एडिटोरियल में क्या कहा गया है?
सॉवरेन देशों को इमरजेंसी सिचुएशन्स में इंटरनेट बंद कर देना चाहिए. भारत को अमेरिका हमेशा से ही एक आइडियल डेमोक्रेसी मानता रहा है. ये विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट मार्केट है. पर जब भी नेशनल सिक्योरिटी को खतरा हुआ, भारत इंटरनेट बंद करने से हिचकिचाया नहीं.चीन के स्टेटमेंट में स्वार्थ झलकता है!
चीन ने जिनजिआंग प्रांत में कुछ साल पहले ऐसा ही कदम उठाया था. पर यूरोप और अमेरिका में इसकी कड़ी आलोचना की गयी थी. भारत का इंटरनेट बैन एक बार फिर साबित करता है कि राष्ट्रीय हितों को देखते हुए नेशनल सॉवेरेनिटी को साइबरस्पेस यानी इंटरनेट की दुनिया तक भी एक्सटेंड करना पूरी तरह उचित है.
इस एडिटोरियल का साफ मतलब निकलता है कि भारत जैसा डेमोक्रेटिक देश अगर इंटरनेट बंद करने में नहीं हिचकिचाता, तो फिर चीन के भी ऐसे सारे कदम सही माने जाने चाहिए. जिनजियांग प्रांत में चीन ने नेशनल सिक्योरिटी का हवाला देकर लगभग 10 महीनों तक इंटरनेट बंद कर रखा था. पर चीन का अपने नागरिकों पर ताला लगाने का प्रूफ इससे बहुत ज्यादा डरावना है.
चीन में सरकार का इंटरनेट पर कंट्रोल
फ्रीडम हाउस एक ऑर्गनाइजेशन है, जो हर साल इंटरनेट फ्रीडम की रिपोर्ट तैयार करती है. रिसर्च करने वाले दुनिया के सभी प्रमुख देशों में नागरिकों के इंटरनेट फ्रीडम का आकलन करते हैं. फिर सभी देशों को मार्क्स देते हैं, 100 के पैमाने पर. चीन के सबसे कम नंबर हैं. 100 में से 10. अब समझ जाइए कि चीन में सरकार इंटरनेट को कितना कंट्रोल करती है. हमें भी बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है. भारत का स्कोर इसमें 57 है. इसे आंशिक रूप से फ्री कहा गया है. पूरी तरह फ्री घोषित होने के लिए 70 नंबर चाहिए.
सरकार इंटरनेट क्यों कंट्रोल करती है?
चीन की सरकार का बस एक मकसद है. कोई उनकी विचारधारा को चैलेंज नहीं करे. अगर कर देगा तो क्या होगा? चीन की राजधानी बीजिंग में तिआनमेन चौक पर आर्मी ने प्रोटेस्ट कर रहे हजारों विद्यार्थियों का नरसंहार किया था. 1989 में. उस घटना से सरकार ने एक सीख ले ली. विरोधियों का सर उठने ही नहीं देना है.
तियानमेन चौक पर चीनी सेना ने नरसंहार किया था. (फोटो: रॉयटर्स)
चीन में पब्लिक के लिए इंटरनेट इस घटना के बाद ओपन हुआ. इंटरनेट के आने के दो-तीन साल बाद लोगों को इसकी राजनीतिक क्षमता का अंदाजा लगा. इंटरनेट के माध्यम से लोगों को सन्देश जाने लगे. प्रोटेस्ट के लिए एकजुट होने के. सरकार ने ऐसे विरोध प्रदर्शन देखकर इंटरनेट पर पंजा कसने का मन बना लिया.
इंटरनेट पर सरकार का कब्ज़ा है, तो आम इंसान को ये पता कैसे नहीं है?
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्चर हैं. नाम है मारग्रेट इ. रॉबर्ट्स. उन्होंने चीन की इंटरनेट सेंसरशिप पर रिसर्च कर एक किताब लिखी है- Censored: Distraction and Diversion Inside China's Great Firewall.
इस किताब के मुताबिक़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी मुख्य रूप से 3 तरीके अपनाती है- फियर, फ्लडिंग और फ्रिक्शन.
फियर: यानी डर. सजा मिलने का डर. जो भी लोग विरोध करने वाले हैं, उन्हें डराया जाता है कि उनके साथ बुरा होगा. पर इस उपाय में एक कमी है. मैरी कॉम पर बनी फिल्म में प्रियंका चोपड़ा का डायलॉग याद है? “किसी को इतना भी मत डराओ कि डर ही ख़त्म हो जाए.” बिलकुल ऐसा ही होता है. चीनी सरकार को पता है कि अगर उनके 140 करोड़ लोगों को ज्यादा डराया गया, तो क्रांति होने पर उन्हें दबाना कठिन है. इसीलिए डराने की तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ स्पेशल केस में ही होता है.
मैरी कॉम में प्रियंका चोपड़ा (फोटो: यूट्यूब स्क्रीनशॉट)
फ्लडिंग: यानी बाढ़ लाना. इनफॉर्मेशन की बाढ़. जैसे ही सरकार के खिलाफ कुछ लिखा जाता है, वैसे ही सरकारी तंत्र एक्टिव हो जाते हैं. और जमकर सरकार को सपोर्ट करते हैं. लक्ष्य यही है कि बहुत सारी खबरें फैला दी जाएं. इतनी कि सच और झूठ समझना मुश्किल हो जाए. इतने कमेंट या पोस्ट से तंग आकर एक एवरेज इंसान यही समझेगा कि इन ख़बरों से कुछ पता नहीं लगाया जा सकता है. झूठ के समुद्र में गोता लगाकर सच ढूंढने के लिए आम नागरिक के पास धैर्य नहीं होता. झूठ फैलाने के लिए एक ग्रुप है- 50 सेंट्स ग्रुप, जिनके मेम्बर को प्रति पोस्ट पैसे दिए जाते हैं.
फ्रिक्शन: यानी संघर्ष. जानकारी पाने का संघर्ष. अगर आपको जानकारी चाहिए, तो आपको ज्यादा समय या पैसे खर्च करने होंगे. एक आम नागरिक के पास इतना धीरज नहीं होता कि वो वेबसाइट पर ‘लोडिंग’ वाला गोल कीड़ा घूमते रहने दे. वो तुरंत बैक बटन दबा देगा. सरकार साइकोलॉजी के इसी पॉइंट का फायदा उठाती है. देखिये कैसे-
#1 सरकार वेबसाइट बैन नहीं करती. बस इंटरनेट सर्विस देने वाली कंपनियों से कहकर उन वेबसाइट को स्लो करवा देती हैं, जिन पर सरकार के विरोध में कमेंट आते हैं.
#2 सरकार प्रोटेस्ट करने वालों को अरेस्ट नहीं करती. बस जिस एरिया में प्रोटेस्ट होने वाला है, वहां पर मेसेज सर्विस वाले ऐप को स्लो कर देती है. इतना स्लो कि लोगों तक सही वक़्त पर मेसेज ही न पहुंचे.
#3 किसी भी कीवर्ड को सर्च करने से रोका नहीं जाता. बस उस कीवर्ड से जो सरकार विरोधी कमेंट वाली वेबसाइट सर्च रिजल्ट में आती हैं, उन्हें फर्स्ट पेज के बदले अंत में रखा जाता है, भले ही वो कितनी भी अहम क्यों न हो. अब आप ही बताएं कि आपने गूगल पर कुछ सर्च किया हो, क्या आप तीसरे पेज तक रिजल्ट सर्च करने जाते हैं?
एक आम इंसान इंतजार नहीं करेगा. जो वेबसाइट नहीं खुल रही, उसे बंद कर कोई और खोल लेगा. प्रोटेस्ट के मेसेज नहीं आने पर घर बैठा रहेगा. ये कभी नहीं जान पायेगा कि सरकार इंटरनेट पर सर्च रिजल्ट के साथ खिलवाड़ करती है. सच जानने के लिए इतनी मशक्कत नहीं करेगा. एक लाइन में कहें तो चीन की सरकार ने सम्मोहन का जाल बिछा रखा है. आम इंसान को इंटरनेट पर वही दिखता है जो सरकार दिखा रही होती है.
उदाहरण भी देख लीजिए: गूगल. इंटरनेट सर्च के लिए सबसे बड़ी कंपनी. 2009 में चीन के इंटरनेट सर्च मार्केट का 40 प्रतिशत हिस्सा गूगल का था. चीन की सरकार ने गूगल को सर्च रिजल्ट के साथ छेड़-छाड़ करने के लिए कहा. गूगल ने मना कर दिया. सरकार ने गूगल से इसका बदला लिया. इनकी वेबसाइट स्लो करवा दी. लोगों ने गूगल यूज करना ही छोड़ दिया. 1 साल में मार्केट शेयर 40 से 2 परसेंट पर आ गया. वैसे उसके 2 साल बाद चीन ने गूगल को बैन ही कर दिया.
चीन में इंटरनेट कैसे कंट्रोल होता है? 1994 से अब तक इंटरनेट कंट्रोल करने के लिए एक लार्ज स्केल सेटअप तैयार हो चुका है. पहले इसे मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी हैंडल करती थी. उस समय चीन के इंटरनेट पर निगरानी कर इसे बाहर की दुनिया से अलग करने के लिए एक प्रोजेक्ट चला- नाम था गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट. अब इसे ही ग्रेट फायरवॉल ऑफ चाइना कहा जाता है. जैसे ग्रेट वॉल ऑफ चाइना बाहर के आक्रमण से बचाता है, वैसे ही ये फायरवॉल बाहर के इंटरनेट को एक्सेस नहीं करने देता है. इन तरीकों से इंटरनेट कंटेंट पर सरकार शिकंजा कसती है :
वेबसाइट ब्लॉक करना चीनी सरकार चाहती है कि सारी वेबसाइट अपने कंटेंट की निगरानी करे. सरकार-विरोधी जानकारी या पोस्ट कभी इंटरनेट पर नहीं आए. जो भी वेबसाइट इस बात को मानने से इनकार करती है, उसे ब्लॉक कर दिया जाता है. जैसे- विकिपीडिया, गूगल, फेसबुक, आदि. 2015 से 2018 तक ही 13 हजार से ज्यादा वेबसाइट ब्लॉक किए गए. ब्लॉक किए गए वेबसाइट के अल्टरनेटिव को सरकार प्रमोट करती है. जैसे सर्च के लिए गूगल की जगह Baidu, Youtube की जगह Youku, सोशल मीडिया के रूप में Weibo, मेसेज करने के लिए Wechat और शॉपिंग के लिए Taobao. ये वेबसाइट सरकार की बात मानते हुए उनके स्वार्थ के हिसाब से चलती हैं.
टॉपिक फिल्टर करना सरकार सर्च होने वाले टॉपिक या सोशल मीडिया पर चल रही बहसों पर भी निगरानी रखती है. अगर कोई टॉपिक उनके खिलाफ होता है, तो उसे हटा दिया जाता है, और उस टॉपिक से संबंधित सारे रिजल्ट डिलीट कर दिए जाते हैं. ऐसा करने के लिए सरकार के मुलाजिम तो हैं ही, प्राइवेट कंपनी के कर्मचारी भी इंटरनेट पर डाले गए कमेंट्स को पढ़कर रिव्यू करते हैं. एक ऑफिसियल स्टेटमेंट के अनुसार चीन में ऐसे 20 लाख से अधिक कर्मचारी हैं, जो इंटरनेट पर डाले गए कंटेंट की निगरानी करते हैं.
नागरिकों पर निगरानी चीन में इंटरनेट पर एक-एक क्लिक का हिसाब सरकार के पास होता है. सरकार के पास सबकी ब्राउज़िंग हिस्ट्री होती है. सभी नागरिकों पर सरकार नजर रखती है. अगर कोई व्यक्तिगत रूप से विरोध जता भी रहा है, तो उसे तब तक नहीं टोका जाता है, जब तक वह प्रोटेस्ट के लिए दूसरे लोगों को उकसाना शुरू नहीं करता.
इंटरनेट फ्रीडम के लिहाज से ये खिलवाड़ बुरा है?
The largest selective suppression of human communication in any country
, “किसी भी देश में लोगों के बीच कम्युनिकेशन का सबसे बड़ा दमन” ऐसा कहना है कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर गैरी किंग और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के जेनिफर पैन और मारग्रेट रॉबर्ट्स का. इन तीनों ने चीन के इंटरनेट सेंसरशिप पर रिसर्च किया है. सेंसरशिप एक हथियार है, जो सरकार के पास होता है. देश की जनता क्या देख सकती है और क्या नहीं देख सकती है, ये तय करने में इसका इस्तेमाल होता है. पर चीन के एक एवरेज इंसान को ये पता नहीं है कि उसके ऊपर इस हथियार का इस्तेमाल हो रहा है. उसकी बुद्धि सीमित हो गयी है. ये बहुत भयावह है. जिसको बहुत ज्यादा जरूरत है, वो VPN का इस्तेमाल करता है, बाहर की वेबसाइट चलाने के लिए. सरकार को ये पता भी है. कभी-कभी सरकार VPN चलाने वालों को अरेस्ट भी करती है.
क्या भारत चीन की दिशा में जा रहा है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको थोड़ी देर के लिए व्हाट्सएप वाला ज्ञान भूलना पड़ेगा. चीन में सरकार जनता को जो दिखाना चाहती है, जनता को बस वही दिखता है. सरकार की तारीफ करते हुए झूठ फैलाने के लिए लोगों को पैसे देती है. क्या भारत में भी वैसा ही हो रहा है? इंटरनेट पर झूठ फैलाया जा रहा है? विरोध करने पर डराया जा रहा है? इंटरनेट को बंद किया जा रहा है? इन सवालों का जवाब निकाल लीजिए. पता चल जाएगा कि नेहरू का ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ 70 साल बाद के लिए था.
ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे रूपक ने की है.