई सीधा संबंध नहीं था. फिर भी रोडे गांव में दस्तारबंदी का मतलब था कि कुछ बिन्दुओं के बीच एक रेखा खींचे जाने की कोशिश हो रही थी. इस कार्यक्रम में अमृतपाल सिंह के भाषण से ठीक पहले 'खालिस्तान जिंदाबाद' के नारे भी लगाए गए. हालाँकि इसी कार्यक्रम में अमृतपाल सिंह ने साफ़ किया कि उनका इरादा खुद को भिंडरावाले के वारिस के तौर पर पेश करने का नहीं है. उन्होंने कहा, 

“मैं संतों (भिंडरावाले) के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूँ, मैं उनके दिखाए रास्ते पर चलने की कोशिश करूँगा.”

लेकिन पंजाब के सिख या पंथक फलक अचानक से अमृतपाल सिंह जैसे गर्म ख्याली वाले नौजवान का उभरना पहली नजर में संदिग्ध जान पड़ता है. जिस तरीके से वो 'वारिस पंजाब दे' जत्थेबंदी की कयादत हासिल करता है. अमृतपाल के भारत लौटने से पहले जिस तरीके उसके पक्ष में सोशल मीडिया अभियान चलाया गया. जिस तरह से उसके भारत लौटने को एक मीडिया इवेंट में तब्दील कर दिया गया. खुलेआम खालिस्तान बनाने की बात कहने के बावजूद वो अब तक सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई के दायरे से बाहर रहा है. ये कुछ ऐसे सिरे हैं जिन्हें एक तरतीब से समझना जरुरी है.

अमृतपाल की पूरी कहानी

अमृतपाल की कहानी अमृतसर से शुरू होती है. उसकी पैदाइश अमृतसर के बाबा बकाला तहसील के गांव जल्लुपुर खेड़ा की है. पंजाब के माझा इलाके में पड़ने वाला यह गांव 80 और 90 के दशक की खाड़कू लहर में काफी सक्रिय रहा था. पंजाबी के शब्द खाड़कू का हिंदी तर्जमा लड़ाका है. 1980 और 90 के दशक में खालिस्तान को लेकर हुए हथियारबंद संघर्ष को पंजाब में खाड़कू लहर के नाम से जाता है. इस दौरान पंजाब पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर के भी आरोप लगे. पंजाब में हुए फर्जी एनकाउंटर पर डाटा इकठ्ठा करने वाले संगठन इन्साफ के अनुसार अमृतपाल के गांव जल्लुपुर खेड़ा के दो नौजवानों पंजाब पुलिस के फर्जी एनकाउंटर का शिकार हुए. हालाँकि गांव के कई लोग फर्जी एनकाउंटर की संख्या आठ बताते हैं. अक्टूबर 1990 में दिल्ली से विस्फोटक के साथ पकड़े गए खालिस्तानी आतंकवादी गुरदीप सिंह खेडा भी इसी गांव के रहने वाले वाले हैं.

अमृतपाल सिंह (फोटो- इंडिया टुडे/बंदीप सिंह)

अमृतपाल का परिवार गांव के समृद्ध परिवारों में से एक है. उनके चाचा 70 के दशक में कनाडा चले गए थे, जहां उन्होंने संधू ट्रांसपोर्ट के नाम से ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय शुरू किया. बाद में परिवार ने इस व्यवसाय में बढाते हुए दुबई में भी ट्रांसपोर्ट का काम शुरू कर लिया जिसे सँभालने के लिए अमृतपाल के पिता दुबई गए. गांव में सरपंच का चुनाव लड़ने के अलावा उनके परिवार का राजनीति से कोई सीधा सरोकार नहीं है. उनके परिवार की छवि एक उदार पंथक परिवार की रही है. उनके दादा-दादी अमृतधारी सिख रहे हैं जिन्होंने दमदमी टकसाल से अमृत छका था. अमृत छकना सिखों का एक धार्मिक संस्कार है. इसकी शुरुआत गुरु गोविन्द सिंह ने की थी. इस संस्कार में गुरु ग्रन्थ साहिब की हाजरी में पंच प्यारे लोहे के पात्र में खंडा (दुधारी तलवार) घुमाकर तैयार किया पवित्र जल पिलाते हैं. इसको पीने वाला शख्स खालसा सिख कहलाता है और पांचों ककार (केश, कंघा, कच्छ,कृपाण और कड़ा) धारण करता है. उसे अपना जीवन गुरु गोविन्द साहेब के बतलाए नियम या 'रहत-मर्यादा' के अनुसार जीना होता है. अमृतपाल के परिवार में कई लोग साबत सूरत सिख नहीं है. मतलब कई लोग लोग गुरु गोविन्द सिंह के बताए पांचों ककार का पालन नहीं करते हैं. खुद अमृतपाल सिंह सिंह नवम्बर 2021 से पहले केशधारी सिख नहीं थे.

अमृतपाल सिंह का शुरुआती उभार सोशल मीडिया के जरिए हुआ. 26 जनवरी 2021 को किसान आन्दोलन के दौरान लाल किले पर निशान साहेब फहराने की घटना के बाद किसान संगठन दो फाड़ हो गए थे. दीप सिद्धू को इस पूरी घटना का दोषी बताकर पेश किया जा रहा था. इस समय अमृतपाल सिंह फेसबुक पर कई लाइव करके दीप सिद्धू का बचाव किया और निशान साहेब फहराने की घटना को जायज ठहराया. इस दौरान वो पहली बार लोगों की नज़रों में आए. फरवरी 2021 में दीप सिद्धू की गिरफ्तारी के बाद उसने दीप सिद्धू के पक्ष में बड़ी उग्रता के साथ सोशल मीडिया प्रचार अभियान चलाया.

अमृतपाल इस बीच सोशल मीडिया एप 'क्लब हाउस' पर काफी सक्रिय हो चुके थे. वो सिख पंथ के मुदों को लेकर क्लब हाउस पर चर्चाओं को मोडरेट करने लगे. इसने उन्हें प्रवासी सिखों के बीच शुरूआती लोकप्रियता दिलाई. इस बीच जून 2021 में कश्मीर में दो सिख युवतियों के मनमीत कौर और दलप्रीत कौर को बलपूर्वक इस्लाम धर्म अपनाने और मुस्लिम युवकों से शादी करवाने की खबर सामने आई. हालाँकि पुलिस ने तहकीकात में पाया कि दोनों युवतियों ने अपनी मर्जी से इस्लाम स्वीकार किया था और शादी की. लेकिन इस खबर के बाद श्रीनगर में कई सिख संगठनों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया. इस मुद्दे पर एक चर्चा के दौरान अमृतपाल सिंह और कनाडा में रह रही इतिहास की प्रोफेसर शरण कौर के बीच गरमा-गर्म बहस हो गई. अमृतपाल ने फेमिनिज्म और दूसरे उदार विचारों की व्याख्या सिख पहचान पर हमले की तरह की. इस बहस ने कनाडा प्रवासी सिखों के रैडिकल धड़े का ध्यान अमृतपाल की तरफ खींचा.

एक तरफ अमृतपाल सोशल मीडिया पर अपने दक्षिणपंथी सिख विचारों के चलते प्रवासी सिखों के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहा था. दूसरी तरफ किसान आन्दोलन के दौरान सिख पंथक विचारधारा का पोस्टर बॉय बनकर उभरे अभिनेता दीप सिद्धू अपना नया संगठन खड़ा करने में लगे हुए थे. सितम्बर 2021 में दीप सिद्धू ने 'वारिस पंजाब दे' नाम से एक जत्थेबंदी की शुरुआत की. दीप के एक पुराने साथी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, "लाल किले पर निशान साहेब फहराने के बाद किसान संगठनों ने दीप से किनारा कर लिया था. इसके बाद दीप ने अपनी जत्थेबंदी बनाने की शुरुआत की. इस जत्थेबंदी के काम-काज को देखने के लिए सात लोगों की एक कमिटी बनी. अमृतपाल सिंह इसका सदस्य नहीं था. दीप का आइडिया था कि इस जत्थेबंदी को एक सामाजिक प्रेशर ग्रुप की तरह रखा जाए, ताकि हम सिखों की मांग को आगे लेकर जा सकें. दीप इसके संगठन को कई परतों में आगे बढ़ाना चाहते थे. मसलन स्टूडेंट विंग, यूथ विंग, व्यापारी और किसान मोर्चा."

'वारिस पंजाब दे' जत्थेबंदी के शुरुआती संगठन में अमृतपाल सीधे तौर पर कहीं भी शामिल नहीं थे. दीप से करीबी के उनके दावे के पक्ष में भी कोई ठोस सबूत सामने नहीं आते हैं. दीप सिद्धू की मौत के बाद अमृतपाल का 'वारिस पंजाब दे' जत्थेबंदी का अचानक से सदर बन विवादों के घेरे में रहा है.

फरवरी 2022 में दीप सिद्धू की एक कार दुर्घटना में असामयिक मौत के चार दिन बाद क्लब हाउस पर एक क्लोज ग्रुप मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में अमृतपाल सहित कुल 15-16 लोग शामिल थे. मीटिंग का उद्देश्य एक पांच महीने पुराने संगठन के भविष्य की रणनीति तय करना था. इसी मीटिंग में दीप के साथी रहे गुरसेवक सिंह भाना,अवतार सिंह खंडा, बसंत सिंह, दलजीत कलसी,हुस्नदीप सिंह और जगदीप सरपंच जैसे लोगों ने अमृतपाल के सामने इस संगठन की कमान लेने की पेशकश की. अमृतपाल सिंह बोलने में अच्छे थे. शुरूआती रणनीति के अनुसार अमृतपाल को संगठन का चेहरा बनाना था. बाकी संगठन का काम पांच लोगों की कमिटी को करना था. 'वारिस पंजाब दे' संगठन के शुरुआती लोगों में रहे एक शख्स ने कहा, "उस समय अमृतपाल सिंह के नाम पर आम सहमति बनी थी. हमें लगा था कि वो संगठन की बात को अच्छे से रख पाएंगे. लेकिन तब नहीं पता था कि वो संगठन के नाम का इस्तेमाल करके संगठन के लोगों को ही किनारे लगा देंगे. आज शुरूआती दौर के ज्यादातर लोग अमृतपाल से दूर जा चुके हैं."

अमृतपाल ने वारिस पंजाब दे को हाईजैक किया?

दीप सिद्धू के भाई मनदीप सिद्धू ने भी अमृतपाल के वारिस पंजाब दे जत्थेबंदी का जत्थेदार बनाए जाने पर सवालिया निशान लगाए. मनदीप ने स्थानीय मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा, 

“एक इस तरह की धारणा बनाए जाने की कोशिश की जा रही है कि दीप अमृतपाल को 'वारिस पंजाब दे' की कमान संभालने के लिए तैयार कर रहा था. लेकिन यह बिल्कुल नहीं है. दीप अमृतपाल को पसंद नहीं करता था. 29 जनवरी 2022 से उसने अमृतपाल का नंबर ब्लॉक कर रखा था. दीप ने काफी सोच-विचार करने के बाद वारिस पंजाब दे जत्थेबंदी की नींव रखी. अमृतपाल ने इसे हाईजैक कर लिया. इसकी जांच होनी चाहिए.”

अमृतपाल सिंह (फोटो- इंडिया टुडे/प्रभजोत गिल)

अमृतपाल सिंह ने कई इंटरव्यू में यह स्वीकार किया है कि वो जिंदगी में कभी दीप सिद्धू से नहीं मिले. लेकिन वो किसान आन्दोलन के दौर से ही लगातार दीप सिद्धू के संपर्क में थे. इंडिया टुडे हिंदी को दिए इंटरव्यू में अमृतपाल कहते हैं, 

“दीप से फोन पर मेरी पहली बातचीत शम्भू मोर्चा के दौरान हुई. उस समय दीप के किसी साथी ने 'खालिस्तान जिंदाबाद' का नारा लगाया था. इसका विरोध करते हुए कुछ लोगों ने दीप की गिरफ्तारी की मांग की थी. मैंने तब दीप को फोन करके कहा था कि इस नारे में कोई दिक्कत नहीं है और उसे गैर-जरूरी दबाव में नहीं आना चाहिए. दूसरी मर्तबा दीप से मेरी बातचीत 26 जनवरी से पहले हुई थी. उसके बाद लाल किले पर निशान साहेब फहराने के बाद दीप पर चारों तरफ से दबाव पड़ने लगा. सब लोग उसके खिलाफ हो गए थे. मैं उस समय 2019 के बाद पहली बार लाइव आया. करीब एक घंटे के लाइव में मैंने दीप सिद्धू के पक्ष में चीजें रखी. जेल से छूटने के बाद उसने मुझे शुक्रिया कहने के लिए फोन किया. उसके बाद जत्थेबंदी बनाने को लेकर हमारी कई बार ज़ूम मीटिंग हुई. इन मीटिंग में दीप के भाई मनदीप और दूसरे लोग भी शामिल होते थे.”

लेकिन दीप वारिस पंजाब दे जत्थेबंदी से शुरूआती दौर में जुड़े एक शख्स ने नाम ना छपने की शर्त पर इंडिया टुडे को बताया, 

“दीप जब जमानत पर जेल से छूटकर बाहर आए थे तब देश-विदेश से लोगों के फोन उनके पास आ रहे थे. उस समय दीप के ही के साथी जगदीप सिंह के पास अमृतपाल का कॉल आया था. उसने ही दीप से अमृतपाल की बात करवाई थी. दीप के जाने बाद अमृतपाल ने उनकी दोस्त रीना राय से दीप के सोशल मीडिया हैंडल का पासवर्ड हासिल कर लिया और उस पर वारिस पंजाब दे के नए सोशल मीडिया पेज को प्रमोट करना शुरू कर दिया जोकि वो खुद चला रहा था. ऐसा लगता है कि बहुत सोचे-समझे तरीके से अमृतपाल ने जत्थेबंदी पर अपना कब्जा जमा लिया.”

एक तरफ अमृतपाल खुद को दीप सिद्धू का वारिस घोषित कर रहा था. दूसरी तरफ वो दीप सिद्धू की मौत के बाद श्रद्धांजलि देने के लिए भारत तक नहीं आया. इस पर दीप सिद्धू के कई करीबी लोगों ने सवाल खड़े किए. आखिर में अमृतपाल की भारत वापसी हुई. दीप सिद्धू की मौत के चार महीने बाद. जुलाई 2022 में. भारत आने के बाद अमृतपाल ने खुद की छवि अतिवादी सिख नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले की तरह गढ़ने में किन प्रतीकों का इस्तेमाल किया. अमृतपाल और भिंडरावाले को जोड़ने वाली दिलचस्प कड़ी कौन-सी है और अमृतपाल के पीछे किन ताकतों का हाथ है? यह सब जानने के लिए पढ़िए इस रिपोर्ट की अगली कड़ी.

(ये स्टोरी इंडिया टुडे मैगजीन के रिपोर्टर विनय सुल्तान ने की है.)

वीडियो: फरार अमृतपाल सिंह ने सोशल मीडिया पर दूसरा वीडियो जारी कर क्या धमकी दे दी